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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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ईस्वी सम्वत् की १६वीं शताब्दी के पीछे तक यूरोप के अधिकतर राज्यों में माना जाता था । फ्रांस में ई० सम्वत् १६६३ से वर्ष का प्रारम्भ तारीख १ जनवरी से माना जाने लगा। इंग्लण्ड में ईस्वी सम्वत् की सातवीं शताब्दी से क्रिस्मस् के दिन (तारीख २५ दिसम्बर) से माना जाता था। १२वीं शताब्दी से २५ मार्च से माना जाने लगा और ईस्वी सम्वत् १७५२ से, जबकि पोप ग्रेगरी के स्थिर किये हुए पंचांग का अनुकरण किया गया, तारीख १ जनवरी से सामान्य व्यवहार में वर्ष का प्रारम्भ माना गया ।
ईसाई सम्वत् में लोंद का वर्ष प्रत्येक चौथे वर्ष आता है अर्थात् कुल व्यतीत वर्षों की संख्या को ४ से भाग देने पर, यदि पूर्ण बंट जाये तब लौंद का वर्ष होगा, लेकिन शताब्दियों को पूर्ण करने वाले वर्षों को ४०० से भाग देकर पूर्ण बट जाने पर ही लौंद का वर्ष होगा। इस प्रकार वर्ष १६००, २००० आदि तो लौंद के वर्ष होंगे। परन्तु १७००, १८००, १६०० आदि ४ से पूर्ण बटने पर भी साधारण वर्ष ही होंगे । कनिंघम ने ईसाई सम्वत् के लौंद के वर्षों की सारणी अपनी पुस्तक "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज" में दी है।
ईसाई सम्वत् के पंचांग का आरम्भ जिस समय हुआ, उस समय निर्धारित उसके स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन होते रहे हैं। खगोलशास्त्रीय तथ्यों के आधार पर भूलों को सुधारा जाता रहा है, लेकिन अभी भी यह पूर्ण विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि इसका वर्तमान प्रचलित पंचांग बिल्कुल त्रुटिरहित है, न केवल भारतीय विद्वान् बल्कि स्वयं इसके अनुयायी व पाश्चात्य वैज्ञानिक भी इसके आरम्भ की तिथि को निश्चित नहीं कर पाये हैं। ईसाई सम्वत् के सन्दर्भ में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इसके अनुयायी स्वयं यीशू के जन्म की तिथि को स्थिर नहीं कर पाये जिस पर कि सम्वत् आधारित है। उदाहरण के लिए : "रोमन रिकार्ड स के अनुसार यीशू के पैदा होने के समय जोड़ा के राजा हैरोड महान् की मृत्यु वर्ष ७५० अन्नौ औरविस में हुयी, डायोनासियस ने यीशू के जन्म की तिथि को ७५४ अन्नी औरविस माना है।"२ इन विषमताओं को देखते हुए आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों ने यह मत स्थापित किया कि "सर्वमान्य कलण्डर में दी गयी तिथि के चार या पांच वर्ष पहले अर्थात्
१. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १९१८, १०
१६५। २. वही, पृ० १६४।