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भारतीय संवतों का इतिहास
ईसाई सम्वत् का वर्तमान प्रचलित वर्ष १९८६ है। आरम्भ कभी की हुआ हो, लेकिन वर्तमान समय में इस सम्वत के १६८८ वर्ष व्यतीत व १६८९वां वर्ष चालू है तथा इसके मानने वाले सभी लोग इस बात से सहमत हैं कि सम्वत् की १६ शताब्दियां बीतकर यह २०वीं शताब्दी चल रही है। ईसाई सम्वत् का यह वर्तमान प्रचलित वर्ष हिन्दू सम्वत् शक के वर्ष १९११ व विक्रम के वर्ष २०४६ के समान है।
अपनी पांच शताब्दियां बीत जाने के उपरान्त यह सन् आरम्भ हुआ, ईसाई सम्वत् के विषय में ऐसा माना जाता है। "ईस्वी सम्वत् ५२७ के आसपास रोमनगर के रहने वाले डायोनिसिअस एक्सिगुअस् नामक विद्वान् पादरी ने मजहबी सन् चलाने के विचार से हिसाब लगाकर १६४, ओलिपिअड् के चौथे वर्ष अर्थात् रोम नगर की स्थापना से ७६५ वर्ष में ईसा मसीह का जन्म होना स्थिर किया और वहां से लगाकर अपने समय तक के वर्षों की संख्या नियत कर ईसाईयों में इस सन् का प्रचार करने का उद्योग किया। यद्यपि डायोनिसियस द्वारा ईसाई सम्वत के लिए जो पंचांग दिया गया था, उसमें बाद में बहुत परिवर्तन किया गया परन्तु ईसाई सम्वत् के आरम्भकर्ता का श्रेय डायोनिसिअस को ही है और तभी से यह सम्वत् प्रचलन में है, ऐसा माना जाता है ।
प्रारम्भ में रोम लोगों का वर्ष ३०४ दिन का था जिसमें मार्च से दिसम्बर तक के १० महीने थे, जुलाई के स्थानापन्न मास का नाम क्रिन्क्रिलिस् और
ऑगस्ट के स्थानापन्न मास का नाम से स्टिलिस् था। नुमा पापिलिअस् राजा ने (ई० पूर्व ७१५-६७२) वर्ष के प्रारम्भ में जनवरी और अन्त में फरवरी मास बढ़ाकर १२ चन्द्र मास अर्थात् ३५५ दिन का वर्ष बनाया। ईस्वी सन् पूर्व ४५२ से चान्द्र वर्ष के स्थान पर सौर वर्ष माना जाने लगा जो ३५५ दिन का ही होता था, परन्तु प्रति दूसरे वर्ष क्रमशः २२ और २३ दिन बढ़ाते थे। जिससे चार वर्ष के १४६५ दिन और एक वर्ष के ३६६, १/३ दिन होने लगे। यह वर्ष वास्तविक सौर वर्ष से लगभग १ दिन बड़ा था । इस वर्ष गणना से २६ वर्ष में करीब २६ दिन का अन्तर पड़ गया अतः ग्रीकों के वर्षमान का अनुकरण किया गया जिसमें समय-समय पर अधिक मास मानना पड़ता था। इससे भी अन्तर बढ़ता रहा और जूलियस सीजर के समय वह अन्तर ६० दिन हो गया जिससे उसने ईस्वी सन् पूर्व ४६ को ४५५ दिन का वर्ष मानकर वह अन्तर मिटा
१. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ०
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