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भारतीय संवतों का इतिहास
विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी, तृतीय भारतीय अनुश्रुतियों के अनुसार विक्रमादित्य उज्जयिनी के शासक थे, जबकि गौतमी पुत्र प्रतिष्ठान का शासक था।
भण्डारकर ने विक्रमादित्य का समीकरण चन्द्र गुप्त विक्रमादित्य से किया है, जिसने लगभग ३७५ ई० से ४१३ ई० तक पाटली पुत्र में राज्य किया था । सर्वप्रथम इस मत का प्रतिपादन डा० दत्तात्रेय रामकृष्ण भण्डारकर ने किया था। बाद में वी० ए० स्मिथ, बेरडिल, कीथ तथा भारतीय इतिहासकारों के एक वर्ग ने इसे स्वीकार किया। कुछ विद्वानों ने विक्रमादित्य का समीकरण समुद्र गुप्त से किया है । डॉ० भण्डारकर के मत की आलोचना करते हुए डॉ० राजबली पाण्डेय ने लिखा है : विक्रमादित्य उज्जयिनी के शासक का व्यक्तिगत नाम था। उसकी उपाधि सहसांक तथा शकारि थी। द्वितीय चन्द्र गुप्त तथा अन्य गुप्त राजाओं ने विक्रमादित्य उपाधि धारण की थी यह उसका व्यक्तिगत नाम नहीं था। इसके साथ ही गुप्त राजाओं का अपना एक सम्वत् था, जिसकी स्थापना ३१६-२० ई० में चन्द्र गुप्त प्रथम द्वारा हुयी थी। सभी गुप्त शासकों के लेखों की तिथि गुप्त सम्वत् में हैं तथा गुप्त सम्वत् के ह्रास के एक दम बाद मालवा से प्राप्त लेखों में स्वतन्त्र रूप से मालव सम्वत् का प्रयोग मिलता है। अत: यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि द्वितीय चन्द्र गुप्त अथवा अन्य किसी गुप्त राजा की विक्रम उपाधि कैसे मालव सम्वत् से सम्बन्धित हो सकती है । इसके साथ ही मूल विक्रमादित्य की शक्ति का केन्द्र उज्जयिनी था, जबकि गुप्त सम्राटों ने पाटली पुत्र में शासन किया तथा उज्जयिनी उसकी प्रादेशिक राजधानी थी, जहां राज्यपाल शासन करते थे।
विक्रमीय सम्वत् को विक्रमादित्य नामक व्यक्ति द्वारा प्रवर्तित न मानने वालों में डॉ. अनन्त सदाशिव अल्तेकर भी हैं। उनका कहना है कि विक्रम सम्वत् का मूल नाम कृत सम्वत् है और उसे मालव गण के कृत नामक
१. भण्डारकर, "जे० बी० आर० एस०", २०, १६००, पृ० ३६८ । २. वी० ए० स्मिथ, "अर्ली हिस्ट्री ऑफ इण्डिया", १६१४ (तृतीय संस्करण),
पृ० २६०। ३. राजबली पाण्डेय, "विक्रमादित्य सम्वत् प्रवर्तक", वाराणसी, १९६०,
पृ० ५६-५७ ।