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भारतीय संवतों का इतिहास
को भी नाम भर से ही इसका ज्ञान है।' कनिंघम द्वारा दी गयी परशुराम चक्र की तिथियों से स्पष्ट है कि प्रति एक हजार वर्ष बाद इसका नया चक्र आरंभ होता है । उपरोक्त तालिका में प्रथम चक्र ११७६ ई० पूर्व तथा दूसरे चक्र १७६ ई० पूर्व में १००० वर्षों का अन्तर है परन्तु दूसरे चक्र १७६ ई० पूर्व था तीसरे चक्र ८२५ ई० में १००१ वर्षों का अन्तर है जबकि तीसरे चक्र ८२५ ई० से चौथे चक्र १८२५ ई०के बीच १००० वर्षों का ही अन्तर है। ऐसा किस कारण है, स्पष्ट नहीं । प्रथम चक्र ११७६ ई० पूर्व से आरंभ हुआ तथा तीसरे चक्र ८२४-२५ ई० में इसे कोलम संवत् के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
ग्रह परिवर्ती चक्र ग्रह परिवर्ती संवत्सर ६० वर्ष का चक्र है जिसके ६० वर्ष पूरे होने पर फिर वर्ष १ से लिखना शुरू करते हैं। इसका प्रचार बहुधा मद्रास इहाते के मदुरा जिले में है । इसका आरंभ वर्तमान कलियुग संवत् ३०७६ (ई० स० पूर्व २४) से होना बताया जाता है । वर्तमान कलियुग संवत् में ७२ जोड़कर ६० का भाग देने से जो बचे वह उक्त चक्र का वर्तमान वर्ष होता है अथवा वर्तमान शक संवत् में ११ जोड़कर ६० का भाग देने से जो बचे वह वर्तमान संवत्सर होता है। इसमें सप्तषि संवत की नांई वर्षों की संख्या ही लिखी जाती है । पुर्तगाली मिशनरी बेशी जो मथुरा में ४० वर्ष रहा, के आधार पर वारेन ने इसका वर्णन किया है। "इसका आरंभ कलियुग ३०७८ अथवा २४ ई० पूर्व से होता है । दूसरा चक्र ७६ ई० में पड़ा होगा । यह सम्भव प्रतीत होता है कि बृहस्पति के ज्योतिष चक्र से इसका कोई सम्बन्ध रहा होगा जो इसी समय से आरंभ होता है ।" २४ ई० पूर्व से चक्र आरंभ होने पर ६६ ई० में वह पूर्ण हो जाना चाहिए था (२४+६६=१०) क्योंकि इस चक्र को
१. एलेग्जेण्डर कनिंघम, 'ए बुक ऑफ इण्डियन एराज', वाराणसी, १६७६,
पृ० ३३ २. राय बहादुर पं० गौरी शंकर हीरा चन्द ओझा, 'भारतीय प्राचीन लिपि
माला,' अजमेर, १६१८, पृ० १८६ ३. एलेग्जेण्डर कनिंघम, ‘ए बुक ऑफ इण्डियन एराज', पृ० ५१