Book Title: Agam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ. १५ गा. १६ भिक्षुगुणप्रतिपादनम् दीनि येन सः, वशीकृत न्द्रिय इत्यर्थः, तथा सर्वतः सर्वप्रकारेण विप्रमुक्तः= बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितः, तथा-अणुकषायी-अणवः-स्वाल्पा:-संज्वलननामानइति यावत् , ते च ते कषायाः, ते सन्ति यस्यासौ अणुकषायी, मन्दकषायवानित्यर्थः, प्राकृतत्वात्ककारस्य द्वित्वम् । यद्वा-'अनु कषायी' इतिच्छाया अल्पकपायवानित्यर्थः। तथा-लध्वल्पभक्षी-लघूनि निःसाराणि पर्युषिताम्लतक्रमिश्रित बल्लचणकाधन्नानि अल्पानि स्तोकानि झक्षितुं शीलमस्येति लघ्वल्पभक्षी-अन्त प्रान्तानपानसेवीत्यर्थः, एतादृशः सन् यः साधुः, गृह-द्रव्यभावगृहं त्यक्त्वा एकचरः=रागद्वेषरहितः एवं शत्रु जिसका कोई नहीं है (जिइंदिओ-जितेन्द्रियः) इन्द्रियां जिसकी वश में हैं (सव्वओ विप्पमुक्के-सर्वतःविप्रमुक्तः। सर्व प्रकार से जो बाह्य एवं आभ्यंन्तर परिग्रह से रहित हुआ है तथा (अणुक्कसाईअणुकषायी) मन्दकषायवाला है ( लहु अप्पभक्खी-लध्वल्पभोजी ) लघु-निःसार, पर्युषित आम्ल तक्रमिश्रित बल्लचणक आदि अन्न-को अल्पमात्रा में जो लेता है-अर्थात्-अन्त प्रान्त अन्न पान का जो सेवन करने वाला है, ऐसा साधु गिहं चिच्चा-गृहं त्यक्त्वा) द्रव्य एवं भार गृह का परित्याग करके (एगे-एकः) रागद्वेष से रहित होकर चरेविचरेत्) संयममार्ग में विचरण करता है (स भिक्खू-स भिक्षुः) वही भिक्षु है । (त्ति बेमि-इति ब्रवीमि) इसी प्रकार भगवान के मुख से मैंने सुना है सो तुम से कहा है ।
भावार्थ-जो अशिल्पजीवी है, न जिसको अपना कोइ घर है और न जिसका कोई शत्रु व मित्र है, इन्द्रियों की दासता का जिसने परिहार कर दिया है उनके अनुसार जो नहीं चलता है प्रत्युत इन्द्रियों जिइंदिओ-जितेन्द्रियः ॥ न्द्रियो वशमा छ. सबओ विप्पमुक्ते-सर्वतः विषमुक्तः स प्रारना महा२नमने महिना परियडथी २ हित अनेस छ तथा अणुक्कसाई-अणुकषायी म पायवाणा छे. लह अप्पभक्खी-लध्वल्पभोजी લધુ-નિસાર, પર્યેષિત ખાટી છાશથી મિશ્રિત બલ્લચણક આદિ અન્નને અલ્પ માત્રામાં જે લે છે અર્થાત-અન્ત પ્રાન્ત અન્નપાનનું જે સેવન કરવાવાળા છે એવા સાધુ गृहं चिच्चा-गृहं त्यक्त्वा द्रव्य मन लाडने। परित्याग शन, एगे-एकः राषथी २डित मनीने चरे-विरचेत् सयभमागमा वियर ४२ छ स भिक्खस भिक्षुः तेल निक्षु छ (त्ति बेमि-इतिम म) मारे लगवानना भोथी જે મેં સાંભળેલ છે તે તમને કહેલ છે. - ભાવાર્થ...-જે અશિલ્પજીવી છે, જેને પિતાનું કઈ ઘર નથી તેમજ જેને કઈ મિત્ર કે શત્રુ નથી. ઈન્દ્રિયો ઉપર જેણે કાબુ મેળવેલ છે. પરંતુ એની માફક જે
ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર : ૩