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काल गणना का संक्षिप्त इतिहास, इकाईयाँ व विभिन्न चक्र
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बेबीलोन वाले चन्द्र कलाओं को अधिक महत्व देते थे। सात दिन का सप्ताह महीने की कलाओं से सम्बन्धित है। 'आरम्भ में बेबीलोन में इसे ८ दिन का माना गया. लेकिन ८ की संख्या को शुभ न मानकर यह ७ दिन का रखा गया जो सम्भवतः सात ग्रहों से सम्बन्धित है। समस्त इसाई जगत् में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में इसका प्रयोग होने लगा था ।"१ सप्ताह के सम्बन्ध में यह माना जाता है कि आरम्भ में भारतीय इसका प्रयोग नहीं करते थे। पश्चिम से यह विचार भारत आया परन्तु पं० भगवद् दत्त का विचार है कि भारतीय आर्य पहले से ही सप्ताह का प्रयोग पंचांग में करते थे।
भारतीय पंचांगों में आदि काल से ही पक्ष का प्रयोग होता था । पन्द्रह दिनों के समूह की गणना इसमें की जाती है। पक्ष यानि पखवाड़ा चन्द्रमा के चक्रों पर आधारित है। कृष्ण पक्ष अमावस्या से समाप्त होता है। शुक्ल पक्ष पूर्ण मास से समाप्त होता है। माह की गणना लगभग सभी पंचांगों में की जाती थी। माह मुख्य रूप से दो प्रकार के रहे हैं। प्रथम चन्द्र मास दूसरा सौर्य मास । चन्द्र व सौर्य मास में जो दिनों का अन्तर रह जाता है, विभिन्न पंचांग पद्धतियों में विभिन्न तरीकों से लौंद के माह के अन्तर्गत पूर्ण कर लिया जाता है अर्थात् एक निश्चित समयावधि के बाद एक अतिरिक्त माह जोड़ दिया जाता है, जिसे मल मास, लौंद का माह, निज मास अथवा संक्रान्ति रहित माह आदि नामों से जाना जाता है । “सौर्य माह वह समयावधि है जो सूर्य एक राशी से दूसरी में जाने में लेता है । चन्द्रमास वह समय है जो कि चन्द्रमा एक पूर्णमासी से दूसरी तक लेता है ।"५ शक विक्रम, इसाई, हिज्री अनेक सम्वतों में १. 'इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनका', वोल्यूम-तृतीय, टोक्यो, १९६७, पृ० ५६६ । २. पं० भगवद् दत्त, 'भारत वर्ष का वृहद इतिहास', दिल्ली, १६५०,
३. "नये चन्द्रमा से पूर्ण चन्द्रमा (पूर्णिमा) तक का समय शुक्लपक्ष कहा जाता
है, पूर्ण चन्द्र से चन्द्रमा की अनुपस्थिति (अमावस्या) तक का समय कृष्ण पक्ष कहा जाता है, कृष्ण पक्ष कभी १४ व कभी १५ दिनों का होता है क्योंकि माह छोटा बड़ा होता रहता है। एक उजाला व एक अंधेरा मिलकर एक माह का निर्माण करते हैं ।" सैमुवल वैल, 'बुद्धिस्ट रिकार्ड
ऑफ द वैस्टर्न वर्ल्ड', दिल्ली १९६६, पृ०७२। ४. आर० समाशास्त्री, 'द वैदिक कलैण्डर', नई दिल्ली, १९७६, पृ० ७६ । ५. वही।