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धर्मं चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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उनके शासन काल के विषय में कुछ कहता है ।"" स्पष्ट है कि कल्हण ६५३ वर्षों का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाया । कल्हण की इस भूल का कारण सम्भवतः यह रहा होगा कि वह भारतीय इतिहास के उन तीन कालों का, जो राजाओं रहित थे, उनका अनुमान नहीं लगा पाया जिनमें एक ३०० वर्षों का, दूसरा १२० वर्षों का था, तीसरे का समय निश्चित नहीं है । 2
दक्षिण के चालुक्य वंशी राजा पुलकेशी द्वितीय के समय के, एहोल की पहाड़ी पर के जैन मन्दिर के शिलालेख में भारत युद्ध से ३७३५ और शक राजाओं के ( शक सम्वत् ) ५५६ वर्ष बीतने पर उक्त मन्दिर का बनना बताया है । उक्त लेख के अनुसार भारत के युद्ध और शक सम्वत् के बीच का अन्तर (३७५३- - ५५६ = ) ३१५७ वर्ष आता है । ठीक यही अन्तर कलियुग सम्वत् और शक सम्वत् के बीच होना ऊपर बताया गया है । अतएव उक्त लेख के अनुसार कलियुग सम्वत् और भारत युद्ध सम्वत् एक ही है ।
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इस प्रकार विभिन्न परम्पराओं के आधार पर २४०० से ३१३७ ई० पूर्व तक की विभिन्न तिथियां महाभारत युद्ध की तिथि के लिए प्राप्त होती हैं । ३१०१ ई० पूर्व कलि आरम्भ व ३१३७ ई० पूर्व भारत युद्ध की तिथि की पुष्टि अधिकांश साक्ष्यों से होती है । "अभी हाल में बिजनौर में हुई महाभारत सभा जिसमें विभिन्न विद्वानों ने भाग लिया तथा अपने-अपने स्वतन्त्र विचार दिये जो पारम्परिक तिथि के करीब की तिथि की ही पुष्टि करते हैं । पुराणों में विभिन्न राजाओं तथा उनके शासन काल के विषय में एक तालमेल है, इसके आधार पर भी पारम्परिक तिथि के करीब की ही तिथि निश्चित की गयी है । इन संदर्भों के बीच का अन्तर जो बहुत साधारण है, का ध्यान रखते हुए तथ्यों का झुकाव पारम्परिक तिथि ३१३७ ई० पूर्व की तरफ जाता है ।"" स्वामी
१. अ – ए० एन० चन्द्रा, 'द डेड ऑफ कुरुक्षेत्र बार', कलकत्ता, १६७८, पृ० १, पंडित ओझा ने भी कल्हण के सिद्धान्त की आलोचना की है ।
ब - रायबहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, 'भारतीय प्राचीन लिपिमाला', अजमेर, १९१८, पृ० १६२ ॥
२. ए० एन० चन्द्रा, 'द डेट ऑफ कुरुक्षेत्र वार', पृ० ६२ ।
३. रायबहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, १९१८, पृ० १६१ ।
४. ए० एन० चन्द्रा, "द डेट ऑफ कुरुक्षेत्र वार", १९७८, पृ० ९६ ।