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ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले सम्वत्
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सेनाध्यक्ष की शक विजय के उपलक्ष में कृत-सम्वत् की संज्ञा दी गयी । “अब यह भी माना जा सकता है कि जिस कृत नामक प्रजाध्यक्ष ने इस सम्वत् की स्थापना की उसका उपनाम विक्रमादित्य था।"१ अल्तेकर के विचार के सम्बन्ध में हरि निवास द्विवेदी का मत है : "जब यहां तक अनुमान किया जा सकता है तो ऐसे आधार भी हैं जिनके कारण यह विश्वास किया जा सके कि ई० पूर्व ५८ में विक्रमादित्य ने ही मालवगण नाग तथा अन्य शक विरोधियों का संघ बनाकर उसका नेतृत्व किया होगा। मालव भी उसे अपनी विजय मान सकते थे तथा अन्य भी।"२ हरिहर नाथ द्विवेदी का मत है : "मालव वंश में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा था जिसने ५८ ई० पूर्व में अपने वंश को फिर से स्थापित किया इसीलिए यह विक्रम सम्वत् कहलाया। परन्तु यह मत इसीलिए ग्राह्य नहीं है कि आठवीं सदी ई० पूर्व से किसी अभिलेख में इस सम्वत् को विक्रम सम्वत् नहीं कहा गया है।"3
इस प्रकार विक्रम सम्वत् के आरम्भकर्ता के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने विभिन्न राजाओं के नाम गिनाये हैं तथा अपने-अपने सिद्धान्त की पुष्टि के लिए अनेक तर्क दिये और इनमें अनेक मतों की पुष्टि दूसरे विद्वानों ने भी की, किन्तु किसी भी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले मुद्रा व अभिलेखीय साक्ष्यों को देखना तथा उनके आधार पर विद्वानों द्वारा प्राप्त किये गये निष्कर्षों को समझना भी आवश्यक है । क्योंकि विक्रम सम्वत् की आरम्भ तिथि तथा आरम्भकर्ता दोनों ही तथ्यों के सम्बन्ध में मत भिन्नता है।
धौलपुर से चाहमान (चौहान) चंद महासेन का अभिलेख विक्रम सम्वत् ८६८ (ई० सन् ८४१) का शिलालेख प्राप्त हुआ यह प्रथम लेख है जिसमें सम्वत् के साथ विक्रम शब्द जुड़ा हुआ मिलता है । इससे पूर्व लेखों में विक्रम का नाम तो नहीं मिलता किन्तु सम्वत् भिन्न-भिन्न रीति में दिया हुआ इस प्रकार मिलता है : (1) मंदसौर से प्राप्त नरवर्मन के समय के लेख में "मालवगण
१. हरि निवास द्विवेदी द्वारा उद्ध त, "मध्य भारत का इतिहास", प्रथम खण्ड,
१६५६, पृ० ४३४। २. वही। ३. ओम प्रकाश, "प्राचीन भारत का इतिहास", दिल्ली, १९६७, पृ० १६६ । ४. राय बहादुर पण्डित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन
लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ० १६६ ।