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तृतीय अध्याय ऐतिहासिक घटनाओं से आरंभ होने वाले
सम्वत्
मौर्य सम्वत्
'मुरियकाल' के नाम से इस सम्वत् का उल्लेख अभिलेखों में हुआ है जिससे विद्वान यही अनुमान लगाते हैं कि मौर्यवंश से सम्बन्धित सम्वत् है। इस सम्वत् विषय में जानकारी का एकमात्र स्रोत उदयगिरी का हाथीगुम्फा में जैन राजा खाखेल का लेख है । यह अभिलेख मुरियकाल १६५ का है । "नंदवंश को नष्ट कर राजा चन्द्रगुप्त ने ईस्वी पूर्व ३२१ के आस-पास मौर्य राज्य की स्थापना की थी अतएव अनुमान होता है कि यह सम्वत् उसी घटना से चला हो । यदि यह अनुमान ठीक हो तो इस सम्वत् का आरम्भ ई० सम्वत् पूर्व ३२१ के आसपास होना चाहिए।"१ मौर्य सम्वत् के संदर्भ में खाखेल के लेख के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होता। श्री रैप्सन, भगवान लाल इन्द्र जी, काशी प्रसाद जायसवाल, चन्द्र भान पाण्डेय आदि विद्वानों ने भी मुरिय काल को मौर्य सम्वत् के रूप में स्वीकार किया है ।
हाथी गुम्फा अभिलेख मौर्य सम्वत् १६५ का है, जिससे यह स्पष्ट है कि लगभग २ शताब्दियों तक तो यह सम्वत् प्रचलन में था ही और इससे बाद में भी रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं। मौर्य वंश के किस शासन द्वारा और वंश के किस शासन वर्ष में सम्वत् आरम्भ किया गया, इस संदर्भ में तथ्य उपलब्ध नहीं है । मौर्य वंश के प्रथम शासक चन्द्र गुप्त मौर्य जो वंश संस्थापक भी था और शक्तिशाली भी था ने सम्भवत: अपने वंश की पहचान को बनाने के लिए सम्वत् की स्थापना की हो । परन्तु चन्द्र गुप्त मौर्य के शासन काल की घटनाओं, उसकी नीति व
१. राय बहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द औझा, "भारतीय प्राचीन लिपि
माला", अजमेर, १६१८, पृ० १६५ । २. चन्द्र भान पाण्डेय, "आंध्र सातवाहन साम्राज्य का इतिहास", दिल्ली,
१९६३ पृ० २७ ।