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भारतीय संवतों का इतिहास आदि में पहले दोनों तरह अर्थात जुलिअन एवं ग्रेगरी की शैली से तारीखें लिखते रहे, जैसे कि २० अप्रैल तथा ३ मई आदि ।”
ईस्वी सन की गणना बी०सी० तथा ए. सी० अथवा ए० डी० संकेतों से की जाती है। बी० सी० से तात्पर्य है बिफोर क्राईस्ट अर्थात् यीशू के जन्म के पूर्व की घटनायें । ए० डी० या ए० सी० का अर्थ है, आफ्टर डैथ या आफ्टर क्राईस्ट अर्थात् यीशू से बाद की घटनायें । “ए० डी० व बी० सी० का प्रयोग बाठवीं सदी में महान विद्वान् बीड आफ जरो ने आरम्भ किया जिससे गणना की सुविधा हो गयी तथा प्रथम जनवरी वर्ष का आरम्भ निश्चित कर दिया गया।"२ ए० डी० का तात्पर्य एन्नोडोमिनी भी लगाया जाता है। "ए० डी० लैटिन भाषा के एन्नोडोमिनी का संक्षिप्तीकरण है । जिसका अर्थ अंग्रेजी में प्रमु के वर्ष में है।'3 यीशू के जीवन काल से जब से कि ईसाई सम्वत् की गणना भारम्भ होती है, के समय से ही सम्वत् आरम्भ नहीं हुआ वरन् कई शताब्दी बाद सम्वत् चलाया गया तथा पहले की घटनाओं की भी गणना कर ईस्वी सम्वत् में बताया गया । "इसकी पुष्टि अनेक साक्ष्यों से होती है । योशू के पंदा होने के समय रोम सत्ता में थे तथा अक्सर अपनी सारी घटनाओं को रोम की स्थापना से तिथ्यांकित करते थे। छठी शताब्दी में पोप ने एक नया कैलेण्डर यीशू के जन्म को आधार मानकर तैयार कराया, अतः सारी तिथियां यीशू के जन्म से तिथ्यांकित की जानी थीं, इस कार्य के लिए उसने डायोनोसियस नाम के साधु को चुना । कलण्डर के बन जाने पर उसे सारे ईसाई राष्ट्रों ने स्वीकार कर लिया।"४
प्रथम जनवरी से वर्ष आरम्भ की व्यवस्था भी ईसाई सम्वत् में काफी बाद में ग्रहण की गयी । आरम्भ से ही ऐसा नहीं था। "ईस्वी सम्वत् के उत्पादक डायोनिसिप्रस् ने इसका प्रारम्भ तारीख २५ मार्च से माना था और वैसा ही
१. गौरी शंकर ओझा, "भारतीय प्राचीन लिपिमाला", अजमेर, १६१८, पृ०
१६५। २. "इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनका", वोल्यूम-तृतीय, टोक्यो, १९६७, पृ०
६०३।
३. "ऑक्सफोर्ड एडवांस्ड लनंरस डिक्सनरी ऑफ कन्टेम्परेरी इंग्लिश", ऑक्स
फोर्ड यूनिवसिटी प्रेस, ऑक्सफोर्ड, पृ० १००७ । ४. "इन्साईक्लोपीडिया ब्रिटेनका", वोल्यूम-तृतीय, टोक्यो, १९६७, पृ.