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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
डा० जायसवाल ने जे० बी० ओ० आर० एस० में लिखे अपने एक लेख में महावीर निर्वाण की तिथि ५४५ ई० पूर्व बतायी है । इसका खण्डन ज्योति प्रसाद ने निम्न रूप में किया है : "जायसवाल के सिद्धान्त की मुख्य कमी यह है कि उन्होंने जैन श्रोतों का मात्र आंशिक उपयोग किया है और केवल उस सीमा तक किया है जिस सीमा तक कि वे उनके सिद्धान्त का समर्थन करते हैं तथा शेष की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। हो सकता है कि जैन लेखकों में इस बात पर मतभेद हो कि विक्रम ने सम्वत् अपने जीवन की किसी तिथि को आरम्भ किया किन्तु इस बात पर पूर्ण सहमति है कि यह सम्वत् महावीर निर्वाण के ४७० वर्ष बाद आरम्भ हुआ।"१ एस०वी० वेंकटेश्वर ४३७ ई० पू०, प्रो० जार्ज चार्वेन्टीयर ४७७ ई० पूर्व, एच०सी० राय चौधरी ४८६ ई० पूर्व या ५३६ ई० पू० (कैन्टनी या लंका की गणनाओं के आधार पर), प्रो०सी०डी० चटर्जी ४८६ ई०पूर्व, प्रो० एच० सी० सेठ ४८८ ई० पूर्व, एन० गोविन्द पाई ५४६ से ५०१ ई० पूर्व के मध्य, पंडित जे० के० मुख्तार व प्रो० हीरा लाल परम्परागत तिथि ५२७ ई० पूर्व, मुनि कल्याण विजय ५२८ ई० पूर्व आदि विभिन्न विद्वानों ने महावीर निर्वाण के लिए अनेक तिथियां दी हैं। इन विभिन्न तिथियों का विश्लेषण कर ज्योति प्रकाश इस निष्कर्ष पर पहुंचे :
ये मूल रूप से कुछ धारणाओं या पूर्वाग्रहों और अधिकतर बाह्य और थोड़े से आन्तरिक साक्ष्यों पर आधारित है । यदि हम इस तिथि को विशेषरूप से बुद्ध की तिथि (जोकि अभी भी भारी विवाद का विषय है) के आधार पर तय करें या यूनानी समकालीनता (जोकि पूर्णतः निरापद किया हुआ तथ्य नहीं है) के आधार पर तय करें तो हम इस समस्या के साथ न्याय नहीं कर रहे होंगे। विशेषरूप से इस कारण से कि जैन, बौद्धों व ब्राह्मणों की विभिन्न परम्परायें इस विषय में एकमत नहीं हैं कि महावीर या बुद्ध की मृत्यु और चन्द्रगुप्त मौर्य के सिंहासनासीन होने के बीच कितने वर्ष का समय बीता। आवश्यकता इस बात की है कि महावीर की तिथि स्वतन्त्र रूप से तय की जानी चाहिए और ऐसे आंकड़ों के आधार पर तय की जानी चाहिए जो अधिक ठोस हों और जिनमें परिवर्तन न हो सके और तभी हमें इसका अन्य परम्पराओं तथा इतिहास के जाने माने और सिद्ध हुए तथ्यों के साथ मेल बैठाने का प्रयास करना चाहिए।'
१. ज्योति प्रसाद जैन, "द जैन सोसिज ऑफ द हिस्ट्री ऑफ एंशियेंट इण्डिया",
दिल्ली, १९६४, पृ० ३६ । २. वही, पृ० ४१ ।