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होता है। जो खुद के बल और खुद की सत्ता के ज़ोर पर सामनेवाले को कुचलता रहे, वह अबला नहीं तो और क्या है?
प्रकृति के स्वभाव की उलझन से बाहर निकलने का मार्ग आज तक किसी ने नहीं दिखाया। वहाँ पर अक्रम विज्ञान क्या कहता है कि, 'प्रकृति अपना स्वभाव छोड़ेगी नहीं, लेकिन खुद का ज्ञान बदल सकता है, और ज्ञान बदलने से दुविधा बंद हो जाती है!' - दादाश्री
१५. दुःख मिटाने के साधन सामनेवाले के दु:ख से दुःखी होनेवालों के सूक्ष्म अहंकार को फ्रैक्चर कर दे, उसके लिए ज्ञानी ऐसा कहते हैं कि
___ 'तेरे सुख के लिए उसका दु:ख मिटा देना, उनके सुख के लिए नहीं।'
___- दादाश्री दु:खी व्यक्ति दूसरों के दु:ख कैसे ले सकेगा? किसी का दु:ख नहीं लेना है, ओब्लाइज़ ही करना है, बस। गहरे उतरे वे फँस जाएँगे।
एक तरफ ज्ञानीपुरुष ऐसा समझाते हैं कि, इस दुनिया में जो भी कुछ मिलता है (सुख-दुःख), वह सब, जो खुद ने दिया हुआ है, वही वापस आता है। नया उधार देना बंद हो जाएगा तो हिसाब साफ हो जाएगा
और दूसरी तरफ 'ज्ञानीपुरुष' ऐसा समझाते हैं कि अपने सफेद बाल देखकर सामनेवाले को चिढ़ हो तो, उसमें अपना क्या गुनाह? भगवान महावीर को देखकर गोशाला को दुःख होता था, उसमें भगवान महावीर का क्या दोष? वह तो सामनेवाले का मोल लिया हुआ दुःख है। इसलिए इसमें.. ___“यदि आप कर्ता हो, जब तक आपको 'मैं चंदूलाल ही हूँ' ऐसा रहे, तब तक जोखिमदारी आपकी है।"
और 'हमारे दिए हुए दुःख' और 'सामनेवाले द्वारा मोल लिए हुए दुःख' दोनों में बहुत फर्क है, इसे समझ लेना है। 'ज्ञानीपुरुष' कहते हैं, 'मुझे कोई दुःख नहीं देता, क्योंकि हम दुःख मोल नहीं लेते। जो मोल
- दादाश्री
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