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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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संसार पर हो गया। प्रत्येक घर, राज्य और बस्ती में लोभ, असत्य भाषण, कुटिलता, छल, कपट और हिंसा आदि के रूप में अधर्म को फलते देख राजा युधिष्ठिर ने समझ लिया कि राज्य में कलियुग का प्रवेश हो गया है । अधर्म के सहायक कलियुग ने आकर लोगों के चित्त पर अधिकार जमा लिया है, यह जानकर और धर्म, अर्थ आदि का भली भाँति सम्पादन करके भगवान् के चरण कमलों को ही अपना कल्याणकारी समझकर अर्जुन आदि चारों भाई शरीर छोड़ने का निश्चय करके युधिष्ठिर के पीछे भगवान का ध्यान करते हुए चले अर्थात् कृष्ण की मृत्यु, पाण्डवों का गृह त्याग, युद्ध की समाप्ति तथा कलियुग का आरम्भ सभी एक ही समय की घटनायें हैं। "४००० वर्षों के अंतराल ने यह मुला दिया कि ३१०२ ई० पूर्व में क्या हुआ था, लेकिन यह निश्चित है कि उस वर्ष कोई महत्वपूर्ण घटना घटी थी। बहुत सम्भव है कि उस वर्ष “शतपथ ब्राह्मण" में वर्णित प्रलय आयी हो, इस प्रलय का संसार की हर सभ्यता में वर्णन है। प्रलय का नायक वैवस्वत मनु है और इस प्रकार दोनों उल्लेखों को मिलाने से ३१०२ ई० पूर्व प्रलय की तारीख पता लग जाती है।" "बेबीलोन में आयी प्रलय का समय भी लगभग ३१०० ई० पूर्व वहां पाये गये लेखों में मिलता है।" इस तिथि के दो अन्य प्रमाण भी मिलते हैं। आइने अकबरी में अबुल फजल सम्वत् १६५२ में लिखता है कि नगर बल्ख का ग्रन्थकार अब्बू मशर जलप्लावन की जो तिथि लिखता है उसके अनुसार जल प्लावन को ४६६६ वर्ष हो गये हैं। ४६६६-१६५२=३०४४ विक्रमी सम्वत् पूर्व+५७ =३१०१ ई० पूर्व । भारत युद्ध से पूर्व भारत में कौन-कौन से सम्वत् प्रचलित थे, यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता । परन्तु भारत युद्ध द्वापर व कलि की सन्धि में हुआ, यह निर्विवाद है । पंडित भगवद्दत्त ने महाभारत के अनेक पर्वो से उदाहरण लेकर इस विचार की पुष्टि की है : "भारत युद्ध द्वापर के अन्त अथवा कलि द्वापर की सन्धि में हुआ। कलि के आरम्भ से कलि सम्वत् प्रचलित हुआ यह निर्विवाद है।"
कलि सम्बत् का आरम्भ कलियुग आरम्भ के साथ ही माना जाता है तथा डा० त्रिवेद ने इस सम्वत् की गणना कलि से पूर्व तथा कलि सम्वत् में की
१. अरुण, "भारतीय पुरा इतिहास कोष", मेरठ, १९७८, पृ० ६ । २. वही, पृ०७ । ३. वही। ४. पं० भगवद् दत्त, "भारतवर्ष का वृहद् इतिहास", नई दिल्ली, १९५०,
पृ० १६१।