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भारतीय संवतों का इतिहास है और साथ ही गणना पद्धति का सही तरीका भी ज्ञात नहीं है जिससे वर्तमान प्रचलित वर्ष निकाल पाना सम्भव नहीं है ।
इस सम्वत् का आरम्भकर्ता कौन था इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है । डा० भगवान लाल इन्द्रजी' ने महाक्षत्रप ईश्वरदत्त को और डा० के०ए० शास्त्री ने अमीर ईश्वरदत्त को इस सम्वत् का प्रवर्तक माना है । रमेशचन्द्र मजूमदार ने इसको कुशाण वंशी राजा कनिष्क का चलाया हुआ माना तथा कनिष्क, वासिष्क, हुविष्क और वासुदेव के लेखों में मिलने वाले वर्षों का कल्चुरी सम्वत् का होना अनुमान किया है। परन्तु ये सभी मत अनुमान मात्र हैं। इनके समर्थन के लिए प्रमाणिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये जाते । भण्डारकर ने इस सम्वत् का आरम्भ तीसरी सदी ईस्वी बताया तथा कल्चुरियों को विदेशी माना । जबकि मजूमदार का विश्वास है कि कनिष्क ने २४८ ई० में कुटक-कल्चुरी-चेदी सम्वत् की स्थापना की थी। सी० मो० डफ ने यह तिथि २४६ ई० प्रचलित, रविवार अगस्त २६, आश्विन सुदी प्रथम, कलि सम्वत् ३३५० दी है। कनिधम ने कल्चुरी सम्वत् का आरम्भ (२४६ ई०=० तथा २५० ई०=१) २४६ ई० से तथा २५० ई. में प्रथम पूर्ण वर्ष माना है। प्रो० कीलहोर्न ने इस सम्वत् से सम्बन्धित ७६३ से ९३४ तक के दस लेखों का परीक्षण किया तथा यह परिणाम पाया कि चेदी के प्रथम चालू वर्ष का पहला दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, चैत्रादि विक्रम के ३०६ चालू वर्ष के बराबर था जोकि शक १७१ चालू तथा ५ सितम्बर, २४८ ई० के बराबर था। इस सम्वत् के माह पूर्णिमांत थे। तथा चेदी वर्ष का आरम्भ २४७-४८ ई० में हुआ । पण्डित भगवद्दत्त इस सम्वत् के सम्बन्ध में एक नये
१. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन
लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ० १७३ । २. वही। ३. वही। ४. सी० मोबल डफ, "द क्रोनोलॉजी ऑफ इण्डिया", भाग-१ वाराणसी, १९७५
पृ० २६ । ५. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६,
पु. ६०। ६. के०ए० नीलकंठ शास्त्री लिखते हैं : 'उस राजवंश के बारे में इससे अधिक
कुछ भी नहीं मालूम कि उस वंश ने २४६-५० ई. में एक सम्वत् शुरू किया जिससे बाद में कलाचरी (ऐसा ही) या चेदी कहा गया है', "दक्षिण भारत का इतिहास", अनु० वीरेन्द्र वर्मा, पटना, १९७२, पृ० ६८ ।