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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
की चाल, राशियों के फल आदि को बताने के लिए ईसाई सम्वत् का प्रयोग होता है । न केवल हिन्दू पंचांग में वरन् दूसरे सम्प्रदायों में भी अपने सम्वत् के पंचांग को लिखते समय ईसाई सम्वत् की तिथियां लिखी जाती हैं । बहाई सम्प्रदाय द्वारा दिये गये बहाई कलेण्डर का स्वरूप तो पूर्ण रूप से ईसाई सम्वत् पर ही निर्भर है, अपने तिथि, माह व वार को गौण तथा ईसाई तिथि व माह को मुख्य रूप में लिखा गया है जो एक नजर देखने पर ईसाई पंचांग ही जान पड़ता है, बहाई नहीं।
खगोल शास्त्रियों व ज्योतिषियों द्वारा भी ईसाई सम्वत् का प्रयोग राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। राजनैतिक कार्यों के लिए भी ईसाई सम्वत् का प्रयोग किया जाता है। मात्र धार्मिक क्षेत्र ही ऐसा है जिसमें अभी भारत के विभिन्न सम्प्रदाय अपने ही सम्वत् का प्रयोग करते हैं, उन्हीं के आधार पर मुहूर्त निकालने, शुभ लग्न सुझाने का कार्य होता है । यद्यपि उनकी तिथियों को भी साथ-साथ ही ईसाई सम्वत् की तिथि में परिवर्तित कर भी लिखा जाता है परन्तु उसका आधार उनका अपना प्राचीन समय से चला आ रहा सम्वत् ही रहता है।
हिनी सम्वत् इस्लाम धर्म के धार्मिक नेता (पैगम्बर) मोहम्मद के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना से इस सम्वत् का आरम्भ हुआ । जब मोहम्मद ने मक्का से मदीना के लिए पलायन किया उसी सुबह से हिज्री सम्वत् का आरम्भ माना जाता है। "हिज्री" शब्द का अर्थ पलायन है और पलायन की घटना से ही सम्वत् आरम्भ होता है अतः सम्वत् का नाम हिज्री सम्वत् ही रखा गया है। इसके आरम्भ की तिथि निश्चित है। १६ जोलाई, ६२२ ई० से हिज्री सम्वत् का आरम्भ होता है। ___ आधुनिक समय में वह पूर्ण रूप से चन्द्रमास पर आधारित है। इसके एक वर्ष में १२ चन्द्रमास होते हैं जो क्रमशः ३० व २६ दिन के होते हैं । अतः साधारण वर्ष ३५४ दिन का है । इसके प्रत्येक ३० वर्षीय चक्र में २, ५, ७, १०, १३, १६, १८, २१, २४, २६ तथा २६वां वर्ष लौंद का वर्ष होता है जिसमें अन्तिम महीना २६ के स्थान पर ३० दिन का होता है । आरम्भ में इस्लाम कलण्डर पूर्ण चन्द्रीय नहीं था, बल्कि चन्द्र सौर व सौर था। बाद में
१. गुलाम मोहम्मद रफीक ने अपनी पुस्तक, "इस्लाम क्रूसेड फॉर कलैण्डर",
(पट्टन, १९८१) सौर व चन्द्र सौर कलेण्डरों के लिए कुरान की आयत ९ : ३६, ३७; १० : ५ तथा १७ : १२ का हवाला देते हुए कहा है कि उन्होंने सौर इस्लामिक कलेण्डरों को खोज निकाला है। (पृ० ११५-११७) ।