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धर्मं चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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भट्ट के समय तक कलि सम्वत् का प्रयोग ज्योतिषियों द्वारा किया जाता था तथा कलियुग के आरम्भ से काल गणना की प्रथा थी । आर्य भट्ट के विचार से युग वर्ष, मास, दिवस आदि सभी का आरम्भ एक ही समय से हुआ है । काल अनंत एवं अनादि है, ग्रहों के आकाश में गमन करने से उसका अनुमान किया जा सकता है । प्राचीन भारतीय ज्योतिष ग्रन्थों एवं पंचांगों में कलियुग के प्रारम्भ के समय की ग्रहस्थिति का उल्लेख किया गया है । " वाराह मिहिर के समय से जो आर्य भट्ट का लगभग समकालीन ही था कलियुग का प्रयोग समाप्त हो गया । वाराह मिहिर ने सर्वप्रथम खगोलशास्त्रीय कार्यों में शक सम्वत् का प्रयोग किया । "जव कलियुग सम्वत् अकेला प्रयोग किया जाता है तो माह के दिनों को सौर्य वर्ष अथवा चन्द सौर्य के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । साधारणतः वर्ष को दो कालों में व्यक्त किया जा सकता है जिसमें एक सूर्य वर्ष से तथा दूसरा चन्द्र से जोड़ा जा सकता है । उत्तरी भारत में शक सम्वत् व कलि सम्वत् साधारणतः सूर्य की गति से बाधित हैं परन्तु हमेशा नहीं । २
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महाभारत के पश्चात् युधिष्ठिर के उत्तराधिकारी परीक्षित के राज्यारोहण के समय से कलि सम्वत् की गणना की जाती है । परन्तु महाभारत व पुराण परीक्षित नाम के दो राजाओं का उल्लेख करते हैं । अभिमन्यु पुत्र परीक्षित तथा वैदिक परीक्षित । हेमचन्द्र राय चौधरी ने विभिन्न साक्ष्यों का परिचय देते हुए इन दोनों को एक ही माना है । “यदि हम उस तथ्य पर ध्यान दें कि न केवल परीक्षित नाम, वरन् उसके अधिकांश पुत्रों के नाम एक जैसे हैं तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि परीक्षित प्रथम व परीक्षित द्वितीय एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं। उनसे सम्बन्धित व्यक्ति तथा कहानियां समान हैं । अतः सम्भावना यही है कि कुरुवंश में केवल एक ही परीक्षित हुए थे जिनके पुत्र ने तुर व इन्द्रोत दोनों पुरोहितों को प्रश्रय दिया था ।"" मैकडोनल, कीथ और पाजिटर आदि ने यह माना है कि परीक्षित प्रथम जनमेजय के पिता तथा पाण्डु के पूर्वज थे । डा० एन० दत्त ने इस मत का समर्थन किया है परन्तु राय चौधरी
१. डा० मुरली मनोहर जोशी, 'हमारी प्राचीनतम काल गणना कितनी आधुनिक व वैज्ञानिक', "धर्मयुग, दिसम्बर २५ - ३१, १९८३, पृ० २७ ।
२. एलेग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन
एराज", वाराणसी, १६७६,
पृ० ३२ ।
३. हेमचन्द्र राय चौधरी, "प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास", इलाहा बाद, १६८०, पृ० १४-१५ ।