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लक्ष्मी आए तो भी ठीक और नहीं आए तो भी ठीक! जो सहज प्रयत्न से आ मिले, वह खरी पुण्य की लक्ष्मी!
अपने हिसाब के अनुसार ही लक्ष्मी बढ़ती-घटती है! लोगों का तिरस्कार या निंदा करने से लक्ष्मी कम हो जाती है। हिन्दुस्तान में तिरस्कार
और निंदा कम हुए हैं। लोगों को समय ही नहीं है यह सब करने के लिए। '२००५ में हिन्दुस्तान वर्ल्ड का केन्द्र बन जाएगा।' ऐसा संपूज्य दादाश्री १९४२ से कहते आए हैं!
पैसों का या चीज़ों का कर्ज़ नहीं होता, कर्ज़ राग-द्वेष का होता है। जो अगले जन्म के कर्म चार्ज करता है! इसलिए पैसे वापस देने के लिए कभी भी भाव मत बिगाड़ना। जिसे 'दूध से धोकर' पैसे लौटाने हैं, उन्हें पैसे आ मिलेंगे और चुकता हो जाएँगे! ऐसा कुदरत का नियम है। माँगनेवाले को वसूली करने का हक़ है, लेकिन गाली देने का अधिकार नहीं है। गालियाँ देना, धमकाना, वगैरह सब एकस्ट्रा आइटम हैं। क्योंकि गालियाँ देने की शर्त समझौते में नहीं होती!
जीवन उपयोग सहित होना चाहिए, जागृति सहित होना चाहिए, ताकि किसी को हमसे किंचित्मात्र दु:ख और नुकसान नहीं हो!
१४. पसंद प्राकृत गुणों की घाट (स्वार्थ,बदनियत) रहित प्रेम वही सच्चा प्रेम! और....
'स्वार्थ यानी, स्त्री पर कुदृष्टि डालना और स्वार्थ रखना वे दोनों एक समान है! जहाँ स्वार्थ नहीं हो, वहाँ परमात्मा अवश्य होते हैं।' - दादाश्री
'गांडा ने गाम ने डाह्या ने डाम।' पागल को गाँव देना पड़े तो देकर छूट जाना चाहिए, अक्लमंद को तो बाद में समझाया जा सकता है। छूटने की भी कला आनी चाहिए। वह कला ज्ञानी के पास पूर्ण रूप से खिली हुई होती है! अपनी हर बार की सरलता के सामने कोई हमेशा टेढ़ा व्यवहार ही
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