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भारतीय संवतों का इतिहास प्रचार अभी बहुत अल्प है, अथवा अन्य दूसरे सम्प्रदायों में अपने-अपने कलेण्डरों की रिपोर्ट कलैण्डर सुधार समिति को भेजी और इस सम्प्रदाय द्वारा इस प्रकार का कोई प्रयास नहीं हुआ। इसी कारण इस सम्बत् व इसके कलैण्डर का उल्लेख कलण्डर सुधार समिति की रिपोर्ट में नहीं हुआ है।
बहाई सम्वत् का प्रति वर्ष कलैण्डर छपता है, जिसमें ईसाई कलण्डर पर ही बहाई धार्मिक उत्सवों की तिथियां व बहाई महीनों के आरम्भ की तिथियों को रेखांकित कर दिया जाता है और इसको बहाई कलेण्डर नाम दिया जाता है । बहाई कलेण्डर के महीनों के नाम इस पर नहीं दिये जाते और न ही जैसा कि बहाई कलैण्डर के लिए बताया गया कि उसके वर्ष के १६ महीने होते हैं, कलण्डर को पृथक-पृथक १६ महीनों के नाम के अनुसार विभाजित किया जाता है। इस प्रकार यह कलैण्डर भी अपनी मौलिक पहचान नहीं बना पा रहा है, बल्कि ईसाई सम्वत् का प्रतिरूप मात्र ही दृष्टिगोचर होता है। वैसे इस सम्प्रदाय के लोगों का विश्वास है कि एक दिन पूरा विश्व बहाई कलेण्डर को इसकी सरलता के कारण अपनायेगा।' किन्तु अपनी गणना पद्धति को पंचांग में न दर्शा पाने के कारण यह लोगों को कहां तक समझ आयेगा और किस प्रकार नये लोगों को आकर्षित कर सकेगा, यह सन्देहास्पद ही है।
महर्षि दयानन्द सम्वत् आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द के नाम पर ही इस सम्वत् का नाम महर्षि दयानन्द सम्वत् है । इसे दयानन्दाब्द व मद्दयानंदाब्द नामों से भी लिखा जाता है। इसका प्रचलन क्षेत्र वही समझना चाहिए जो आर्य समाज सम्प्रदाय का है। जहां भी आर्य समाजी बसते हैं, वे महर्षि दयानन्द सम्वत् का प्रोयग करते हैं।
इस सम्वत् का आरम्भ महर्षि के जन्म के समय से माना जाता है। महर्षि के जन्म के सम्बन्ध में इस प्रकार की धारणा है : "जहां तक महर्षि की जन्मतिथि का सम्बन्ध है. यह तो निर्विवाद है कि उनका जन्म सवम्त् १८८१ (सन् १८२४) हुआ था, क्योंकि उन्होंने अपने आत्मचरित्र में स्वयं इसका उल्लेख किया है, पर सम्वत् १८८१ में उनकी जन्मतिथि कौन सी थी, इस सम्बन्ध में अनेक मत हैं। अभी इस विषय में प्रमाणिक रूप से कोई मत निर्धारित नहीं किया जा सका है।"२ ऐसा प्रतीत होता है कि महर्षि की एक वर्ष आयु होने (प्रथम जन्म दिवस)
१. जे०ई० इस्लेमॉ, "बहा उल्लाह एण्ड द न्यू एरा", लन्दन, १९७४, पृ० १६७ । २. सत्यकेतु विद्यालंकार, "आर्य समाज का इतिहास", प्रथम भाग, नई दिल्ली, ति० अनु०, पृ० १६२ ।