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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
यह बात सिद्ध नहीं होती कि समुद्रगुप्त ३२४ ई० में शासन कर रहा था । यह बात प्रायः स्वीकार्य नहीं है कि जब यह दान दिया गया तो उस समय चन्द्रगुप्त इतनी आयु का रहा होगा कि शासन कार्यों में भाग लेता हो, क्योंकि उसमें उसका भी नाम है । यदि चन्द्रगुप्त को उस समय शासन कार्यों में हस्तक्षेप करने योग्य मान लिया जाय तो वह २० वर्ष से कम न रहा होगा जबकि चन्द्रगुप्त द्वितीय ३७५ ई० में सिंहासनारूढ़ हुमा तथा ४१३ ई० में उसका स्वर्गवास हुआ तथा ३०४ ई० में जन्म हुआ । ये तिथियां असंगत सी लगती हैं । अतः यह स्वीकार करना होगा कि नालंदा दान पत्र की तिथियां समुद्रगुप्त के क्षेत्रीय वर्ष की तिथियां हैं न कि गुप्त संवत् की तिथियां | इससे यह भी स्पष्ट होता है कि समुद्रगुप्त ने अपने शासन काल के आरम्भ में गुप्त संवत् का प्रयोग नहीं किया ।' आर० एस० गोयल ने ३१६ ई० को ही गुप्त संवत् के आरम्भ का वर्ष माना है ।
सर्वाधिक मान्य विचार चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्त संवत् की स्थापना का है । ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम अपने वंश का प्रथम शासक था जिसने स्वतन्त्र गुप्त साम्राज्य की नींव डाली तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की । सम्भवत: इसी ने अपने राज्यारोहण के समय गुप्त संवत् की स्थापना की । इसकी पुष्टि में उदय नारायण राय व बी० एन० लूनिया" द्वारा इस सम्बन्ध में कुछ निष्कर्ष इस प्रकार दिये गये हैं : (१) अल्बेरुनी के वर्णन के अनुसार गुप्त संवत् शक संवत् के २४१ वर्ष बाद अर्थात् ७८ ÷ २४१=३१६ ई० में आरम्भ हुआ । (२) खोह अभिलेख की तिथि १५६ गुप्त संवत् है । इसी अभिलेख के अनुसार उस वर्ष महावैशाख संवत्सर था । वाराह मिहिर की गणना के अनुसार शक संवत् ३६७ में महावंशाख संवत्सर पड़ता है । इस गणना के अनुसार शक संवत् ३६७ तथा गुप्त संवत् १५६ एक ही वर्ष में पड़े । अत: दोनों में ३६७ - १५६ = २४१ वर्षों का अन्तर है । इससे भी अल्बेरुनी के कथन
एस० आर० गोयल, "ए हिस्ट्री आफ दि इम्पीरियल गुप्ताज", इलाहाबाद, १९६७, पृ० १०६-०७ ।
२. वही, पृ० ४०३ ॥
३. उदय नारायण राय, "गुप्त राजवंश तथा उसका युग", इलाहाबाद, १६७७, पृ० ६२८-३० ।
४. बी० एन० लूनिया, “गुप्त साम्राज्य का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास ", इन्दौर, १६७४, पृ० १२७-३० ॥