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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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अय्यर महोदय ने अपने ग्रन्थ क्रोनोलॉजी ऑफ एंशियेंट इण्डिया में इस मत का प्रतिपादन किया कि विक्रम सम्वत् का प्रवत्तंक उज्जयिनी का महाक्षत्रप चष्टन था। "अय्यर महोदय का मत कई अनुमानों पर आधारित है तथा स्वीकार करने योग्य नहीं । आज की ही भांति चष्टन भी शक राजा था। सभी भारतीय अनुश्रुतियां एक मत हैं कि विक्रम सम्वत् का प्रवर्तक शकारि (शकों का शत्रु) था स्वयं शक नहीं। अतः कोई भी शक विक्रमादित्य उपाधि का दावा नहीं कर सकता।"
कीलहीन का मत है कि विक्रमादित्य नामक कोई राजा ई० पूर्व ५७ में नहीं था। विक्रम काल का अर्थ उन्होंने युद्ध काल माना है और चूंकि मालव सम्वत् का प्रारम्भ शरद ऋतु में होता है जब राजा लोग युद्ध के लिए निकलते थे, इसीलिए उसका नाम विक्रम सम्वत् रखा गया। इस मत को मानने में भी अनेक बाधायें हैं । एक तो विक्रम और युद्ध शब्दों में अर्थ सामान्य नहीं हैं, दूसरे विक्रम सम्वत् शरद ऋतु में ही सर्वत्र प्रारम्भ नहीं होता। जायसवाल के अनुसार लोकप्रिय कहानियों और अनुश्रुतियों का विक्रमादित्य गौतमी पुत्र शातकर्णी था। उनके विचार में प्रथम शती ई० पूर्व में शकों के विरुद्ध दो महत्वपूर्ण भारतीय सफलतायें हैं : प्रथम आन्ध्र राजा गौतमी पुत्र शातकर्णी द्वारा नहपान की पराजय, दूसरी मालवों द्वारा शकों की पराजय । जायसवाल का विचार है कि इस संयुक्त मोर्चे का नायक गौतमी पुत्र शातकर्णी था। अतः वही शकारि विक्रमादित्य है। मालवों ने भी इस युद्ध में भाग लिया तथा इस घटना की स्मति को बनाये रखने के लिए उन्होंने मालव सम्वत् की स्थापना की । क्योंकि उनका नायक गौतमी पुत्र शातकर्णी (विक्रमादित्य) था अतः उसका विरुद विक्रमादित्य सम्वत् से सम्बन्धित हो गया। परन्तु जायसवाल के मत के सम्बन्ध में कई आपत्तियां हैं : प्रथम नहपान की राष्ट्रीयता तथा तिथि अभी तक निश्चित नहीं है, द्वितीय न तो पुराण और न आन्ध्र प्रदेश के अभिलेख इस बात का उल्लेख करते हैं कि गौतमी पुत्र अथवा इस वंश के अन्य किसी राजा ने
१. राजबली पाण्डेय, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", वाराणसी, १९६०,
पृ० ५३ । २. हरि निवास द्विवेदी, व अन्य, "मध्य भारत का इतिहास",प्रथम खण्ड १९५६,
पृ०४३३ । ३. राजबली पाण्डेय, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", वाराणसी, १९६०,
पृ०५४ ।