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भारतीय संवतों का इतिहास न रहीं। इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली में दिये गये अपने लेख में मजूमदार ने अल्बेरूनी के विवरण का सचाऊ द्वारा किये गये अनुवाद के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि "इस संवत् का सम्बन्ध विक्रम के ४०० वर्ष पूर्व अर्थात् ४५७ ई० पूर्व में आरम्भ होने वाले संवत् से है जो मथुरा व कन्नौज में प्रचलित था। यह सम्भवत: नंदों का संवत् हो सकता है न कि हर्ष का, क्योंकि हर्ष उस काल में था ही नहीं। अन्त में मजमदार पूर्ण विश्वास के साथ लिखते है : "हम अल्बेरूनी तथा जैसलमेर के दो साक्ष्यों से इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सिंध अथवा पश्चिमी भारत में एक अथवा एक से अधिक संवत् प्रचलित रहे होंगे, जिनकी तिथियां हर्ष संवत् से मेल खाती होंगी। इस प्रकार हर्ष संवत् की जो तिथियां दी गयी हैं वे इनमे से ही किसी संवत् की रही होंगी न कि हर्ष के राज्यारोहण के सम्बन्ध में आरम्भ होने वाले संवत् की ।"२ मजूमदार हर्ष संवत् में अंकित माने जाने वाले अधिकांश लेखों को नेपाली संवत् का मानते हैं।
डा० देवहूती व डी०सी० सरकार ने मजूमदार द्वारा हर्ष संवत् के सम्बन्ध में उठायी गयी शंकाओं का खण्डन अपने लेखों में किया है । तथा अधिकांश रूप से मान्य मत ६०६-०७ ई० में हर्ष संवत् का आरम्भ का समर्थन किया है । मजूमदार द्वारा लगाये गये आरोप कि हर्ष संवत् का उल्लेख न बाण ने किया है और न ह्वेन्सांग ने, का खण्डन करते हये डी०सी सरकार ने लिखा है : अगर हर्ष ने ढिढोरा पीट कर सवत् की स्थापना नहीं की और वह केवल क्षेत्रीय गणना ही करता रहा, तब उसके उत्तराधिकारियों ने इसे अवश्य ही संवत् में परिवर्तित कर दिया होगा। तथा बाण व हन्सांग जो हर्ष के समकालीन ही थे, उनके द्वारा संवत् का उल्लेख न किया जाना विशेष महत्त्व नहीं रखता।" मजूमदार का दूसरा तर्क यह है कि हर्ष ने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया व उसके अधीनस्ष शासक स्वतन्त्र हो गये, तब इन स्वतन्त्र राजाओं ने भी उसके कानूनी तिथि क्रम को जारी रखा तथा संवत् का स्वरूप दिया, यह अभिलेखों से स्पष्ट है। अधिकांश विद्वानों का मत है कि नेपाली संवत् भी हर्ष संवत् ही था क्योंकि
१. आर० सी० मजूमदार, 'द हर्ष एरा', "इण्डियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली',
वोल्यूम २७, सितम्बर १६५१, कलकत्ता, पृ० १८५। २. वही, पृ० १८७ । ३. डी०सी० सरकार, हर्षाज एक्सेंशन एण्ड द हर्ष एरा', "आई०एच०क्यू.", __वोल्यूम २७, १९५१, कलकत्ता, पृ० ३२२ । ४. वही, पृ० ३२३ ।