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भारतीय संवतों का इतिहास
अगले सौर सन् के नम्बर लेता है । इस तरह से १६०० ए०डी० जैसाकि हमने देखा है वह प्रचलित बंगाल सेन में १३०७ है । लेकिन चन्द्रसौर फसली आश्विन कृष्ण प्रतिपदा जो १६०० ए०डी० से आरम्भ होता है वह बंगाल सन् का अगला नंबर लेता है जो वर्तमान में १३०८ है। इस तरह बंगाल फसली संवत् प्राप्त करने का नियम यह है : "वर्तमान ई० वर्ष में से ५६२ धटाने पर फसली वर्ष प्राप्त होगा।"" दक्षिणी फसली सन् १५५६ तक एक हिज्रा वर्ष के अनुसार था। इसके पश्चात् इसे सौर वर्ष मान लिया गया। सूर्य के मार्गशीर्ष नक्षत्र में प्रवेश के साथ वर्ष आरम्भ होता है । अर्थात् बम्बई में ७ या ८ जन से वर्ष आरम्भ होता है। महीने, उनके आरम्भ का समय व दिन भी वही हैं जैसे कि इस्लामिक पंचांग में होते हैं । “मद्रासी फसली वर्ष एक कृषि सम्बन्धी सौर वर्ष है तथा सायन वर्ष है । यह पहली जौलाई से आरम्भ होता है। इसके वर्ष और माह का कोई विभाजन नहीं होता। इसका चालू वर्ष प्राप्त करने का नियम यह है : वर्तमान फसली-ई० वर्ष ५६० । कृषि सम्बन्धी या लगान सम्बन्धी वर्ष १ जौलाई १६१० से ३० जून १६११ तक प्रकट करना चाहिये । मद्रास में फसली वर्ष का अन्धानुकरण है । यह उन लोगों को भ्रमित करता है जो गांव में नहीं रहते । शनःशनैः यह प्रयोग से बाहर होता जा रहा है। यह अनियमित तिथिक्रम
बंगाली सन् बंगाल प्रान्त के नाम पर इस संवत् का नाम बंगाली सन् पड़ा है। इसको बंगाली सेन अथवा बंगाब्द नामों से भी जाना जाता है। "इस संवत् का प्रचलन बंगाल प्रान्त में था।'४ बंगाली सन् का वर्तमान प्रचलित वर्ष ज्ञात करने की पद्धति कलण्डर सुधार समिति रिपोर्ट में इस प्रकार दी गयी है : "बंगाली सन् के वर्तनान चाल वर्ष को जानने के लिए १५५६ के हिज्रा वर्ष ६६३ को लें और उसमें सौर्य वर्ष की संख्या जोड़ दें ।"५ इस प्रकार १९८६ ई० सन् बंगाली सन्
१. एल० डी० स्वामी पिल्लयी, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", मद्रास, १६११,
पृ० ४५ ! २. वही। ३. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर होरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन
लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ० १६३ । ४. "रिपोर्ट ऑफ द कलेण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १९५५, पृ० २५८ । ५. वही, पृ० २५७ ।