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नियम में राग-द्वेष का! पाँच सौ रुपये लिए तो उतने ही वापस देंगे तो छूटेंगे, कुदरत का नियम ऐसा नहीं है। वहाँ तो राग-द्वेष के बिना निकाल होगा तभी छूट पाएँगे। फिर भले ही सिर्फ पचास रुपये क्यों नहीं लौटाए हों?
मुंबई से बड़ौदा जाएँ तो लोग क्या कहते हैं? मैं बड़ौदा गया ! अरे, तू गया या गाड़ी लेकर गई? 'मैं गया' कहेगा तो थकान महसूस होगी और 'गाडी ले गई, मैं तो डिब्बे में बैठा था आराम से,' तो थकान लगेगी? नहीं। यानी यह तो साइकोलोजिकल इफेक्ट है कि 'मैं गया' । गाड़ी में बैठे, यानी दोनों स्टेशनों से मुक्त ! बीचवाला काल संपूर्ण मुक्तकाल! उसका उपयोग आत्मा के लिए कर लेना है!
१३. भोगवटा, लक्ष्मी का पूरी जिंदगी कमाए, घानी के बैल की तरह मेहनत की, फिर भी बैंक में कितने लाख जमा हुए? जो धन औरों के लिए खर्च हुआ वही अपना और बाकी सब पराया। गटर में गया समझो।
हेतु के अनुसार दान का फल मिलता है। कीर्ति, तख्ती या नाम के लिए दिया हो तो वह मिलेगा ही, और गुप्तदान, शुद्ध भावना से मात्र औरों को मदद करने के हेतु से दिया गया हो तो वह सच्चा पुण्य बाँधता है। और जो अकर्ताभाव से निकाल करने के लिए दे, वह कर्म से मुक्त हो जाता है!
लक्ष्मी जी मेहनत से आती हैं या अक्ल से? मेहनत से कमा रहे होते तो मजदूरों के पास ही खूब पैसा होता, और मुनीम जी और सी.ए. तो खूब अक़्लवाले होते हैं, लेकिन सेठ तो पैसे जन्म से ही लेकर आया होता है ! उसने कहाँ मेहनत की या अक़्ल लगाई? यानी लक्ष्मी मात्र पुण्य से ही आ मिलती है!
लक्ष्मी पर प्रीति है तो भगवान पर नहीं और भगवान पर प्रीति है तो लक्ष्मी पर नहीं, वन एट ए टाइम !
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