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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
अथवा भारतीय ज्योतिष सम्वत् जो जुलियन के ५८८, ४६६ दिन ठते हैं, अथवा विक्रम सम्वत् से ३०४४ वर्ष पूर्व अथवा शक सम्वत् से ३१७६ वर्ष पूर्व कलियुग का आरम्भ हुआ), डा० मुरली मनोहर जोशी', रघुनाथ सिंह, हेमचन्द्र राय चौधरी, एस० पिल्लयो', अरुण, राय बहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतीय कलैण्डर सुधार समिति ने भी ३१०१ ई० पूर्व कलियुग के आरम्भ की तिथि मानी है तथा यही तिथि अब सर्वाधिक मान्य व प्रमाणित समझी जाती है। यह चन्द्र सौर्य पद्धति पर आधारित है, चैत्र शुदी प्रथम से वर्ष आरम्भ होता है तथा क्रिश्चियन सम्बत् के समान ही बाद में ग्रहण किया गया है । __ भारतीय काल गणना के इतिहास में कलिसम्वत् को प्रथम गणना पद्धति माना जा सकता है। वास्तव में गणना पद्धति का विकास शनैः-शनैः हुआ। पंचांग सुधार के लिये समय-समय पर अनेक आन्दोलन चले । परन्तु इस सबका आधार यही आरम्भिक कलिसम्वत् गणना पद्धति रही है । तिथि, पक्ष, माह, आयन (उत्तरायण व दक्षिणायन) ऋतुयें तथा वर्ष आदि की जो व्यवस्था कलिसम्बत् गणना पद्धति की है वही भारत में आरम्भ होने वाले विभिन्न सम्वतों का आधार रही तथा आज भी हिन्दू पंचांग निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है तथा खगोलशास्त्रीय कार्यों का आधार है।
लौकिक सम्वत् इसको सप्तर्षि सम्वत्, लौकिक काल, लौकिक सम्वत्, शास्त्र, सम्वत् पहाड़ी सम्बत् या कच्चा सम्वत् आदि नामों से जाना जाता है । इस सम्वत् का प्रचलन मुल्तान व काश्मीर व आस-पास के क्षेत्र में रहा। यह २७०० वर्षों वाले
१. मुरली मनोहर जोशी, 'हमारी प्राचीनतम काल गणना कितनी आधुनिक ___ व वैज्ञानिक', "धर्मयुग", दिसम्बर २५-३१, १९८३, पृ० २७ । २. रघुनाथ सिंह, “ए डिक्शनरी ऑफ वर्ल्ड क्रोनोलॉजी", वोल्यूम-प्रथम,
वाराणसी, १९७७।। ३. एल० डी० स्वामी पिल्लयो, "इण्डियन क्रोनोलॉजी", मद्रास, १९११,
पृ० ४३ । ४. राय बहादुर पंडित गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, "भारतीय प्राचीन
लिपिमाला", अजमेर, १९१८, पृ० १६१ । ५. "रिपोर्ट ऑफ द कलण्डर रिफोर्म कमेटी", दिल्ली, १६५५, पृ० २५२ ।