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धर्म चरित्रों से सम्बन्धित सम्वत्
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रिवाजों के अनुसार प्रथम जैन तीर्थंकर ऋष्भदेव का निर्वाण माघ के महीने में चतुर्दशी के दिन हुआ था । जैनियों के अनुसार तब से जो समय व्यतीत हुआ है वह समझ के बाहर है तथा वह वास्तव में बहुत बड़ी संख्या है । इसे इस प्रकार गिन सकते हैं__४१,३४,५२,६३,०३,०८,२०,३१,७७,७४,६५,१२,१६१X६४५१ __ सष्टि के निर्माण से वर्तमान युग तक के समय की गणना के लिए डा० त्रिवेद ने एक और पद्धति दी है। उनके अनुसार-सष्टि के निर्माण से अब तक के समय की गणना शतरंज के प्रत्येक खाने में दूनी संख्या रखने से की जा सकती है । जैसे
१, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, १२८, २५६
अर्थात्-१+२+२+२३+२+२+२+२+...+२६४ +२६४-१=७३,७०,६५,५१,६१५ वर्ष
इसके अतिरिक्त कुछ विचारकों ने सष्टि का जीवन काल ५८ बिलियन वर्ष माना है। अर्थात्-५८,०००,०००,०००,०००,००० वर्ष ।
'अथर्ववेद', काण्ड ८ सूक्त २ मन्त्र २१ के अनुसार क्षेमकरण दास त्रिवेदी ने युग वर्ष गणना के सम्बन्ध में यह सारणी दी है ।
नोट - सारणी पृष्ठ ३८ पर देखे । __ इस प्रकार विभिन्न सम्प्रदायों के रिवाजों पर आधारित सिद्धान्त सष्टि की आयु की गणना करने के लिए दिये गये हैं, परन्तु इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।
महर्षि दयानन्द, आचार्य चतुर सेन तथा डा० डी० एस० त्रिवेद आदि स्वदेशी विद्वानों ने सृष्टि सम्वत् की व्याख्या की है । इसके अतिरिक्त विदेशी लेखक अल्बेरूनी ने अपने समय में प्रचलित हिन्दू रिवाजों के आधार पर सष्टि की आयु का अनुमानित समय बताया है । हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अतिरिक्त जैन व इसाई धार्मिक ग्रन्थों में भी सृष्टि की आयु के सम्बन्ध में व्याख्या मिलती है। सृष्टि सम्वत् का मुख्य उद्देश्य सृष्टि की आयु का अनुमान लगाना है इसी
१. डी० एस० त्रिवेद, 'इण्डियन क्रोनोलोजी', बम्बई, १९६३, पृ० २-३ । २. वही, पृ० ३। ३. 'अथर्ववेद', (अनु० क्षेम करण दास त्रिवेदी), दिल्ली, विक्रमाब्द २०३८,
पृ० १७ ।