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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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तथ्य का उद्घाटन करते हैं। उनके विचार से कल्चुरी व त्रैकुटक पृथक-पृथक दो सम्वत् हैं एक नहीं । "परलोकगत श्री ओझा और दूसरे लेखकों के अनुसार त्रकुटक सम्वत् भी कल्चुरी सम्वत् है । कुटकों के सम्वत् का संवत्सर २४५ का एक लेख लिख चका है । ध्यान रहे इस लेख का संवत्सर शब्द पाश्चात्य शकों के लेखों के अनुकरण पर लिखा गया है। हमारा विश्वास है कि कल्चुरी सम्वत् का आमीर राजाओं से कोई सम्बन्ध न था। वर्तमान लेखकों की यह कोरी कल्पना है।"
उपरोक्त उद्धरणों में महाक्षत्रप ईश्वर दत्त व कुशाणवंशी राजा कनिष्क का नाम कल्चुरी सम्वत् के आरम्भकर्ता के रूप में आया है । इसके अतिरिक्त दक्षिणी गुजरात तथा मध्य प्रदेश से प्राप्त लेखों के आधार पर श्री ओझा का अनुमान है : “ये लेख गुजरात आदि के चालुक्य, गुर्जर, सेंद्रक, कल्चुरी और वैकुटक वंशियों के एवं चेदी देश (मध्य प्रदेश के उत्तरी हिस्से) पर राज्य करने वाले कल्चुरी (हैहय) वंशी राजाओं के हैं। इस सम्वत् वाले अधिकतर लेख कल्चुरियों के मिलते हैं और उन्हीं में इसका नाम कल्चुरी या चेदी सम्वत् लिखा मिलता है, जिससे यह भी सम्भव है कि यह उक्त वंश के किसी राजा ने चलाया है।"3 इस संदर्भ में विभिन्न मतों व अभिलेखों के अध्ययन के बाद जायसवाल ने अपना मत इस प्रकार दिया है: "२४८-४९ वाले सम्वत् को, जिसका आरम्भ ५ सितम्बर सन् २४८ ई० को हुआ था, हम चेदी का वाकाटक सम्वत् कहेंगे।"
विभिन्न विद्वानों के मतों के विश्लेषण के आधार पर यही उचित जान पड़ता है कि कल्चरी वंशी किसी शासक द्वारा कल्चुरी सम्वत् का आरम्भ किया गया जैसाकि श्री ओझा का मत है । सम्वत् के नाम के साथ कल्चुरी शब्द का प्रयोग ही इस बात का साक्षी है कि यह कल्चुरी वंश से सम्बन्धित है । इसके अतिरिक्त यदि कनिष्क को इस सम्वत् के आरम्भ के लिये उत्तरदायी मानें तब समस्या यह है कि कनिष्क के पास पहले से ही एक सम्वत् शक सम्वत् था जो गणना
१. रोबर्ट सीवैल द्वारा उद्धृत, "दि इण्डियन कलेण्डर", लन्दन, १८६६,
पृ० १७६ । २. पण्डित भगवद् दत्त, "भारतवर्ष का वृहद इतिहास", दिल्ली, १६५०,
पृ० १७६ । ३. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपि
माला", अजमेर, १६१८, पृ० १३७ । ४. काशी प्रसाद जायसवाल, "भारतवर्ष का अंधकारयुगीन इतिहास", काशी,
१६३२, पृ० २०५।