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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
प्रयोग किया जाता है । यदि कहें कि आज सम्पूर्ण विश्व में ही ईसाई सम्वत् का प्रचलन है तो उचित ही होगा। लगभग अपनी १६ शताब्दियां बीतने पर यह सम्वत् भारत आया और पूरे भारतवर्ष में इसका प्रसार हुआ।
अपने आरम्भ के समय से आज तक ईसाई सम्वत् निरन्तर प्रचलन में है। इसके आरम्भ का समय विवदास्पद है । क्राइस्ट के जन्म के वर्ष को ईसाई सम्वत् का आरम्भिक वर्ष माना जाता है परन्तु ईसा मसीह का जन्म किस वर्ष में हुआ यह अनिश्चित है। "इस सन् के उत्पादक डायोनीसियस एक्सिगुअस ने ईसा का जन्म रोम नगर की स्थापना में ७६५वें वर्ष में होना मानकर इस सम्वत् के गत वर्ष स्थिर किये, परन्तु अब बहुत से विद्वानों का मानना है कि ईसा का जन्म ईस्वी सन् पूर्व ८ से ४ के बीच हुआ था, न कि ईस्वी सन् १ में ।"१ "ईसाई सम्बत् का सर्वप्रथम प्रचलन डियोनिसियस ने किया जो रोमन पादरी था। जिसने क्राइस्ट का जन्म ४५ जूलियन सम्वत् अथवा ए० यू० सी० ७५३ रोमन कैलेण्डर के अनुसार निश्चित किया । अब ४ ई० पूर्व ईसाई सम्वत् के आरम्भ की सत्य तिथि मानी गयी है। कुछ ही वर्षों पहले लन्दन में दो विशेषज्ञों ने एक शोध किया तथा क्राइस्ट की जन्म की तिथि निश्चित करने का प्रयास किया। "लन्दन २२ दिसम्बर ब्रिटेन के दो विशेषज्ञों ने कहा है कि ईसा मसीह शुक्रवार ३ अप्रैल सन् ३३ ई० में सूली पर चढ़ाये गये थे। उन्होंने बताया कि कम्प्यूटर आदि की सहायता से हमने यह हिसाब लगाया है। अब इस बारे में सारे विवाद समाप्त हो जाने चाहिए। श्री ओझा इसका आरम्भ इस सन् की पांचवी शताब्दी में मानते हैं । "ईस्वी सन् की छठी शताब्दी में इटली में, आठवीं में इंग्लैण्ड में, आंठवीं तथा नवीं शताब्दी में फ्रांस, बेलजियम, जर्मनी और स्विट्जरलैण्ड में और ईस्वी सन् १००० के आसपास तक यूरोप के समस्त ईसाई देशों में इसका प्रचार हो गया, जहां की काल गणना पहले भिन्न-भिन्न प्रकार से थी।"
१. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ०
१९४। २. एलग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६,
पृ० ८५। ३. "नवभारत टाइम्स", नई दिल्ली, २३ दिसम्बर, १९८३,१० ७ । ४. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ०
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