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इस जगत् में सबसे महँगा यदि कुछ है तो वह है मुफ़्त!
मोक्ष का भान तो बाद में लेकिन इस संसार के हिताहित का भान होना चाहिए या नहीं? कोई न कोई ऐसी भूल रह जाती है कि जो जीवन में क्लेश करवाती है !
पेट में डालने से पहले पेट को पूछ तो सही कि तुझे ज़रूरत है या नहीं?
मानवधर्म किसे कहते हैं? अपने निमित्त से किसी को दुःख नहीं हो। हमें जो पसंद नहीं है, वैसा हम दूसरों को कैसे दे सकते हैं? हम सामनेवाले को सुख देंगे तो हमें सुख मिलता ही रहेगा !
१०. फ्रैक्चर हुआ तभी से शुरूआत जुड़ने की
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जिसे जगत् के लोग “पैर टूट गया, ' ऐसा कहते हैं, उसे ज्ञानी 'यह तो जुड़ रहा है' ऐसा कहते हैं ।" जिस क्षण टूटा था, उसके दूसरे ही क्षण से जुड़ने की शुरूआत हो जाती है ! 'जैसा है वैसा, ' देखने की, कैसी ग़ज़ब की तीक्ष्ण जागृति है ज्ञानी की !
११. पाप-पुण्य की परिभाषा
पाप-पुण्य की लंबी-लंबी, बोरियतवाली परिभाषाओं की तुलना 'ज्ञानीपुरुष' संक्षिप्त, फिर भी छू लेनेवाली मार्मिक परिभाषा बताते हैं कि, 'जीव मात्र को कुछ भी नुकसान करना, उससे पाप बंधते हैं और किसी भी जीव को कुछ भी सुख देना, उससे पुण्य बँधते हैं । ' - दादाश्री
सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि अनजाने में पाप हो, उसका दोष नहीं लगता। उसके लिए ज्ञानी कहते हैं कि, 'अनजाने में अंगारों पर हाथ पड़ जाए तो जलेगा या नहीं?' बुद्धि को फ्रैक्चर कर देनेवाला यह कैसा उदाहरण!
१२. कर्तापन से ही थकान
जगत् के नियमों में पैसों का लेन-देन है, जबकि कुदरत के
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