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दमोह में आगमन तक खूब बीमार रहा । बाद में जब स्कूल में आया तो अनुपस्थिति के कारण मेरा नम्बर नीचा हो गया था इसलिये मेरी आचरण-बुक में लिखा गया 'खराब' । 'वीमार . होना भी एक पाप है' इस सिद्धान्त के अनुसार पापी समझ .. कर मास्टर ने मेरा आचरण खराब लिखा हो इतनी तत्त्वज्ञता मास्टर में नहीं थी । इसका कारण सिर्फ आचरण-बुक के उपयोग का अज्ञान था ।
यहाँ स्कूल की मार के विषय में लिखना अनुचित न होगा। कई मास्टर वास्तव में बहुत क्रूर थे, कई बहुत दयालु । दयालु मास्टरों से हम बहुत प्रेम करते थे और उनकी शुभचिन्तना "किया कारतथे । एक मास्टर बहुत क्रूर था इसलिये भगवान से उसके मर जाने, बीमार हो जाने आदि की प्रार्थना किया करते थे । वह
प्रति-दिन नये नये बेंत लाता था जो कि मारते मारतें टूट जाते थे । : मार के प्रभुत्वने मेरे हृदय को क्रूर बना दिया था और बड़प्पन
का सम्बन्ध प्रेम से नहीं क्रूरता से कर दिया था । जब मैं घर आता तब एक हण्टर बनाता और दीवारों खूटों खंभों आदि को खूब मारता और कहता-क्यों रे, तुम लोग याद नहीं करते ? मेरा कहना नहीं मानते ? और सोचता-आज मैं खंगों को मारता हूं पर क्या वह दिन न आयगा जब मैं लड़कों को मारूँगा ? मेरे स्कूलने मास्टरत्व का गौरव मुझे इसी रूप में बताया था।
यहाँ भी पिताजी की एक बात याद आती है कि अगर : उन्हें मालूम हो जाता कि मुझे किसी मास्टर ने. मारा है तो दूसरे दिन से स्कूल पहुंच जाते और रो रो कर मास्टर. को समझाते कि अपने लड़के को मैंने कैसे दुःखों में प्यार से पाला है. । इससे