Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
दूसरे उद्देशक में चार अर्थाधिकार हैं- पहले अधिकार में नियतिवाद का art है, दूसरे अधिकार में अज्ञानवाद का और तीसरे में ज्ञानवाद का कथन है । चौथे अधिकार में बताया गया है कि शाक्यों (बौद्धों ) के आगम में यह कथन है। कि चार प्रकार का कर्म उपचय ( बंधन) को प्राप्त नहीं होता । जैसे - ( १ ) अविज्ञोपचित कर्म - अविज्ञा-अविद्या - अज्ञान के वश भूल से हुआ कर्म अविज्ञोपचित कर्म कहलाता है | जैसे भाता के स्तन आदि से दबकर पुत्र की मृत्यु होने पर भी अज्ञान के कारण माता को कर्म का उपचय नहीं होता । इसी तरह भूल से जीवहिंसा आदि होने पर कर्म का उपचय नहीं होता । (२) परिज्ञोपचित कर्म - केवल मन के द्वारा चिन्तन करना परिज्ञा कहलाता है । किसी प्राणी का घात न हो, केवल मन के द्वारा परिज्ञा ( घात का चिन्तन) होने से कर्म का उपचय नहीं होता । ( ३ ) ईर्ष्याप्रत्यय कर्म - ईर्ष्या ( मार्ग में आवागमन) से जो जीवहिंसा होती है, उससे भी कर्म का उपत्रय नहीं होता, क्योंकि मार्ग में जाने-आने वाले का अभिप्राय
घात का नहीं होता । ( ४ ) स्वप्नान्तिक कर्म -- जैसे स्वप्न में भोजन करने से तृप्ति नहीं होती, वैसे ही स्वप्न में किये हुये जीवहिंसा आदि से कर्म का उपचय नहीं होता ।
तृतीय उद्देशक में आधाकर्मी आहार का विचार किया गया है और उस सदोष आहारकर्ता साधु को दोषयुक्त बताया गया है तथा कृतवादी का मत भी बताया गया है । कोई इस लोक को ईश्वरकृत और कोई प्रधामादिकृत मानते हैं । वे प्रावादुक अपने - अपने पक्ष का समर्थन करने के लिए किस प्रकार उपस्थित होते हैं ? यह भी इस उद्देशक का दूसरा अर्थाधिकार है ।
चतुर्थ उद्देशक का अर्थाधिकार यह है कि अविरत यानी गृहस्थों में जो असंयम प्रधान अनुष्ठान होते हैं, प्रायः वे ही परतीर्थिकों में होते हैं । इसलिये परतीर्थिक भी प्रायः अविरत के तुल्य ही होते हैं । अन्त में अविरति रूप कर्म बन्धन के कारण से बचने के लिये अहिंसा, समता, कषायविजय आदि स्वसमय का प्रतिपादन करते हैं ।
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पूर्वोक्त उपोद्घात के द्वारा सूत्रकृतांग-सूत्र की पृष्ठभूमि, सार्थकता, रचना, रचनाकार की भावभूमि, सूत्र की नित्यता, सूत्रकृतांग के अध्ययनों और विषयों का परिचय, इसकी उपादेयता के चार अनुबंधों और पाँच निमित्तों का तथा प्रथम अध्ययन का विश्लेषण - विवेचन पढ़ने के बाद सहसा जिज्ञासा होती है कि प्रथम अध्ययन में क्या भाव है ? अतः अब प्रथम अध्ययन प्रारम्भ करते हैं
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