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भारतीय संवतों का इतिहास
ने किया है । "उपाली ने विनय ग्रन्थ बुद्ध निर्वाण के बाद संग्रहीत किये । वे निर्वाण के बाद के सांतवें महीने से पूर्णिमा के दिन उसकी पूजा करते थे तथा प्रति वर्ष एक बिन्दु दिया करते थे। ४६० ई० में वहां ६७५ बिन्दु थे, जो ९७५ वर्षों का प्रतिनिधित्व करते थे। योग्य शिष्यों के अभाव में वहां कोई बिन्दु नहीं रखे गये। अत. भगवान बुद्ध की निर्वाण तिथि उपाली ने ६७५४६० =४८५ ई० पूर्व मानी है। कैंटन परम्परा को डा० त्रिवेद ने अविश्वसनीय बताया है तथा इसकी आलोचना की है : "केंटन परम्परा अब विश्वसनीय नहीं रही, क्योंकि यह निश्चित नहीं कि पूर्व में धर्म प्रचार का कार्य उपाली को सौंपा गया था। शताब्दियों के दीर्घकाल में एक या दो बिन्दु भूल जाना या मिट जाना सम्भव है । सुयोग्य अनुयायियों के अभाव में यह भी सम्भव है कि बिन्दु रखें ही न गये हों।"२ डा. त्रिवेद का विचार है कि विचारकों ने बुद्ध के काल को अपने समीप रखने लिए इन परम्पराओं का सहारा लिया है । डा० त्रिवेद ने स्वयं बुद्ध निर्वाण की तिथि १७६३ ई० पूर्व मानी है। परन्तु डा० त्रिवेद के विचारों को भी अधिक मान्यता प्राप्त नहीं
सीलोन, ब्रह्मदेव तथा श्याम परम्पराओं के अनुसार बुद्ध ने ५४३ ई० पूर्व में निर्वाण प्राप्ति की। इन परम्पराओं के सम्बन्ध में भी त्रिवेद का कहना है : बुद्ध निर्वाण की तिथि दीपवंश व महावंश के अनुसार क्रमशः ५४३ ई० पूर्व तथा ५२२ ई० पूर्व है।
एलग्जेण्डर कनिंघम ने विभिन्न बौद्ध व अन्य दूसरे साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद ५४४ ई० पूर्व बुद्ध के परिनिर्वाण की तिथि स्वीकार की है। "सभी बौद्ध साक्ष्य इस बात पर एकमत हैं कि बुद्ध का निर्वाण अशोक के राज्यारोहण से २१४ वर्ष पूर्व हुआ। इस प्रकार यह तिथि २१४+२६४ = ४७८ ई० पूर्व बैठती है ।"५ कनिंघम द्वारा और दूसरे साक्ष्यों से बुद्ध निर्वाण की तिथि ५४४ ई० पूर्व पायी गयी। "बुद्ध साक्ष्यों के अतिरिक्त दूसरे साक्ष्य बुद्ध निर्वाण की तिथि ५४४ ई० पूर्व देते हैं । इस प्रकार इन दोनों साक्ष्यों में
१. डी० एस० त्रिवेद, "भारत का नया इतिसास", वाराणसी, पृ० १३ । २. वही। ३. वही, पृ० १५। ४. वही, पृ० १२ । ५. एलग्जेण्डर कनिंघम, "ए बुक ऑफ इण्डियन एराज", वाराणसी, १९७६,
पृ० ३५।