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भारतीय संबतों का इतिहास
युद्ध से सम्बन्धित हैं। इनमें कृष्ण सम्वत् सबसे पहले आरम्भ हुआ, इसके बाद युधिष्ठिर सम्वत् का आरम्भ माना चाहिए तदुपरान्त कलि सम्वत् का आरम्भ । 'परन्तु विभिन्न साक्ष्यों से उपलब्ध तिथियां व तिथिक्रम पहले कृष्ण सम्वत् इसके बाद कलि सम्वत् व इसके बाद युधिष्ठिर सम्वत् का आरम्भ दर्शाते हैं, जो उचित नहीं है। युधिष्ठिर सम्वत् के आरम्भ को किसलिये कलि सम्वत् के आरम्भ के बाद रखा गया है, इस सम्बन्ध में कोई कारण जात नहीं है।
कलियुग सम्वत् काल विभाजन के चार युगों में से एक युग कलियुग के नाम पर इस सम्वत् का नाम कलियुग सम्वत् पड़ा है। कलियुग सम्वत् का प्रयोग हिन्दू धर्म साहित्य में हुआ है तथा यह हिन्दू धर्म से ही सम्बन्धित है । अतः इसका प्रयोग हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों व पंचांगों में होता है । इस सम्बन्ध में किसी क्षेत्र विशेष को इंगित करना उचित नहीं है। यह मानना चाहिए कि देश भर में जहां भी महाभारत युद्ध की घटना व उससे सम्बन्धित तथ्यों में लोग आस्था रखते हैं वहीं महाभारत युद्ध से सम्बन्धित सम्वत् भी विद्यमान हैं। __ कलि सम्वत् का वर्तमान प्रचलित वर्ष ३१.१+१९८९=५०९०' है जो विक्रमादित्य सम्वत् २०४६, शक १९११, श्री कृष्ण जन्म सम्वत् ५२२५, बौद्ध २५६२, मोहम्मद हीजरी १४०६-१०, फ़सली सन् १३६७-६८ तथा ई० सन् १९८६-६० के बराबर है।
कलि सम्वत् के आरम्भकर्ता के रूप में किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लिया गया है। मात्र सम्वत आरम्भ की घटना व समय का ही उल्लेख विभिन्न परम्पराओं में हुआ है। इससे यही अर्थ निकलता है कि कलियुग सम्वत् का आरम्भ इसके वास्तविक आरम्भ बिन्दु से कुछ समय बाद ही किया गया होगा तथा इसके आरम्भ की तिथि निर्धारण, गणना पद्धति का निश्चय आदि तथ्यों को तय करने का कार्य विद्वानों की किमी सभा के द्वारा हआ होगा न कि किसी व्यक्ति विशेष द्वारा। जैसी कि आजकल भी विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं की तिथि निश्चित करने के लिए अनेक सभायें व विद्वानों की समितियां नियुक्त की जाती हैं, ऐसी ही किसी सभा या समिति द्वारा कलि सम्वत् का भी आरम्भ किया गया होगा इसी से किसी व्यक्ति विशेष का नाम इस सम्वत् के आरम्भ के साथ नहीं जुड़ा है।
१. 'शुद्ध भारद्वाज पंचांग', मेरठ, १९८९-९०, पृ० १ ।