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भारतीय संवतों का इतिहास
कालयवन नामक सम्वत् का उल्लेख मिलता है । वह इसका आरम्भ द्वापर युग से बताता है -"हिन्दुओं का एक सम्वत् कालयवन नाम का है। इसके विषय की पूर्ण जानकारी मुझे नहीं हो सकी। वे इसका गणनारम्भ अन्तिम द्वापर युग के अन्त में करते हैं । कालयवन नामक राक्षस ने उनके देश तथा धर्म दोनों को घोर रूप से पीड़ित किया था।"
कालयवन सम्वत के सम्बन्ध में उपलब्ध दोनों साक्ष्यों में सम्वत् के आरम्भ के सम्बन्ध में दिये गये समय में दो युगों का अन्तर है। मेगस्थनीज के वर्णन के आधार पर भगवद् दत्त इसका आरम्भ त्रेता के आरम्भ से मानते हैं तथा अलबेरूनी ने इस सम्वत् का आरम्भ द्वापर के अन्त को बताया है, अर्थात् पूरा द्वापर व पूरा त्रेता दो युगों का अन्तर है । ___ भारतीय धार्मिक परम्पराओं के अनुसार इन दोनों युगों में मानव जाति के उद्धार व असुरों के विनाश के लिए भगवान ने अवतार लिया और यह सम्वत् तभी एक ऐसी घटना से जुड़ा है जबकि एक पीड़क असुर का विनाश किया गया जो देश व धर्म को पीड़ित करने वाला था। इस संदर्भ में यदि चतुर सेन के राम के समय के सम्बन्ध में दिये गये मत को रखें तो कालयवन राक्षस की मत्यु व उससे आरम्भ होने वाले सम्वत् का समय त्रेता का अन्त व द्वापर का आरम्भ हो सकता है अर्थात् दोनों युगों का संधि का समय । "राम त्रेता द्वापर की सन्धि में उपस्थित थे। यह काल बहुत करके मसीह पूर्व सत्रहवीं व अठारहवीं शताब्दी है, अर्थात् अब से ३८५० वर्ष पूर्व राम का राज्य काल है।
कालयवन सम्वत् के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि भगवान विष्णु के अवतार राम ने त्रेता द्वापर की सन्धि के समय कालयवन नामक राक्षस को मारा व इसी से कालयवन सम्वत् का आरम्भ हुआ। इस सम्वत् के सम्बन्ध में सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके सम्बन्ध में उपलब्ध दोनों साक्ष्य विदेशी लेखकों के हैं तथा अलबेरूनी द्वारा शक, गुप्त व हर्ष सम्बत् के सम्बन्ध में दिये गये विचारों का, जिसमें वह इन सम्वतों का आरम्भ राजा शक की मृत्यु, गुप्त वंश की समाप्ति व हर्ष की मृत्यु से बताता है, खण्डन हो जाने के बाद कालयवन
१. अलबेरूनी, 'अलबेरूनी का भारत', (अनु० रजनी कांत), इलाहाबाद, १९६७,
पृ० २६५। २. आचार्य चतुर सेन, ‘भारतीय संस्कृति का इतिहास', मेरठ, १६५८,
पृ० २६२।