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यदि खुद के घर पर फूटें तब भी रहे तो भगवान बन जाए! मेरापन छूटने के परिणाम सरल तरीके से समझाने की ज्ञानी की कला तो देखो! वहीं यदि प्याले फूटें और कढ़ापा-अजंपा हो, तब परिणाम में क्या भोगना पड़ेगा? जानवर गति!
८. सावधान जीव, अंतिम पलों में मरणशैय्या पर पड़े हुए हों, तब भी अस्सी वर्ष के चाचा नोंध करते रहते हैं कि 'फलाने समधी तो तबियत पूछने भी नहीं आए!' अरे परभव की गठरियाँ समेट न! समधी का क्या करना है अभी? मरते समय जिंदगी का हिसाब निकालना है। सब के साथ बाँधे हुए बैर-ज़हर, राग-द्वेष के बंधन के प्रतिक्रमण, हृदयपूर्वक प्रायश्चित करके छोड़ने हैं। मरने से पहले यदि सिर्फ एक ही घंटे प्रतिक्रमण करने लगे, तब भी पूरी जिंदगी के सब पाप धुल जाएँ, ऐसा है ! जिंदगी के अंतिम घंटे में पूरे जन्म का सार देख लेना होता है और उस सार के अनुसार ही उसका अगला जन्म होता है। पूरी जिंदगी भक्ति की होगी तो अंत समय में भी भक्ति ही होगी और कषाय किए होंगे तो वही होंगे!
__स्वजन के अंत समय में रिश्तेदारों को उनका खूब ध्यान रखना चाहिए। वह खुश रहे और भक्ति में, ज्ञान में रहे, वैसा वातावरण रखना चाहिए।
इन सगे-संबंधियों का साथ कब तक? स्मशान तक। कबीर साहब ने कहा है, 'तू जन्मा तब लोग हँस रहे थे और तू रो रहा था। अब दुनिया में आकर ऐसा कुछ कर कि जाते समय तू हँसे और लोग रोएँ!'
जब रिश्तेदार मर जाएँ, तब लोग कल्पांत करते हैं। कल्पांत अर्थात् एक कल्प (कालचक्र) के अंत तक भटकना पड़ता है।
___ मरने के बाद लोग चर्चाएँ बहुत करते हैं। कैसे मर गए, कौन डॉक्टर थे और क्या इलाज किया? इसके बजाय तो सबसे कहना कि 'चाचा को बुखार आया और टप्प, शोर्टकट!' जितना आयुष्यकर्म होता है, उतना ही
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