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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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भारतीय संवतों के संदर्भ में यह आम धारणा है कि अधिकांश भारतीय संवतों का आरम्भ उनके आरम्भकर्ता के अन्त समय से हआ। शक व हर्ष सवता का आरम्भ भी अल्बेरुनी इनके आरम्भकर्ताओं के अन्त समय से बताता है कि जबकि इन संवतों के विषय में हुये अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि इन संवतों का आरम्भ उन्हीं राजाओं ने किया जिनके नाम पर इनका नाम पड़ा है तथा उनके विनाश से संवत् आरम्भ नहीं किये गये हैं।
एलेग्जेण्डर कनिंघम ने गुप्त व वलभी दो अलग-अलग संवत् माने हैं । कनिंघम के विचार से १६७ ई० में गुप्त संवत् की स्थापना हुई तथा गुप्त वंश की समाप्ति पर ३१६ ई० से वलभी संवत् का आरम्भ हुआ। कनिंघम द्वारा गुप्त संवत् के आरम्भ के १६७ ई० की तिथि देने का आधार बृहस्पति का १२ वर्षीय चक्र है तथा गुप्त वंश की समाप्ति से वलभी संवत् के आरम्भ मानने का आधार अब्बु रिहा का वर्णन है ।' डा० फ्लीट ने गुप्त संवत् को लिच्छिवीं संवत् माना है । इस विद्वान के अनुसार लिच्छिवो वंश ने संवत की स्थापना की तथा बाद में इसे गुप्त वंश ने ग्रहण कर लिया। इस संबंध में फ्लीट का कथन इस प्रकार है:
इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि प्रारम्भिक गुप्त शासक नेपाल में अपने लिच्छिवी सम्बन्धियों द्वारा प्रयुक्त होने वाले संवत् के स्वरूप तथा उद्भव से भली-भांति परिचित रहे होंगे । गुप्तों को ऐसे राजवंश के संवत् को अंगीकार करने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती थी जिसके साथ सम्बन्ध होने में वे विशेष गर्व का अनुभव करते थे । अतः मेरे विचार से सर्वाधिक सम्भावना इस बात की है कि तथाकथित गुप्त संवत् एक लिच्छिवी संवत् था जिसका प्रारम्भ या तो लिच्छिवियों के गणतंत्रात्मक अथवा गोत्रीय गणतन्त्र की समाप्ति के पश्चात् राजतंत्र के प्रतिष्ठापन के समय से हुआ अथवा जयदेव प्रथम के शासन काल के प्रारम्भ से हमा, जिसने इस वंश की नेपाल में अवासीत एक शाखा में एक नये राजवंश की स्थापना की थी।
१. एलग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६,
पृ० ५७ । २. जान फेदफुल फ्लीट, "भारतीय अभिलेख संग्रह", अनु० गिरजा शंकर प्रसाद
मिश्र, जयपुर, १९७४, पृ० १३४ ।