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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
में सम्मिलित थे तथा युद्ध समाप्ति के एक दम पश्चात् शासक बने, इसके बाद अपने उत्तराधिकारी परीक्षित को राज्य देकर वन गये। तब युधिष्ठिर का युग अथवा सम्वत् कलियुग के बाद कैसे आया क्योंकि कलियुग का आरम्भ परीक्षित के राज्यारोहण से ही माना जाता है । अतः स्पष्ट रूप में नहीं कहा जा सकता कि युधिष्ठिर व कलि सम्वत् एक ही हैं अथवा पृथक्-पृथक् तथा उनमें किसका आरम्भ पहले हुआ। कलि व युधिष्ठिर सम्वतों को एक ही मानने वाले विद्वानों में गौरी शंकर ओझा का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है । "भारत के युद्ध (भारत युद्ध सम्वत्) और शक सम्वत् के बीच का अन्तर (३७५३-५५६=) ३१६७ वर्ष आता है। ठीक यही अन्तर कलियुग सम्वत् और शक सम्वत् के बीच होना ऊपर बताया गया है। अतएव उक्त लेख (चालुक्य राजा पुलकेशी द्वितीय के समय का ऐहोल पहाडी पर स्थित जैन मन्दिर का शिलालेख) के अनुसार कलियुग सम्वत् और भारत युद्ध सम्वत् एक ही हैं। भारत के युद्ध में विजय पाने से राजा युधिष्ठिर को राज्य मिला था जिससे इस सम्वत् को युधिष्ठिर सम्वत् भी कहते हैं।"१ "कलियुग सम्वत् को भारत युद्ध सम्वत् व युधिष्ठिर सम्वत् भी कहते हैं। इस सम्वत् का मुख्य उपयोग ज्योतिष के ग्रन्थों तथा पंचांगों में होता है । तो भी शिलालेख आदि में भी कभी-कभी इसमें दिये हुये वर्ष मिलते हैं। इसका प्रारम्भ ई० सम्वत् पूर्व ३१०२ तारीख १८ फरवरी के प्रातःकाल से माना जाता है ।"२ युधिष्ठिर सम्वत् के संदर्भ में एक अन्य स्रोत का जिक्र करते हुए एक विचारक ने लिखा है-सुमति तन्त्र नामक ग्रन्थ जो सन् ५७६ के आसपास लिखा गया, से युधिष्ठिर सम्वत् का उल्लेख मिलता है। इसकी एक प्रति ब्रिटिश म्यूजियम में सुरक्षित है। इस ग्रन्थ में इसके लिखे जाने की तिथि दी गयी है-"युधिष्ठिर राज्याब्द २०००, नन्द राज्याब्द ८००, चन्द्र गुप्त राज्याब्द १३२, शुद्रक देव राज्याब्द २४७ वर्ष, शक राज्याब्द ४६८ ।"3 जो भी हो पद्धति दोनों की लगभग समान है तथा कलि सम्वत् जिसका प्रयोग खगोल शास्त्रियों ने किया था लिखित रूप में लगभग १००० ई० पूर्व से मिलता है तथा दोनों ही का उल्लेख हिन्दू धर्म ग्रन्थों में हुआ है।
श्री कृष्ण जन्म सम्वत्, कलियुग आरम्भ सम्वत् व युधिष्ठिर सम्वत्, इन तीनों सम्वतों का उल्लेख विभिन्न लेखों से मिलता है। ये तीनों ही महाभारत
१. राय बहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, 'भारतीय प्राचीन लिपि___ माला', अजमेर, १६१८, पृ० १६१ । २. वही। ३. अरुण, 'भारतीय पुराइतिहासकोष', मेरठ, १६७८, पृ० ७ ।