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भारतीय संवतों का इतिहास डा० डी० एस० त्रिवेद ने गुप्त संवत के सम्बन्ध में नया ही सिद्धान्त प्रस्तुत किया है । उन्होंने गुप्त वंश का शासन काल ३२७ ई० से ८२ ई० पूर्व तक बताया है । तया गुप्त संवत् के आरम्भ की तिथि ३०६ ई० पूर्व मानी है। अपने मत की पुष्टि में डः० त्रिवेद द्वारा अनेक साक्ष्य दिये गये हैं। विद्वानों का एक वर्ग यह मानता है कि निश्चय ही गुप्त वंश के ही किसी शक्ति सम्पन्न शासक द्वारा गुप्त संवत् की स्थापना की गयी थी। इस वर्ग के विद्वानों का यह विश्वास है कि वंश के शक्ति विनाश से नहीं, वरन् शक्ति सम्पन्नता व वंश उत्थान के समय से संवत् का आरम्भ किया गया। ये विद्वान ३१६ ई० को ही गुप्त संवत् का ० वर्ष मानते हैं तथा अधिकांश का विश्वास है कि गुप्त व वलभी दोनों नाम ३१६ ई० में आरम्भ होने वाले संवत् के ही हैं । इनमें पी० सी० सेन गुप्त, सी० मोबेल डफ, आर० सी० मजूमदार तथा डा. वासुदेव उपाध्याय प्रमुख हैं । परन्तु इस वर्ग के विचारकों की प्रमुख समस्या यह है कि गुप्त वंश की शक्ति किस शासक के समय में इतनी बड़ी थी कि वंश को अपने पृथक संवत् की आवश्यकता महसूस हुयी। इस संबंध में सर्वप्रथम मजूमदार के मत को देखा जा सकता है । जो यह मानते हैं कि गुप्त संवत् का आरम्भकर्ता गुप्त वंश का शक्तिशाली शासक समुद्र गुप्त था । “साधारणत: यह विचार किया जाता है कि गुप्त संवत् जो चन्द्र गुप्त द्वारा अपने राज्यारोहण को मनाने के लिये चलाया गया, का प्रारम्भ २६ फरवरी ३२० ई० में हुआ परन्तु इसकी सत्यता के कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं । साथ ही हम इस बात की सत्यता को भी नहीं नकार सकते कि गुप्त संवत् का आरम्भ समुद्रगुप्त के राज्योहरण से हुआ, जो इस वंश का संस्थापक तथा सर्वाधिक महान शासन था। २ डा० मजूमदार ने अपना यह मत गया व नालंदा अभिलेखों - आधार पर दिया परन्तु इन अभिलेखों की प्रमाणिकता संदिग्ध है । अतः गोयल मजूमदार के मत से भी सहमत नहीं हैं :". नालंदा व गया के ये दान पत्र विवादास्पद हैं, हमारा विश्वास है कि ये वास्तविक दान पत्र की प्रतिलिपियां हैं । यदि मजूमदार के विचारों को मान लिया जाय, तब समुद्र गुप्त का शासन ३२४ ई० के करीब था परन्तु इसकी पुष्टि नहीं होती।" अपने मत के समर्थन में गोयल आगे लिखते हैं :
१. डी० एस० त्रिवेद, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", बम्बई, १९६३, पृ० २७ । २. आर० सी० मजूमदार, "गुप्तएरा : द क्लासीकल एज", भारतीय विद्या
भवन ग्रंथ माला, बम्बई, १६५३, पृ० ४। ३. एस आर० गोयल, "ए हिस्ट्री ऑफ दि इम्पीरियल गुप्ताज", इसाहाबाद,
१६६७, पृ० १०५।