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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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सम्वत् के आरम्भ के संदर्भ में भी यही समझना चाहिए कि यह कालयवन की मृत्यु पर उसी के नाम से चला सम्वत् नहीं हो सकता । यह सम्भव है कि किसी दुष्टात्मा की हत्या की गयी हो व कालयवन कोई दूसरा व्यक्ति हो जिसने दुष्टात्मा के अन्त में सहायता दी हो तथा उसके सम्मान में इस सम्वत् का नाम कालयवन पड़ा हो । और यदि वास्तव में इस सम्वत् का नाम देश धर्म के पीड़क राक्षस कालयवन के नाम पर ही है भले ही वह उसकी मृत्यु के अवसर पर ही दिया गया हो तो यह सम्वत् भारतीय सम्वत् आरम्भ की परम्परा के प्रतिकूल है क्योंकि भारत में किसी शुभ अवसर पर अथवा महान् आत्माओं के निर्वाण पर सम्वत् आरम्भ की परम्परा रही है ।
कालयवन सम्वत् का उल्लेख भारतीय साहित्य में नगण्य है । विदेशी साक्ष्यों से ही उसका परिचय मिलता है । अतः इसकी अरम्भिक तिथि, गणना पद्धति, वर्ष, माह, दिन आदि के संदर्भ में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है ।
कृष्ण सम्वत्
भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण के नाम पर यह सम्वत् प्रचलित है । इसे कृष्ण सम्वत् के नाम से ही जाना जाता है तथा कृष्ण के जन्म के समय से इस सम्वत् का आरम्भ माना जाता है ।
हिन्दुओं द्वारा देश के विभिन्न स्थानों पर इस सम्वत् का प्रयोग अपने धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है तथा वर्तमान समय में यह पंचांगों पर भी अंकित मिलता है । विश्व हिन्दू परिषद् के कुमायूं विभाग से प्रकाशित नव वर्ष बधाई पत्र में इसका चालू वर्ष ५२१२वां दिया है जो १६८६ ई० के बराबर है । यह कलियुग सम्वत् ५०८८, श्री विक्रम सम्वत् २०४३ तथा श्री शालीवाहन सम्वत् १९०८ के बराबर है ।" हिन्दू पंचांगों पर भी कृष्ण सम्वत् का अंकन मिलता है । भारद्वाज पंचांग में अनेक सम्बतों के वर्तमान चालू वर्ष के साथ कृष्ण सम्वत् का चालू वर्ष भी दिया गया है- "श्री कृष्ण जन्म सम्वत् ५२२५, शक १ε११, विक्रमादित्य राज्याब्द २०४६ तथा ई० सन् १९८६ε0 192
कृष्ण सम्वत् का प्रयोग तो देश में विभिन्न स्थानों पर रह रहे हिन्दुओं द्वारा हो रहा है तथा पंचांगों पर इसका अंकन भी हो रहा है, परन्तु ऐसा प्रतीत
१. विश्व हिन्दू परिषद्, (कुमायूं विभाग), 'नव वर्ष मंगलमय हो', श्री विक्रम सम्वत् २०४३ (१९८६) ।
२. नरेश दत्त शर्मा, 'शुद्ध भारद्वाज पंचांग', मेरठ, १९८९-९०, पृ० १ ।