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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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से महर्षि दयानन्द सम्वत् का आरम्भ माना गया है। इस संदर्भ में कपिल भट्ट का मत है : "आर्य समाजियों ने महर्षि दयानन्द की जन्म तिथि १६ फरवरी, १८२५ ई० से मद्दयानंदाब्द सम्वत् की शुरूआत की। इन कथनों से यही विदित है कि १८२४ ई० में महर्षि का जन्म हुआ तथा उनके प्रथम जन्म दिवस १६ फरवरी, १८२५ से इस सम्वत् का आरम्भ माना गया।
जैसाकि अन्य दूसरे धार्मिक सम्वतों, महावीर निर्वाण, बुद्ध निर्वाण के आरम्भ के लिए पूरा सम्प्रदाय ही उत्तरदायी है, व्यक्ति विशेष नहीं, ठीक इसी प्रकार महर्षि दयानन्द सम्वत् के आरम्भकर्ता के रूप में पूरा आर्य समाज ही उत्तरदायी है, किसी विशिष्ट व्यक्ति का नाम नहीं लिया जा सकता।
महर्षि दयानन्द सम्वत् विक्रम सम्वत् के ही समान है, इसके लिए पृथक रूप से किसी गणना पद्धति का निर्धारण नहीं किया गया है, मात्र व्यतीत वर्षों व वर्तमान चालू वर्ष की ही गणना की जाती है।
इस सम्वत् का वर्तमान चालू वर्ष १६५वां है तथा फरवरी, १९८६ तक इस सम्वत् के १४६ वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। १९८६-१८२५=१६४ महर्षि सम्वत् के व्यतीत वर्ष ।
इस सम्वत् का प्रयोग आर्य समाज के भवनों के निर्माण वर्ष तथा पुस्तकों के प्रकाशन वर्ष को बताने के लिए किया जाता है । भवनों व पुस्तकों पर सृष्टि सम्वत् व विक्रम सम्वत् के महर्षि दयानन्द सम्वत् का उल्लेख इस प्रकार रहता
आर्य सम्वत् १९७२६४६०७३ विक्रमाब्द २०३० दयानन्दाब्द १४६ ।
१. कपिल भट्ट, 'कैसे-कैसे सम्बत् भारत के', "कादम्बिनी", दिल्ली, अप्रैल
१९८६, पृ० ८८ । २. महर्षि दयानन्द, "ऋग्वेद", (आर्य भाषा-भाष्य), दिल्ली, १९७३ ।