Book Title: Prachin Gurjar Kavyasangraha
Author(s): C D Dalal
Publisher: Central Library
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ J AMMEIC Gaekwad's Oriental Series No. XIII PRÂCHÎNA GURJARA KAVYASANGRAHA CENTRAL LIBRARY, BARODA. For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GAEKWAD'S ORIENTAL SERIES Edited under the supervision of the Curator of State Libraries, Baroda. NO. XIII. For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन-गुर्जर-काव्यसंग्रहः PRÂCHÎNA CURJARA-KAVYASANGRAHA PART I EDITED BY THE LATE MR. C. D. DALAL, M. A., SANSKRIT LIBRARIAN, CENTRAL LIBRARY, BARODA. PUBLISHED UNDER THE AUTHORITY OF THE GOVERNMENT OF HIS HIGHNESS THE MAHARAJA GAEKWAD OF BARODA. CENTRAL LIBRARY BARODA. 1920. For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by Janardan Sakharam Kudalkar, M. A., LL. B., Curator of State Libraries, Baroda, for the Baroda Government, and Printed by Manilal Itcharam Desai, at The Gujarati Printing Press, No. 8, Sassoon Buildings, Circle, Fort, Bombay. Price Rs. 2-4-0 For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FOREWORD. Owing to the untimely death of Mr. C. D. Dalal, m.a., the editor, this work is published for the present without its Intorduction and Notes. We are also aware that owing to the great pressure of other work that Mr. Dalal had on his hands at the time he was editing this work, he could not correct the several mistakes that have crept in the text. Scholars of old Gujarati are only a few in number and those few are not free or prepared to undertake to complete this work just at present. Hence this First Part of the work containing only the Text is sent out to the public with a promise that it will be followed soon with a Second Part which will contain a critical Introduction and Notes written by the veteran old Gujarati scholar Mr. Keshav Harshad Dhruva, B.A., of Ahmedabad, 10-4-20 J. S. KUDALKAR. Curator of State Libraries. For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवंत गिरिरा नेमिनाथचतुष्पदिका उवएसमाल कहाणयछप्पय समरारासु सिरिथूलभद्दफागु जंबुसामिचरिय सप्तक्षेत्र कछूलीरास सालिभदकक दूहामातृका चर्चरिका मातृकाच उपर सम्यक्त्वमाईचउपर श्री नेमिनाथफागु आराधना अतिचार ... :: ::::::: :: सर्वतीर्थनमस्कारस्तवन नवकारव्याख्यानम् ... अतिचार पृथ्वीचन्द्रचरित्र खरतरपट्टावलीषट्पदानि ... प्राचीनगुर्जर काव्यसंग्रहः :::: ... : : : : : : : अनुक्रमणिका. पद्यसंग्रहः : : : : : : : : : : गद्यसंग्रहः ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ... ::: ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ 600 For Personal & Private Use Only ⠀⠀⠀⠀⠀⠀⠀ ... ⠀⠀⠀⠀⠀⠀ 099 200 : : : : : : : : :::::::::::::: : : : : : : : Page. 1 8 11 27 38 41 47 2218 2211212123 59 62 67 71 74 78 83 86 87 88 89 91 93 131 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDICES. Page. I श्रीवस्तुपालतीर्थयात्रावर्णनम् II रेवयकप्पसंखेवो ... III उजयन्तस्तवः IV उजयन्तमहातीर्थकल्पः । V रैवतकल्पः VI अम्बिकादेवीकल्पः ... VII श्रीगिरिनारकल्पः ... VIII Inscription of the Reign of Alapkhan in the temple of Sthambhana Pârsvanatha at Cambay ... IX Inscriptions on the Satrunjaya Hill pertaining Samara's installation of the image of Adishvara ... X पेथडरासः For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः प्रथमो भागः रेवंतगिरिरासु परमेसरतित्थेसरह पयपंकय पणमेवि । भणिसु रासु रेवंतगिरे अंबिकदिवि सुमरेवि ॥१॥ गामागरपुरवणगहणसरिसरवरि सुपएसु । देवभूमि दिसि पच्छिमह मणहरु सोरठदेसु ॥२॥ जिणु तहिं मंडलमंडणउ मरगयमउडमहंतु। निम्मलसामलसिहरभरे रेहइ गिरि रेवंतु ॥३॥ तसु सिरि सामिउ सामलउ सोहगसुंदरसारु । जाइवनिम्मलकुलतिलउ निवसइ नेमिकुमारु ॥४॥ तसु मुहदंसणु दसदिसि वि देसदेसंतरु संघ । आवइ भावरसालमणउ हलि रंगतरंग ॥५॥ पोरुयाडकुलमंडणउ नंदणु आसाराय । वस्तुपाल वरमंति तहिं तेजपालु दुइ भाय ॥६॥ गुरजरधरधुरि धवलकि वीरधवलदेवराजि । बिहु बंधवि अवयारियउ सूमू दूसममाझि ॥७॥ नायलगच्छह मंडणउ विजयसेणट्रेरिराउ । उवएसिहि बिहु नरपवरे धम्मि धरिउ दिदु भाउ ॥८॥ तेजपालि गिरनारतले तेजलपुरु नियनामि । कारिउ गढमढपवपवरु मणहरु घरि आरामि ॥९॥ For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः तहि पुरि सोहिउ पासजिणु आसारायविहारु । निम्मिउ नामिहि निजजणणि कुमरसरोवरु फारु ॥ १० ॥ तहि नयरह पूरवदिसिहि उग्रसेणगढदुग्गु । आदिजिणेसरपमुहजिणमंदिरि भरिउ समग्गु ॥ ११ ॥ बाहिरिगढ दाहिणदिसिहि चउरियवेहिविसालु। लाडुकलहहियओरडीय तडि पसुठाइकरालु ॥ १२ ॥ तहि नयरह उत्तरदिसिहि सालथंभसंभार । मंडण महिमंडल सयल मंडप दसह उसार ॥ १३ ॥ जोइउ जोइउ भवियण पेमिं गिरिहि दुयारि । दामोदरु हरि पंचमउ सुवन्नरेहनइपारि ॥ १४ ॥ अगुण अंजण अंबिलीय अंबाडय अंकुल्ल । उंबरु अंबरु आमलीय अगरु असोय अहल्ल ॥ १५ ॥ करवर करपट करुणतर करवंदी करवीर । कुडा कडाह कयंब कड करब कलि कंपीर ॥ १६ ॥ वेयलु वंजलु बउल वडो वेडस वरण विडंग । वासंती वीरिणि विरह वंसियालि वण वंग ॥ १७॥ सींसमि सिंबलि सिरसमि सिंधुवारि सिरखंड। सरल सार साहार सय सागु सिगु सिणदंड ॥ १८ ॥ पल्लवफुल्लफलुल्लसिय रेहइ ताहि वणराइ। तहि उजिलतलि धम्मियह उल्लटु अंगि न माइ ॥ १९ ॥ बोलावी संघहतणीय कालमेघंतरपंथि । मेल्हविय तहिं दिढ घणीय वस्तपाल वरमंति ॥२०॥ (प्रथमं कडवम् ) दुविहि गुज्जरदेसे रिउरायविहंडणु। कुमरपालु भूपाल जिणसासणमंडणु । तेण संठाविओ सुरठदंडाहिवो। अंबओ सिरे सिरिमालकुलसंभवो । पाज सुविसाल तिणि नठिय। . अंतरे धवल पुणु परव भराविय ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवंतगिरिरासु धनु सु धवलह भाउ जिणि पाग पयासिय । बारविसोत्तरवरसे जसु जसि दिसि वासिय । जिम जिम चडई तडि कडणि गिरनारह । तिम तिम ऊडई जण भवणसंसारह । जिम जिम सेउजलु अग्गि पालाट ए। तिम तिम कलिमलु सयलु ओहट्ट ए॥२॥ जिम जिम वायइ वाउ तहि निज्झरसीयलु । तिम तिम भवदुहृदाहो तरकणि तुट्टइ। निच्चलु कोइलकलयलो मोरकेकारवो । सुंमए महुयरमहुरुगुंजारवो। पाज चडंतह सावयालोयणी। लाषारामु दिसि दीसए दाहिणी ॥३॥ जलदजालवबाले नीझरणि रमाउलु। रेहइ उजिलसिहरु अलिकजलसामलु । वहलवुहुधातुरसभेउणी। जत्थ उलदलइ सोवन्नमइ मेउणी। जत्थ दिप्पंति दिवो सही सुंदरा । गुहिर वर गरुय गंभीर गिरिकंदरा ॥४॥ जाइ कुंदु विहसंतो जं कुसुमिहि संकुलु । दीसइ दस दिसि दिवसो किरि तारामंडलु । मिलियनवलवलिदलकुसुमझलहालिया। ललियसुरमहिवलयचलणतलतालिया। गलियथलकमलमयरंदजलकोमला। विउल सिलवट्ट सोहंति तहिं संमला ॥५॥ मणहरघणवणगहणे रसिरहसिय किंनरा । गेउ मुहुरु गायंतो सिरिनेमिजिणेसरा । जत्थ सिरिनेमिजिणु अच्छप अच्छरा। असुरसुरउरगकिंनरयविजाहरा । मउडमणिकिरणपिंजरियगिरिसेहरा । हरसि आवंति बहुभत्तिभरनिब्भरा ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः सामियनेमिकुमारपयपंकयलंबिउ । धरधूल वि जिण धन्न मन पूरइ वंछिउ। जो भव कोडाकोड्डि । अन्नु सोवनु घणु दाणु जउ दिजए । सेवउ जडकम्मघणगंठि जउ तिजए । तउ उजिंतसिहरु पाविजए ॥७॥ जम्मणु जोव जीविय तसु तहिं कयत्थू । जे नर उर्जितसिहरु पेकइ वरतित्थू । आसि गुरजरधरय जेण अमरेसरु । सिरिजयसिंघदेउ पवरु पुहवीसरु । हणवि सोरठु तिणि राउ षंगारउ । ठविउ साजणु दंडाहिवं सारउ ॥ ८॥ अहिणवु नेमिजिणिंद तिणि भवणु कराविउ । निम्मलु चंदरु बिंबे नियनाउं लिहाविउ । थोरविकंभवायंभरमाउलं। ललियपुत्तलियकलसकुलसंकुलं । मंडपु दंडघणु तुंगतरतोरणं । धवलिय वज्झिरुणझणिरिकिंकणिघणं । इकारसयसहीउ पंचासीय वच्छरि । नेमिभुयणु उहरिउ साजणि नरसेहरि ॥९॥ मालवमंडलगुहमुहमंडणु। भावडसाहु दालिधुखंडणु। आमलसारसोवन्नु तिणि कारिउ । किरि गयणंगण सूरु अवयारिउ । अवरसिहरवरकलस झलहलइ मणोहर । नेमिभुयणि तिणि दिठुइ दुह गलइ निरंतर ॥ १०॥ (द्वितीयं कडवम् ) दिसि उत्तर कसमीरदेसु नेमिहि उम्माहिय । अजिउ रतन दुइ बंध गरुय संघाहिव आविय ॥१॥ For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवंतगिरिरासु हरसवसिण घणकलस भरिवि ति न्हवणु करंतह । गलिउ लेवमु नेमिबिंबु जलधार पडतह ॥२॥ संघाहिवु संवेण सहिउ नियमणि संतविउ । हा हा घिगु धिगु मह विमलकुलगंजणु आविउ ॥ ३ ॥ सामियसामलधीरचरण मह सरणि भवंतरि । इम परिहरि आहार नियम लइउ संघधुरंधरि ॥४॥ एकवीसि उपवासि तामु अंबिकदिवि आविय । पभणइ स पसन्न देवि जय जय सद्दाविय ॥५॥ उठेविणु सिरिनेमिबिंबु तुलिउ तुरंतउ । पच्छलु मन जोएसि वच्छ तुं भवणि वलंतउ ॥ ६ ॥ णइ वि अंवि"""कंचण"बलाणइ । "बिंबू मणिमउ तहिं आणइ ॥७॥ पढमभवणि देहलिहि देउ छुडि पुडि आरोविउ । संघाहिवि हरिसेण तम दिसि पच्छलु जोइउ ॥ ८॥ ठिउ निच्चलु देहलिहि देवु सिरिनेमिकुमारो। कुसुमवुट्टि मिल्हेवि देवि किउ जइजइकारो॥९॥ वइसाहीपुंनिमह पुंनवतिण जिणु थप्पिउ । पच्छिमदिसि निम्मविउ भवणु भवदुहतर कप्पिउ ॥१०॥ न्हवणविलेवतणीय वंछ भवियणजण पूरिय। संघाहिव सिरिअजितुरतनु नियदेसि पराइय ॥ ११॥ सयलवित्ति कलिकालि कालकलुसे जाणवि छाहिउ । झलहलंति मणिबिंबकंति अंबिकुरुं आइय ॥ १२ ॥ समुद्दविजयसिवदेविपुत्तु जायवकुलमंडणु। जरासिंधदलमलणु मयणभडमाणविहंडणु ॥ १३ ॥ राइमईमणहरणु रमणु सिवरमणि मणोहरु । पुनवंत पणमंति नेमिजिणु सोहगुसुंदरु ॥ १४ ॥ वस्तपालि वरमंति भूयणु कारिउ रिसहेसरु । अठ्ठावयसंमेयसिहरवरमंडपुमणहरु ॥ १५ ॥ कउडिजकु मरुदेवि दुह वि तुंगु पासाइउ। धम्मिय सिरु धूणंति देव वलिवि पलोइउ ॥ १६ ॥ For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः तेजपालि निम्मविउ तत्थ तिहुयणजणरंजणु । कल्याणउ तर तुंगु भुयणु लंघिउगयणंगणु ॥ १७ ॥ दीसइ दिसि दिसि कुंडि कुडि नीझरणउमालो। इंद्रमंडपु देपालि मंत्रि उडरिउ विसालो ॥ १८ ॥ अइरावणगयरायपायमुद्दासमटंकिउ। दिठ्ठ गयंदमु कुंड विमलुनिज्झरसमलंकिउ ॥ १९ ॥ गयणगंग जं सयलतित्थअवयारु भणिजइ । परकालिवि तहि अंगु दुक जलअंजलि दिजइ ॥ २० ॥ सिंदुवारमंदारकुरबककुंदिहि सुंदरु। जाइजूइसयवत्तिविन्निफलेहि निरंतर ॥ २१ ॥ दिट्ठ य छत्रसिलकडणि अंबवणु सहसारामु । नेमिजिणेसरदिकनाणनिव्वाणह ठामु ॥ २२॥ (तृतीयं कडवम् ) गिरिगरुयासिहरि चडेवि अंबजंबाहिं बंबालिउं ए। संमिणी ए अंबिकदेविदेउलु दीठु रम्माउलं ए॥१॥ वजइ ए तालकंसाल वजइ मदल गुहिरसर । रंगिहिं नच्चइ बाल पेखिवि अंबिकमुहकमलु ॥२॥ सुभकरु ए ठविउ उच्छंगि विभकरो नंदणु पासिक ए। सोहइ ए ऊजिलसिंगि सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥३॥ दावइ ए दुकहं भंगु पूरइ ए वंछिउ भवियजण । रकइ ए चउविहु संघु सामिणि सीहसिंघासणी ए ॥४॥ दस दिसि ए नेमिकुमारि आरोही अवलोइउं ए। दीजई ए तहि गिरनारि गयणंगणु अवलोणसिहरो ॥५॥ पहिलइ ए सांबकुमारु बीजइ सिहरि पज्जून पुण । पणमई ए पामइं पारु भवियण भीसण भवभमण ॥६॥ ठामि ठामि रयणसोवन्न बिंब जिणेसर तहिं ठविय। पणमइ ए ते नर धन जे न कलिकालि मलमयलिया ए॥७॥ जं फलु ए सिहरसमयअठ्ठावयनंदीसरिहिं ।। तं फलु ए भवि पामेइ पेखेविणु रेवंतसिहरो ॥ ८॥ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रेवंतगिरिरासु गहगण ए माहि जिम भाणु पव्वयमाहि जिम मेरुगिरि । बिहु भुयणे तेम पहाणु तित्थंमाहि रेवंतगिरि ॥९॥ धवलधय चमर भिंगार आरत्ति मंगलपईव । तिलय मउड कुंडल हार मेघाडंबर जावियं ए ॥ १० ॥ दियहिं नर जो पवर चंद्रोय नेमिजिणेसरवरभुयणि । इह भवि ए भुंजवि भोय सो तित्थेसरसिरि लहइ ए ॥ ११ ॥ चउविहु ए संघु करेइ जो आवइ उजिंतगिरे। दिविस बहू रागु करेइ सो मुंचइ चउगइगमणि ॥ १२ ॥ अठविह ए जय करंति अठाई जो तहिं करइ ए। अठविह ए करम हणंति सो अठभवि सिज्झइ ए॥ १३ ॥ अंबिल ए जो उपवास एगासण नीवी करई ए। तसु मणि ए अछइं आस इहभव परभव विवहपरे ॥ १४ ॥ पेमिहि मुणिजण अन्नह दाणु धम्मियवच्छल करई ए। तसु कही नहीं उपमाणु परभाति सरण तिणउ ॥ १५॥ आवइ ए जे न उजिंति घर धरइ धंधोलिया ए। आविही ए हीयह न जंति निप्फलु जीविउ सासुतणउं ॥१६॥ जीविउ ए सो जि परि धन्नु तासु संमच्छर निच्छणु ए। सो परि ए मासु परि धन्नु बलि हीजइ नहि वासर ए॥ १७ ॥ जहिं जिणु ए उजिलठामि सोहगसुंदर सामलु ए। दीसइ एतिहणसामि नयणसलूणउं नेमिजिणु ॥ १८ ॥ नीझरण चमर ढलंति मेघाडंबर सिरि धरीइं। तित्थह एसउ रेवंदि सिंहासणि जयइ नेमिजिणु ॥ १९ ॥ रंगिहि ए रमइ जो रासु सिरिविजयसेणिस्तूंरि निम्मविउ ए। नेमिजिणु तूसइ तासु अंबिक पूरइ मणि रली ए ॥ २० ॥ (चतुर्थ कडवम् ) ॥ समत्तु रेवंतगिरिरासु ॥ For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नेमिनाथचतुष्पदिका सोहगसुंदरु घणलायन्नु सुमरवि सामिउ सामलवन्नु । सखि पति राजल चडि उत्तरिय बारमास सुणि जिम बजरिय ॥१॥ नेमिकुमरु सुमरवि गिरनारि सिद्धी राजल कन्नकुमारि ॥ आंकिणी ॥ श्रावणि सरवणि कडुयं मेहु गज्जइ विरहिरि झिज्झइ देहु । विज्जु झबक्का रकसि जेव नेमिहि विणु सहि सहियइ केम ॥२॥ सखी भणइ सामिणि मन झुरि दुजणतणा म वंछित पूरि । गयउ नेमि तउ विणठउ काइ अछइ अनेरा वरह सयाइ ॥३॥ बोलइ राजल तउ इहु वयणु नत्थी नेमिसमं वररयणु। धरइ तेजु गहगण सवि ताव गयणि न उग्गइ दिणयरु जाव ॥४॥ भाद्रवि भरिया सर पिकेवि सकरुण रोअइ राजलदेवि। हा एकलडी मइ निरधार किम ऊवेषिसि करुणासार ॥५॥ भणइ सखी राजल मन रोइ नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ । सिंचिय तरुवर परि पलवंति गिरिवर पुण कड डेरा डंति ॥ ६ ॥ साचउं सखि वरि गिरि भिजंति किमइ न भिजइ सामलकंति । घण वरिसंतइ सर फुटुंति सायरु पुण घणुओह डुलिंति ॥ ७ ॥ आसोमासह अंसुप्रवाह राजल मिल्हइ विणु नमिनाह । दहइ चंदु चंदणहिमसीउ विणु भत्तारह सउ वि वरीउ ॥८॥ सखि नवि खीना नेमिहिरेसि मन आपणपउं तउं खय नेसि। जिणि दिरकाडिउ पहिलउं छेहु न गणिउ अठ्ठभवंतरनेहु ॥९॥ नेमि दयालू सखि निरदोसु कीजइ उग्रसिणऊपरि रोसु । पसुयभराविउ मूकउ वाडु मुझु प्रियसरिसउ कियउ विहाडु ॥ १०॥ कत्तिग क्षित्तिग ऊगइ संझ रजमति झिझिउ हुइ अतिझंझ । राति दिवसु अछइ विलवंत वलि वलि दय करि दयकरि कंत ॥११॥ नेमितणी सखि मूकि न आस कायरु भग्गउ सो घरवास । इमइ इसी सनेहल नारि जाइ कोइ छंडवि गिरनारि ॥ १२ ॥ कायरु किम सखि नेमिजिणंदु जिणि रिणि जित्तउ लकु नरिंदु । फुरइ सासु जा अग्गलि नास ताव न मिल्हउं नेमिहि आस ॥ १३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नेमिनाथचतुष्पदिका मगसिरि मग्गु पलोअइ बाल इणपरि पभणइ नयणविसाल । जो मइ मेलइ नेमिकुमार तसुणी बेल वहउ सविवार ॥ १४ ॥ एहु कदाग्रहु तउ सखि मिल्हि करिसि काइ तिणि नेमिहि हिल्लि। मंडि चडाविउ जो किर मालि हे हे कु करइ टोहणकालि ॥ १५॥ अठभव सेविउ सखि मइ नेमि तसु ऊमाहउ किम न करेमि । अवगन्नेसइ जइ मइ सामि लग्गी अछिसु तोइ तसु नामि ॥ १६ ॥ पोसि रोस सवि छंडिवि नाह राखि राखि मइ मयणह पाह । पडइ सीउ नवि रयणि विहाइ लहिय छिद्द सवि दुक अमाइ ॥ १७ ॥ नेमि नेमि तू करती मुद्धि जुब्वणु जाइ न जाणिसि सुद्धि । पुरिसरयणभरियउ संसारु परणि अनेरउ कुइ भत्तारु ॥ १८ ॥ भोली तउ सखि खरी गमारि वरि अच्छंतइ नेमिकुमारि । अन्नु पुरिसु कुइ अप्पणु नडइ गइवरु लहिउ कु रासभि चडइ ॥१९॥ माहमासि माचइ हिमरासि देवि भणइ मइ प्रिय लइ पासि । तइ विणु सामिय दहइ तुसारु नवनवमारिहि मारइ मारु ॥ २० ॥ इहु सखि रोइसि सह अरनि हत्थि कि जामइ धरणउ कन्नि । तउ न पती जिसि माहरी माइ सिद्धिरमणिरत्तउ नमि जाइ ॥ २१ ॥ कंति वसंतइ हियडामाहि वाति पहीज किमह लसाइ । सिद्धि जाइ तउ काइत बीह सरसी जाउ त उग्रसेणधीय ॥ २२॥ फागुण वागुणि पन्न पडंति राजलदुरिक कि तरु रोयंति। गन्भि गलिवि हउँ काइ न मूय भणइ विहंगल धारणिधूय ॥ २३ ॥ अजिउ भणिउ करि सखि विम्मासि अछइ भला वर नेमिहि पास । अनु सखि मोदक जउ नवि हुँति छुहिय सुहाली कि न रुचंति ॥२४॥ मणह पासि जइ वहिलउ होइ नेमिहि पासि ततलउ न कोइ । जइ सखि वरउं त सामल धीरु घणविणु पियइ कि चातकु नीर ॥२५॥ चैत्रमासि वणसह पंगुरइ वणि वणि कोयल टहका करइ । पंचबाण करि धनुष धरेवि वेझइ मांडी राजलदेवि ॥ २६ ॥ जुइ सखि मातउ मासु वसंतु इणि खिलिजइ जइ हुइ कंतु । रमियइ नव नव करि सिणगारु लिजइ जीवियजुब्वणसारु ॥२७॥ सुणि सखि मानिउ मुझु परिणयणु नवि ऊवरि थिउ बंधववयणु । जइ पडिवन्नइ चुक्कइ नेमि जीविय जुव्वणु जलणि जलेमि ॥ २८॥ For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः वइसाहह विहसिय वणराइ मयणमित्तु मलयानिलु वाइ। फुट्टि रि हियडा माझि वसंतु विलवइ राजल पिरिकउ कंतु ॥ २९ ॥ सखी दुक वीसरिवा भणइ संभलि भमरउ किम रुणझुणइ । दीस पंच थिरु जोव्वणु होइ खाउ पियउ विलसउ सहु कोइ ॥ ३० ॥ रमणि पसंसइ राजल कन्न जीह कंतु वसि ते पर धन्न । जसु प्रिउ न करइ किमइ मुहाडि सा हउं इक्क ज भुंडनिलाडि ॥३१॥ जिट्ठ विरहु जिम तप्पइ सूरु घणविओगि सुसियं नइपूरु । पिरिकउ फुल्लिउ चंपइविल्लि राजल मूछी नेहगहिल्लि ॥ ३२ ॥ मूछी राणी हा सखि धाउं पडियउ खंडइ जेवडु घाउ । हरिय मूछ चंदणपवणेहिं सखि आसासइ प्रियवयणेहिं ॥ ३३ ॥ भणइ देवि विरती संसार पडिखि पडिखि मइ जावसार । नियपडिवन्नउं प्रभु संभारि मइ लइ सरिसी गढि गिरिनारि ॥ ३४॥ आसाढह दिदु हियउं करेवि गज्जु विज्जु सवि अवगन्नेवि । भणइ वयणु उग्रसेणह जाय करिसु धम्मु सेविसु प्रियपाय ॥ ३५॥ मिलिउ सखी राजल पभणंति चिणय जेम नमिरिय खजंति । अउगी अच्छि सखि झखि मन आल तपु दोहिल्लउ त सुकुमाल॥३६॥ अठ भव विलसिउ प्रियह पसाइ किमइ जीवु सखि सुख न ध्राइ । हिव प्रिय सरिसउं जीविय मरणु इण भवि परभवि निमि जु सरणु॥३७॥ अधिक मासु सवि मासहि फिरइ छहरितुकेरा गुण अणुहरइ । मिलिवा प्रिय ऊबाहुलि हूय सउ मुकलाविउ उग्रसेणधूय ॥ ३८ ॥ पंच सखीसइ जसु परिवारि प्रिय ऊमाही गइ गिरिनारि । सखीसहित राजल गुणरासि लेइ दिक परमेसरपासि ॥ ३९॥ निम्मल केवलनाणु लहेवि सिडी सामिणि राजलदेवि । रयणसिंहटॅरि पणमवि पाय बारह मास भणिया मइ भाय ॥ ४०॥ नेमिकुमरु सुमरवि गिरनारि सिडी राजल कन्नकुमारि । इति श्रीविनयचन्द्रसूरिकृतनेमिनाथचतुष्पदिकाः ॥ For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमालकहाणयछप्पय उवएसमालकहाणयछप्पय छप्पयछंद विजय नरिंद जिणिवीरहत्यिहिं वय लेविणु । धम्मदासगणि नामि गामि नयरिहिं विहरइ पुणु । नियपुत्तह रणसीहराय पडिबोहणसारिहिं । करइ एस उवएसमालजिणवयणवियारिहिं। सयपंचच्यालगाहारयणमणिकरंड महियलि मुणउ । सुहभावि सुद्ध सिद्धतसम सवि सुसाहु सावय सुणउ ॥ १॥ रिसहनाह निरहार वरिस विहरिउ अपमत्तउ । वडमाण छम्मास करइ तप गुणहि निरुत्तउ । अवर वि जिणवर दिक लेवि तव तवइ सुनिम्मल । तिणि कारणि उपदेशमाल धुरि तप किय बहुफल । नियसत्तिसारि अणुसारि इणि तपआदर अहनिसि करउ । भो भविय भावि जम्मणमरणदुहसमुद्द दुत्तर तरउ ॥२॥ सव्व साहु तुम्हि सुणउ गणउ जग अप्पसमाणउ । कोह कह वि परिहरउ धरउ समरस सपराणउ। तिहुयणगुरु सिरिवीर धीर पण धम्मधुरंधर । दासपेसदुव्वयण सहइ घणदुसह निरंतर । नरतिरियदेवउवसग्ग बहु जह जगगुरु जिणवर खमइ । तिम खमउ खंति अग्गलि करी जेम्म रिउदलबल नमइ ॥३॥ सव्व सुणइ जिणवयण नयणउल्हासिहिं गोयम । जाणइ जइ वि सुयत्थ तह वि पुच्छइ पहु कहु किम । भद्दकचित्त पवित्त पढम गणहर सुयनाणी । न करइ गव्व अपुव्व करवि मनि मन्नइ वाणी। छंडीइ मान ज्ञानहतणउ विणउ अंगि इम आणीइ । गुरुभत्ति कह वि नवि मिल्हीइ ग्रंथकोडि जइ जाणीइ ॥ ४ ॥ दहिवाहणनिवधूय वीरजिणपढमपवत्तणि । चंदनबाल विसाल गुणिहिं गजइ गुहिरप्पणि । For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अहनिसि रायकुंयारिसहस सेवइं पय भत्तिहिं । जाणइ नाणनिहाण माण पुण नाणइ चित्तिहिं । दिणदिकिय देकिय आवतु द्रमक साधु सा ऊठि करी । अभिगमण नमण वंदण विणय सुणइ वयण आणंदभरी ॥५॥ वाणारसिनयरीनरिंद नामिहिं संवाहण । पुर अंतेउर पवर अवर हय गय बहु साहण । कन्नासहस सुरूव अछइ पुण पुत्त न इक्कय । राय पत्त पंचत्त लच्छि लिवइ रिउ ढुक्कय । नेमित्तिवयणि राणीउयरि कुंयर जाणि पहिहिं चविउ । तिणि अंगवीरि अरि त्रासुवी रजबंध सहु राहविउ ॥ ६॥ कियसिंगारउदार अंग आरीसइ पिरकइ । पाणी पडी मुंद्रडी सयल तणु तिणिपरि दिकइ । अंतेउरआवासि पासि भववासि विरत्तउ । भरहेसर वरझाण नाण केवल संपत्तउ। एउ चकवहि विसयारसिहिं रमइ रंगि जणु इम गणइ । तसु अप्पकज अप्पिहिं सरिउ किं परजणजाणावणइ ॥७॥ सेणिय करइ पसंस दुमुहदुव्वयणि निवारइ । रायरिसि कासग्गि रहिउ रणि अरिअण मारइ । सिरककजि सिरि हत्थ घल्लि संजम संभालइ । मनिहिं बद्ध बहु पाप आप आपिहि परकालइ । गति कहइ वीर सत्तम नरय मगहराय अचरिज भयउ । तिणि समइ देव जय जय भणइं प्रसनचंद केवलि जयउ ॥८॥ भरहसरिसु बल झुज्झि बुज्झ संजम अणुसरयु । कुण वंदइ लहुभाय ठाय तिणि कासग्ग करयु । इह ऊपानं नाण माण धरि वच्छर रहियु । सहइ भुक बहु दुक तह वि न हु केवल लहियु। नियबहिनिबंभिसुंदरिवयणि मयमयगल जव परिहरइ । रिसहेसरनंदणबाहुबलि सयल कन्ज तरकणि सरइ ॥९॥ कहिय इंदि अतिरूप सुणिय सुर बंभणवेसिहिं। पुहवि पत्त मजणइ रूप पेकई सुविसेसिहिं । For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमालकहाणयछप्पय कियसिणगार सणंकुमार नरनाह निरंतरु । हकारइ अत्थाणि जाणि आवि देसंतरु। खणि देहि हाणि इम वयण सुणि रज छंडि संजम गहिउ । सयसत्त वरिस चारित्तधर सहइ रोग लडिहिं सहिउ ॥ १० ॥ करइ रज कंपिल्लनयरि छख्खंडनरेसर । जाइसमरणि जाणि पुन्वभवबंधव मुणिवर । बोहइ बहु उवएस सहसि पुण तोइ न बुज्झइ। भोग भवंतरि बड तिण विसयारस मुज्झइ । सो बंभदत्त बंभणि किउ अंध अधिक पातग करी । संपत्तउ सत्तउ सत्तमनरगि सु जि साधु पत्त सिद्धहं पुरी ॥११॥ सेणियकुलि कोणियनरिंदसुय निवइ उदाइय। पाडलिपुरि गुरुभत्त रत्त पोसहसामाइय। खत्तियपुत्त जाणि तिणि देसह कहिउ । उज्जेणिं पज्जोयराय ओलगइ अणिदिउ । इणि वयरि अवर अलहंत छल वरिस बार व्रत धारयुं । तिणि दुठि तह वि अवसर लहवि निव उदाइ निसि मारयु ॥१२॥ चंपापुरि सुनार नारिसयपंचह सामी। सासिमत्त अहरत्ति गेह नवि छंडइ कामी । तिणि मारी इक नारि अवरनारिहिं सो मारीउ । पढम भज नररूपि विप्पकुलि सो पुण नारीउ। सयपंच भज जे चोर तस घरणि इकु सा नारि हय । पहुवीरपासि पुच्छइ सु नर जा सा सा सा विप्पधूय ॥ १३ ॥ कोसंबी ससि सूर वीर वंदइ सविमाणय । मिग्गवइ महासत्ति जंत चंदण नवि जाणइ। निसि एकल्ली जाइ पाइ लग्गेवि खमावइ । पडिवजइ नियदोस रोस मिल्हइ मिल्हावइ । सुहभावि शुद्ध केवल भयु भुजग विनाणिहि जाणियउ। जिम पवत्तणी स भवपार गय विनय अंगि तिम आणियउ ॥१४॥ जंबूकुमर विलासभवणि पडिबोहइ भजह । प्रभव पंचसयजुत्त पत्त तहिं परधणकजह । For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः कणयनवाणुकोडि छोडि व्रत वंछइ सुहमणि । तं पिकवि तसु वयणि सयल पडिबुज्झइ तस्कणि । सगवीसअधिकसयपंचसिउं रायग्गिहि संजम लयउ। सो दूसमि पंचमगणहरह सीस चरिमकेवलि भयउ ॥ १५॥ सुंसुमरागिहिं रत्त पत्त रायग्गिहिनयरिहिं । दास चिलाइपुत्त जुत्त धणघरि बहुचोरिहिं । कुंयरि करीय करि नट्ट दुट्ट अडविहिं अणुसरिउ । वाहर पत्तउ पुष्टि सिठि पुत्तिहिं परिवरिउ । सो रिकि दिक्षि बिहु अक्षरिहिं खग्गसीस छंडइ करम । कीडियहं कठि अढइ दिवसि सहरसारि दीसइ परम ॥ १६ ॥ जायवपुत्त जिणिंदसीस ढंढण गुणजुग्गह । अंतराय जाणिइ लेइ नियलद्धि अभिग्गह । बारवई छम्मास भमइ गुणि रमइ समिडउ । भुक दुक बहु सहइ लहइ आहार न सुद्धउ । मोदकसीहकेसरसहिय कर्म कूटि केवल कलिउ । संपत्त सिद्धि संपत्ति सुह तपतरु इम पुफिय फलिउ ॥ १७ ॥ हुंति जि पंडियपवर अवरदुव्वयणि न कुप्पइ । ग्वंदगसूरिसुसीस जेम आयार न लुप्पइ । पालयकयउवसग्ग लग्ग मण तीहं सज्झाणिहिं । जंत्रिहिं जीविय चत्त पत्त सवि सिद्धह ठाणिहिं । सो अग्गिव नरगिहिं गयउ वाडव भव भमिसिइ घणउ । भो भविय भावि इम कोह अरि खंतिखग्गि हेलां हणउ ॥ १८ ॥ पुज्जइ सुरवर पाय राय नितु नमइं निरग्गल । तपि सिज्झइं नवनिद्धि सिद्धि सवि सरई समग्गल । तपह लेस हरिएसबलह जिम जगि जस होवइ । न कुलक्कम न प्पसिद्धि रिद्धि नवि तसु कुइ जोवइ । तिंदुक जक पयतलि लुलइ बहुबंभण बोहिय बलिहिं । कोसलियधुयपरिणीति जीय भजीय सुद्धि अच्छिपकुलिहिं ॥१९॥ एसु साहुआचारसार जइ लोभि न डल्लइ । वयरसामि संपत्त नयरि पाडल सम तुल्लइ । For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमालकहाणयछप्पय १५ सुणवि तासु गुणवत्त रत्त धणसिढिकुमारी। । कणयकोडिसंजुत्त पत्त सासई वरनारी। गुरुरयणवयणपडिबोह सुणि सुडसीलसंजमि रहि । जिम तेणि मुक्क तिम मुक्कीइ रमणि रयणकोडिहिं सही ॥२०॥ नंदिसेण दोहग्गनडिउ निडणबंभणसुय । भवविरत्त चारित्त गहवि तव तवइ अचम्भुय । वेयावञ्चपसंस इंदकियकसिहिं पहुत्तउ । बंधिय अंति नियाण सग्गि सत्तमि सो पत्तउ । दसचउरसारनरखयरधूयसहसबहुत्तरिरमणिवर । सोहग्गसार वसुदेव हय हरिकुल वंसपयासकर ॥ २१॥ पत्त दिवसि चारित्त कन्हलहुबंधव रयणिहिं । गयसुकुमाल मसाणि रहिउ कासगि जिणवयणिहिं । बंभणि बंधवि पालि सीसि वइसानर दिवउ । सिरह सरिस दुकम्म दहवि मुणि तकणि सिद्धउ । तस दुट्ठदुरियभारभूरिय उयर फुट नरय ग्गमह । जिम सहिउँ तेणि तिम संसहु लहु लच्छि सुपरक्कमह ॥ २२ ॥ थूलभद्द गुरुवयणि कोसवेसाहरि पत्तउ । चित्तसालि चउमासि रहिउ रसविगइनिरत्तउ। पुव्ववेर संभारि समर समरंगणि जित्तउ । जिणसासणि जयवंत सुहड सुपरिहिं विदित्तउ। खरखग्गधारसिरि संचरिउ सरिउ सीह जिम इक्कमन । जे सीलभाव दुद्धर धरइं ते सुसाहु ते धन्न धन ॥ २३ ॥ तवसी इक उपकोसगेहि गिउ गुरु अवमन्निय । थूलभद्दमुणिसरिसु करिमु तव इम मनि मन्निय । अत्थलाभ सुणि वयण रयणकंबल भणि चल्लइ । सहवि अवत्थ सुवत्थ आणि वेसाकरि मिल्हइ । चंपेवि खालि पडिबोहिउ सुगुरुपासि पत्तउ भणइ । निंदीइ लोकि सो गुरुवयण अप्पमाण इह जो कुणइ ॥ २४ ॥ गुणिअणसरिस गव्व म करि मूरख मच्छरि वसि । न हुनिव्वडइ समत्थ जइ वि गद्दह गयमरकसि। For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः मुहडभणी संभृतविजय दुक्कर ति पसंसिय । तसु सीसिहिं पुण थूलभद्दमुणिवरगुण खिंसिय । तिणि कम्मि कोसवेसिहिं नडिऊ चडिउ हत्थ दुजणतणइ । अपकित्ति अलिय अन्ज वि अजस महिमंडलमाहि रुणझणइ ॥२५॥ म करउ मच्छर माण जाण सरिसउ जगि कोइ। पूरउ पुण्य प्रभावि पावि पुण हीणउ होइ। बाहुसुबाहु मुसाहु सुणवि गुण किउ मनि मच्छर । तिणि हीणत्तण पत्त पीढमहपीढिहिं दुहकर। परजम्मि बंभिसुंदरि सुधूय महि महिला महियलि मुणउ । सिरिरिसहभरहबाहुबलिहिं त्रिहुं प्रभाव पुन्नहतणउ ॥ २६ ॥ अणगल नीर विपार सुहम जीवाइअरकण। इण कारणि बहुकठ अप्पफल कहइ वियस्कण । छठिहिं सठिसहस्स वरिस तप तपइ अज्ञानिहिं । पारण पुण इकवीसवारजलधोइयधानिहिं । सो तामलि रिसि एरिस तपी मास दुन्नि अणसणि सरिउ । ऊपान इंद्र ईसाणि तिणि मुकमग्ग न हु अणुसरिउ ॥ २७ ॥ कंबलरयणविनाणि जाणि जग उत्तमचंगिम । नरवरपिकणि जाइ माइ पुत्तह पभणइ इम । आवि इक्क खण पुत्त पत्त सेणिय तुह मंदिर। लेउ क्रियाणउं माइ ठाइ ठावउ जिणि तिणि परि । न क्रयाणां कुइ एउ सामि तुम्ह सालिभद्द य वयण सुणि। भववासविरत्त चरित्त लिइ छडि सुरक सहु कणयमणि ॥ २८ ॥ अयवंतीसुकुमाल नयरि उजेणि पसिद्धउ । नलिणीगुलमविचार सुणवि तरकणि पडिबुडउ । अजसुहत्यिमुणिंदहत्थि वय लेवि मसाणिहिं। कासगि रहिउ सीयालि खद्ध मण लग्गु विमाणिहिं । सुहझाणि ठाणि तिणि सुर हुओ रमणि बत्तिसे व्रत लिउ । तसु नंदणि तिणि थानकि पछइ महाकालदेउल किउ ॥ २९ ॥ रायग्गिहि मेयज भजनववर विवहारिउ । पुव्वमित्त सुरि बोहि दिक दुरिकहिं लेवारिउ । For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ उवएसमालकहाणयछप्पय विहरंतउ तिहिं पत्त दुट्टसोनारह मंदिरि । क्रौंचि कणय जव खद्ध वद्ध बहउ तिणि तस सिरि। दृढघाइ दिष्टि दुइ नीकलीय ढलिय धरणि निच्चलु भयउ । तस पंखिप्राण रक्षा करी धरी ध्यान सिद्धिहि गयउ ॥ ३० ॥ धणगिरिघरणिसुनंदउयरि जायउ जाईसर । छम्मासिउ पिउपासि वयर संपत्तउ वयधर । तस समीवि मुणिकजि गुरिहिं वायण अणुजाणीय । धन्न सीहगिरिसीस जेहिं मन्निय इय वाणीय । जे माणगण मनि परिहरी सुगुरुवयण इम सद्दहइ । ते सुद्ध साधु सुकुलीण सविगुणनिहाण गुरुयडि लहई ॥ ३१ ॥ संगमसूरि गिलाण वासि संजमविहि रकइ । धम्मच्छलि तस सीस दत्त गुरुदोस निरिकइ । खित्तविहार सविन पिंड अंगुलि दिप्पंतिय । नित्यवास नितु सरसु असणु दीवय मणि चिंतिय । मन्नंतउ मुनि अप्पउं सगुण निगुण भणवि गुरु परिभवइ । घोरंधयार घण सद्द करि सम्मदिठि सुर सिकवइ ॥ ३२॥ वडमाण विहरंत नयरि सावस्थिहिं आवई । गोसालउ चउसाल आप तित्थयर भणावइ । मंखलिपुत्तसरुव कहइ पहु पुच्छिउ सीसिहिं । जिणवरसंमुह मुक्क तेउलेसा तिणि रीसिहिं । तं पिरिक सुगुरुपरिभव असह सुनकत्त मुनि विचि थयउ । तिणि तेजि दद् आराधना करवि सग्गि अच्युति गयउ ॥ ३३ ॥ नाहियवादि नरिंद नयरि सेतंबी पएसी। पाससीस विहरंत पत्त तहिं गणहर केसी। नरयगमणि इकचित्त सुगुरुवयणिहिं पडिबोहिउ । सावयधम्म सुरम्म करवि तिणि अप्पउं सोहिउं । लहुकालि काल करि सु जि सरिउ सूरिआभसुविमाणि सुर । इम दुरियदुक दृरिहिं हणी सयल सुक साधइ सुगुरु ॥ ३४॥ तुरमिणिपुरीनरिंद दत्त बंभणकुलि बहुबल। माउलकालिगसारिपामि पुच्छद जन्नह फल । For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अंगपीड अंगमिय सुगुरु सच्चं चिय जंपइ । जागि जीववधि नरय सुणवि सु जि कोपइं कंपइ । अहिनाण जाण सत्तमदिवसि मलप्रवेश मुहि तुझतणइ । दकिन्न दुट्ठभय परिहरिय धम्मवयण मुणि इम भणइ ॥ ३५ ॥ आसि मरीइ मुणिंद भरहसुय नियवय छंडइ। कियपरिवायगवेस रिसहपहुसरिस त हिंडइ । पडिबोहइ बहुलोय दिक जिणपासि लिवारइ । अन्नदिवसि अतिकुटिल कपिल तमु वयण विचारइ। तसु शिष्यकाजि फुड नवि कहइ इत्व उत्थि बहु धम्म छइ । भव कोडिसागर भमिउ हुउ वीरजिण तउ पछइ ॥ ३६ ॥ कन्हमरणि बलभद्द तवइ तव तुंगियगिरिसिरि । जाइ सरण इक हरिण रहइ अहनिसि रिषिपरिसरि । कट्ठकजि रहकार पत्त वनि साख कपावई। जिमणवेल जाणेवि लेवि मुणि मृग तहिं आवइ । ओ दियइ दान ओ सुद्धतप ओ बिहुगुण मनि चितवइ । सिरि पडइ डाल समकाल त्रिहुं बंभलोय सुरगति हवइ ॥ ३७॥ पूरणसिठि बिभेलगामि लिइ तापसदिका। दीण खयरजलथलचरह अप्प चिहुभागिहिं भिरका । बारवरिस बहुक छकृतप करइ दयाविण । पायालिहिं चमरिंद चमरचंचाहिव हुय तिण । अभिमाणि सग्गि सोहम्मि गयउ वजदंड पिरकवि पुलिउ । सिरिवीरनाहपयतलि रहिउ तउ सयल वि धंधलु टलिउ ॥ ३८ ॥ सुसुमारपुररोहि कहइ निव सउणसमीहओ। वारत्तयरिषि भीयबालप्रति भणइ म बीहउ । इयवयणह बलि धंधमारि पन्जोय सु जित्तउ । नेमित्तिउ भणि हसइ राउ रिसिपासि पहुत्तउ । इम गिहिपसंग सुठ्ठयमुणिह थोडउ अइमालिन्नकर । परिहरई दरि इण कारणिहिं सव्वसंग चारित्तधर ॥ ३९॥ चंदवडिंस नरिंद नयरि साकेइ सुसावय । निश्चिई नियआवासि सुट्ठ सामाइय ठावय । For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमालकहाणयछप्पय दीवअवधि कासग्ग करिय निच्चल हुइ पालइ । दासी पुण दीवेल घल्लि चउपहर उजालइ। पूरिय प्रतिज्ञ प्रहउग्गमणि परम प्रीति पामिउ पवर । सुकुमालअंग सुहझाणमण सग्गलोइ संपन्न सुर ॥ ४० ॥ सावय सागरचंद रहिउ कासग्गि महावनि । कमलामेलाहरणवैर नभसेन धरइ मनि । घल्लइ सिरि अंगार तह वि मो झाणनिरत्तउ । पोसहवय दृढ पालि टालि दुह सग्गि पहुत्तउ । जइ हुति दुसह उवसरग सहइ स गिहत्थ सुकुमालतणु । ता अइदुडरचारित्तधर साहु केम न सहंति पुण ॥ ४१ ॥ चंपापुर अढारकोडिधणवइ कोड्डुबिय । पोसह करि कासग्गि रहिउ निसि भुज आलंबिय । इंद्रप्रसंस असद्दहंत अमरेहिं परिस्किय । मन्तगइंदभुयंगघोररकसभय दकिय । नहु चलिउ मेरुचूलाअचल कामदेव गिहवइ सुथिर । पहुवीर पयासिउ प्रहसमइ सीसवग्गअग्गलि सुविर ॥ ४२ ॥ रायग्गिहि इक रंक अछइ अइदुकिउ अग्गइ। उज्जाणी जण जत्त पत्त तहिं भिक सु मग्गइ । अलहंतउ अइरोसि दोसि नियकम्मिहिं नडिउ । चूरिसु लोग समग्ग एम चिंतिय गिरि चडिउ । ढोलेइ टोल परबततणा गडघडाट सुणि नट्ठ सहु । पाषाणि तेणि सो चंपिऊ नरयदुक पामिऊ दुसहु ॥ ४३ ॥ वडमाण वय लिड जाव बीजऊ वरसालऊ। मुंड तुंड मंडेवि पुंठि विलगऊ गोसालऊ। जिणवयणिहिं विधि जाणी तेजलेश्या तपि साधी । तह अटुंगनिमित्त कह वि विजा तिण लाधी । उम्मग्गचारि अनरथभरिउ गुरुद्रोही गरविहिं नडिउ । मंखलिसुय मोघ किलेस करि दुहसायरि दुत्तरि पडिउ ॥ ४४ ॥ दृढपहारि वड चोर जाइ कुसथलिसिउं चोरिहिं । खीरकजि धावंत विप्प मारिउ तिणि घोरिहिं । For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः बंभणभन्ज सगब्भ हणिय बालक फुरकंतउ । पिकवि भववेरग्गि लेइ संजम दिप्पंतउ । संभरणअवधि छंडिय असण तिणि ज गामि छम्मास रहि । अक्कोस बंधवह दुसहसह सिद्धि पत्त दुक्कम दहि ॥ ४५ ॥ वीरसेणसेवक्क सहसमल्ल त्ति पसिद्धउ । कालसेनरिउराय जेण बिहुबांहिहिं बद्धउ । तिणि गुणि संखनरिदि किड सामंत विदित्तउ । वेरग्गिहिं व्रत लेवि तीण अरिदेसि पहुत्तउ । पचारिय पूरव बाहुबल कालसेनि कुट्टाविउ । सव्वठ्ठसिद्धि सुरवर सरिउ कोह कह वि तस नाविउ ॥ ४६॥ सावत्थीनिवकणयकेतुसुय खंदग नामिहिं । दिक लेवि जिणकप्प करइ विहरइ पुरगामिहिं । व्रत लिडइ तस ताय नेहि सिरि छत्त धरावइ । तह वि अबडउ बंधुपासि कंतीपुरि आवइ । तस बहिन सुनंदा रायपरि मग्गि जंतु तिणि दिठ्ठ मुणि । नरवरि अलीकशंका धरिय हरिय प्राण तस तिणि रयणि ॥ ४७ ॥ दीरघसिउं रइरत्तचित्त चुलुणी मयणातुरि । बंभदत्तनियपुत्तदहण दकइ लकाहरि । वरधन मंत्रि सुरंगसंगि रकिउ परपंचिहिं । फिरिय फिरिय महिमज्झि रज पुण लहइ सुसंचिहिं । इह कस्स कोइ न हु वल्लहउ भवसरूप नडपिरकणउं । मुहियां जि मूढ मोहिय भणइ हणइ कज पर तहतणउ ॥ ४८ ॥ तेयलिपुरि निव कणयकेतु पउमावइ राणी। मंत्री तेयलिपुत्त भज तस पुटिल नाणी। जाय मत्त सवि पुत्त राय निय लोभि मरावइ । राणी मंत्रि कहेवि एक सुय छन्न रहावइ । नरनाह पत्त पंचत्त सु जि कुंयर राय महतइ कियउ । महतउ पुण पुटिलसुरवयणि पडिबुद्धउ केवलि थियउ ॥ ४९ ॥ रजलोभ मनि धरवि भरह पहुत्तउ समरंगणि । बाहुबलिहिं तहिं दिठिमुठ्ठिझुज्झिहिं जित्तउ खणि । For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमलकहाणयछप्पय रोसि चडिउं रणि चक्क भरह भाइसिरि मिल्हइ । धिग विसयारसि लुड मुड सासयसुह ठिल्लइ । इम चित्ति चिंति संजम सबल वाहुब्बलि कासगि रहिउ । भरहेसर पत्त अवज्झपुरि भायनेह कित्तिम कहिउ ॥५०॥ भजा विसयविकारिभारि पइमारणि चल्लइ । सूरियकंत कलत्त भत्तभीतरि विस घल्लइ । रायपएसि सुधम्म रम्म पोसहवय पारिय। करइ पारणउं जाव ताव तरकणि विसि घारिय । सुहझाणि ठाणि निअ आणि मण सग्गलोइ संपन्न सुर । दुक्कमचारि सा नारि पुण भमइ भूरि भव भीडभर ॥ ५१ ॥ वीरवयणि जाणेवि नरय सेणिय चिंतइ मनि । कोणिय रज ठवेसु लेसु संजम जाई वनि । हल्लविहल्लहं हार गुरुयगयवरसिउ दिडउ । कूड करी कोणिकि रायसेणिय तव बडउ । नियताय कठ्ठपंजरि धरी खाण पाण बे राहवइ । सयपंच घाय दिणि दिणि दियइ पुत्तनेह एरिस हवइ ॥५२॥ वणियपुत्त चाणिक कवड बहुबुद्धि वियाणइ । चंदगुत्तसाहिजकजि पव्वयनिव आणइ । तससरिसी अतिप्रीति करीय अरिकंटय टालिय। नंदनरिंदह रजनयरि पाडलि उद्दालिय । विसकन्न जाणि परिणाविउ सो वि मित्त जमपुरि लयउ । नियकज करवि विडिउ पछइ मित्तनेह एरिस भयउ ॥ ५३॥ परसुराम जमदग्गिपुत्त रेणुयअंगुब्भम । कत्तविरिय नरनाह हणइ मासीसुय दुद्दम । अप्पण पइ तस रज लेवि हत्थिणपुरि रहियउ । खत्तियवंस असेस फरसुझालिहिं तिणि दहियउ । निवघरणि नट्ठ पच्छन्न ठिय तस सुभूम सुय चक्कवइ । निद्दलइ वंस बंभणतणउ निययनेह एरिस हवइ ॥ ५४॥ अजमहागिरिसूरि भूरिभवपावनिवारण । गिइ जिणकप्पि करंति तस्स तुलणा अइदारुण । For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः कुलघरनियसुहसयणसंग निस्सा सवि छंडिय । अपडिबद्धविहारसार संजमगुणमंडिय । सावयघरि अजसुहत्थि गुरि गुणपसंस हरषिहिं करिय । अइआदर दिक्कि सुकारणिहिं पाडलपुर तिणि परिहरिय ॥ ५५ ॥ सेणियधारणिपुत्त मेह भन्ज विमुक्किय । वीरपासि वय लिड बुडि निसि संजम चुकिय । पुव्वजम्म परिकहिय पुण वि थिर किडउ वीरिहिं । बहुजइजणसंघट्ट सहइं अइदुसह सरीरिहिं । सो रायसअवयंसमणि मणिन अप्प तृणसम गणइ । चापरइ विजयवेमाणि सुह रहिउ सिद्धि घरअंगणइ ॥ ५६ ॥ चेडयधूयसुजिट्ठसुद्धमहासइअंगुन्भम । विजाहरपेढालपुत्तु विजाबलदुद्दम।। खायगसम्मद्दिष्टि अंग इग्यारइ जाणइ । तह वि विसयरसरंगि अंगि अतिदूषण आणइ । उजेणि उमावेसावसिहि करवि कूड हेला हणिउ । सो सव्वइ सच्चई नरय गय विसयदोस एरिस भणिउ ॥ ५७ ॥ बारवईपुरि पत्त नेमिपहु केवलनाणी । दसदसारनरनाह कन्ह निसुणइ जिणवाणी । सहसअढार मुणिंदचंद विधिवंदणि वंदइ । नरयभूमि चिहुदुरकरुक निम्मूल निकंदइ। तित्थयरगुत्त बंधइ सुदृढ असुहकम्म हेला हरइ । पूजाप्रणामवंदणविणय सगुणसाहुसंगति करइ ॥ ५८ ॥ चंडरुद्द गुरु रुद्दरोसि रीसाल विदित्तउ । उज्जणीउजाणि सगुणसीसिहिंसिउं पत्तउ । नवपरणीत कुमार हसिय पभणइ दिउ दिका । सूरि सीस तस चंपि केस लंचिय दिय सिरका । सो सीसभावि संजम लियइ मग्गि लग्गि गुरु सिर धरी । तिम सहइ घाय दुव्वयण जिम लहइ बेउ केवलसिरि ॥ ५९॥ गयकलभे परिवरिउ सूयर सुमिणइ मुणि दिउ । तिणि अहिनाणि सुसीससहिय पुण कुगुरु अणिठ्ठउ । For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवएसमालकहाणयछप्पय निसि चंपइ अंगार सूगविण मन्नइ प्राणिउ । तव अंगारयमद्द सूरि अभविय इम जाणिउ । ते सीस सवे निवपुत्त हूय सूरि करह वरकरभरिउ । तिहिं देखि सयंवरि आवते पुव्वजम्म तरकणि सरिउ ॥ ६०॥ पुप्फवइसुय पुप्फचूल भइणी तह भन्जा । सुमिणि नरयदुह देखी पुप्फचुला वयसज्जा । अन्नियसुयगुरुकन्जि खीणजंघाबल जाणी। आणंती सा भत्तपाण हुय केवलनाणी । पुच्छेइ सूरि मह नाण कहिं सु पण गंगभीतरि कहइ । तव दुठ्ठदेवि उवसग्ग सहि सुगुरु तत्थ केवल लहइ ॥ ६१॥ सिद्धि पत्त मरुदेवि तपिहिंविणु इणि आलंबणि । के वि करंति पमाय ति पणि अच्छेरयसम गिणि । जिणि कारणि पुव्वंमि जम्मि थावरतरुभीतरि । बोरिसंगि बहु अंगि सहिय दुह कम्म विनिजरि । सुहभावि पावि परिमुकमण सरलसार संतोसमय । जिणणि नाभिकुलगरघरणि रिसह झाणि निव्वाणि गय ॥ ६२॥ लद्धि पत्त पत्ते य बुद्ध सुहसिद्धि समाणइ। अच्छेरयसमतुल्ल बुल्ल किवि ते मनि आणइ । निहिसंपत्ति स चित्ति धरवि विवसाय ति छंडइ। सामग्गी परिहरिय करिय पातग निय दंडइ । करकंडुदुमुहनमिनग्गइ चिहुचरित्त चिंतिय सुपरि । धरि धम्म रम्म उज्जमसहिय मुक माय अपमाय करि ॥ ६३ ॥ ससगभसगनिवपुत्तबहिणि सुकुमालिय कुमरी । चंपापुरि चारित्त लेइ रूपिहिं किर अमरी । फिरइ तरुण तस पासि रागि रत्ता गयगमणी। रकइ बंधव बेउ लेइ तिणि अणसण समणी । बहुदिवसि तापि तपि मूरछामुइय जाणि वनि परठवी। ओसहविसेसि सु जि सज करि सत्यवाहि गेहिणि ठवी ॥ ६४॥ मु बहुसीसपरिवारसार सिद्धतविदित्तउ । महुरापुरि सिरिमंगुसूरि रसणिंदिई जिताउ । For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरीकाव्यसङ्ग्रहः नयरखालि उप्पन्न जरक बहु दुक निहालइ । सुविहियजणपडिबोहकजि नियजीह दिखालइ । जिप्पह मुणिंद रसणिंदियह अणजित्तइ एरिसु हुउ । जग्गह जि जोग जुगतिहिं सदा म म म मोहनिद्रां सुउ ॥ ६५ ॥ गिरिसुय ग्रहिउ पुलिंदि पुप्फसुय तवसी सेवइ । सुयडा अडवीमज्झि अछइ पक्कोदर बेवइ । इक्क भणइ लिउ मारि अवर पुण विणय पयासह । अंतरसंगविसेसि दोस गुण नरनइपासइ । इम जाणि निगुणसंगति तिजउ सगुणसंग अणुदिण करउ । झगमगइ जेम जगमज्झि जस भवसमुद्द तरकणि तरउ ॥६६॥ सिरिथावच्चापुत्तसूरि सुकसूरि अणुक्कमि । सेलगसूरि पमायपंकि पडियउ अइदुद्दमि । गया सीस सवि छंडि एक पंथग मुणि रहिउ । खामंतई पगि लागि पव्ववासरि तिणि कहियउ । मियमहुरवयणि सुनिपुणपणइ ठविउ सुडसंजमि स गुरु । सो सूरि पुण वि चारित्त वरि सित्तुंजय सिद्धउ सधर ॥ ६७॥ सेणियनंदण नंदिसेण बारस संवच्छर। वीरसीस वय छंडि वेस धरि वसइ समच्छर। दस प्रतिबोध्याविणु न लेइ आहार निरंतर । इक्क न बुज्झइ भणइ वेस दसमा तुम्हि सुंदर । इण वेसवयणि पुण वेसधर चरण वरवि सुर संपजइ । इय जस्स सत्ति देसुणतणी अहह सो वि संजम तिजइ ॥ ६८॥ वरससहस तव कट्ठ करिय कंडरिय न सुद्धउ । अंति दुठ्ठपरिणाम कामवश नरयनिबद्धउ । अचिरकालि परिपालि सुद्ध संजम संपत्तउ । पुंडरीक सव्वसिद्धि सुहबुद्धिनिरुत्तउ । बहु दुक सहवि नवि लड सुह अप्प दुरिक बहुसुख लहिउ । बिहु बंधव एवड अंतरउ भावभेदि भगवति कहिउ ॥ ६९॥ नयरि कुसुमपुरि राय भाय दुइ ससि सूरप्पह । ससी न मन्नइ धम्म रम्म मन्नइ विसयासुह । For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "समालकहाण यछप्पय तपजपविण सो पत्त नरगि त्रीजइ दुहतत्तउ । करवि सूर दुहचूर सग्गि सत्तमह स पत्तउ ससि रडइ सुरसुरअग्गलिहिं तणु तच्छिय दुह दिकवउ । सो भइ जीव विणु तणु दहिहिं नरयदुक किम ररिकव ॥ ७० ॥ सुग्गइमग्गपईव नाण जे दियई निरुप्पम । तिहं गुरु किं पि अदेय नत्थि जगमज्झि जगुत्तम । दिउ जेम पुलिंद सिवगजरकह नियलोयण । तिण सरिसउं सुर वत्त करइ भत्तह दिय चोयण । केवलई दाणि तूसइ न गुरु अंतरंगभत्तिहिं वरइ । तिणि कारण बिहुपरि करि विणय जिम बाहिरि तिम अंतरइ ॥ ७१ ॥ अंबचोर चंडाल चडिउ अभयडकरि कंपइ | दय नामिणी सुविज मज्झ इम सेणिउ जंपइ । विणयविवज्जिय विज्जकज्ज करिवइ नवि जग्गइ । सिंहासणि बसारि भारि गुरु करि सो मग्गइ । ओ कहइ विज्ज ओ लहइ फल बिहुह कज्ज तरकणि सरिउ । इण कारणि जिणसासणि विषय सुगुरु सीस अणुक्कमि करिउ ॥ ७२॥ दगलूर तिदंडि तामलित्ती पुरि अच्छइ । नापितपास सु विज्ज लेवि देसंतरि गच्छइ । महिमा मोहिम पत्त दंड गयणंगणि रहियउ । पुच्छिउ नरवरि जाम ताम सच्चउ नवि कहियउ । गुरुलोपि कोपि विजा गई गयणदंड गडयडि पडिउ । लज्जियउ लोकि हसिउ सयल इम सु नाणनिन्हवि नडिउ ॥ ७३ ॥ बंभण एक अनेककूडकवडाइ निरुत्तर | उज्जेणिहिं कढिय देसि चम्मारिस पत्र । त्रिहुं गामहं विच्चालि करइ तप वेसि त्रिदंडी । भगतलोकघरसार मुसइ निसि सु जि पाखंडी । अहच डिउ हत्थि नरवरतणइ नयण कड्डि नडियौ घणउ । बहु झुर अति सोच सुचिर निंदह नियकुडरकणउ ॥ ७४ ॥ रंग वरदेव कुरूपहिं पहु वंदइ । छींक करइ जब वीर ताम मरि कहि अभिनंदइ । ४ २५ For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः सेणियप्रति चिर जीव अभयप्रति जा चड बिहुपरि । कालसूरप्रति कहइ म मरि म म जीविय अणुसरि । महेसर पुच्छइ ए कवणु कवण एस परमत्थ पुण । जिण भइ विप्पसेडुयचरिय चिह्न प्रकारि नरआचरण ॥ ७५ ॥ वरि अंगमीइ मरण सरण जिणधम्म धरिज्जइ । जियहिंसा पुण घोर घोरदुहहेउ न किज्जइ । कालसूरियह पुत्त सुलस जिम पाव निवारउ । परपीडा परिहरह तरह संसार असार । कुलकारण किंपि म लिकवउ गुणह रूप गुरुयडि धरउ । परलोग मग्ग जाणउं सुपरि कुपरि कुकम्म म आयरउ ॥ ७६ ॥ हेजि हित अरिहंत कह वि नवि प्राणि करावइ । तं पुण दिइ उपदेस जेण किडाइ सुख आवइ । जं सुरवइ सुरवग्गि सग्गि एरावणवाहण । जं भरहाहिव रज्जसज्ज भुंजइ सुहसाहण | जं जं अवर वि सुरअसुरनरमुरक सुरक माणइ घणउ । तिहुयणह मज्झि तं सयल फल जिणवरउवएसहतणउं ॥ ७७ ॥ खत्तियकुंडि जमालि वीरजामाइ खत्तिउ । सुदंसणभत्तार सार वयभारपवतिउ । नविन्न किज्जत किड इय आगमवाणी । निन्हवि तेण कुदिट्ठि दुट्ठि किय बहु गुणहाणी । नियकित्ति मुसिय सुर किव्विसिय मिलिड मिच्छमह मोहियउ । सयपंच साहु साहुणि सहस ढंकसड्डि पुण बोहियउ ॥ ७८ ॥ जिम मासाहस पंखि मुखिहिं मा साहस जंपई । araarणि पइसेवि मंस लिंतउ नवि कंपइ | तिम अवरह उवएस दिति किवि फुडवयणरकरि । पणि अप्पणि न करंति रम्म जिणधम्म तणीपरि । वेरग्गवाणि नड उच्चरइ जलहि जालि पाणी गलइ । इम कम्मभारि भारिय भणी जाइ भूर भवजलतलइ ॥ ७९ ॥ धम्मीय जिणराइ आणि दीवंतर दिडउ | अविरति सयल वि खड देसविरते अघ खडउ । For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु पासत्थे पुण खुट्टि खित्ति खाइव सहु हारिउ । संजम ए सुभखित्ति सव्व वावीय वडारिउ । त्रिभेदि जीव ते करसणी राजदंड अप्परं दहइ । सुविहियमुणि रायपसायवसि मुख सुगालि लच्छी लहइ ॥ ८० ॥ इणिपरि सिरिउवएसमालकहाणया । तवसंजमसंतोसविणयविज्जाइ पहणय | सावयसंभरणत्थ अत्थपय छप्पय छंदिहिं । रयणसींहसूरीससीस पभणइ आनंदिहिं । अरिहंतआण अणुदिण उदय धम्ममूल मत्थइ हउं । भो भविय भत्तिसत्तिहिं सहल सयल लच्छिलीला लहउ ॥ ८१ ॥ ॥ इति श्री उपदेशमालासर्वकथानकछप्पया ॥ समरारासु पहिल पणमित्र देव आदीसरु सेतुजसिहरे । अनु अरिहंत सव्वे वि आराहउं बहुभत्तिभरे ॥ १ ॥ तर सरसति सुमरेवि सारयससहरनिम्मलीय । जसु पयकमलपसाय मृरुषु माणइ मन रलिय ॥ २ ॥ संघपतिदेसलपुत्र भणिसु चरिउ समरातणउ ए । धम्मय रोलु निवारि निसुणउ श्रवणि सुहावणउ ए ॥ ३ ॥ भरह सगर दुइ भूप चक्रवति त हूअ अतुलबल । पंडव पुहविप्रचंड तीरथु उधरइ अतिसबल ॥ ४ ॥ जावडars संजोगु हूअडं सु दूसम तव उदए । समइ भरइ सोइ मंत्रि बाहडदेउ ऊपजए ॥ ५ ॥ हिव पुण नवी य ज वात जिणि दीहाडइ दोहिलए । खत्तिय खग्गु न लिंति साहसियह साहसु गलए ॥ ६ ॥ तिणि दिणि दिनु दिरकाउ समरसीहि जिणधम्मवणि । तसु गुण करडं उद्योउ जिम अंधारइ फटिकमणि ॥ ७ ॥ सारणि अमितणीय जिणि वहावी मरुमंडलिहिं । किउ कृतजुगअवतारु कलिजुग जीतउ बाहुबले ॥ ८ ॥ २७ For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ओसवालकुलि चंदु उदयउ एउ समानु नही । कलिजुगि कालइ पाखि चांद्रिणउं सचराचरिहिं ॥९॥ पाल्हणपुरु सुप्रसीधु पुन्नवंतलोयह निलउ । सोहइ पाल्हविहारु पासभुवणु तहि पुरतिलउ ॥ १०॥ भास-हाट चहुटा रूअडा ए मढमंदिरह निवेसु त । वाविकूवआरामघण घरपुरसरसपएस त। उवएसगच्छह मंडणउ ए गुरु रयणप्पहसूरि त । धम्मु प्रकासइं तहि नयरे पाउ पणासइ दुरि त ॥ १ ॥ तसु पटलच्छीसिरिमउडो गणहरु जखदेवसूरि त । हंसवेसि जसु जसु रमए सुरसरीयजलपूरि त ॥ २॥ तमु पयकमलमरालुलउ ए ककसूरि मुनिराउ त । ध्यानधनुषि जिणि भंजियउ ए भयणमल्ल भडिवाउ त ॥ ३ ॥ सिद्धसरि तमु सीसवरो किम वन्नउं इकजीह त । जसु घणदेसण सलहिजए दुहियलोयबप्पीह त ॥ ४॥ तमु सीहासणि सोहई ए देवगुप्तसूरि बईठु त । उदयाचलि जिम सहसकरो ऊगमतउ जिण दीठु त ॥५॥ तिह पहुपाटअलंकरणु गच्छभारधोरेउ त। राजु करइ संजमतणउ ए सिद्धिसूरिगुरु एहु त ॥ ६॥ जोइ जमु वाणीकामधेनु सिद्धतवनि विचरेउ त । सावइजणमणइच्छिय घण लीलइ सफल करेउ त ॥७॥ उवएसवंसि वेसटह कुलि सपुरिसतणउ अवतारु त । वयरागरि कउतिगु किसउ ए नहीं य ज रतनह पारु त ॥ ८॥ पुन्नपुरुषु ऊपन्नु तहिं सलषणु गुणिहि गंभीरु त । जणआणंदणु नंदणु तसो आजडु जिणधमधीरु त ॥९॥ गोत्रउदयकरु अवयरिउ ए तमु पुत्रु गोसलुसाहु त । तसु गेहिणि गुणमत भली य आराहइ नियनाहु त ॥ १० ॥ संघपति आसधरु देसलु लूणउ तिणि जन्म्या संसारि त । रतनसिरि भोली लाच्छि भणउं तीहतणीय घरनारि त॥११॥ देसलघरि लच्छी य निमुणि भोली भोलिमसार त । दानि सीलि लूणाघरणि लाछि भली सुविचार त ॥ १२ ॥ For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु द्वितीयभाषा-रतनकुषि कुलि निम्मली य भोलीपुत्तु जाया। सहजउ साहणु समरसीहु बहुपुन्निहि आया ॥१॥ लहूअलगइ सुविचारचतुर सुविवेक सुजाण । रत्नपरीक्षा रंजवइ राय अनु राण ॥२॥ तउ देसल नियकुलपईव ए पुत्र सधन्न । रूपवंत अनु सीलवंत परिणाविय कन्न ॥ ३॥ गोसलसुति आवासु कियउ अणहिलपुरनयरे । पुन्न लहइ जिम रयणमाहि नर समुद्रह लहरे ॥ ४ ॥ चउरासी जिणि चउहटा वरवसहि विहार । मढ मंदिर उत्तंग चंग अनु पोलि पगार ॥५॥ तहिं अछइ भूपतिहिं भुवण सतखणिहि पसत्यो । विश्वकर्मा विज्ञानि करिउ धोइउ नियहत्थो ॥६॥ अमियसरोवरु सहसलिंगु इकु धरणिहिं कुंडलु । कित्तिषंभु किरि अवररेसि मागइ आखंडलु ॥७॥ अज्ज वि दीसइ जत्थ धम्मु कलिकालि अगंजिउ । आचारिहिं इह नयरतणइ सचराचरु रंजिउ ॥ ८॥ पातसाहि सुरताणभीवु तहिं राजु करेई । अलपखानु हींदूअह लोय घणु मानु जु देई ॥९॥ साहु रायदेसलह पूतु तमु सेवइ पाय । कला करी रंजविउ खानु बहु देइ पसाय ॥ १०॥ मीरि मलिकि मानियइ समरु समरथु पभणीजइ । परउवयारियमाहि लीह जसु पहिली य दीजइ ॥ ११ ॥ जेठसहोदरि सहजपालि निज प्रगटिउ सहजू । दक्षणमंडलि देवगिरिहि किउ धम्मह वणिजू ॥ १२ ॥ चउवीसजिणालय जिणु ठविउ सिरिपासजिणिंदो । धम्मधुरंधरु रोपियउ धर धरमह कंदो ॥ १३ ॥ साहणु रहियउ षंभनयरि सायरगंभीरे । पुव्वपुरिसकीरितितरंडु पूरइ परतीरे ॥ १४ ॥ तृतीयभाषा-निसुणऊ ए समइप्रभावि तीरथरायह गंजणउ ए। भवियह ए करुणारावि नीठुरमनु मोहि पडिउ ए। For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः समरऊ ए साहसधीरु वाहविलग्गउ बहू अ जण । बोलई ए असमवीरू दूसमु जीपइ राउतवट ए ॥१॥ अभिग्रहू ए लियइ अविलंबु जीवियजुव्वणबाहबलि । उधरऊ ए आदिजिणबिंबु नेमु न मेल्हउ आपणउ ए। भेटिऊ ए तउ षानषानु सिरु धूणइ गुणि रंजियउ ए ॥२॥ वीनती ए लागु लउ वानु पूछए पहुता केण कज्जे । सामिय ए निसुणि अडदासि आसालंबणु अम्हतणउ ए। भइली ए दुनिय निरास ह ज भागी य हींदूअतणी ए। सामिय ए सोमनयणेहिं देषिउ समरा देइ मानु ॥ ३ ॥ आपिऊ ए सव्ववयणेहिं फुरमाणु तीरथमाडिवा ए। अहिदर ए मलिकआएसि दीन्ह ले श्रीमुखि आपण ए। षतमत ए पानपएसि किउ रलियाइतु घरि संपत्तो । पणमई ए जिणहरि राउ समणसंघो तहि वीनविउ ए॥४॥ संघिहि ए कियउ पसाउ बुद्धि विमासिय बहूयपरे । सासण ए वर सिणगारु वस्तपालो तेजपालो मंत्रे । दरिसण ए छह दातारु जिणधर्मनयण बे निम्मला ए। आइसी ए रायसुरताण तिणि आणीय फलही य पवर ॥५॥ दूसम ए तणी य पुणु आण अवसरो कोइ नही तसुतणउ ए। इह जुग ए नही य वीसासु मनुमात्रे इय किम छरए। तउ तुहु ए पुन्नप्रकासु करि ऊधरि जिणवरधरम् ॥ ६॥ चतुर्थभाषा-संघपतिदेसलु हरषियउ अति धरमि सचेतो। पणमइ सिधसुरिपयकमलो समरागरसहितो। वीनती अम्हतणी प्रभो अवधारउ एक । तुम्ह पसाइ सफल किया अम्हि मनोरहनेक ॥ १ ॥ सेत्तुजतीरथ ऊधरिवा ऊपन्नउ भावो। एकु तपोधनु आपणउ तुम्हि दियउ सहाउ । मदनु पंडितु आइसु लहवि आरासणि पहुचइ । सुगुरवयणु मनमाहि धरिउ गाढउ अति रूचइ ॥२॥ राणेरा तहि राजु करइ महिपालदेउ राणउ । जीवदया जगि जाणिजए जो वीरु सपराणउ । For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु पातउ नामिहि मंत्रिवरो तमुतणइ सुरज्जे। चंद्रकन्हइ चकोरु जिसउ सारइ बहुकज्जे ॥ ३ ॥ राणउ रहियउ आपुणपई पाणिहि उपकंठे । टंकिय वाहइ सूत्रहार भांजइ घणगंठे । फलही आणिय समरवीरि ए अतिबहुजयणा। समुद्र विरोलिउ वासुगिहिं जिम लाधा रयणा ॥ ४॥ कूआरसि उछवु हूअउ त्रिसींगमइनइरे । फलही देषिउ धामियह रंगु माइ न सइरे। अभयदानि आगलउ करुणारसचित्तो। गोत्ति मेल्हावइ षइरालुअह आपइ बहुवित्तो ॥५॥ भांडू आव्या भाउघणउ भवियायण पूजइ । जिम जिम फलही पूजिजए तिम तिम कलि धूजइ । खेला नाचइ नवलपरे घाघरिरवु झमकइ । अचरिउ देषिउ धामियह कह चित्तु न चमकइ ॥६॥ पालीताणइ नयरि संघु फलही य वधावइ । बालचंद्र मुनि वेगि पवरु कमठाउ करावइ । किं कप्पूरिहि घडीय देह षीरसायरसारिहि ॥ ७ ॥ सामियमूरति प्रकट थिय कृप करिउ संसारे। मागी दीन्ह वधावणी य मनि हरषु न माए । देसलऊवह चरित्रि सहू रलियातु थाए ॥८॥ पञ्चमी भाषा-संधु बहुभत्तिहिं पाटि बयसारिउ । लगनु गणिउ गणधरिहिं विचारिउ । पोसहसाल खमासण देयए । सूरिसेयंबरमुनि सवि संमहे ए ॥१॥ घरि बयसवि करी के वि मन्नाविया। के वि धम्मिय हरसि धम्मिय धाइया । बहुदिसि पाठविय कुंकुमपत्रिया। संघु मिलइ बहुभली य सज्जाइया ॥२॥ सुहगुरुसिधसुरिवासि अहिसिंचिउ । संघपति कल्पतरु अमिय जिम सिंचिउ। For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः कुलदेवत सचिया वि भुजि अवतरह । सहव सेस भरइं तिलकु मंगलु करई ॥३॥ पोसवदि सातमि दिवसि सुमुहुत्तिहिं । आदिजिणु देवालए ठविउ सुहचित्तिहिं । धम्मधोरी य धुरि धवल दुइ जुत्तया । कुंकुमपिंजरि कामधेनुपुत्तया ॥४॥ इंदु जिम जयरथि चडिउ संचारए। सूहवसिरि सालिथालु निहालए। जा किउ यवरो वसहु रासिउ हूउ । कहइ महासिधि सकुनु इहु लडउ । आगलि मुनिवरसंघु सावयजणा। तिलु न पिरइ तिम मिलिय लोय घणा ॥५॥ मादलवंसविणाझुणि वज्जए। गुहिरभेरीयरवि अंबरो गज्जए। नवयपाटणि नवउ रंगु अवतारिउ । सुषिहि देवालउ संखारी संचारिउ ॥ ६॥ घरि बयसवि करि के वि समाहिया। समरगुणि रंजिउ विरलउ रहियउ । जयतु कान्हु दुइ संघपति चालिया। हरिपालो लंदको महाधर दृढ थिया ॥७॥ षष्ठी भाषा-वाजिय संख असंख नादि काहल दुडुदुडिया। घोडे चडइ सल्लारसार राउत सींगडिया । तउ देवालउ जोत्रि वेगि घाघरिरवु झमकइ । सम विसम नवि गणइ कोइ नवि वारिउ थका ॥१॥ सिजवाला धर धडहडइ वाहिणि बहुवेगि । धरणि धडकइ रजु ऊडए नवि सूझइ मागो। हय हींसइ आरसइ करह वेगि वहइ बइल्ल । साद किया थाहरइ अवरु नवि देई बुल्ल॥२॥ निसि दीवी झलहलहि जेम ऊगिउ तारायणु । पावलपारु न पामियए वेगि वहइ सुखासण । For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु आगेवाणिहि संचरए संघपति साहुदेसलु । बुद्धिवंतु बहुपुंनिवंतु परिकमिहिं सुनिश्चलु ॥३॥ पाछेवाणिहि सोमसीहु साहुसहजापूतो। सांगणुसाहु लूणिगह पूतु सोमजिनिजुत्तो। जोड करी असवारमाहि आपणि समरागरु । चडीय हीड चहुगमे जोइ जो संघअसुहकर ॥४॥ सेरीसे पूजियउ पासु कलिकालिहिं सकलो । सिरषेजि थाइउ धवलकए संघु आविउ सयलो । धंधूकउ अतिक्रमिउ ताम लोलियाणइ पहुतो। नेमिभुवणि उछवु करिउ पिपलालीय पत्तो ॥५॥ सप्तमी भाषा-संघिहिं चउरा दीन्हा तहिं नयरपरिसरे । अलजउ अंगि न माए दीठउ विमलगिरे । पूजिउ परवतराउ पणमिउ बहुभत्तिहिं । देसलु देयए दाणे मागणजणपंतिहिं ॥१॥ अजियजिणिंदजुहारो मनरंगि करेवि । पणमइ सेत्रुजसिहरो सामिउ सुमरेवि ॥ २॥ पालीताणइ नयरे संघ भयलि प्रवेसु । ललतसरोवरतीरे किउ संघनिवेसु । कजसहाय लहुभाय लहु आवियउ मिलेवि ॥ ३ ॥ सहजउ साहणु तीहि त्रिन्हइ गंगप्रवाह । पासु अनइ जिण वीरो वंदिउ सरतीरिहिं । पंषि करइ जलकेलि सरु भरिउ बहुनीरिहिं ॥४॥ सेत्रुजसिहरि चडेवि संघु सामि ऊमाहिउ । सुललितजिणगुणगीते जणदेहु रोमंचिउ । सीयलो वायए वाओ भवदाहु ओल्हावए । माडीय नमिय मरुदेवि संतिभुवणि संघु जाए ॥५॥ जिणबिंबइ पूजेवी कवडिजकु जुहारए। अणुपमसरतडि होई पहुता सीहदुवारे । तोरणतलि वरसंते घणदाणि संघपत्ते । भेटिउ आदिजगनाहो मंडिउ पत्रीठमहूछवो ॥६॥ For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रह. अष्टमी भाषा-चलउ चलउ सहियडे सेत्रुजि चडिय ए। आदिजिणपनीठ अम्हि जोइसउंए। माहसुदि चउदसि दूरदेसंतर संघ मिलिया तहिं अति अबाह॥१॥ माणिके मोतिए चउकु सुर पूरह रतनमइ वेहि सोवन जवारा । अशोकवृक्ष अनु आम्र पल्लवदलिहि रितुपते रचियले तोरणमाला ॥२॥ देवकन्या मिलिय धवलमंगल दियइ किंनर गायहि जगतगुरो। लगनमहूरतु सुरगुरो साधए पत्रीठ करइ सिधसूरिगुरो ॥३॥ भुवनपतिव्यंतरजोतिसुर जयउ जयउ करइ समरि रोपिउ द्रिढु धरमकंदो। दुंदुहि वाजिय देवलोकि तिहुअणु सीचिउ अमियरसे ॥४॥ देउ महाधज देसलो संघपते ईकोतरु कुल ऊधरए । सिहरि चडिउ रंगि रूपि सोवनि धनि वीरि रतनि वृष्टि विरचियले ॥५॥ रूपमय चमर दुइ छत्त मेघाडंबर चामरजुयल अनु दिन्नदुन्नि । आदिजिणु पूजिउ सहलकंतिहिं कुसुम जिम कनकमयआभरण ॥६॥ आरतिउ धरियले भावलभत्तारिहिं पुव्वपुरिस सग्गि रंजियले । दानमंडपि थिउ समर सिरिहि वरो सोवनसिणगार दियइ याचकजन ॥७॥ भत्ति पाणी य वरमुनि प्रतिलाभिय अच्चारिउ वाहइ दुहियदीण । वाविउ सुधम वितु सिद्धखेत्रि इंद्रउच्छवु करि ऊतरए ॥ ८॥ भोलीयनंदणु भलइ महोत्सवि आविउ समरु आवासि गनि । तेरइकहत्तरइ तीरथउद्धारु यउ नंदउ जाव रविससि गयणि ॥९॥ नवमी भाषा-संघवाछल करी चीरि भले माल्हंतडे पूजिय दरिसण पाय । सुणि सुंदरे पूजिय दरिसण पाय । सोरठदेस संधु संचरिउ मा० चउंडे रयणि विहाइ ॥ १॥ आदिभक्तु अमरेलीयह माल्हं० आविउ देसलजाउ । अलवेसरु अल जवि मिलए माल्हं० मंडलिकु सोरठराउ ॥२॥ ठामि ठामि उच्छव हुअइ माल्हं० गढि जूनइ संपत्तु । महिपालदेउ राउलु आवए माल्हं० सामुहउ संघअणुरत्तु ॥ ३ ॥ महिपु समरु बिउ मिलिय सोहई माल्हं० इंदु किरि अनइ गोविंदु । तेजि अगंजिउ तेजलपुरे मा० पूरिउ संघआणंदु । सुणि ॥४॥ वउणथलीचेत्रप्रवाडि करे माल्हं० तलहटी य गढमाहि । ऊजिलऊपरि चालिया ए माल्हं० चउम्विहसंघहमाहि । सुणिः । For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु दामोदरु हरि पंचमड माल्हं० कालमेघो क्षेत्रपालु । सुणि० । सुवनरेहा नदी तहिं वहए माल्हं० तरुवरतण झमालु ॥ ५ ॥ पाज चडता धामियह मा० क्रमि क्रमि सुकृत विलसंति । सुणि० । ऊची य चडियए गिरिकडणि मा० नीची य गति षोडंति ॥ ६ ॥ पामिउ जादवरायभुवणु मा० त्रिनि प्रदक्षिण देइ । सिवदेवसुतु भेटि करिउ मा० ऊतरिया मढमाहि । सुणि० । कलस भरेविणु गयंद मए मा० नेमिहिं न्हवणु करेइ | पूज महाधज देउ करिउ मा० छत्र चमर मेल्हे ॥ ७ ॥ अंबाई अवलोयणसिहरे मा० सांबिपज्जूनि चडंति । सुणि० । सहसारामु मनोहरु ए मा० विहसिय सवि वणराइ । सुणि० । कोइलसादु सुहावणउ ए मा० निसुणियइ भमरझंकारु । सुणि० ॥८॥ नेमिकुमरतपोवनु ए मा० दुट्ठ जिय ठाउं न लहंति । सुणि० । इस तीरथि तिहुयणदुलभे मा० निसिदिनु दानु दियंति ॥ ९ ॥ समुदविजयरायकुलतिलय मा० वीनतडी अवधारि । सुणि० । आरतीमिसि भवियण भणई मा० चतुगतिफेरड वारि । सुणि० ॥ १०॥ जइ जगु एक मुहु जोइयए मा० त्रिपति न पामियइ तोइ । सुणि० । सामलधीर तरं सार करे मा० बलि वलि दरिसणु देजि । सुणि० ॥ ११ ॥ रलीयरेवयगिरि ऊतरिउ ए मा० समरडो पुरुषप्रधानु । घोड सीकर सांकलिय मा० राउल दियइ बहुमानु । सुणि० ॥ १२ ॥ दशमी भाषा - रितु अवतरियउ तहि जि वसंतो सुरहिकुसुमपरिमल पूरंतो समरह वाजिय विजयढक्क । सागुसेलसल्लहसच्छाया केसूयकुडयकयंवनिकाया संघसेनु गिरिमाहइ बहए । बालीय पूछई तरुवरनाम वाटइ आवई नव नव गाम नयनीझरणरमाउलई ॥ १ ॥ देवपणि देवालउ आवह संघह सरवो सरु पूरावइ तहिं आवइ सोमेसरछत्तो पान फूल कापड बहु दीजई लूणसमउं कपूरु गणीजह ३५ अपूरवपरि जहिं एक हुईअ । गउरवकारणि गरुड पहूतो आपण राणउ मूधराजो ॥ २ ॥ For Personal & Private Use Only बाधिहिं सिरु लिंपियए । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ताल तिविल तरविरियां वाजई ठामि ठामि थाकणा करीजई पगि पगि पाउल पेषण ए॥३॥ माणुस माणुसि हियउं दलिजइ घोडे वाहिणिगाहु करीजइ हयगय सूझइ नवि जणह । दरिसणसउं देवालउ चल्लइ जिणसासणु जगि रंगिहिं मल्हइ जगतिहिं आव्या सिवभुवणि ॥४॥ देवसोमेसरदरिसणु करेवी कवडिबारिजलनिहिं जोएवी प्रियमेलइ संघु ऊतरिउ । पहुचंदप्पहपय पणमेवी कुसुमकरंडे पूज रएवी जिणभुवणे उच्छवु कियउ ॥५॥ सिवदेउलि महाधज दीधी सेले पंचे वन्नसमिद्धी अपूरवु उच्छवु कारविउ। जिनवरधरमि प्रभावन कीधी जयतपताका रवितलि बडी दीनु पयाणउं दीवभणी। कोडिनारिनिवासणदेवी अंबिक अंबारामि नमेवी दीवि वेलाउलि आवियउ ए॥६॥ एकादशी भाषा-संघु रयणायरतीरि गहगहए गुहिरगंभीरगुणि । आविउ दीवनरिंदु सामुहउ ए संघपतिसबदु सुणि ॥१॥ हरषिउ हरपालु चीति पहुतउ ए संघु मोलविकरे । पभणइं दीवह नारि संघह ए जोअण ऊतावली ए। आउलां वाहिन वाहि वेगुलइ ए चलावि प्रिय बेडुली ए ॥२॥ किसउ सुपुन्नपुरिषु जोइउ ए नयणुलां सफल करउ । निवछणा नेत्रि करेसु ऊतारिसू ए कपूरि ऊआरणा ए। बेडीय बेडीय जोडि बलियऊ ए कीधउं बंधियारो ॥ ३ ॥ लेउ देवालउमाहि बइठउ ए संघपति संघसहिउ । लहरि लागई आगासि प्रवहणु ए जाइ विमान जिम । जलवटनाटकु जोइ नवरंग ए रास लउडारस ए॥४॥ निरुपमु होइ प्रवेसु दीसई ए रुवडला धवलहर । तिहां अच्छइ कुमरविहारु रुअडऊ ए रुअड्डला जिणभुवण । तीर्थकर तीह वंदेवि वंदिऊ ए सयंभू आदिजिणु । For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समरारासु दीठउ वेणिवच्छराजमंदिरु ए मेदनीउरि धरिङ । अपूरवु पेषि संघु उत्तारिक ए पहली तडि समुदला ए ॥ ५ ॥ द्वादशी भाषा-अजाहरवरतीरथिहिं पणमिउ पासजिनिंदो । पूज प्रभावन तहिं करहिं अजिउ ए अजिउ ए अजिउ सफल सुछंदो ॥ १ ॥ गामागरपुरवोलितो वलिउ सेतुजि संपत्तो । आदिपुरीपाजह चडिऊ ए वंदिऊ ए वंदिऊ ए वंदिऊ ए मरुदेविपूतो ॥ २ ॥ अगरि कपूरिहिं चंदणिहि मृगमदि मंडणुकीय । कसमीराकुंकुमरसिहिं अंगिहिं ए अंगिहिं ए अंगो अंगि रचीय । जाइबल विहसेवत्रिय पूजिसु नाभिमल्हारो । मणुयजनमुफलु पामिऊ ए भरियऊ ए भरियऊ ए भरियऊ सुकृतभंडारो ॥३॥ सोह्ग ऊपर मंजरिय बीजी य सेत्रुजि उधारि । "ठिय ए समरऊ ए समरऊ ए समरु आविउ गुजरात । पिपलालीय लोलियणे पुरे राजलोकु रंजेई | छडे पयाणे संचरए राणपुरे राणपुरे राणपुरे पहुचेई ॥ ४ ॥ वढवाणि न विलंबु किउ जिमिउ करीरे गामि । मंडल होईउ पाडलए नमियऊ एनमियऊ ए नमियऊ नेमि सु जीवतसामि । संखेसर सफलीयकरणु पूजिउ पासजिनिंदो । ------ ३७ सहजसाहु तहिं हरषियउ ए देषिक ए देषिक ए देषि फणिमणिवृंदो ॥ ५॥ डुंगरि डर न खोहि खलिउ गलिउ नं गिरवरि गव्वो । संधु सुहेल आणिउ ए संघपती ए संघपती ए संघपतिपरिहिं अपुव्वो ॥ ६ ॥ सज्जण सज्जण मिलीय तहिं अंगिहिं अंगु लियंते । मनु विहसइ ऊलटु घणउ ए तोडरू ए तोडरू ए तोडरु कंठि ठवंते ॥ ७ ॥ मंत्रिपुत्रह मीरह मिलिय अनु ववहारियसार । संघपति संघु वधावियउ कंठिहिं ए कंठिहिं ए कंठिहि घालिय जयमाल । तुरियघाटतरवरि य तहिं समरउ करइ प्रवेसु । अणहिलपुर वडामणउ ए अभिनवु ए अभिनवु ए अभिनवु पुन्ननिवासो ॥८॥ संवच्छर इक्कहत्तरए थापिउ रिसहजिणिंदो । चैत्रवदि सातमि पहुत घरे नंदऊ ए नंदऊ ए नंदऊ जा रविचंदो ॥ ९॥ पासडसूरिहिं गणहरह नेऊअगच्छनिवासो । तसु सीसिहिं अंबदेवसूरिहिं रचियऊ ए रचियऊ ए रचियऊ समरारासो । For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000000000 प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः एहु रासु जो पढइ गुणइ नाचिउ जिणहरि देइ । श्रवणि सुणइ सो बयठऊ ए तीरथ ए तीरथ ए तीरथजात्रफलु लेई ॥१०॥ इति श्रीसंघपतिसमरसिंहरासः॥ सिरिथूलिभद्दफागु। पणमिय पासजिणंदपय अनु सरसइ समरेवी। थूलिभद्दमुणिवइ भणिसु फागुबंधि गुण केवी ॥१॥ अह सोहगसुंदरूववंतु गुणमणिभंडारो । कंचण जिम झलकंतकंति संजमसिरिहारो। थूलिभद्दमुणिराउ जाम महियलि बोहंतउ । नयररायपाडलियमाहि पहुतउ विहरंतउ ॥२॥ . वरिसालइ चउमासमाहि साहू गहगहिया । लियइ अभिग्गह गुरह पासि नियगुणमहमहिया । अजविजयसंभूयसूरि गुरु वय मोकलावइ । तसु आएसि मुणीस कोसवेसाघरि आवइ ॥३॥ मंदिरतोरणि आवियउ मुणिवर पिरकेवी। चमकिय चित्तिहि दासडिय वेगि जाइ वधावी । वेसा अतिहि ऊतावलि य हारिहि लहकंती आविय मुणिवररायपासि करयल जोडती ॥४॥ भास-धर्मलाभु मुणिवइ भणिसु चित्रसाली मंगेवी । रहियउ सीहकिसोर जिम धीरिम हियइ धरेवी ॥५॥ झिरिमिरि झिरिमिरि झिरिमिरि ए मेहा वरिसंति । खलहल खलहल खलहल ए वाहला वहति । झबझब झबझब झबझब ए वीजुलिय झबकइ । थरहर थरहर थरहर ए विरहिणिमणु कंपइ ॥ ६ ॥ महुरगंभीरसरेण मेह जिम जिम गाजते । पंचबाण निय कुसुमबाण तिम तिम साजते । जिम जिम केतकि महमहंत परिमल विहसावइ । तिम तिम कामि य चरण लग्गि नियरमणि मनावइ ॥ ७॥ For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिरिथूलिभहफागुं ३९ सीयलकोमलसुरहि वाय जिम जिम वायंते । माणमडप्फर माणणि य तिम तिम नाचते। जिम जिम जलभरभरिय मेह गयणंगणि मिलिया। तिम तिम कामीतणा नयण नीरिहि झलहलिया ॥८॥ भास-मेहारवभरऊलटि य जिम जिम नाचइ मोर। तिम तिम माणिणि खलभलइ साहीता जिम चोर ॥९॥ अह सिंगारु करेइ वेस मोटइ मनऊलटि । रइयरंगि बहुरंगि चंगि चंदणरसऊगटि । चंपयकेतकिजाइकुसुम सिरि धूप भरेइ । अतिआछउ सुकमाल चीरु पहिरणि पहिरेइ ॥ १०॥ लहलह लहलह लहलह ए उरि मोतियहारो। रणरण रणरण रणरण ए पगि नेउरसारो। झगमग झगमग झगमग ए कानिहि वरकुंडल। झलहल झलहल झलहल ए आभरणहं मंडल ॥ ११ ॥ मयणखग्ग जिम लहलहंत जसु वेणीदंडो। सरलउ तरलउ सामलउ रोमावलिदंडो। तुंग पयोहर उल्लसइ सिंगारथवका। कुसुमबाणि निय अमियकुंभ किर थापणि मुक्का॥ १२ ॥ भास-काजलि अंजिवि नयणजय सिरि संथउ फाडेई । बोरीयावडिकांचुलिय पुण उरमंडलि ताडेइ ॥ १३ ॥ कन्नजुयल जसु लहलहंत किर मयणहिंडोला । चंचल चपल तरंगचंग जसु नयणकचोला। सोहह जासु कपोलपालि जणु गालिमसूरा । कोमल विमलु सुकंठु जासु वाजइ संखतूरा ॥ १४ ॥ लवणिमरसभरकूवडिय जसु नाहि य रेहइ । मयणराय किर विजयखंभ जसु ऊरू सोहह । जसु नहपल्लव कामदेवअंकुस जिम राजइ । रिमिझिमि रिमिझिमि ए पायकमलि घायरिंय सुवाजह ॥१५॥ नवजोवनविलसंतदेह नवनेहगहिल्ली । परिमललहरिहि मयमयंत रइकेलिपहिल्ली । For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः अहरबिंब परवालखंड वरचंपावन्नी । नयणसलूणी य हावभावबहुगुणसंपुन्नी ॥ १६ ॥ भास - इय सिणगार करेवि वर जव आवी मुणिपासि । जोवा कउतिगि मिलिय सुरकिंनर आकासि ॥ १७ ॥ अह नयणकडरकहं आहणए वांकउ जोवंती । हाव भाव सिणगार भंगि नवनवि य करंति । तह वि न भीजइ मुणिपवरो तउ वेस बोलावइ । तवणुतुल तुह देह नाह मह तणु संतावइ ॥ १८ ॥ बारहरिहंत नेहु किणि कारण छंडिउ | एवडु निठुरपणs is मूंसिउ तुम्हि मंडिउ । थूलभद्द पभणेइ वेस अह खेदु न कीजइ । लोहिहि घडियउ हियउ मज्झ तुह् वर्याणि न भीजइ ॥ १९ ॥ मह विलवंतिय उवरि नाह अणुराग धरीजइ । एरिस पावसु कालु सयलु मूसिउ माणीजइ । मुणिव जंप वेस सिद्धिरमणी परिणेवा । मणु लीणउ संजमसिरीहिसुं भोग रमेवा ॥ २० ॥ भास - भइ कोस साचउ कियउ नवलइ राचइ लोउ । मूं मिल्हिवि संजम सिरिहि जब रात मुणिराउ ॥ २१ ॥ उवसमरसभरपूरियड रिसिराज भणेह | चिंतामणि परिहरवि कवणु पत्थरु गिइ | तिम संजमसिरि परिवएवि बहुधम्मसमुज्जल । आलिंगइ तुह कोस कवणु पसरंतमहाबल ॥ २२ ॥ पहिलउ हिवडा कोस कहइ जुत्र्वणफलु लीजइ । तयणंतरि संजमसिरीहि सुह सुहिण रमीजइ । मुणि बोलइ जि मह लियड तं लियउ ज होइ । कवणु सु अच्छइ भुवणतले जो मह मणु मोहइ ॥ २३ ॥ भास - इणपरि कोसा अवगणिय थूलभद्दमुणिराइ । तसु धीरिम अवधारिकरि चमकिय चित्ति सुहाइ ॥ २४ ॥ अइबलवंतु सु मोहराउ जिणि नाणि निघाडिउ । For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबूसामिचरिय झाणखडग्गिण मयणसुभड समरंगणि पाडिउ । कुसुमवुटि सुर करइ तुहि हुउ जयजयकारो। धनु धनु एहु जु थूलिभद्द जिणि जीतउ मारो ॥ २५॥ पडिबोहिवि तह कोसवेस चउमासिअणंतरू । पालिय भिग्गह ललिय चलिय गुरुपासि मुणीसरु । दुक्करदुक्करकारगु त्ति सूरिहि सु पसंसिउ । संखसमुज्जलजसु लसंतु सुरनरहं नमंसिउ ॥ २६ ॥ नंदउ सो सिरिथूलिभद्द जो जुगह पहाणो । मलियउ जिणि जगि मल्लसल्लरइवल्लहमाणो । खरतरगच्छि जिणपदमसूरिकियफागु रमेवउ । खेला नाचई चैत्रमासि रंगिहि गावेवउ ॥ २७ ॥ ॥ सिरिथूलिभदफागु समत्तु ।। जंबूसामिचरिय जिण चवीसइ पय नमेवि गुरुचलण नमेवी । जंबूसामिहिंतणउं चरिय भविउ निसुणेवी। करि सानिध सरसत्तिदेवि जिम रयं कहाणउं । जंबुसामिहिं गुणगहण संखेवि वषाणउं ॥ १॥ जंबूदीपह भरहखित्ति तिहिं नयरपहाणउं । राजगृह नामेण नयर पहुविं वरकाणउं । राज करइ सेणियनरिंद नरवरहं जु सारो। तासुतणइ पुत्त बुद्धिमंत मंति अभयकुमारो ॥२॥ अन्नदिणंतरि वडमाण विहरंत पहूतउ । सेणिउ चालिउ वंदणह बहुभत्तितुरंतु । मागि वहंतु माहाराज केस पेखेइ । भोगविरत्तउ पसनचंद बहुतवण तवेइ ॥३॥ धनु धनु माया एहरसि पसंसिउ वंदइ । दुमुखवयणि सो चलिउ ध्यानि कुमारगि चल्लह । धम्मलाभ नवि दीयइ जाम मुनि हूउ अभाओ। For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ईहं सहू को एक मानि रंको अनु राओ ॥४॥ सामिय वंदिउ वडमाण सेणीयं पूछीई। जइ पसनचंद हिव करेइ काल कीछे ऊपजइ । मन जाणेविण पसनचंद सामी बोलीजइ । नरगावासह सातमए नींछई ऊपजइ ॥५॥ बीजी पूछहं मणुय होइ त्रीजी अणउत्तर । दुंदुहि वाजी देवकीय चालीय तिहिं सुरवर । सेणिउ पूछइ सामिसाल कांहां जाईजइ । केवलमहिमा पसनचंद देवे कीजीजइ ॥६॥ सेणिउ मनि चिंताचडिओ सामी वलि पूछ।। जं प्रभु तम्हे बोलीयउं तं अम्हे न बूझिउं । सेणिय तम्हि बूझियउं तअंतिस त होए। मणपरिणामह विसमगति जीवहं पुण होइ ॥७॥ केवलनाणउ भरहखेति केतूं बरतेसिइ । सामी दाबीउ विज्जुमालियउ छेनु होसिइ । चउसहि देवे परियरिउ चउदेवे सहीउ । अतिसई दीसइ देहकंति सेणीचिति चडीउ ॥८॥ देवहं नवि हुइ एहु नाणु यउ किम होएसिइ । आजूना दीह सातमए इणि नयरि चवेसिइ । किंकारण पुण एहकंतिं किंख्यह अतिसउ । कवणह धम्महतणइ भावियउ देवअइसउ ॥९॥ ठवणि-महाविदेहतणइ विजय वीतसोय नयरी। पद्मरथ नामेण राउ वनमाला घरणी। तास ऊयरि ऊपन्न पुत्रु सुरलोयहहूंतु । वडइ नामिइं सिवकुमार बहुगुणिहिं संजुत्तउ ॥ १० ॥ पुत्वभवंतरतणइ नेहि सागरमणि पहुतु । आवीउ बंदण सिवकुमार बहुभत्तितुरंतउ। हउं जाणउं तू मुणिहिं नाह कीछे महं दीठउ । एह जन्मह तइयभवि मुझ भाइ य हूंतउ ॥ ११ ॥ ऊहापोह करेहि जाम पाछिलउ भव देषइ । For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबूसामिचरिय जा मई मूंकी सुरह रिद्धि या कीणइं लेखई । तु चिंताविउ सिवकुमार अथिरउ संसारो। भवनिन्नासण लेइसिउं अम्हि संजमभारो ॥ १२ ॥ माइ न मेल्हई एकपूत सो मुनिहिं थाई। दृढधम्मेण सावरण जायवि बोलावीउ । पारि पारि दृढधम्म भणइ अम्ह भणीउ कीजइ । दुल्लभ बेडी मणुयजम्म जतनिहिं राषीजइ ॥ १३ ॥ कहइ धम्म सो मुणिहिं जाम तसु वयण मनेई । बिहुं उपवासहं पारणइ ए आंबिल पारेई । फासुयवेसण भत्तपाण दृढधम्मो आणइ । माहि थीउ अंतेउरहं सो सील ज पालइ ॥१४॥ नवकरवालीतीषधार करमं सवि सूडइ । निहणइ मोहकंदप्पराउ भवपरीयण मोडइ । बारहं वरसहंतणइ अंति आऊचूं पूरीजइ । पंचमदेवलोकि सिवकुमार सो देव ऊपजइ ॥१५॥ कवणह नारिहितणइ उयरि एह जीव चवेसिइ । कवणह बापहतणइ कुलि एउ मंडण होसिइ । उसभदत्तसेठिहिं घरणि धारणिउरि नंदण । होसिइ नामिइं जंबुसामि तिहुयणि आणंदण ॥ १६ ॥ ऊठीउ देव अणाढिउ हरषिइं नाचेई। धनु धनु अम्हतणउं कुल एसु पुत्त होसिइ । चविउ विमाणह बंभलोय धारणिउरि आविउ । सुमिणप्रभाविइं उसभदत्त अंगेहि न माईउ ॥ १७ ॥ जायउ पुत्रु पहाण जाम दसदिसि उदयंतउ । वडइ नामिहिं जंबुसामि गुणगहण करंतु। अठवरीसउ हूउ जाम गुरुपासि पहूतु । ब्रह्मचारि सो लियइ नीम भववासविरत्तउ ॥ १८ ॥ जोयणवेसह पहुतु जाम कन्ना मग्गावइ । बीजा धूया पाठवए तस विवारा वय । मन देजिउं तम्हि अम्ह देसु अम्हि इसउं करेशउं । For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः सांझ परणी प्रहह जाम नीछइं व्रत लेसिउं ॥ १९ ॥ माय दुल्लंघीय तण वयणि परिणेवउ मन्नीउ । आठइ कन्या एकवार परिणीय घरि आवीउ । आठइ परणी मृगनयणी बूझवणइ बइठउ । पंचसएचोरेहंसिउं प्रभवउ घरि पठउ ॥ २० ॥ नीद्र अणावीय सोयणीय आभरण लीयंता । ते सवि अछई थंभीया टगमग जोयंता । प्रभवउ भणइ हो जंबुसामि एक साठि ज कीजइ । बिहुं विज्ञावडई एक विज्ज थंभणीय ज दीजइ ॥ २१ ॥ हिव हूं कहि नवि ज लेवि पुण किसउं करेसो । आठ परिणी ससिवयणी नोछई व्रत लेसो । रूपवंत अणुरन्त रमणि एउ एम चएसिइ | अहंतासुतणीय आस मुझ जीव करेसिइ ॥ २२ ॥ एवड्डु अंतर नरहं होइ प्रभवउ चिंतेई । संवेगरसिज गयउ मन प्रभवउ पूछेई । सिरिमणिऊमाहीया ह तम्हि संजम लेसिउ । करुणई विलवई माइबप्प किम किम मेल्हेसिउ ॥ २३ ॥ इंदियाल नवि जाणीह ए को किम होइसिह । अढार नात्रां एकभवि जंबूस्वामि कहेई । पितर तम्हारा जंबुसामि किम तृपति लहेराई । पिंड पes लोहंतणइ ए ऊभा जोसि ॥ २४ ॥ बाप मरवि भई हु पुत्रजन्मि हणीजइ । इणपरि प्रभवा पितरतृप्ति तिथि धीवरि कीजइ । अहंतासुतणीय आस हूं तउं छांडेसिउ । तिण करमणि जिम कलत्र भणइ अवतरता करेशिउ ॥ २५ ॥ तम्ह रूपहिं हउं लोभ करडं देषि मणहर ख्यडउं । हथकडेवर काग जिम भवसागर निवडउं । बीजी कल कवि नाह जइ अम्ह छंडेसिउं । तिणि वानरि जिम पच्छुताव बहु चींति घरेसिउं ॥ २६ ॥ बिंदुसमाणउं विसयसुरक आदर किम कीजइ । For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जंबूसामिचरिय इंगालवाहग जेम तुम्हि तृस किम न छीपइ | त्रीजी कल भणइवि नाह जउ अम्ह छांडेसिउ । तिणि जंबुकि जिम साणहार बहुखेद करेशउ ॥ २७ ॥ ऊतर पडि ऊतर बहू य संखेवि कहीजई | विलखी हुई ते सवि बाल जंबूसामि न बूझई | आसातरुवर सुक्क जाम अम्हि इशउं करेशउं । नेमिहिंसिउं राइमइ जिम वयगहण करेशउं ॥ २८ ॥ आठइ कलह बूझवीय पंचसयसिउं प्रभवउ । माइ बाप बेड भई ताम अम्ह साधुसरीसउ । ठवण - प्रह विहसह सुविहाण प्रभवु विनवह जंबुसामि । सजनलोक मोकलावि तहसिउं संजम लेसिउं ॥ २९ ॥ aण एक पडबाएव राय मोकलावण चालीय । तु सुहडसमूह करेवि भुई कंपई भडभडवई ॥ ३० ॥ जस भय सकइ राउ जस भय नींद्र न वयरीयहं । एसउ प्रभवउ जाइ नरनारी जोयण मिलीय । पहुतु रायवारि पडिहारिहं बोलावीउ । art उ भेटा अम्हि अछउं उत्सुकमणा ए ॥ ३१ ॥ पुत्ततणउ विझ राय तुम्ह दरिसणि ऊमाहीउ ओ । कारण जाणीउ राय वेगिहिं सो मेल्हावीउ ओ । देठि न खंडइ राउ प्रभवउ देषी आवतउ । साचउ ए भडिवाउ पुरुषह आकृति जाणीइ ए ॥ ३२ ॥ रूपगुणे संपन्न रायरमणिमन चोरतु ओ । सोहइ पूनमचंद जइद्रव कोणी प्रणमीउ । नुत अडसीय शरीर जइ कोइ जणणीजाइउ । नय छूटुं नीर संवेगजलहरि वरिसिउ । सामी खमि अपराध अम्हे लोक संतावीया ए ॥ ३३ ॥ पडिवज बोलह राउ कोणी मनि आनंदियउ । धन्न पती माइ इसिउ पुत्र जिणि जाई ओ । तो मोकलावी राउ चोरपल्ली सासंचरए । सजनह कहीई एउ अम्हे संजम लेइाउं ॥ ३४ ॥ For Personal & Private Use Only ४५ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः किण कारणि वइराग तं कारण अम्ह बोलीइ ए । मेल्ही अइ बाल कणयकोडि नवाणवइ ए । अनइ रिद्धि बहूत तिहिं पुण पार न जाणीयए । जंबूसामिचरित महिमंडलि हुडं अच्छरीय ॥ ३५ ॥ इणि कारणि वयराग तृण जिभ दीठउ मेल्हतउ ओ । अम्ह सोइ जि सामि तम्हे भलई अछजिउ ओ । मोहनरिंदशडं झूझ संजमकित्तिई झूझसिउं ओ ॥ ३६ ॥ ठवण - प्रभव पंचसएण अट्ठइवहयरमाइबप्पो । ४६ सविक ए रूठ जाइ नीयघरहूंतु नींसरइ ए । चालीउ ए सिवपुरिसाथ सारथवय तिहिं जंबुसामि । तिहुयणी ए जयजयकार सोहम देषीउ जंबुसामि । कंचण एरयणिहिं दाण जिम घण वरसइ भाद्रवए । सयत ए ईह गोलोक भवियजणसंवेगकरो ॥ ३७ ॥ ठवण - कसरी पिइ माइ पुत्र कलत्र धन्न धण । देसी कुडिसारिच्छ जिण जिम जंबू परिहरए । अनइ लोक बहुत व्रत लेवा तिहिं चालीउ । वंदिय जिणभवणाई सोहम्मसामिपासि गयउ ॥ ३८ ॥ भवसायर ऊतार जम्मण मरणह बीह तउ ओ । पंचमहव्वयभार मेरुसमाण अंगमइ ए । अनु तेतर परिवार सोहमसामिहिं दिरकीउ ओ । हूड केवलनाण संजमराज ह पालतां ए ॥ ३९ ॥ वीरजिदिह तीथि केवलि हूड पाछिलउ । प्रभवउ बसारीज पाटि सिद्धिं पहुतु जंबुस्वामि । जंबूसामिचरित पढई गुणई जे संभलई । सिडिक अनंत ते नर लीलाहिं पामिसिहं ॥ ४० ॥ महिंदसूरिगुरुसीस धम्म भणइ हो धामीऊ ह । चिंतउ रातिदिवसि जे सिद्धिहि ऊमाहीया ह । बारहवरससएहिं कवितु नीपनूं छासठए । सोलह विज्जावि दुरिय पणासउ सयलसंघ ॥ ४१ ॥ इति श्रीजंबुस्वामिरासः ॥ For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तक्षेत्रिरासु सप्तक्षेत्रिरासु सवि अरिहंत नमेवी सिद्ध सूरि उवझाय । पनरकर्मभूमिसाहू तीह पणमिय पाय ॥ १ ॥ जिणसासणहमाहि जो सारो चउदह पूरवतणउ समुधारो। समरिउ पंचपरमिष्ठि नवकारो सप्तक्षेत्रि हिव कहउ विचारो॥२॥ धुनु धुन ते जि संसारे जीहं जिणवरु स्वामी । गुरु सुसाहु जिणभणि धम्मु सुग्गइगामी ॥ ३ ॥ बारि अंगि दुलहु मणुजम्मु अनी अ विशेषिहि जिणवरधम्म । सम्मत रयणु चिति निवसइ जीह सोहग ऊपरि मंजरि तीह ॥ ४॥ पुणु जिणसासणु दुलहउँ जीव संभलि कथनु निरुपम । नाणुपहाणु एकु जि जिनवरधम्मु ॥५॥ भरहखित्ति खट्षंडह थित्ति केवलनाणि जिणवर जंपति । वैताठ्यपरहां त्रिन्नि खंड होइ तहि धरमनामु निवरतन तोइ ॥६॥ उल्या बिहु खंडि थित्ति केवलि इम आषइ । तीहमांहि दुनि षंडने पडिया पाषा ॥७॥ मज्झिम षंड इकु बइनी मडिउ तेउ बिहुभागि पाछइ पडिउं । चउथउ भाग धरमनइ लागे तेउ जोईजइ सयमइ भागे ॥ ८॥ ते अ नवाणवइ भाग साहू मिथ्यातिहि जडिउं । थाकत कुमतिकुबोधिकुगुरुग्गहि पडिउं ॥९॥ थोडा जीव केई दीसंते जे जिणभणि मनिहि करंति । हिव तिहुयणिहि सारु समिकत्तु पामिउ जीवि जिनभणिउ नवतत्तु ॥१०॥ बार वरत तइं पामिउ जे जिणवरि वुत्ता। सुगइनिबंधण सत्ता जीव मुगति दीयंता ॥ ११ ॥ प्राणातिपातव्रतु पहिलउं होई बीजउ सत्यवचनु जीव जोई। त्रीजइ व्रति परधनपरिहारो चउथइ शीलतणउ सचारो ॥ १२॥ परिग्रहतणउं प्रमाणु व्रतु पांचमइ कीजइ । इणपरि भवह समुद्दो जीव निश्चय तरीजइ ॥ १३ ॥ छठ व्रतु दिसितणउ प्रमाणु भोगुवभोगव्रत सातमइ जाणु । अनरथव्रतु दंड आठमउं होइ नवमउं व्रत सामायकु तोह ॥ १४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः देसावगासी दसमुं व्रतु नथी मूलु। पोषधव्रतु इग्यारमउ संजमसमलूल ॥ १५ ॥ व्रतु बारमउं अतिथिसंविभागुउ तोइ मुकतिनयर न न मागो। जे ईणइ मारगि चालइ संसारे धनु सक्रियारथ ते नरनारे ॥ १६ ॥ समकितमूल व्रतु बारइ गहियधरमि पालेवउ । सप्तक्षेत्रि जिनभणिया तिह वित्तु वावेवउ ॥ १७॥ सप्तक्षेत्रि जिन कहिया महामुनि वितु वावेजिउ विवहपरे । जिनवचनु आराधीउ अवक्रमु साधिउ लहइ पारु संसारुसरे ॥ १८॥ सप्तक्षेत्रि जिनसासणिहि सघली कहीजई। अथिरु रिधि धनु द्रव्यु बीजउ तहि जि वावीजइ । तेहि क्षेत्रि वावेत्रणा थानकि लाभइ देवलोको । कणनी थाहरु मुक्तिफलो पामउ निसंदेहो ॥ १९॥ पहिल क्षेत्र सु जिणह भुवण करावउ चंगू। जीछे महिमा करइ सहु श्रीचरविहसंघू । मूलगभारउगूढमंडपुछकुचउकीसहिउ । आगइ कीजइ रंगमंडपु जो पुस्तकि कहिउ ॥ २० ॥ तहिं आतरइ बलामणु कीजइ आधेरउ । जिम जिनभवनह नालिमाहि दीसइ नीकेरउं । उत्तंगतोरणु थंभथोरु घांटु अतिनीकउ । कडीयइ नानाविधि रूपि सारु चारु तहि नीसलु जडिउ ॥ २१ ॥ बिहु पक्ष फरती देहरी कीजइ अतिरूडी। ठवीजइ मूर्ति जिनहतणी माहि तेवड तेवडी। कणयकलस दंड घांटीई धज पूरीय कियजइ । छोहपकतप्रासादु भलउ जीव नीपाइजइ ॥२२॥ तहि जिनबारिं कमाड भलां कीजइ अतिसुविघट्ट । सारूआर दृढ प्रागू ए जो आवइ संपुट । तालां कूची सांकली अतिनीसल कीजइ। जउ आथमणह जाइ सूर तउ संपुट दीजइ ॥ २३ ॥ अतिसउ जिणह भुयणु किरि अमरविमाणु । दीसइ मूरति वीतराग माहि लिहुयणुभाणु । For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ सप्तक्षेत्रिरासु कवणु रूप वीतरागतणु जोइ कवणु विशेषु । अठ प्रतिहारि ज जिणहतणइ वृक्ष होइ अशोकू ॥ २४॥ भामंडलुसुरकुसुमवृष्टिसीहासणुछत्तू । भेरिचमरदेवंडुणिहिण जोइ कवणु प्रभुत्तू । ए थिति एसी वीतराग मेल्ही अवर न होई । सूरादिक जिनसेव करई नवि सगलइं जोई ॥ २५ ॥ तउ जिनजीर्णउडारु भवि जीव विशेषिहि करीयइ । भागउ लागउ जिणह भुवणि तेउ तोइ समुद्धरियइ । लीपिउ धउलीउ भीगु देइ चीत्रामु लिषीजइ । इणपरि भुयणु समारीय जन्मह फलु लीजह ॥ २६ ॥ अनीउ जु काइं किंपि ठामु जिणभुवण सीदाइ । तं निश्चिई करावीयए बहुफलु बोलाइ। आपणि सामिउ वीतरागु ईणपरि भणेइ । जीर्णोद्धारहतणा पुण्य तेह अंत न होइ ॥ २७ ॥ बीजं खेत्रु सुजिनह बिंबु ते इहां विचारो। मणिमय रयण सुवर्णमए बिंब रूपम कारो। हिव जिनभुवणह गृहचैत्यदेवरा छ कहीसइ । कीजइ कणयभिंगार कलस जे नीर भरीसइ ॥ २८ ॥ तउ सीलमइ करावीयइ जिनभवन ठवीजइ । पारइ पीतलमइ भलां ग्रिहचैति पूजीजइ । घरि देवालाई कराविय नीकाइ मणोहर । जीछे तिहुयणसरण सामि पूजीजइ जिणवर ॥ २९ ॥ सुगंधि नीरि सनाथु करइ जिण जीणि आणंदिहि । ते संसारह कसमलह नवि छीपइ बिंदिय । अंगलूहणे सूक्ष्म करउ सुफरां बहुमूलां। नियनियसक्ति करावियइ कीजे देवंगतूलां ॥ ३० ॥ कीजइ ओरसु ख्यडा सिरखंड घसेवा । कपूरवटे वाटीइ कपूर जिनस्वीमुखि देवा। मूंकइ जिणभुयणिहि धोति अतिनीकी धूपी । वालाकुंची पूंजणीइ पीगाणी कूपी ॥ ३१ ॥ For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अतिसुगंधिहि सिरखंडिहि कपूरिहि आंगी। कीजइ सामी वीतराग प्रभु नवनवभंगी। कस्तूरिहिं कुंकुमिहि तिलउ निलाडिहिं सामी। ते पुण वितपति करइ भली अतिनीकइ धामी ॥ ३२ ॥ तउ आभरण चडावियइ सोव्रणमय घडिया। हीरे माणिकि मोतीए बहुरयणे जडिया। अतिख्यडउं आभरणउ भलउं कीजइ संपूरउ । नीकउं सिहर पूठिउं हूतलि अनइ मसूरउ ॥ ३३ ॥ कानिहि कुंडल सिरि मुकुटु किरि ऊगिउ भाणूं। जाणे तिहूयणि सयल लोक अभिनवउं विहाणूं। उरह माल कंठि सांकल मुक्तावलिहार । नयणि निहालिन वीतरागु ख्यडउ सुरसार ॥ ३४॥ बाहुजुयलि बेउ बहिरखा अतिनीका सोहई । टीलूउं श्रीवत्सु साख्यार भवियण मणि मोहइ । सोनाकेरी पालठी कीजइ जिनपत्ते। सोहइ बीजउरउं रूयडउं सामीजिणहत्थे ॥ ३५ ॥ इणि विवेकिहि बहु य विशेषिहि जिणवरपूज सलकणी य । करउ मनरंगिहि नवनवभंगिहि श्रीसंघनयणसुहामणी य ॥३६॥ एती अ जोइ आभरणतणी पूजा नीपन्नी। हिव आरंभिसु जिणह अंगि सुरहां कुसमन्नी। कीजइ कुसमे चंगेरीयए पूज कारणि ख्यडी। वावरीइ दीहु देवकाजि अन्नइ छाजी छवडी ॥ ३७॥ रायचंपु केतकी जाइ सेवत्री परिमल । बउलि सिरीवालउ वेअलु अनु करणी पाडल । नीलउनी विचि पूजमाहि सोहइ अतिचंगी। वितपति दीसइ रूयडे तिणि नवनवभंगी ॥ ३८ ॥ नीकउ कणयरु पूजमाहि वरणकि सोहंती। परिमलु पसरइ कुसुमजाति पाछइ विहसंती। कुंदु अनइ मुचुकुंदु वालु जूई परिजाते। एसे कुसुमि करउ पूज तुम्हि तिहुयणपत्ते ॥ ३९ ॥ For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तक्षेत्रिरासु सुरहउ सख्यउ बावची अनइ कल्हार । सहुयइ सोहइ वीतराग सामी सुरसार । नीलउनी नागवेलि पानमाहि जा सोहइ । ईणपरि पूजइ सामिसाल नरनारी धन्न ॥ ४० ॥ एहि रामणीयइ पूज तोइ नीकी सोहंती। तउ नक्षत्रहतणी माल दीवाशू चंगी य । खेलीयइ माहि भुयण जिणबिंबहकेरी। आणी कुसुमे पूजियइ ते सवि संखेवी ॥ ४१ ॥ समोसरणु जो पूजीयए जो तिन्निपयारूं । चिहु पखि दीसइ वीतरागु जहि तिहुयणसारू । तउ पूजा नीपन्नी पूठि धूपउटजउ लीजइ । वीजणिय ऊखेवितु गुरु तहि घंटी वाजइ ॥ ४२ ॥ धूप अगुरु सातिवारेसि डाबडी जि कीजइ । दंडासणे अतिख्यडे जिणभुवणु पुंजीजइ । आखेरिहिं मंजूस भली अन्नय चउकीवट । ढोइउ आखे करउ भली य मंगलीक आठ य ॥ ४३ ॥ वडमाणु वरकलसु अनइ भद्दासणु छत्तू । दप्पणु नंदावरतु तहि साथिउ श्रीवत्सू । अठ मंगलीक तीण पाटि भरियइ जिनआगइ। इणपरि जं धन वेवीइ ए तं लेखइ लागइ ॥ ४४ ॥ दीवा कीजइ जिनभुवणि छत्रत्रउ दीजइ । चमर ढलंते वीतराग तेहि धनु वेवीजइ । ते उलोच कारावियइ जिणभुवणमज्झारे । वाचोटा मरवर अ लंब कीजइ जिनबारे ॥४५॥ तोरण वंदुरवाली बारि साषि जिणभुवणि । पूजा जोइ सहु कोइ आवइ तीणि खिणि । पूजा जोइवा जिणह भुयणि तोइ सुहगुरु आवइ । तउ संघिहि आग्रह करीउ तीछे रहाविय ॥ ४६॥ पडषउ वेला एक प्रभु अहां उच्छवु होसिइ । संघवयणु मानेवि सुगुरु निसि सिखं पइसई । For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः तिणि वेलां बसणां पाटि जोइ पाटल्ला । चउकीवटि बइसंति सुगुरु त भावइ भल्ला ॥ ४७ ॥ बइसइ सहूइ श्रमण संघ सावय गुणवंता । जोयइ उच्छवु जिनह भुवणि मनि हरष घरंता । तीछे तालारस पडइ बहु भाट पढ़ता । अनइ लकुटारस जोइई खेला नाचता ॥ ४८ ॥ सविह सरीषा सिणगार सवि तेवड तेवडा । नाचइ धामीय रंभरे तर भावइ रूडा । सुललित वाणी मधुरि सादि जिणगुण गायंता । तालमानु छंद्गीत मेलु वार्जित्र वाजंता ॥ ४९ ॥ तिविलां झालरि भेरु करडि कंसालां वाजई । पंचशब्द मंगलीक हेतु जिणभुवणई छाजइ । पंचशब्द वाजंति भाटु अंबर बहिरंती । इणपरि उच्छव जिणभुवणि श्रीसंधु करंतर ॥ ५० ॥ तर आरती परुगुणउं कीउं आरती पटऊपरि । ऊठिउ संघपति विधिहि सहिउ तउ साहीउ बिहुकरि । नीर लुण उतारियए कुसुम ऊतारी । संघपति ऊठी सेसि भरई सहहत्थिहि माडी । संघपति आरती लिया हुइ जउ वार वडेरी । आरती जोगी थांभली अ आणउ गरुएरी ॥ ५१ ॥ पाछइ जिणगुण गाइ पढइ सहू पालउ लोक । श्रीसंधु तीह अ दानु दियई जीह जेसा जोगू । ऊतारी आरतीअ तोइ संघपति सइ हरखिउ । रोमांची सारीरु तहि जिणदंसणु देखीउ ॥ ५२ ॥ मंगलीक ऊतारीयए घंट वाजइ सरूई । श्रीसंधु करइ प्रभावना जिणसासणि गरुडं । तउ विधि वांदियउ वीतराग श्रीसंधु ऊतारीउ । इणपरि सुकृतभंडारु तोड़ भव्यजीविहि भरियउ ॥ ५३ ॥ जे जिन भुवणतणां कृत्य ईह छेडइ कहिया । ते गृहचैत्य करावियइ सविशेषिहि सहिया । For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तक्षेत्र रासु अनि अ ज काई कोइ ठामु मूं हुई वीसरियउं । ते तुम्हि भविय करावि जि अ सहूइ सांभरियउं ॥ ५४ ॥ उछवुं जिनभुवयणि हरषि नियमणि करइ संधु जयवंतु । नितु हिव त्रीज क्षेत्र कहिसु पवित्तू सुणउ जीव जे जिणभणितृ ॥५५॥ त्रीज क्षेत्र सु संभलउ ए वरलोयणे जं भणिउं वीयराइ । गुणगंभीर सो जिणह वयणु मृगलोयणे तसु नवि ऊपम काइ ॥ ५६ ॥ वचन इकेका मूल नही वरलोयणे जं बोलइ भगवंतु । त्रिहु भुवणे चूडामणिय मृगलोयणे सह जाणइ अरिहंतु ॥ ५७ ॥ पढ कवण व्याप जिनवचनतणउ वर० बुज्झइ लोकु अलोकु । सउ जि सिद्धंत ज सलहीअइ ए मृग० देअइ सिद्धिसंजोगु ॥ ५८ ॥ गणधर करइ जं पुव्वधर वर० सुयकेवलिहि करंतु । दसपूरवधर जं करइ मृग० तं भणियउ यह सिडिंतु ॥ ५९ ॥ त्रिभुवणहतण जाणियइ वर० आगममाहि विचारु । चउदपूरव इग्यार अंग मृग० करइ गोतमु सुतिहारु ॥ ६० ॥ सूत्रहार तहि निउछणा ए वर० जिणि जाणिउ एउ सूत्र । त्रिपदी आपी य वीरनाथिइ मृग० आघउं गोतम वृतु ॥ ६१ ॥ केवलनाण वुच्छिति गयउं वर० गया सवि पूरवधर । जे हुंता गुरु प्रज्ञघणउं मृग० गया सु ते मुनिवरा ॥ ६२ ॥ अल्पप्रज्ञह नवि थाहरए वर० जिणवयणुं निरुपमु । ती कारणि श्रीसंघ मिलीय मृग० पोथे ठवीउ आगमु ॥ ६३ ॥ भक्षाभक्ष सो बुझिए वर० अन्नी गम्मागंमु । कृत्याकृत्य परीछियए मृग० जाणीयइ धर्म्माध ॥ ६४ ॥ धन जीवी लाहुउ लिउ ए वर० बुज्झियह एहु विचारु । श्रीसिद्धंतु लिखावियए मृग० जोउ त्रिभुवणह सारु ॥ ६५ ॥ त्रीज क्षेत्र इस वावीयए वर० चित्ति संवेगु धरेउ । date वित्त लिखावियए मृग० श्रीसिद्धान्त जएउ ॥ ६६ ॥ बाहूदंड पोथा कराउए वर० पोथीय नीकी य तोइ । ज्ञानलाइ सवि लाभ हुइ मृग० एह विचार तूं जोइ ॥ ६७ ॥ पाठां दोरी वीटणां वर० वर सिद्धांतह भत्ति । वानीदोरा ऊतरीय मृगलोयणे पोथीय पोथीय सत्ति ॥ ६८ ॥ For Personal & Private Use Only ५३ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः त्रीजउ क्षेत्रु इम वावउ निरुपम लियउ लाभु हुँतातणउ । जिम अट्ठकम्म गंजीउ भवदुह भंजीउ सिद्धिनयरि खेमिइ मुणउ ॥६९॥ हिव श्रीश्रमणसंघभत्ति करउ जीव तुम्हि यथासक्ति । पहिलउ कीजइ तोइ पावयणा अनी य विशेषिहि आयरियठवणा॥७०॥ इणपरि श्रमणुक्षेत्रु वावीजइ निश्चय भवसायरु तरीजइ। जे जिनवरि मुनि कहिया आगमि क्रियासार अनइ खरतर संजमि॥७१॥ पंचमहव्वयभारु धरंता दस अनु च्यारि उपगरण वहंता । नव कल्पिइ विहार करंता ते मुनि भणियई चारित्तवंता ॥७२॥ जे मुनि पंच समिति छइ समिता बिहुहि गुप्तिहि जे अछह गुपिता। सीलंग सहसअढार वहंता ते मुनि भणियइ उपसमवंता ॥ ७३ ॥ जे मुनि निम्मल निरहंकार सदाचार दीसइ सुवियार । जे धुरि जूता गणगच्छभारा ते मुनि भणिया गुणह भंडारा ॥ ७४ ॥ ईणपरि भल्ला क्षेत्र विशेषि दियउ दानु तुम्हि भवि हरखि । जिम तु छूटउ भवना भार पामउ सिवसुखु निरुपमसारु ॥७५ ॥ जे जिनआण सदा छइ रत्त बावीस परीसह सहइ अपमत्त । जिनआदेसु धरइ सिरिऊपरि ते जि महामुनि नमीयइ सुरवरि ॥७६ ॥ बईतालीसदोषसुविसुद्धउ लियइ आहारु जे जिणवरि दिठ्ठउ । इंदियविषयव्यापिनवि गूचइ तवि नीमि संजमि खण विनमूचइ ॥७॥ किसुंधणउं हउं कहउ विचारो मुनिरयणगुण न लहउं पारो। अनुव्रतु चालइ जे जिनआण ते मुनि भणीयइ मेरुसमाण ॥ ७८ ॥ प्रसंसीइ मुनि जिहि गुणि सहिया ते गुण जिणवरि श्रमणी कहिया। एकु विशेषु पुण श्रमणी दीसइ वहइ उपगरण तोइ पंचवीसइ ॥ ७९ ॥ चालइ खड्गधार तोइ ऊपरि सीलवंत ति नमीइं सुरवरि । महासती जे छइ अपमत्त धारा भणइ हूं तेहि पवित्त ॥ ८० ॥ जीह जिनआण हिथइ परिणमी ते श्रमणी तोइ मेरह समी। जे सिद्धी जिणआण करती धनु धनु श्रमणी ते महासती ॥ ८१ ॥ जिणसासणु जेहि य इम उजालिउ कसिमल पावपंकु पखालिउ । एउ साहू अनइ श्रमणी खित्त वाविन धामी हुईउ सवित्त ॥ ८२ ॥ जा हिवडांतूं संपति अच्छइ इसीय वराप न पामिसि पछइ। जउ भलखेत्रिहि वित्त नवाविसि पाछइ परभवि किसउ लुणाविसि॥८॥ For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तक्षेत्र वराप टली वितु वाविसि सारु ऊगिसि खडसलु काइ कतवारु । जउ भलक्षेत्रि वरापहं वाविसि तर इकुगुणइ अनंतगुणं पाविसि ॥ ८४ ॥ ए भलं क्षेत्रं जिनवरि कहिया वावे धम्मी भावणसहिया । तउ सीचे अनुमोदनापाणी जिम हुइ सफली गय निरुवाणी ॥ ८५ ॥ ईणपरि वावीजइ मुनिखेनु दीजहं भक्त पानु सूझंतू । विद्यादानुं जउ दीजई सारु जिणु भणइ तेह पुन्य नहीं पारु ॥ ८६ ॥ ओषधआदि सहु सुझत तं तं दीजई नियधरिहुंतडं । अनि काई मुनि उपगरइ तं झतूं वहरडं करइ ॥ ८७ ॥ जं जं मुनि जोअइ सुझंतरं तं तं दीजई नियधरुहुंतडं । गुरु आवता कीजइ अभिगमणउं दीजइ भक्ति थोभवंदन ॥ ८८ ॥ विनउ वेयावचु अनी विशेषित कीजइ भवीउ महामुनि देखीउ । पर्युपास्ति तही की जइ घणी य जिम जिम जिनवरि आगमि भणी ॥ ८९ ॥ एह ज परि श्रमणी जाणेची करउं भक्ति तुम्हि हरिख धरेवी । जे सूझ महामुनि दीजइ तं तं श्रमणी कीजइ ॥ ९० ॥ आगइ तो पूर्विहि सुणीजइ धनु धनु सारथवाह कहीजइ । घीउ विहिराविउ जिणि मुणिंदर तिणि फलि हूयउ पढम जिणंदू ॥ ९१ ॥ efaणार नयरि श्रेयंसिहि पाराविउ रिषुभु इक्षुरसिहि । तिणि फलि तिण भवि केवलु ज्ञानु दिइन भविकु मुनि इणपरि दानु ॥९२॥ वीर जिणेसर छठ्ठा मास चंदण पारावर कोमास । तीणि दानि शिव संपति पामी दियउ दानु तुम्हि अनुव्रत धामी ॥ ९३॥ जोइन संगमि कीउं मुनि पारावीउ खंड खीरु घीउ । तिणि फलि तु सर्वार्थसिद्धि पामी पाछइ होसिह सिवसुहगामी ॥ ९४ ॥ इउ भल्लउ खेतू बावउ वितू अतिफलीअइ संवेगचित्तू । सिवसुह संपत्ती देइन भत्ति सामिसाल आगमि भणित्ति ॥ ९५ ॥ हिव तोइ श्रावकतणउं क्षेत्तु भवी कहीसह । जउ जिणसासणतणी भूमि अतिभलउं फलीसिह । किस सुश्रावक जाणिवउ जिणसासणभिंतरि । श्रीवीतरागतणी य आण मानइ सिरऊपरि ॥ ९६ ॥ समकित मूल बार वरत पालइ नरनारि । frees feast वीतरागु एक जि सुरसारु । ५५ For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः कामदेव जिम चलइ नही वीतरागह धर्म | वीरनाहु जिणवरु दियइ तसुनी ऊपम्म ॥ ९७ ॥ सदाचारु सुविचारु कुसल अनइ निरहंकारु । शीलवंत निकलंक अनइ दीनगणआधार | जिनह वचनि तिम सातधातु जीह श्रावक भेदी । जाणे तीह गर्भवासवेलि मूलहुंति छेदी ॥ ९८ ॥ जाणइ ऊचितु सहू काय साच विवहार । त्रिधा सुद्धि मनमाहि वसह इकु निश्वउ सारु । उत्सर्ग अनइ अपवाद एह जाणइ सविसेषू । भणियइ श्रावकतणी भावीय मूलिइ सा जीह एहु विवेक ॥९९॥ जे पुण श्रावकतणा भविय कहीयइ जिणसासणि । ते गुणु जिण भणइ श्रावियह जाणेवा नियमा ॥ १०० ॥ त्रिधा सुद्धि वीतराग वसइ मनभीतरि जीह । सुलहउ सिवपुरतणउ वासु तो श्रावक तीह | पढइ गुणइ जिणवयणु सुणइ संवेगि संपूरिय । सील सनाहि पहिरिह क्रमपरि सूरी ॥ १०१ ॥ ईहं तु श्रावकतण क्षेत्र वावु सवि दीस | जे तुम्हि भवियर अच्छइ काइ धर्मतणी जगीस । जिम भरयेसरि वावी रिससरनंदणि । गृहवासपरि ज्ञानु जासु पसरीउ तिहुयणि ॥ १०२ ॥ तिम तुम्हि वावेउ भलीपरि भविउ इड खित्तु । लहिसउ फल निरवाणनयरि तिम तिहां बहूतु । पहिलं कीजइ महाविनउँ गुणश्रावक जाणी । पाय पषालीय सहहाथि लेउ कुंकुम वाणी ॥ १०३ ॥ पाछइ भोजनुं भलीयभक्ति सविवेकिहि सहियउ । दीजइ श्रावकश्राविकां एउ आगमि कहिउ । ऊपर ऊगरि फूल पान कापड अनुमानिय । दीजइ निजभक्ति भलां गरूयइ बहुमानि ॥ १०४ ॥ भरसर जिम श्रावकह दीजइ आवासे । लोणा जे जिनवयणि अछइ घणगुणह निवास । For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तक्षेत्रिरासु वाछिलनी परि एक कीसउ परि हुअइ असंख । विधिमानु फरसइ सहू कोइ नरनारी दुःख ॥ १०५ ॥ वाछिलनी परि एकजीभ हउं कहि न सकउं । एकह वारु सारु सकू तुम्ह कहीउ अज मू किउं । जं जं कीजइ कुणबकाजि अतिभलां भलेरां । ता कीजइ साहमिय प्रति अजी अधिकेरां ॥ १०६ ॥ कीधे काजे कुटंबतणे अतिघणउ संसारो। जं कीजइ साहमिअकेरउ काजि ते परत भंडारो । इणपरि वाछिल श्रावकह कीजइ सुरचंगू। हव ते कहीइसिइ जिणभवणि वाछिल अंतरंगू ॥ १०७॥ जिणपरि लोग समाराअए सवि साहमिअकेरु । थाकइ जिम संसारमझि वलि वलि एउ फेरु। कीजइ श्रावकश्राविकारहि वरपोषधशाल। जीछे करिसिइ धरमध्यान तु हरषि सवि काले ॥ १०८॥ षडुजीवरक्षा सवि काल तीछे दीसंती । समकितसिउं बार य व्रत जीव अनेकिइ लहंती। प्रतिमा नीम अभिग्रह संपज्जइ तिणि हाट । अनेकि सुकृत ऊपजइ कुहियाकडेवरमाट ॥ १०९ ॥ तीछे सुगुरु वषाणु करइ आगमभंडार । सहू समाधियइ सांभलइ व्यूथ नरनारे । थापनाचार्य चउकीवटउ सिंहासण कीजइ । नउकरवाली चिरवला महुपत्ती मूकीजइ ॥ ११० ॥ संथारा ऊतरउट पाटि कीजइ पुंछणा। करे पोसाल पाटला अनइ दंडाछणा । काजामेलणी य पउंजणी य काजाऊधरणी। पौषधसालहतणइ ठामि ए काजह करणी ॥ १११॥ कीजइ कमली ठवणी य वाचीजइ सिद्धांतु । ज्ञान पढ़ता जीव तीहा कर्मक्षय अनंतु । जइ ज्ञान पडिलेहवा मोरवीछी य छे तोई। दीसई आखर पडवडा अनइ जइणा होई ॥ ११२ ॥ For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः ईइ सातइ क्षेत्र इम बोलीया आगमअणुसारे । पुण तुम्हे वावीयं भलीयपरि वित्त आपणरे ॥ ११३ ॥ न्यायनीति वितु लिडं तीउ थानकि वावे । जिणसासणि वेवीतु कुलि कमल सु चडावे । संघसमुदाइ सहू कोइ तीरथ वंदावे ।। देवजात्र गुरुजात्र करीइ तउ भलउ भणावे ॥ ११४ ॥ इम वितु सु वेवउ धम्म सु संचउ अप्पं जीव म वंचसुउ । वली न लहिसउ प्रस्तावु एसउ करउ सफलु भव माणसउ ॥ ११५ ॥ सातक्षेत्र इम बोलिया पुण एक कहीसिइ । कर जोडी श्रीसंघपासि अविणउ मागीसइ। कांईउ ऊणं आग बोलिउं उत्पन्न । ते बोल्या मिच्छा दुकडं श्रीसंघविदीतुं ॥ ११६ ॥ मूं मूरष तोइ ए कुण मात्र पुण सुगुरुपसाऊ । अनइ ज त्रिभुवनसामि वसइ हियडइ जगनाहो । तीणि प्रमाणिइ सातक्षेत्र इम कीधऊ रासो। श्रीसंघु दुरियह अपहरउ सामी जिणपासो ॥ ११७ ॥ संवत तेरसत्तावीसए माहमसवाडइ । गुरुवारि आवी य दसमि पहिलइ पखवाडइ । तहि पूरु हूऊ रासु सिव सुख निहाणूं। जिण चउवीसइ भवीयणह करिसिइ कल्याणूं ॥ ११८॥ जां सिसि रवि गयणंगणिहि ऊगइ महिमंडलि। ता वरतउ एउ रासु भविय जिणसासणि । निम्मल ज ग्रह नक्षत्र तारिका व्यापहं । गयवंतु श्रीसंघ अनइ जिणसासणु ॥ ११९ ॥ . इति सप्तक्षेत्ररासः समाप्तः । For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कछलीरासः कछूलीरासः गणवह जो जिम दुरीउविडणु रोलनिवारणु तिहूयणमंडणू पणमवि सामीउ पासजिणु । सिरिभद्देसरसूरिहिं वंसो बीजी साहह वंनिसु रासो धमीय रोलु निवारीउ । सग्गबंडु जिम महीयलि जाणउं अठारसउ देसु वषाणउं गोउलि धन्नि ५९ रमाउलउ ॥ अनलकुंडसंभम परमार राजु करई तहिछे सविवार आबूगिरिवरु तहिं पवरो । विमलडवसहीं आदिजिणंदो अचलेसरु सिरिमासिरि वंदो तसु तलि नयरी य वन्नीयए । जणमणनयणह कम्मणमूली कछूली किरि लंकविसाली सरप्रववावि मोहरी य ॥ वस्त - तम्हि नयरी य तम्हि नयरी य वसई बहू लोय । चिंतामणि जिम दुच्छीयहं दीई दानु सविवेय हरिसि य । सच्चईं सीलि ववहरई कूडकपटु नवि ते य जाणई । गलीउं जल वाडी पीड़ धम्मकम्मि अणुरन्त । एकजीह किम वन्नी कछूली सु पवित्त | हिमगिरिधवलउ जिसु कविलासो गुरुमंडपु पुतलीयविणासो पासभूयणु रलीयामण | भवीयहं गुरु मणि आणंदु आणइ जसहडनंदणु तं परिमाणइ सतरि भेदि संजमु परिपालइ | विहिमगि सिरिपरि गुण गाजइ एगंतर उपवास करेइ बीजा दिन आंबिल पारेइ । सासणदेवति देसण आवइ स्यणिहिं ब्रह्मसंति गुरु वंदीइ कविलकोटि श्रीयसुरि विहरंतई । मालारोपण कीयां तुरंतई सइ नर आवीय पंचसयाई समिकति नंदई बहू य वयाइ । छाडनंदणु बहु गुणवंतउ दीख लीइ संसारविरक्तउ । लाषणछंदपरमाणपरिकणु आगमधम्मवियारवियरकणु । छत्रीसी गुरुगुणि जुत्तउ जाणीउ नियपदि ठविउ निरूत । For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः माणिक पहुसूरि नामू श्रीयसूरिप्रतीछीउ कछूलीपुरि पासजिणभूयणि अहिठीउ ॥ सावयलोय करई तसु भत्ती नवनवधम्ममहूसवजुत्ती । श्रीसूरि आरासणिअठाही अणसणविहि पहतउ सुरनाही । निवीय आंबिल सोसीय नियकाया माणिक पहसूरि वंदउ पाया । विणठदेह जस धवलह राणी पायपखालणि हुई य पहाणी । माणिकसूरि जे कीध जिणघम्मपभावण इकमुहि ते किम वन्नउ भवपावपणासण ॥ ६० कालु आसन्नु जाणेवि माणिकसूरि नयरिकछुलि जाएवि गुणमणिगिरि । सेठ बासलसुउ वादिगयकेसरी विरससंसारसरिनाहतारणतरी । संघु मेलवि सिरिपासजिणमंदिरे वेगि नियपाटि गुरु विउ अइसइ परे । उदयसिंहसूर की नामि नाचती ए नारिंगण गच्छभरु सयलु समपीजए । सुरु जिम भवियकमलाई विहसंतओ नयरि चड्डावली ताव संपत्तओ ॥ वन चत्तारि वरवाणि जो रंजए राउलो धंधलोदेउ मणि चमकए । कोइ कम्माली पाऊयारूढओ गयणि खापरिथीइं भणइ हउं वादीओ । पंडिते बंभणे तापसे हारियं राउलोधंधलोदेविहिं चिंतियं । वादिहिं जीतउं नयरो नवि कोउ हरावइ उदयसूरि जइ होए अम्ह माणु रहावइ ॥ वस्त - जित्त नयरि य जित्त नयरि य सयलमुणिसीह । नीरंत नीरु षडो गरूयदंडडंबर करंतई । धंधलु राउलु विन्नवइ सामिसाल पर मझि संतई । बंभण तपसीय पंडीया जं त न बंधई बाल । सु गुरु कम्मालिउ निज्जणीउ अम्ह अप्पर वरमाल ॥ धंधलजिणहरि सवि मिलिय राणालोय असेस । उदयसूरि संघिहि सहीउ निवसह ए निवसइ ए निवसइ वरहरि पीठि ॥ सत्थिपमाणी हरावी मंत्रिहिं ए मंत्रिहिं ए मंत्रिहिं वादुकमठो ॥ सेयंवर त हिव रहिजे जे गुरु सिद्धिहिं चंडो । विसहरु आवतु परिषलि जे लंषीउ ए लंषीउ ए लंषीउं दंडु पयंडो ॥ तउ गरि मुहंतां मिल्हिकरि होई गरड षणेण । धाईड लीधर चंचुपडे गिलीउ ए गिलीउ ए गिलीड छालभुयंगो || पाउपिलिवि संमुहीय डरडरंतु थीउ वाघो । जोवणहार सवि पलभलीय हीयडई ए हीयडई ए ही डइ पडीउ दाघो | For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्दकक तउ गुरि मूकीउ रयहरणु कीधउ सीहु करालो। वाघह जं ता दूरि थीउ हरिसीउ ए हरिसीउ ए हरिसीउ नयरु सबालो॥ इत्थंतरि मुणि गयणठिय तसु सिरि पाडीय ठीब । हुउ कमालीउ कालमुहो लोकिहिं ए लोकिहिं ए लोकिहिं वाईय बूंब ॥ छंडीउ माणु कवालधरो धाईउ वंदइ पाय । खमिखमि सामि पसाउ करी जीतउं एजीतउं ए जीतउ तई मुणिराय॥ वस्त–ताव संधीउ ताव संधीउ ठीब मंतेण । गणहरि करि कम्मालीयह भिखभरीउ अप्पीउ मुहत्तिण । रामिहिं जिम वायसह इक्कु निजुत्त सु हरीउ सत्तीण । धारावरसि कयंतसमि भिंडीउ डिंभीउ ताम । प्रतपउ कोडि वरीस जिनउदयसूरिरवि जाम ॥ चड्डावलिहिं विहरीउ प्रभु पहुतउ मेवाडि । पासु नमसीउ नागदहे समोसरीउ आहाडि ॥ जालु कुद्दालिय नीसरणी दीवउ पारउ पेटि। वादीय टोडरु पइ धरए पहुत्तउ षमणउ षेटि । केवलिभुकति न जिणु भणए नारिहिं सिद्धि सजाणि । उदयसूरि षमणउ षलीउ जयत ल रायअथाणि ॥ केवलिभुकति म भंति करे नारि जंति ध्रुव सिद्धि । तिसमयसिद्धा वजि जीय लीइं आहारु विसुड ॥ षीच पीर दीठंतु दीउ जित्तु नंदिमुणिदेवि । गयकुंभथलि आरुहीय पढमसिद्ध मरुदेवि ॥ विवरणु पिंडविसुद्धि कीउ धमविहिग्रंथु प्रसिडु । चीयवंदणदीवीय रचीय गणहरु भूअणि प्रसिद्ध । अम्हहं साजणसेठे छम्मासहं कालो। वसतिणि ऊयरि ऊपनउ पदि ठाविजि बालो ॥ तेरदुरोत्तरवरिसे अप्पङ साइं। चड्डावलि दिविहो जगि लीह लिहावी ॥ कछूली जाएवि परमकल सु गच्छभारुधरो। पंचम वरिस वहंति सजणनंदणु दीखीउ । देवाएसु लहेवि गोठीय सत्तमे वरिस लहो। For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः चउदीसि मेलीउ संघु आरीठवणउं विविहपरे । गोतमसामिहिं मंत्रु आषात्रीजइ दिणी दीइए। जोगवहाणु वहेवि अंग इग्यारइ सो पढए । त संजमि रणि जीतु सयरह चुकउ पंचसरो॥ गुजरधर मेवाडि मालव ऊजेणी बह य। सावय कीय उवयार संघपभावण तहिं घणी य॥ सात्रीसइ आषाडि लखमण भयधरसाहुसूओ। छयणीनयरमझारि आरिठवणउं भीमि किओ ॥ कमलसूरि नियपाटि सई हथि प्रज्ञासुरि ठवीओ। षमीउ षमावीउ जीवु अणसणि अप्पा सूधु कीओ॥ षणि पहुत्तउ सुरलोइ गणहरु गंगाजलविमलो। तासु सीसु चिरकालु प्रतपउ प्रज्ञातिलकसूरे ॥ जिणसासणिनहचंदु सुहगुरु भवीयहं कलपतरो। ता जगे जयवंत उम्हाउ जां जगि ऊगइ सहसकरो। तेरत्रिसठइ रासु कोरिंटावडि निम्मिउ । जिणहरि दिंतसुणंतं मणवंछिय सवि पूरवउ ॥ कठूलीरासः समाप्तः ॥ सालिमहकक भलि भंजणु कम्मारिबल वीरनाहु पणमेवि । पउमु भणइ ककरकरिण सालिभद्दगुण केइ ॥ १ ॥ कत्थ वच्छ कुवलयनयण सालिभद्द सुकमाल । भद्दा पक्षणइ देव तुह कह थिउ इत्तियवार ॥२॥ कारनामयनीरनिहि समवसरणि ठिउ सामि । अज्जु माइ मई वंदियउ वीरनाहु सिवगामि ॥ ३॥ खरचं कुड्डु ता पुत्त कहि का देसण किय वीरि। कवणु अत्थु वखाणिइउ कंचणगोरसरीरि ॥४॥ खारसमुद्दह आगलउ माइ कहिउ संसारु । संजमपवहणहीण तसु किमइ न लब्भइ पारु ॥५॥ For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्दकक गयममत्त वीरियपवर जे जगि पुरिसपहाण । सालिभद्द भद्दा भइ संजमु सोहइ ताण ॥ ६ ॥ गारववज्जिउ विन्नवउं काइउ मग्गउं माइ । जइ मोकलउ तर तु लियउं तुम्हह पाय पसाई ॥ ७ ॥ घणकुंकुमचंदणरसिण तुह तणु वासिउ वच्छ । वह परीसह किम सहिसि मुणि गंगाजलसच्छ ॥ ८ ॥ घाइ पीलिय पंचसई खंद्गरिहि सीस । साहु माइ दुस्सहु सहई एरिस धम्म जिगीस ॥ ९ ॥ नवि वड लिज्जइ तरुणपणि सालिभद्द सुकुमाल । महु कुलमंडण कुलतिलय कुलपईव कुलबाल ॥ १० ॥ नाउं गव्विहिं कुलताई पाविजइ भवछेउ । माइ मरीचि भव भमिउ वडमाणजिणुदेउ ॥ ११ ॥ चरणु लेसिजइ पुत्त तुहु नंदण नीयपवीण । अंती भद्दा भणई मई किम मेल्हिसि दीण ॥ १२ ॥ चारुचक्किबलदेव तह वासुदेव बलवंत । माइ तडि यि परियणह कड्डिउ लेह कयंतु ॥ १३ ॥ छण मइलंछणसमवयण तुह भज्जा बत्तीस । ते विलवंती पेमभरि किम करिसि कुलईस ॥ १४ ॥ छारु जेम उड्डुइ सयलु अंतेउरु घरसारु । माइ जीवु जउ संचरइ छंडेविणु ढंढारु ॥ १५ ॥ जणणि भणइ जां बालपणु तां पुत्तह पडिबंधु । तान्न बुल्ला विअ बहु उन्नाड कंधु ॥ १६ ॥ जाणिउ देह असारबलु भरहिं मूक मोहु । ताव माइ तमु विहिडियउं केवलनाण निरोहु ॥ १७ ॥ झलकंतर कंचणघडिउ सत्तभूमिपासाउ | विवह कोडाको घण कहि कोइ ऊणउ ठाउ ॥ १८ ॥ झाणानलि जिणि कम्मवणु बालिउ गहिउं नाणु । वीरनाहु महु हिव सरणि रिद्धि रमणि अपमाणु ॥ १९ ॥ नरवइ सेणिउ तुम्ह पहु सुरगोभद्दु सुताउ । नि नवलं आभरणु कहि को चित्ति विसाउ ॥ २० ॥ For Personal & Private Use Only ६३ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नाइकु सेणिउ तुम्ह महु जइ किरि कहिइउ माइ । ता धणु कंचणु गेहबलु खण वि न चित्ति सुहाइः॥ २१ ॥ टलटलेसि धम्मत्थ पुण धम्मगहिल्ला बाल । धम्म करेवा महु समउ तुहु धणुरकण बाल ॥ २२ ॥ टालिसि चरण म माइ मई देइ महावयसिक । वडमाणजिणवरकिरिहिं पुन्निहिं लब्भइ दिक ॥ २३॥ ठणकइ पुत्त सु चित्ति महु पुत्तविहूणिय नारि । विहवह मुच्चइ दुहु सहइ दीणी परघरबारि ॥२४॥ ठामि ठामि जिउ हिंडिइउ भव चउरासीलक । माइ जि सहिया नरयदुहु ताह कु जाणइ संख ॥ २५ ॥ डरपिसि सुणियइ सीहसरि निसुणिसि सिवफिक्कार । भुस्किइंउ तिसिइउ वच्छ तुह किम हिंडिसि नरसार ॥ २६ ॥ डालिहि चडियउ डालिसउ माइ म हल्लावेउ । पच्छइ कहि हउं चरणु कहि वडमाणुजिणदेउ ॥ २७ ॥ ढलई चमर वर पुत्त तुह सीसि धरिजइ छत्तु । मणिसीहासणि बइठणउं किणि कारणि वइचित्तु ॥ २८ ॥ ढाउ विलग्गउ माइ महु सिवपुरि रजहरेसि । वोलावउ ठिउ वीरजिणु रहिसु न भवह किलेसि ॥ २९ ॥ नवउं अंतेउरु नवउं घर नवजोवणु नवरंगु । सालिभहु नवकणयतणु ढल करि चरणपसंगु ॥ ३०॥ नाणु रसायणु करिसु हउं कम्मिधणदाहेण । तिणि आऊरिसु माइ तणु जरा न ढुक्कइ जेण ॥ ३१॥ तरुअरतलि आवासु मुणि भिरकह भोयणु पाणु । भूमंडलि आसणु सयणु वच्छ चरणु दुहठाणु ॥ ३२॥ तालउ भंजिवि पइसरह माइ गेहि जमराउ । छुट्टइ बालु न वुड्ड जणु पडइ अचिंतिउ घाउ ॥ ३३ ॥ थल डूंगर पाहण सघण कक्कर कंट तुसार । पाणहवजिउ गुरि सहिउ हिंडिसि केम कुमार ॥ ३४॥ थाहररहि न मझु मणु माइ कहिउ तउ सम्म । वीरनाहु जिणु ववहरउ लेसु चरणु धणु धम्मु ॥ ३५॥ For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सालिभद्दकक दहविह धम्मु करेसि किम किम सोसिसि निय अंगु । वच्छ तहं ता दोहिलउं होसिइ तुह सीलंगु ॥ ३६॥ दाणसीलतवभावणह अणु न सोसिउ जेहिं । माइ मणूभवु दुल्लहउ आलिहि हारिउ तेहिं ॥ ३७॥ धम्मु किइउ जिम रिसह जिणि तिम किजइ सुअ इत्थु । पहिलउं साखिहिं पसरिउ अंति पयासिउ तित्थु ॥ ३८॥ धाडउ जमरायहतणउ पडइ अचिंतिउ माइ। कडिउ लिजइ जीवु तिणि बुंब न वाहर काइं ॥ ३९ ॥ नवकप्पूरिहि पूरिया नंदण कोमल केस । केतगिवालई वासिया किम उहरिसि असेस ॥ ४० ॥ नारायणबंधवु निसुणि तहिं दिणि दिकिउ बालु। सीसु अग्गि दुस्सहु सहइ माइ सु गयसुकुमालु ॥४१॥ पट्ट सुअ तइं पहरियां रसियउं दिव्व अहारु । सुअ उव्वासिहिं सोसिया केम करेसि विहारु ॥ ४२ ॥ पालिसु पंच महव्वई बारस अंग पढेसुं। वीरनाहिसुं माइ हउं नवकप्पिहि विहरेसु ॥ ४३ ॥ फणिरायह सिरि पुत्त मणि मुल्लेण य बहुमुल्लु। सा गिण्हता पाणहर संजमभर तस तुल्लु ॥४४॥ फाडिजइ करवत्तु सिरि पाइजइ कत्थीरु । माइ दुरस्कु नारय सुणिउ महु उडसइ सरीरु ॥ ४५ ॥ बत्तीसहं पलंकि त सयणु करइ नितु जाइ। डूंगरि कासुगि करिसि किम बलि किजउं तह काय ॥ ४६॥ बार मास कासग्गि रहिउ बाहूबलि मुणिराउ । नाणह कारणि तिणि सहिउ सीअ लूअ जलु वाउ ॥४७॥ भमिसि विहारिहिं भारिअओ नंदण तुं सुकुमाल । वीर जिणंदह चरणु पुणु मुणि बावन्न फालु ॥४८॥ भारु माइ भुस्किय वहइ रासहवसहपमुस्क। आरंकुसकसि ताडियई ताहं कु जाणइ दुख ॥४९॥ मयलंछण जिम तारयहं सयलहं किल भत्तारु । तं बत्तीसहं बहुअरहं एक देव आधारु ॥५०॥ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः माइ महामुणि वीरुजिणु कुलगुरु मह संताणि । तसु मई अप्पं अपिउं जिम सुहु होइ नियाणि ॥ ५१ ॥ यह तरं संजमु लेसि सुअ मेल्हिवि सयलु सिणेहु । ता गोभद्दु अभागिइउ हा धिगु छुड्डउ गेहु ॥ ५२ ॥ याइवनाइगु नेमिजिणु गुणसोहग्गनिवासु । माइ सिद्धिपट्टणि गयउ मेल्हेविणु गिहवासु ॥ ५३ ॥ रहि रहि नंदण वयणु सुणि मा मा मई संतावि । तुह विणु नितु कुण पूरिसइ मुक्काहरणह वावि ॥ ५४ ॥ राहडि पूरिय माइ तई महुकेरी सविवार । दिक दियावह जिणभणिय जा तियलोअह सार ॥ ५५ ॥ लहकइंसउं संजमु लियए नंदसेणु मुणिराउ । सो संजमुपव्व पडिउ सुअ भोगह कम्मपसाय ॥ ५६ ॥ लाह विणिजु करेसु हउं छेउ माइ चएसु । ईणि असारि देहडिय संजमु सारु गहेसु ॥ ५७ ॥ वच्छ ति नारी दुरकनिहि जाहं न कंतु न पुत्तु । महुत्त नंदण जाइयई हिंव आविडं निरुत्तु ॥ ५८ ॥ वार स माइ सलरकणीय तं मुहुत्त सुपवित्तु । धन्न ति बंधव जणइजण चरणु लेइजइ पुत्त ॥ ५९ ॥ सहसाकारिहिं गहियवड सुमह कंडरिएण । नंदण तेण य नरइदुह पामिय भट्ठवएण ॥ ६० ॥ सारखं साटउं मिलिय मुह माइ कहिउ तउ सम्मु । वीरनाहु कि वहओ लेसु चरणु धणु रम्मु ॥ ६१ ॥ लह मणोरह पूजिसई सज्जण होसिइ सोसु । नंदण तुं थाइसि समणु एउ महु कम्महं दोसु ॥ ६२ ॥ पाससासवेयणपमुहवाहि माइ तणु मूलू | जीवु तेहिं धंधोलियइ उड्डइ जिम लहु तूल ॥ ६३ ॥ समल देह कप्पड समल रत्तिदिवस गुरुआण । होइसिहं तुं भद्दा भइ परआइत पराण ॥ ६४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूहामातृका सालिभद्द जंपइ जणणि ए महु कहिउ जिणेण । संजमविणु भवभयहरणु ताणु न किजइ केण ॥ ६५ ॥ हसतरोअंता पाहुणउ ताम हसंता होउ । सालिभद्द संजमु लियइ महु बुज्झिअइ पमोहु ॥ ६६ ॥ हारमउडकुंडलकलिउ चडिऊ पुरिसविमाणि । वीरपासि पहुतउ कुमरु जण दिजंतइं दाणि ॥ ६७ ॥ क्षमासमणि भद्दातणई दिकिउ जिणिहि कुमारु । सालिभद्दु बहु तवु करइ आगमु पढइ अपारु ॥ ६८॥ क्षामेविणु जिण मुनिसहिउ अणसुणु गहिउ उवन्नु । सव्वट्ठह सिद्धिहि गयउ सालिभद्द तहिं धन्नु ॥ ६९ ॥ महाविदेहि सु मुणि गहवि केवलनाणु लहेवि । सासयसुकु वि पाविसहि भवियह धम्मु कहेवि ॥ ७० ॥ इह कहियउ ककह कुलउ इकहत्तरि कडुयाह । भवियउ संजमु मणि धरउ पढहु गुणहु निसुणेहु ॥७१ ॥ सालिभद्दकाक समाप्त. दूहामातृका भले भलेविणु जगतगुरु पणमउं जगह पहाणु । जासु पसाई मूढ जिय पावइ निम्मलु नाणु ॥ १ ॥ उँकारिहि उच्चरउ परमिट्ठिहि नवकारु । सिवमंगल कल्लाणकरो जासु वि नामुच्चारु ॥२॥ नवनिहि धम्मिहि संपडए सकचक्कहरिरिद्धि । धम्मु इक्क करि धीर जिव सइ कर आवइ सिद्धि ॥ ३ ॥ मणगयवरु झाणुंकुसिण ताणिउ आणउ ठाउं । जइ भंजेसइ सीलवणु करिसइ सिवफलहाणि ॥ ४ ॥ सिज्झइ तसु सवि कजड जसु हियडइ अरिहंतु । चिंतामणिसारिच्छ जिय एह महाफलु मंतु ॥५॥ धंधइ पडियउ जीव तुहुं खणि खणि तुट्टइ आउ । दुग्गइ कोइ न रस्किसइ सयणु न बंधवु ताउ ॥६॥ For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अणहंता पयडेसि तुहु दोस पराया मूढ । नियदोसण पव्वयसरिस ते सवि कारिस गूढ ॥ ७ ॥ आइ किजिय जिणधम्मु करि सुत्थइ संबलु लेवि । अग्गइ किंपि न पामिसए अत्थइ भरिया गेह ॥ ८॥ इण भवि लद्धी रिद्धि पइ परभवि केव लहेसि । अच्छिसि तिणि धणि मोहियउ जइ न सुपत्तह देसि ॥९॥ ईसरु देखिउ कोइ नरु नीधिणु मणि दृमेइ । एउ न जाणइ मूढ जिउ जणु वावियउं लुणेइ ॥ १०॥ उप्पलदलजलबिंदु जिव तिव चंचल तणु लच्छि । धणु देखता जाइसए दइ मन मेलत अच्छि ॥ ११ ॥ ऊयरु जउ भरिवर्ड कुपुरिसह तो भरियउ भंडारु । इकि जीव पुन्निहि पवर लकह कोडि आधार ॥ १२ ॥ रिणि राउलि जलि जलणि घरि तकरि धणु घणु जाइ । धम्मकजि जउ मग्गियए ताव परमुहु थाइ ॥ १३ ॥ . रीस करंता जीव रीह अच्छइ अवगुण तिन्नि । अप्पउं ताविसि पर तवसि परतह हाणि करेसो ॥ १४ ॥ लिहियउं लब्भइ सिरतणउं जइ चालियइ समुदु । लच्छिहि केसवु संगहिउ तिणि विसि घारिउ रुद्द ॥ १५ ॥ लीलइ धम्मु जु होइंसए सेवंता जिणनाहु । तं नवि मिच्छत्तिहि सहिउ जइ तपु करिसि अबाहु ॥ १६ ॥ एकहि ठावि वसंतडा एवड अंतर होइ। अहिडंकिउ महियलु मरए मणि जीवइ सहु कोइ ॥ १७ ॥ ऐ आणाइ समतण जीवन बूझइ हेव । हिंडइ रोसिं पूरिया न करइ उपसमसेव ॥ १८॥ ओदउ तहु लोभहतणउ जीव न फिट्टइ निच्चु । अहनिसि तेण भमाडियउ न गणइ किच्चु अकिच्चु ॥ १९॥ औसरि नेह अभिग्ग पुणु पिच्छिस हिय भजंति । चंदूपल किरणेहि तहि दूरठिया विहसंति ॥ २० ॥ अंधउ अंधइ ताणियए कवणु कहेसइ मग्गु । For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूहामातृका केवलिपहु निव्वाणि गउ धम्मु मतंतरि भग्गु ॥ २१ ॥ अकयधम्मि जइ माणुसह हुइ नवकारु वि अंति । तिणि पुन्निहि तह देवगइ अहवा मुत्ति न भंति ॥ २२॥ कवडिहि माया मूढ जिउ वंचइ लोउ अप्पाणु। तिणि पाविहि भवि भवि दुहिय नवि पावइ निव्वाणु ॥ २३ ॥ खजइ कालु कयंत जगि को अज वि को कल्लि । संजमि गयवरि आरुहिउ सिडिसरणि जिय चल्लि ॥ २४ ॥ गयवरमत्ता जेम हिव मा हिंडसि नरसीह । हणि कसाय दमि इंदियइ गणिया लब्भइ दीह ॥ २५ ॥ घडिय न लब्भइ अग्गलिय इंदह अकइ वीरु । यउ जाणिउं जिणधम्मु करि जावह वहइ सरीरु ॥ २६ ॥ अवि जाणिजइ सो दिवसु जणु पुणु मरइ निरुत्तु । छड्डेविणु घरहल्लोहलउ धम्मु करेवा जुत्तु ॥ २७ ॥ चंचलु चित्तु पवंगु जिम वयबंधण न धरेसि । धम्मारामि विणासियइ मूढा हत्थ म लेसि ॥ २८ ॥ छन्नउ पयडउ जीव तुहुं उज्जमु करि जिणधम्मि । सुहियं दुहियं माणुसह पासु न मेल्हइ कम्मु ॥ २९ ॥ जरजजरि देहडी हुई य पंडरि हूया केस । अरि जिय धम्मु करेजि त गइय स बालियवेस ॥३०॥ झलहलंत जिणवरपडिम जेइ करावइ दव्वि। सग्गपवग्गहतणा सुह ते पामेसइ सव्वि ॥ ३१ ॥ अहु चिंतंता विहवसिण कज्जु अनेरउ होइ । राउलि बलियउ दुब्बलउ देव न बलियउ कोइ ॥ ३२ ॥ टलइ मेरु नियठाणह जइ पच्छिम उग्गह सूरु । पुव्व कियउं तो नवि चलइ कम्ममहाभरपूर ॥ ३३ ॥ ठगियउ हिंडिसि जीव तुहु घारिउ विसि मिच्छत्ति । सम्मत्तह रयणह रहिउ न लहसि सिवसंपत्ति ॥ ३४ ॥ डणउ जेम्व गलि संकलिउ भवि भवि कुणबउ जीव । नवि छुटिजइ तो वि तह जइ लंघिजइ दीवु ॥ ३५ ॥ ढणहणंति इंदिय तुरय पाडेसह भवखोहि । For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः देवि वर संमिकविउ अरि जिय सग्गि निरोहि ॥ ३६ ॥ वि हसंतु वि जोइयए निचलु झाणु धरेवि । ता दीसह जिम जगतगुरु सहजाणंदु सु देउ ॥ ३७ ॥ तडं एकल्लउ सहसि जिय खाएसइ परिवारु । विहg विहंचि लेइ जणु पाव न विहचणहारु ॥ ३८ ॥ थक्केसइ धणु सयणु जणु कोइ न सरिसउ जाए । पावु पुन्नु तं अज्जियए तं परि अग्ग थाइ ॥ ३९ ॥ देइ देइ मन आलस करि महुरालाविहि दाणु । चलिये देह हिव विहवसिण करि सफलउ अप्पाणु ॥ ४० ॥ धर उपज्जइ केवि नर परउवयारसमत्थ । कइ देइ के कम्मवसि जणजण उड्डइ हत्थ ॥ ४१ ॥ नइ वहमाणी सघणजल सुक्कइ इयर तलाय । दायर वह रिडिडी मग्गण निधण थाइ ॥ ४२ ॥ पढिउ गुणिउ घणु तवु तविउ संजमु किउ चिरकालु । जइ कसाय नवि वसि करसि ता सह इंदियालु ॥ ४३ ॥ फलु दिरिकउ तरवरतणउं दिट्ठि म घल्लिसि बाल । तं नवि पाविसि पुन्नविणु छड्डसि पारी लाल ॥ ४४ ॥ बलि जिउं तह सुहगुरुह जा जगु मारगि लाइ । उम्मग्गह दंसणि गमणि जणु पुणु पुहवि न माइ ॥ ४५ ॥ भरसरि आयरिसघरे उप्पन्नउं वरनाणु । भावण सव्वहि अग्गलि य तपु संजमु अपमाणु ॥ ४६ ॥ मयणु न खीणउ जातणि ते नवि बंभच्चारि । मयणविहूणह संजमि लुंचणि छारि न दोरि ॥ ४७ ॥ जसि धवलिउ जगु जेहि मुणि नाउं लिहाविउ चंदि । कम्म हणवि जे सिद्धि गय ताह चलण नितु वंदि ॥ ४८ ॥ रे वाहा मग्गेण वहि मा उम्मूलि पलास । कल्हे जलहरु थक्किए कयण पराई आस ॥ ४९ ॥ लइ वयभरु परिहरवि घरु भंजिवि भवनियलाई । जाव न पहुच्चइ तुज्झतणि जमरावस्स दलाई ॥ ५० ॥ वयणु न जंपर दीणु कसु जं भावइ तं थाउ For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर्चरिका अथिरकडेवरकारिणिहि कहि किम खिज्जइ काउ ॥ ५१ ॥ सुमिणंतरि मेलावडउ अहनिसि पहर चियारि । 1 पसरिय निय निय दिसि चलए अरि जिय सुमणु विचारि ॥ ५२ ॥ परकिसोर मत्तकरि दमइ करि करेविणु कट्टु निय जीवु कोवि न वसि करए थिउ गलियारु विघ ॥ ५३ ॥ संजमि नियमिहिं जे गया ते गणि सारा दीह । अवर जि पावारंभि गय ताह फुसिजउ लीह ॥ ५४ ॥ हिंडेविणु भवकोडिसइ लडउ माणुसजम्मु । तत्थ वि विसयह मोहियउ न करइ जिणवरधम् ॥ ५५ ॥ क्षणभंगुरु देहहतणउं अरि जिय कोइ विसासु । भाव न मुच्चइ जिणु मणह जाव फुरक्कइ सासु ॥ ५६ ॥ मंगलमहासिरिसरिसु सिवफलदायगु रम्मु । दूहामाई अरिक पउमिहिं जिणवरधम्मु ॥ ५७ ॥ इति श्रीधर्ममातृका समाप्ता । चर्चरिका • C< जिण चडवीस नमेविणु सरसइपय पणमेव । आराहउं गुरु अप्पणउ अविचलु भावु धरेवि ॥ १ ॥ कर जोडिउ सोलणु भणइ जीविउ सफलु करेसु । तुम्हि अवधारह मियउ चच्चरि हउं गाएसु ॥ २ ॥ मणि उंमाह अंमि मुहु मोकल्लि करिउ पसाउ । जिव जाइवि उज्जितगिरि वंदउं तिहुयणनाहु ॥ ३ ॥ नइ विसमी डुंगर घणा पूत दुहेलउ मग्गु । भूयडियह एसि तुहुं बलि होस अंगु ॥ ४ ॥ बालइ जोयणि नं गिया अंमि जि तहिं गिरिनारि । ते जंमंतर दूत्थिया हिंडहिं परघरबारि ॥ ५ ॥ इंअ असारी देहडी अंमि जि विढपइ सारु । तिणि कारण उज्जितगिरि वंदउं नेमिकुंआरु ॥ ६ ॥ करि करवत्ती कूडी सिरि पोटली ठवेवी । ต For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः मिलियउ धम्मियसाथडउ उजिलमग्गि वहेई ॥७॥ इह वढवाणइ चउहटइ दीसइ सीहविमाणु । रंनडुलइ वोलावी अंमुलअग्गेवाणि ॥ ८॥ इय वढवाणइ जि हट्टइ हियडउं रह न करेइ । दिवि दिवि वंदइ नेमिजिणु चडियउ गिरिसिहरेहिं ॥९॥ पाइ चहुदृइ कक्करीउ उन्हालइ लू वाई । जे कायर ते वलिया जे साहसिय ते जाइं ॥१०॥ साहिलडा सरवरतलिहिं उग्गिउ दवणछोड । उजिलि जंते धंमिए गुंथिउ नेमिहिं मउडू ॥११॥ सहजिगपुरि वोलेविणु गंगिलपुरहिं पहुत्तु । माडी कहिजि संदेसडउ अंनु जिणेजे पुत्तु ॥ १२ ॥ जइ लखमीधर वोलियं पेखिवि बहु य पलास । तउ हियडउं निंवरु थिउं मुक्क कुटुंबह आस ॥ १३ ॥ विसमिय दोत्तडि नइ घणिय डुंगर नत्थि च्छेऊ । हियडर्ड नेमि समप्पियउं जं भावइ तिंव नेऊ ॥ १४ ॥ करवंदियालं वोलियां अणंतपुरू जहिं ठाई । दिन्नउ तहि आवासडउ हियउं विअद्धिं थाई ॥ १५ ॥ नालियरीडुंगरितडिहिं बहुचोराउलिठाई। धम्मियडा वोलिउ गिया अमुलतणइ सहाई ॥१६॥ भालडागदुसुंनउ अवियडउं वसेइ । धम्मिय कियउ वीसावड सुरधारडीघरेहिं ॥ १७ ॥ ओ दीसइ उटुंधलउ सो डुंगरु गिरनार । जहिं अच्छइ आवासियउ सामिउ नेमिकुमारु ॥१८॥ मंगूखंभि न मणु रहिउ अंनु वहडेउ दिट्ठ। खडहड अंगु पखालियं गोवाडलिहि पहुव ॥ १९ ॥ भाद्रनई जह वोलिउ नाचइ धंमिउ लोउ। उजिलि दीवउ वोहियउ सुरठडिय हउ जोउ ॥ २० ॥ खंडइ देउलि जउ गिया सांकलि वोलिवि। धमिय कियउ आवासडउ वंचूसरितलि नेई ॥ २१ ॥ ऊजिलमग्गि वहंता रजु लागइ जसु अंगि। For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर्च रिका ७ : बलि किजउं तसु धमियह इंदु पसंसह सग्गि ॥ २२ ॥ जे मलि मइला पहियडा ते मइला म भणेजे। पावमली जे भइलिया ते मइला ह सुणेजे ॥ २३ ॥ एउ वाउह लोडउं कोटउं तलि गिरिनारु । ओ दीसइ ववणथली धवलियतुंगपयार ॥ २४ ॥ घर पुर देउल धवलिया धज धवली दीसंति । धंमी सा ववणथली ऊजिलितलि निवसंती ॥ २५ ॥ वउणथली मेलेविणु जउ लागउ गढमग्गि। तउ धंमिउ आणंदियउ हरिसु न माइउ अंगि ॥ २६ ॥ रिसहजिणेसरु वंदियउ गढि आवासु करेवी। नाचइ धंमिउ हरसियउ हियडइ नेमि धरेवी ॥ २७ ॥ गदु वोली जउ चालीयउ तउ मणि पूरिय आस । बलि किजउ हउं जंघडिय जोयण वूढ पंचास ॥ २८ ॥ टोलह उपरि मागडउ सो लंघणउ न जाइ। पाउ खिसियउ विसमउ पडइ हियं विअडई थाई ॥ २९ ॥ अंचणवाणी नइ वहइ दिट्ट दमोदरु देउ । अंजणसिलहिं जि अंजिया धन्न ति नयणा बेउ ॥ ३० ॥ तरवरुतणइ पलांवडे रुद्धउ मागु जंघेवि । कालमेघु जोहारियउ वस्त्रापदि जाएवी ॥ ३१ ॥ अंबाजंबूराइणिहिं बहु वणराइ विचित्त । अंबिलिए करवंदिएहिं वंसजालि सुपवित्त ॥ ३२॥ नीझरपाणिउ खलहलइ वानर करहिं चुकार । कोइलसहु सुहावणउ तहिं डुंगरि गिरिनारि ॥ ३३ ॥ जउ मई दिट्ठी पाजडी उंच दिह चडाऊ। तउ धंमिउ आणंदियउ लड सिवपुरि ठाउ ॥ ३४ ॥ हियडा जंघउ जे वहई ता ऊजिंति चडेजे । पाणिउ पीउ गइंदवइ दुख जलंजलि देजे ॥३५॥ गिरिवाइं झंझोडियउ पाय थाहर न लहंति । कडि नोडई कडि थक्की हियडर्ड सोसह जंति ॥ ३६ ॥ जाव न धंधलि घल्लिया लखुपत्तीपाण । For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः तांव कि लब्भहिं चिंतिया हियडा ऊणत्ताण ॥ ३७॥ डुंगरडा अधो फरिं लग्गउ सीयलि वाउ । हूय पुणं नवदेहडी अंमुलि कियउ पसाऊ ॥ ३८ ॥ चर्चरिका समाप्ता मातृकाचउपइ त्रिभुवनसरणु सुमरि जगनाहु जिम फिट्टइ भववं दुहदाहु । जिणि अरि आठ करम निर्दलीय नमो जिन जिम भवि नावऊ वलिय ॥१॥ आंचली-सवि अरिहंत नमिवि सिद्ध सूरि उज्झावय साहू गुणभूरि । माईयबावनअक्षरसार चउपईबंधि पढिउं सुविचारु ॥१॥ भले भणेविणु भणीअइ भलउं तिहूयणमाहि सारु एतलडं । जिनु जिनवचनु जगह आधारु इतीउ मूकिउ अवरु अस्सारु ॥२॥ मीडउं पडिउं भवनागमा जउ समिकत्ति लीणु आतमा । जिनह वयणि करिजे निहु ठाउ सृदय रहवि तिहुयणनाहु ॥ ३ ॥ लीह म लंघिसि जिणवरिभणी जो रिधि वंच्छह सिवसुहतणी। चहुंगति फीटइ फेरउ वडउ पाच्छइ जाइउ सिवगढि चडउ ॥४॥ लीहं बीजी बे उपरि करे देवु गुरु हीयडइ संभरे । क्षणु एकू मन करिसि प्रमादु जिम तुम्हि पामउ मुक्तिसवादु ॥५॥ ॐकारि सुमरि अरिहंतु जो अठकमहं कालु कियंतु। अनु सिवसुकतणउ दातारु मनह म मेल्हिसि तिहूयणसारु ॥६॥ नव निहाण ते पामइंतिम जीह जिणवयणु हियइ परिणमइ । सिवसंपत्ति तीहहकडी जीह जिणआण हियइंसउं जडी ॥७॥ मनु चंचलु जे अविचलु करई जिणह आण सिरऊपरि धरई । हणइं कसाय इंदीय संवरई ते सिवनयरि सुखि संचरई ॥८॥ सिद्धउं काजु सहू तीहतगउं जेहि जीवि कीधउं जिणवरभणिउं । छेदिउ आठकरमनी वेलि गया मुक्ति दुई पेलावेलि ॥९॥ बंधई पडिया दीह मन गमउ अप्पारामि जिणवरिस रमउ। भवह तापु नवि लागई अंगि उदु बहुफलु पामउ सिवसंगि ॥१०॥ For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मातृकाचउपइ ७५ अनुव्रतु जिनह आण मनि धरे उपसमु विवेकु संवरु करे । अरिवY अंतरंगु निग्रहे इणि परि जीव सुकृतु संग्रहे ॥ ११ ॥ आलिहि अलीउ म झंषिसि किमइ जे जिनुवयणु हियई तू गमइ । करमुबंधु पडतउ चीतवे भाषासमि वि सहजि अनुभवे ॥ १२ ॥ इणि संसारि दूषभंडारि लइन जीव काय धम ऊगारि । वीतरागि जं आगमि कहीउ करे तइ जि यणु भावनसहीउ ॥ १३ ॥ ईमइ म कारसि कूडउ सोसु सोचइ जिनह वयणि करि तोसु । जोइउ आगमतणउ विचारू पाच्छइ भरिन परतभंडारु ॥ १४ ॥ उप्पलदलउप्परि जिम नीरु ते सउं चंचलु जीव सरीरु । धणु कणु रइणु सइणु तिम सहू दीसइ धम्मु एकु धर रहू ॥ १५ ॥ उपरि देखि दैव न हु हाथु तेरहि तिहुयणि कोइ न सनाथु । नासीउ पइसिजान जिनसरणि जिम न पामीअह जंमणमरणि ॥१६॥ रिडिहितणउ लाभु इम लेजि सातिहि षेति वीतु वावेजि । उपर सिंचे भावनानीरि वगसरु नोही जिम ताहरइ सीरि ॥ १७ ॥ रीणु दीणु ते चहुगति भमइ जे जिन वीतरागु नवि नमइ । नोही काइ धरमवासना ते नही जाइं मुक्तिआसना ॥ १८ ॥ लिषावीइ सुतु सीडंतु तेह लाभ नवि लाभइ अंतु । ज्ञानतणउ गुण एवडु कोइ वीतराग तु ज्ञानलगु होइ ॥ १९॥ लीलअमत संसारु तरेसि जइ जीव जिनधमु परुहुणु लेसि । सुगुरनी जाम विलगीउ करी जान जीव भवसाइरु तरी ॥२०॥ एकह परि पामिसि भवपारु जइ समिकत कर अंगीकारु । वीरनाथु कहइ आगमि तोइ विणु समिकत सिद्धि नवि होइ ॥२१॥ ए अ वचनु जोइ जिणवरतणुं तहि ऊपमा किसी हर्ष भणउं । जिणहं वइण न ऊपम काइ त्रिभुवनतणी सुद्धि जेह माहि ॥ २२ ॥ ओघहं पडीउ पापु जे करिसि तउ संसारु अनंतउ फिरिसि । जोईउ पणु सिद्धत विचारु करिसि धम्मु तउ पामिसि पारु ॥ २३ ॥ ओषधु करे जीव जिनि भणिउं अछइ दुषु अठकरमहतणउं । बाहिजि ओषदि काई तु थाइ धरमोषधविणु दुषु न जाइ ॥२४॥ अंतु न लाभई इह संसार कांइ तु जीव हीइ न विचार।। एक जु धमु करे सपाइ लेउ मेल्हइ सिवनअरीमाहि ॥ २५॥ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अनुदिनु भत्ति करे जिनराय पूजि त्रिकाल तासु पहुपाय । मानषतु दोहिलई पामेसि पाच्छइ जिनपति काहा नमेसि ॥ २६ ॥ कपटिहि मायां वंचइं लोकु ते नवि लहई सिद्धिसंजोगु । भमडइं जीव चहुंगतिहि मज्झारि इणपरि भव पूरई संसारि ॥ २७ ॥ खजइ जगु एउ कालकु अंति एह एतला नही काइ भंति । जिणह वइणु विडिजा इकमणउ भउ फीटिसइ क्रितांतहतणउ ॥२८॥ गन्भवासि जो दिलउं जाण तउ तउं माने जिनवरआण । फेडइ दुषु सहू जिनराउ तउ सिवनइरि अ पावइ ठाउ ॥ २९॥ घरि घर हिंडिसि जीव अणाहु जइ न नमिसि जिनु तिहूअणनाहु । जिनुधमविणु सुषु नहीं संसारि अवर टमालि दीस मन हारि ॥ ३०॥ ङश्चई सरिसु धम्मु जइ करिसि तउ भंडोरु परत नउ भरिसि । जे यणु लागिसि लोकप्रवाहि रडभड हुइसइ चुहुंगतिमाहि ॥ ३१॥ चक्रवति षट्षंडह धणी हंती रिडि तीहंनइ घणी । जो रिडिहिं परिताणु होउ त बंभु संभुमु निरगि नवि जंत ॥ ३२॥ छविह जीव करेजे रष जइ तुम्हि जिणसासणि छउ दष । आतमवतु जीव सवि गणे धम्मह त सारु इउ मुणे ॥ ३३ ॥ जगगुरु जगरषणु जगनाहु जगबंधवु जगसथवाहु । जगतारणु जिउ जगआधारु जिणविणु अवरि नही भवपारु ॥ ३४॥ जडइ पापु जिम तरुअरि पनु जइ मनमाझि वसइ इकु जिन्नु । जापुलसेषुलि कांइ करेसि जिनि एकलई मुकति पामेसि ॥ ३५ ॥ असिदिन्नु पंचप्रमिष्ठि सुमरेजि इणपरि असुभुं करमु षपेजि । सुभउं करमु वाधजे घणउं जिम सुषु लह सिवनगरीतणउं ॥ ३६ ॥ टलइ मेरु जो परवतराजु जो रवि पच्छिम ऊगई आजु । जो सायरु मिल्हइ मज्जाइ तोइ जिनभासिउं अलीउ न थाइ ॥ ३७॥ ठगीसि राषे कुगुरि कुबोधि जिनकसवट्टी लेजे सोधि । पूजइवानी आसतणी रिधि संग्गहे सुक्रितनी घणी ॥ ३८॥ डसीइ कालभूअंगमि लोकु तेह नवि लागई औषधजोगु । वीतराग मंत्रवादी य विणउं विसु पसरइ अठकरमहतणां ॥३९॥ ढलिइ पासइ देजे दाउ धणकणजौवन करिसि म गाउ । जगसरुपु देषे इंदीआलु करे धमु परहरीउ टमालु ॥ ४०॥ For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मातृकाचउपइ G७ णवणवपरि भग्गऊ भवचारु सांमीअ करिउ अम्हारी य सार । असरणसरणु तुहुं जि जगनाह भवि पडत अम्ह देजे बाहु ॥ ४१ ॥ तनु धनु जीवीउ जौवनु जोइ रिडि समिद्धि सइअणु सहू कोई। दिवस पांच मेलावउ होइ पाछइ वलीउ न दीसइ कोइ ॥४२॥ थरथर कंपई काइरचित्त देषीउ मुनिवर माहासत्त । धीरा सत्तवंत जे जाण पालई दीषसहीउ जिणआण ॥ ४३ ॥ दमि इंदिअ दुग्गइदूआर लूसीउ लिअई सुक्रितु सविवार । जे न जिणिसि जिणवयणविचारि देसिइं दृषु बहूसंसारि ॥४४॥ धरमध्यांनि करि निमलु चितु जिम हुइ जीव जनमु सुपवितु। धमिहि सिवह सौषसंपत्ति धमिहि वलीउ न भवि उतपत्ति ॥ ४५ ॥ नर नीतु नमो नीमि जिणनाहु आठकरम जिणि दिन्हौ दाउ । मोहराउ रिणि भंजीउ करी लीलहं लई सामि सिवपुरी ॥ ४६॥ पढइ गुणइ वरकाणइं सुतु पुणु बुझई नही तोइ ततु । रागु द्वेषु मनभीतरि धरइं ईमइ वेखविडंबउ करई ॥ ४७ ॥ फलइ करमु परभवहतण जइ रिडिरहि जीउ हीडइ घणउं । दुषु सुषु सहू पइ लागम आवइ स्रिजिउं सरिसु आतमा ॥४८॥ बलि कीउ जीवीउ तीहं संसारि जे दिन गमइ पापव्यापारि । सफलु जनमु तीहं नरनारि जे जिनधमि द्रिढ चित्तमझारि ॥ ४९॥ भविं भवु बोलई जीव अनंत जाणइं नही वइणु अरिहंत । न मुणइं अंतर पावह पुन्नु तीहं सोकल कांई सिरिज्या कान ॥५०॥ मइणु जि मारइं ते जगि सूर जे मारीयइं मइणि ते भूर । धीरा सुभट सतु ऊटवइ मारीउ मयणु नाउं नीठवई ॥५१॥ य करई तप्पु नीमु संजमु तीहं दुर्गतिनउ नही कोइ गंमु । जीहं स रोईउ हुई जिनधंमु विलसइं मुकतिसोषु निरुपंमु ॥५२॥ रहिसिई पूत कलत घरबारु रहिसिइ सइणु सह परिवारु । रहिसिइ धणुकणुरइणुभंडारु जीउ एकलउ जाइ निधारु ॥५३ ॥ लइ जिनदीष मूकि संसारु आठकरम दहीउ करि च्छारु । निरुपम सुषु सिवनइरीतणउं लहिसि जीव आगमि जिनभणिउ ॥५४॥ वचनव्यापु जोइ जिणवरतणउ अरथ गंभीरु अच्छइ तहिं घणउ । जो साइरि जलबिंदहं पारु तउ लभइ सिहंतविचारु ॥५५॥ For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ प्राचीन गूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः शरउपरि मूढा मन पेलि जिनधमु लाधउ पाइ म ठेली । तिहूअणचिंतामणि जिनधम्मु करीन जीव भाजइ भवभ्रं ॥ ५६ ॥ षणि षणि आउ गलंतर देषि भवि पडंतु अपुं म ऊवेषि । करि न धम्मु जं केवलिकहीउ जा सिवपुरि लेषउं विखहीउ ॥ ५७ ॥ सहजि जीउ भवगूतलि करइ कर्म्म वुहुरादाणी घणु धरई । जे कर्म्मत नही य ऊधारु भवगोतिहिं दुखु सहिसि अपारु ॥ ५८ ॥ हरिषु विषाद करिसि मन कोई जड़ जीव आपद संपदं होह । अवशु फलीसइ पुवभवकिउं नं भोगवै कोइ अणकिउं ॥ ५९ ॥ जंघई दीव पुहवि समुद्द गिरिकंदरा भमइ बहुरुद्द । रिद्धिकाजि इन्तीउ रझभडइ न करै धम्मु जिणि रिधि संपडइ ॥ ६० ॥ क्षुणभंगुरु एउ सहइ जाणि म करिसि जीव धरमनी काणि । विणसई सहु कहइ आगम्मु अविनसुरु एकु जिम्मु ॥ ६१ ॥ मंगल कर सवि अरिहंत जे अच्छई सिवलच्छीकंत । मंगल सिद्धि सूरि उवज्झाय मंगलं करउं साहुणा पाय ।। ६२ ॥ मंगलमूल सबहिं आगम्मु जो जगमाहि अच्छा निरुपम्मु । जसु अतिसइ न लाभइ अंतु मंगलु करउ सोइ जि सिद्धंतु ॥ ६३ ॥ जा ससिसूरु भूयणु व्याप्पंति जा ग्रह नक्षत्र तारा हुंति । जा वरतइ वसुहव्यापारु तां सिवलच्छि करउ मंगलाचारु ॥ ६४ ॥ मातृकाच उपइ समाप्ता सम्यकत्वमाईचउपइ - भले भणडं माधुरि जोइ धम्मह मूल जु समिकतु होइ । समकतुविणु जो क्रिया करेइ तातइ लोहि नीरू घालेइ ॥ १ ॥ अंकारि जिणु पणमेसु सतगुरुतणउं वयणुं पालेसु । आगम नवतत बूज्झिसि तिमई समिकतु रयणु होइ तसु तिमइ ॥ २॥ नर नवकारू सुमरि जगसारु चउदह पुव्वह जो समुद्धारु । समित जइ लाभइ संसारिं जाणे छुरी पडी भंडारि ॥ ३ ॥ मनु चंचल अटझाणि पडेइ घडियमाहि सातमिय ह नेइ । मनु मयगलु शुभ ध्यानु करंति प्रसंनचंद जिम सिडिहिं जंति ॥ ४॥ For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यकत्वमाईचउपइ सिद्धिसुरकु जगि सहु को लहइ दृढसमिकतु जइ हियडइ रहइ । दृढ समिकतु श्रेणिकराय होइ प्रथम तिथंकर होसइ सोइ ॥५॥ धन जि गुरपारषउ करंति गुरु विणु समिकतु किमइ न हुँति । मुहुतु एक समिकतु फरसेइ पुद्गल अरधमाहि सिद्धि विनेइ ॥ ६ ॥ अच्छइ मोहचरड्डु इणि समइ समिकतु रयणु न लाभइ किमइ । कुगुरु सुगुरु अंतरु न हु करइ इणि कारणि चउगति जिउ फिरह॥७॥ आगमवयणु पंचमइ अरइ केवलनाणु प्रभव हुइ परइ । इसइ कालि समिकतदृढचित्त ते नर जाणे जगह पवित्त ॥८॥ इणि भवि परभवि सुरकु लहेउ सतगुरुतणउं वयणु पालेहु । वीतराग जउ वंदिसि पाय ऊडइ पापु होइ निम्मल काय ॥९॥ इंदियालु जगि दीसइ लोइ बालवृड्डु न हु छूटइ कोइ । धरमसंबलु जइ सरिसउ लेइ पार गया तउ सुकु माणेइ ॥ १०॥ ऊगमतइ जे नर दीसंति चउंजणकंधि चडिया ते जंति । सुकिय दुकिय बे सरिसा चलई सजनमीत बोलावी वलई ॥ ११ ॥ ओसरि वावियइ लाभु न हुंति सजलु होइ बीजह चूकंति । सूधउं दानु मुनिहि जो देइ संगमतणउ लाभु सो लेइ ॥ १२॥ रिडिहितणउ लाभु जगि लेहु दस खेत्रे तुम्हि धनु वावेहु। दीन्हादानह नासु म जोइ सुपात्रि दीन्हइ बहुफलु होइ॥ १३ ॥ रीतिहि दानह नथी निवार उचितु दानु दीजइ सविवार । कृसनभयसिउ जउ खड्डु वारंति पात्रविसेषिहि षीरु स दिति ॥ १४ ॥ लिहियं जगि लोडइ सउ कोइ कुपात्रु विसहरसाहसु होइ। खीरु आणि जउ मुखि घातियइ पात्रविसेषिहि तसु विसु थियइ॥१५॥ लीह न लंघउं सतगुरतणी क्रिया करउं जा आगमि भणी । विधिमारगु मानउं सविवार जाणउं जइ छूटउं संसार ॥ १६ ॥ एहु करेवउं नर संसारि त्रिन्नि वार जउ चडिउ विहारि । वीतराग जउ भणिउ करेसु दस आसातन नितु राखेमु ॥ १७ ॥ ऐ वार मेल्हिउ जिणु पूजेसु रयणिहिं रमणिगमणु वारेसु । न्हवणु तं दिजहि निसिभरि रहई तं विहिमंदिर सतगुरु कहइ ॥१८॥ ओ दीसह मंदिरु जगि सारु धम्मरयणकेरउ भंडारु। चउरासी आसातन नितु राषेसु मंदिरि दिवसह बलि ढोएसु॥ १९॥ For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्घहः ओया दीसहं बहुत गमार धंमहतणी न पूछई सार । जिण गुरि दीठइ दूरिहि जंति दुलहु माणुसुजंमु आलि गमंति ॥२०॥ अंतर विधि अविधिहि जाणंति मंदिर पइठ निसिहि न करंति । तालारासु रयणि न हु देइ लउडारसु मूलह वारेइ ॥ २१ ॥ अइसउ मंदिरु जगि प्रवहणु होइ धंमिउ लोउ चडइ सुह कोइ। पंचप्रमिटुिंनी जापउ करउ संसारसमुदु जिम लीलई तरउ ॥ २२ ॥ कहियइ थूलिभहु मुणिराउ मयण चरड भंजइ भडिवाउ। छ विगइ सो जनु चित्रसाली रहइ जगहमाहि थूलिभदुलीह लहइ ॥२३॥ खडभड राषि न इणि संसारि जुगप्रधान जोइ धंमु विचारि । सुद्धउ धरमु करिसि जइ किमइ जमणमरणह छुटिसि तिमइ ॥२४॥ गलइ आउ जिम अंजलिनीरु सीलु जु पालइ सो नर धीरु। कपिलनारि पेलइ विनाणि सीलु सुदरसणतणउं वखाणि ॥ २५ ॥ घडतउ फोडतउ वार न लाइ कर्मतणी विसमी गति काइ । जं जं करमु करइ तं होइ लषमणि दससिरु जीतउ जोइ ॥ २६ ॥ निच्छइ साहसिउ वजकुमार इंदु पसंसइ जो दयसारु । सुर बे आविया जउ सत पडइ कुमरु पारेवास धडि चडइ ॥२७॥ चल्लइ सबलवाहणु नरनाहु वीरवंदन हुउ अतिघणुं भाउ । दसाणभहु अतिगरवु करेइ इंदिहि जीतउ रिधि दाखेइ ॥ २८ ॥ छंडइ राजु रिद्धि षणमाहि इंदि जीतउ तं न सुहाइ। वीरपासि संजमुभरु लेइ इंदिहिं हारिउ चलण नमेइ ॥ २९ ॥ जनमु वयरसामिउ तिमसमइ छ मास रोयतउ रहइ न किमइ । धणगिरि विहरतु पहुतउ घरेइ साति पूतु हिव झोली धरेइ ॥ ३० ॥ झटकह तउ झोली घातियउ भारि गुरुह लेउ समपिउ । गुरु पभणइ पउ तिणि आपेहु कुमरह आवी सार करेहु ॥ ३१ ॥ निच्छइ जुगप्रधान जिउ होइ इह गुणवन्नणु सकइ न कोइ । पालणइ सूतउ श्रवणि सुणेइ इगारअंग तउ आणावेइ ॥ ३२॥ टलइ न पावज कुमरह किमइ मायडी झगडउ मांडियउ तिमह । राज विदीतु पूतु हउं लेसु मंदिर नेतउ परिणावेसु ॥ ३३ ॥ ठक्कर मिलिया ऊगडउ करई कुमरु अणावी तउ विचि धरई। वणफल रमणा सा ढोएइ धणगिरि रजोहरणु दाषेइ ॥ ३४ ॥ For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्यकत्वमाईचउपई डगडगतउ मनु रहइ न किमइ मायडी भवि भवि लाभइ तिमइ । सुगुरुमेलावउ दुलहउ हुंति पंचमहाव्रत सीहगिरि दिति ॥ ३५॥ ढाढसु कीयउं बालकुमारि सीहगिरि तउ हालियउ विहारि। सीस भणइं अम्ह वयण कु देइ वयरड मुनि तुम्ह काजु करेइ ॥ ३६॥ न गणउं अवरसीस जयसीह सीहगिरितणा सीस हुइ लीह । अभिनवदीषितु वयण कु देइ सीहगिरितणउं वयणु मानेइ ॥३७॥ तपु संजमु किउ वरिससहस्सु जीवदया पालिय गुणह निवासु । अंतकालि अटझाणि पडंति कंडरीकु सातमियहं जंति ॥ ३८ ॥ पुंडरीकु वरिससहसु कीउ रज्जु बिउ घडियहं तउ सारिउ कज्जु। पावज ले गुरु संमुहउ थाइ पंचविमाणे पुंडरीकु जाइ ॥ ३९॥ दस दिसि पसरिउ जगि जसवाउ नवअंगवित्तिकरणु गुरुराउ । थंभणि थप्पिउ पासजिणंदु पणमहु सुहगुरु अभयमुणिंदु ॥ ४०॥ धनु सु जिणवल्लहु वकाणि नाणरयणकेरी छइ खाणि । बइतालीससुङ पिंडु विहरेइ त्रिविधुमंदिर जगि प्रगटु करेइ ॥ ४१ ॥ नर निसुणहु सतगुर वरकाणु अंतस बूझउ थिउ सु जाणु । कुगुरवाणि तउ विसु उतरेइ सुगुरवाणि जउ अमिउ झरेइ ॥ ४२ ॥ परिणइ अट्ठ नारि करि लेइ बूझवणइ बइठउ कथा कहेइ । प्रभवु चोरु मंदिरि पइसेइ असुयणनिंद सयलजण देइ ॥ ४३ ॥ फहउ जंबुकुमरु इम भणइ विवाहुमहोच्छवु प्रभवु न गणइ । जंबुकुमरु जउ इसउ भणंति सवि थंभिया टगमग जोयंति ॥४४॥ बंधव अम्हस साटि करेज बिहुं विद्यावडइ इक थंभणी देज। कुमरु भणइ विद्या किस करेसु रिडि परिहरी प्रहहं व्रतु लेसु॥४५॥ भणइ प्रभवु नवजोवण नारि परणिय पुन्नवसिण संसारि । कामभोग भोगवि इणि समइ जोवण गइ व्रतु लेजे तिमइ ॥४६॥ मयणु चरडु सो मई वसि किउ मोहराउ पाडिउ नाथियउ । मधुबिंदसाहस इहु संसारु निसुणि प्रभव तुहु जोइ विचारु ॥४७॥ जगु पिंडाणु सयलु वरतेइ तुह विणु पितरह पिंडु कु देइ । महेसरदत्तकथा जउ कहइ प्रभवुउ सांभलिउ मनमाहि रहइ ॥४८॥ रतिपति जाणउं तई वसि कियउ नांत्रातणउं संबंधु किम थियउ। अढारह नात्राकथा कहंति प्रभवु सांभली तउ बूझंति ॥४९॥ ११ For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः लहणउ लाभइ इह जगमाहि जंबुसामिघरि रिडि न माइ। हूंती रिडि कुमरु परिहरइ प्रभवु पराई लेवा फिरइ ॥५०॥ वयणु कहउ पुणु नीजइ बाइ जंबुकुमर तुह परिणि काई। बालकुमारउ तउं व्रतु लियत नियनियमंदिरि अट्ठय रहत ॥५१॥ सांभलि प्रभव ज काइउँ हुँत जइ घरि रह त संसारि पडत। कथा कहिउ प्रतिबोधेसु नारि वलिउ न आवई इणि संसारि ॥५२॥ षडभड केही रिडिहितणी नवाणवइ कोडि सोना छइं घणी । जीमणइ हाथिहि तउ हउं देसु मणवंछिय मागण पूरेसु ॥५३॥ सा सिवकाजउ प्रगुणी करइ दानु दियंतउ तउं नीसरइ। माय बापु अहनारि चडंति पंचसयसहितु प्रभवु बइसंति ॥५४॥ हल्लिय सिबिका गाजे रली वजिय ढक्क बुक्क काहली । सिबिका उत्तरिउ चलण नमंति सुहमसामि सइं हथि व्रतु दिति॥५५॥ लंघिउ सायरु जउ व्रतु लिउ पंचमगतिप्रस्थान कियउ। जंबुसामिउच्छवु देखेइ बहुतु लोकु जाइउ व्रतु लेइ ॥ ५६ ॥ खयउं पापु जउ पावज लई घरसंसारचिंत तउ गई। मनि जीतइ इंद्रिय वसि थाई करम जिणिय नर सिद्धिहि जाइं ॥१७॥ मंगलु पहिलउ सोहमसामि बीजउ मंगल जंबूसामि। अगणिउ मंगलु प्रभव भणंति चउत्थउ मंगलु नारिहि हुंति ॥५८॥ गणियइ जुगवरु सोहमसामि बीजडउ जुगवर जंबूसामि । जीजउ जुगवरु प्रभवु भणंति सिज्झंभवु चउथउ जाणंति ॥ ५९॥ लंछणि सीह गोयमु पुच्छंति जुगप्रधान जगि केता हुंति । बिसहस चउं आगला कहेइ छेहिलउ दुपसहु तउ जाणेइ ॥ ६०॥ मंनउं जुगवरु जिणेसरसूरि पावु पणासइ रिसण दूरि। संदेहु म करहु जिम समिकतु रहइ भविभवि बोधिबीजु जिउ लहइ॥६॥ हासामिसि चउपईबंधु कियउ माईतणउ छेहु मइ नियउ । ऊणउ आगलउ किंपि भणेउ जगड भणइ संघु सयलु खमेउ॥६२॥ श्रीनंदउ समुदाघरि रहइ नंदउ विहिमंदिरु कवि कहइ । नंदउ जिणेसरसूरि मुणिंदु जा रवि ऊगइ ऊगइ चंदु ॥ ६३ ॥ माईतणउ अखसरु धुरि कियउ चडसठिचउपइयाबंधु थियउ । सुडइ मनि जे नर निसुणंति अणंतसुकु सिडिहि पावंति ॥ ६४॥ सम्यकत्वमाईचउपइ सम्पूर्णा. For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथफागु श्री नेमिनाथफागु सिद्धि जेहिं सइ वर वरिय ते तित्थयर नमेवी । फागुबंधि पहुनेमिजिणुगुण गाएसउं केवी ॥ १ ॥ अह नवजुव्वण नेमिकुमरु जादवकुलधवलो काजलसामल ललवलउ सुललियमुहकमलो । समुदविजयसिवदेविप्रतु सोहगसिंगारो जरासिंधुभडभंगभीमु बलि रूवि अप्पारो ॥ २॥ गहिरसहि हरिसंखु जेण पूरिय उद्दंडो हरि हरि जिम हिंडोलियड भुयदंडपयंडो । तेयपरिक्कमि आगलउ पुणि नारिविरत्तर सामि सुलकणसामलउ सिवसिरिअणुरत्तउ ॥ ३ ॥ हरिहलहरसउं नेमिपहु खेलइ मास वसंतो । हावि भावि भिजइ नही य भामिणिमाहि भमंतो ॥ ४ ॥ अह खेलइ खडोखलिय नीरि पुणु मयणि नमावइ हरि अंतेउरमाहि रमइ पुणि नाहु न राचइ | नयणसलूणउ लडसडंतु जउ तीरिहिं आविउ माइ बाप बंधविहिं मांड वीवाह मनाविउ ॥ ५ ॥ घरि घरि उत्सव बारवए राउल गहगहए तोरण वंदुरवाल कलस धयवड लहलहए । कन्हडि मागिय उग्गसेणधूय राजल लाधा नेमिमाहीय बाल अट्ठभवनेहनिबडा ॥ ६ ॥ राइमएसम तिहु भुवणि अवर न अत्थइ नारे । मोहविल नवलडीय उप्पनीय संसारे ॥ ७ ॥ अह सामलकोमल केशपास किरि मोरकलाउ । अडचंदसमु भालु मयणु पोसइ भडवाउ । वंकुडियालीय मुंहडियहं भरि भुवणु भमाडइ लाडी लोयणलहकुडलइ सुर सग्गह पाडइ ॥ ८॥ fare सिसिबिंब कपोल कन्नहिंडोल फुरंता नासा वंसा गरुडचंचु दाडिमफल देता । For Personal & Private Use Only ८३ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अहर पवाल तिरेह कंठुराजलसर रूडउ जाणु वीणु रणरणइं जाणु कोइलटहकडलउ ॥९॥ सरलतरल भुयवल्लरिय सिहण पीणघणतुंग । उददेसि लंकाउली य सोहइ तिवलतुरंगु ॥ १० ॥ अह कोमल विमल नियंबबिंब किरि गंगापुलिणा करिकर ऊरि हरिण जंघ पल्लव करचरणा। मलपति चालति वेलहीय हंसला हरावह संझारागु अकालि बालु नहकिरणि करावइ ॥ ११ ॥ सहजिहिं लडहीय रायमए सुलखण सुकमाला घण घणेरडं गहगहए नवजुव्वण बाला। भंभरभोली नेमिजिणवीवाह सुणेई नेहगहिल्ली गोरडी हियडइ विहसेई ॥ १२ ॥ सावणसुकिलछट्टि दिणि बावीसमउ जिणंदो चल्लइ राजलपरिणयण कामिणिनयणाणंदो ॥ १३ ॥ अह सेयतुंगतरलतुरइ रइरहि चडइ कुमारो कन्निहि कुंडल सीसि मउड गलि नवसरहारो। चंदणि ऊगटि चंद्धवलकापडि सिणगारो केवडियालउ खुंपु भरवि वंकुडउ अतिफारो ॥ १४ ॥ धरहि छत्तु वित्तु चमर चालहिं मृगनयणी लूणु उत्तारिहिं वरबहिणी हरिसुज्जलवयणी । चहुपरि बइसइ दुसारकोडि जावभूपाला हयगयरहपायकचक्कसीकिरिहिं झमाला ॥ १५॥ मंगल गायहिं गोरडीय भह जयजयकारो उग्गसेणघरनारि वरो पहुतउ नेमिकुमारो ॥ १६ ॥ अह सहिय पयंपय हल सहि ए तुह वल्लहउ आवइ मालिअटालिहिं चडिउ लोउ मण नयणु सुहावइ । गउखि बइठी रायमए नेमिनाहु निरखइ पसइपमाणिहिं चंचलिहिं लोअणिहिं कडखई ॥१७॥ किम किम राजलदेवितणउ सिणगारु भणेवउ । चंपइगोरी अइधोइ अंगि चंदनुलेवउ । For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आराधना खुपु भराविउ जाइकुसमि कसतूरी सारी सीमंतइ सिंदूररेह मोतीसरि सारि ॥ १८ ॥ नवरंगि कुंकुमि तिलय किय रयणतिलउ तसु भाले । मोतीकुंडल कन्नि थिय बिंबालिय करजाले ॥ १९ ॥ अह निरतीय कजलरेह नयणि मुहकमलि तंबोलो नगोदरकंठलउ कंठि अनु हार विरोलो। मरगदजादर कंचुयउ फुडफुल्लहं माला करि कंकण मणिवलयचूड खलकावइ बाला ॥ २० ॥ रुणुझुणु ए रुणुझुण ए रुणुझुणु ए कडि घघरियाली रिमिझिमि रिमिझिमि रिमिझिमि ए पयनेउरजुयली। नहि आलत्तउ वलवलउ सेअंसुयकिमिसि अंखडियाली रायमए प्रिउ जोअइ मनरसि ॥२१॥ वाडउ भरिउ जीवडहं टलवलंत कुरलंत । अहूठकोडिरूं उडसिय देषइ राजलकंतो ॥२२॥ अह पूछइ राजलकंतु कांइ पसुबंधणु दीसइ सारहि बोलइ सामिसाल तुह गोरवु हुस्यइ । जीव मेल्हावइ नेमिकुमरु सरणागइ पालइ धिगु संसारु असारु इस्यउं इम भणि रहु वालइ ॥ २३ ॥ समुदविजय सिवदेवि रामु केसवु मन्नावइ नइपवाह जिम गयउ नेमि भवभमणु न भावइ । धरणि धसका पडइ देवि राजल विहलंघल रोअइ रिजइ वेसु ख्वु बहु मन्नइ निष्फलु ॥ २४ ॥ उग्गसेणधूय इम भणइ दूषहिं दाझइ देहो कां विरतउ कंत तुहं नयणिहि लाइवि नेहो ॥ २५ ॥ आसा पूरइ त्रिभुवण मू म करि हयासी दय करि दय करि देव तुम्ह हउँ अछउं दासी। सामि न पालइ पडिवन्नउं तउ कासु कहीजइ मयगलु उवट संचरए किणिं कानि गहीजइ ॥ २६ ॥ नेमि न मन्नइ नेहु देइ संवच्छरदाणूं ऊजलगिरि संजम लियउ हुय केवलनाणूं। For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C६ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः राजलदेविस सिद्धि गयउ सो देउ थुणीजइ मलहारिहिं रायसिहरसूरि किउ फागु रमीजह ॥ २७ ॥ इति श्रीनेमिनाथफागु. प्राचीनगद्यसङ्ग्रहः आराधना ( संवत् १३३० मां लखेला ताडपत्रमाथी ) ज्ञानाचारि पुस्तकपुस्तिकासंपुटसंपुटिकाटीपणांकवलीऊतरीठवणीपाठादोरीप्रभृतिज्ञानोपकरणअवज्ञा, अकालिपठन अतिचार विपरीतकथनु उत्सू प्ररूपणु अश्रद्दधानप्रभृतिकु आलोयहु । दर्शनाचारि देवद्रब्यु भक्षितु उपेक्षितु प्रज्ञाहीनवु जिनभुवनआशातना अधोयति देवपूजा गुरुद्रव्यग्रहणु गुरुनिंदा द्रव्यलिंगिएसउं संसर्गु बिंबआशातना स्थापनाचार्यआशातना शंका आकांक्षा विचिकित्सा मिथ्यादृष्टिप्रसंसा मिथ्यादृष्टिपरिचउ ए पांच अतिचार आलोयउं । चारि आचारि प्राणातिपात मृषावाद अदत्तादान मैथुनपरिग्रह ए पांच अणुव्रत दिगुविरति भोगपरिभोगविरति अनर्थदंडविरति ए तिनि गुणव्रत । सामायिकु देसावकासिकु पौषधु अतिथिसंविभागु ए च्यारि सिक्ष्यावत; ईहतणइ विषइ जु कोइ अतिचारु आसेवियउ सु हुं आलोयहं । तपाचारि अनशन ऊनोदरिता वृत्तिसंक्षेपु रसत्यागु कायक्लेशु संलीनता षट्विधबाह्यतपतणइ विषइ प्रायश्चित्तु विनउ वैयावृत्यु स्वाध्यानु कायोत्सर्ग षविधआभ्यंतरतपतणइ विषइ जु अतीचारु सु हुं आलोयहुं । वीर्याचारि संतह बलि संतइ वीर्जि जु धर्मानुष्ठानि उद्यमु नहीं कियउं सु हुं आलोयहुं । सम्यक्त्वप्रतिपत्ति करहु, अरिहंतु देवता सुसाधु गुरु जिनप्रणीत धर्मु सम्यक्त्वदंडकु ऊचरहु, सागारप्रत्याखानु ऊचरहु चऊहु सरणि पइसरहु । परमेश्वरअरहंतसरणि सकलकर्मनिर्मुक्तसिद्धसरणि संसारपरीवारसमुतरणयानपात्रमहासत्त्वसाधुसरणि सकलपापपटलकवलनकलाकलितुकेवलिप्रणीतुधर्मुसरणि सिद्ध संघगण केवलि श्रुत आचार्य उपाध्याय सर्वसाधु व्रतिणी श्रावक श्राविका इह ज काइ आशातना की हुंती ताह मिच्छा मि दुक्कडं । पुढविकाइ जीव आउकाइ जीव तेउकाइ जीव वाउकाइ जीव वणस्पइकाइ जीव बेइंदिय दिय चउरिद्रिय जलचर स्थलचर खेचर For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वतीर्थनमस्कारस्तवन जि जंतु ताह मिच्छा मि दुक्कडं । पनर कर्मभूमि जि मनुष्य त्रीस अकर्मभूमि जि मनुष्य तीहिं मिच्छा मि दुक्कडं। छप्पनअंतरद्विपतणा मनुष्य तीहं मिच्छा मि दुक्कडं । सातनरकतणा नारकि दशविध भवनपति अष्टविध व्यंतर पंचविध जोइसी दैविध वैमानिकदेवा किं बहुना । दृष्ट अदृष्ट ज्ञात अज्ञात श्रुत अश्रुत स्वजन परजन मित्रु शत्रु प्रत्यक्षि परोक्षि जे केइ जीव चतुरासी लक्षयोनि ऊपना चतुर्गतिक संसारि भ्रमंता मइं हुमिया वंचिया सेहिया सीरीविया हसिया निंदिया किलामिया दामिया पाछिया चूकिया भवि भवांतरि भवसति भवसहस्रि भवलक्षि भवकोटि मनि वचनि काई तीह सर्वहई मिच्छा मि दुक्कडं । अढार पापस्थान वोसिरावइ इहुसवू प्राणातिपातू सर्दू मृषावादू सर्दू अदत्तादानू सबूं मैथुनू सर्दू परिग्रहू सबूं क्रोधू सर्दू मानू सर्वइ माया सळू लोभू प्रेमु देषु कलहु अभ्याख्यानु रति अरति पैशून्यु मिथ्यादर्शनशल्यु परपरिवादू अढार पापस्थान त्रिविधिहि मनि वचनि काइ करणि करावणि अनुमति परिहरउ । अतीतु निंदउ वर्तमानु संवरहु अनागतु पावरकउ । पंचपरमेष्ठिनमस्कार जिनशासनिसारु चतुर्दशपूर्वसमुडारु संपादितसकलकल्याणसंभारु विहितदुरितापहारु क्षुद्रोपद्रवपर्वतवज्रप्रहारु लीलादलितसंसारु सु तुम्हि अनुसरहु, जिणि कारणि चतुदेशपूर्वधर चतुर्दशपूर्वसंबंधिउ ध्यानु परित्यजिउ । पंचपरमेष्ठिनमस्कार स्मरहि, तउ तुम्हि विशेषि स्मरेवउ, अनइ परमेश्वरि तीर्थकरदेवि इसउ अथु भणियउ अच्छइ, अनई संसारतणउ प्रतिभउ म करिसउ, अनइ रुद्धिनमस्कारु इहलोकि परलोकि संपादियइ ॥ आराधना समातेति ॥ यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् । क्षन्तव्यं तद्बुधैः सर्वं कस्य न स्खलते मनः ॥ संवत् १३३० वर्षे आश्विनसुदि ५ गुरावयेह आशापल्ल्याम् ॥ अतिचार (संवत् १३४० ना अरसामां लखायला जणाता ताडपत्रमांथी) कालवेला पढ्यं, विनयहीणु बहुमानहीणु उपधानहीणु गुरुनिण्हव अनेराकण्हई पढ्यं, अनेरई कहई व्यंजनकूडु अर्थकूडु तदुभयकूडु कूडउ अकरु कानइ मात्रिं आगलउ ओछउ देवंदणवांदणइ पडिक्कमणइ सझाउ करतां For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः पढतां गुणतां हुउ हुयइ, अर्थक्रूड कहई हुइ, सत्रु अर्थ बेउ कूडां कह्यां हुई, ज्ञानोपकरण पाटी पोथी कमली सांपुढं सांपुडी आशातन पगु लागउ थुंकुलागउं पढतां प्रद्वेष मच्छरु अंतराइउ हउं कीधउ हुई, तथा ज्ञानद्रव्यु भक्षितु उपेक्षित प्रज्ञापराध विणास्य विणासितउं ऊवेख्यं हुंती सक्ति सारसंभाल न कीधियह, अनेरइ ज्ञानाचारिउ कोइ अतीचारु हुउ सुक्ष्मबादरु मनि वचनि काइ पक्षदिवसमांहि तेह सवहि मिच्छा मि दुक्कडुं ॥ सातमह भोगोपभोगवति सचित्तद्रव्यविगइ खासहाइ पाणही पानि फोफलि बहसणि आसणि सयणि न्हाणुअइ अंगोहलि फलि फूलि भोजनि आच्छादन जु कोइ अतिचारु हुयउ पक्षदिवसमांहि ८८ बारि भेदि तपु छहि भेदि बाह्य अणसण इत्यादि उपवास आंबिल नीविय एकासणु पुरिमदृ व्यासणं यथाशक्ति तपु तथा ऊनोदरितपु वृत्तिसंखे | रसत्यागु कायकिलेसु, संलेखना कीधी नहि, तथा प्रत्याख्यान एकासणां विपुरिम साढपोरिसि पोरिसिभंगु अतीचारु नीविय आंबिलि उपवास की विरासई सचित पाणी पीधउं हुयइ पक्षदिवसमांहि प्रतिषिद्ध जीवहिंसादिकतणइ करणि कृत्य देवपूजा धर्मानुष्ठानतणइ अकरणि जि जिनवचनतणइ अश्रद्दधानि विपरीतपरुपणा एवं बहुप्रकारि जु कोइ अतीचारु हुयउ पक्षदिवसमांहि || सर्वतीर्थनमस्कारस्तवन ( संवत् १३५८ मां लखायेला कागळना पुस्तकमांथी ) पहिलउं त्रिकाल अतीत अनागत वर्त्तमान बहत्तर तीर्थकर सर्वपापक्षयंकर हर्ज नमस्करउं । तदनंतरु पांचे भरते पांचे ऐरवते पांच महाविदेहे सत्तरिसउ उत्कृष्टकालि विहरमाण हउं नमस्करजं । तर पहिलइ सौधमि देवलोकि बीस लाख, बीजइ ईसानि देवलोकि अठ्ठावीस लाख, त्रीजइ सनतकुमारि देवलोकि बारलाख, चत्थर माहेंद्रदेवलोकि आठ लाख, पांचमह ब्रह्मदेवलोकि च्यारि लाख, छठ्ठलांतकि For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ नवकारव्याख्यानम् देवलोकि पंचास सहस, सातमइ शुक्रदेवलोकि च्यालीस सहस, आठमइ सहस्रारि देवलोकि छ सहस, नवमइ आणति देवलोकि बिसइ, दसमइ प्राणति देवलोकि बिसइ, इग्यारमइ आरणि देवलोकि बारमइ अच्युतदेवलोकि बिहू दउढु दउढु सउ, अनइ हेठिले बिहू अवेयके इग्यारोत्तरु सउ, माहिले बिहू ग्रैवेयके सत्तोत्तर सउ, ऊपइले बिहू ग्रैवेयकि एक सउ, पंच पंचोत्तरविमाने, एवंकारइ स्वर्गलोकि चउरासी लाख सत्ताणवइ सहस त्रेवींस आगला जिनभुवन वांदङ । अनंतरु भुवनपतिमज्झे असुरकुमारमज्झे चउसटि लाख, नागकुमारमझे चउरासी लाख, सुवन्नकुमारमज्झे बहत्तरि लाख, वायकुमारमज्झे छन्नवइ लाख, दीवकुमार दिसाकुमार अहिठ्ठकुमार विज्जुकुमार थुणियकुमार अग्गिकुमार छहं मध्यभागे छहत्तरि छहत्तरि लाख, एवंकारइ पाताललोकि सातकोडि बहत्तरिलाख जिनमंदिर स्तवउं । अथ मनुष्यलोकि नंदीसर वरि दीपि बावन्न, च्यारि कुंडलवल्गि, च्यारि रुचकि वल्गि, च्यारि मानुषोत्तरि पर्वति, च्यारि इक्षार पर्वति, पंच्यासी पांचे मेरे, वीस गजदंत पर्वति, दस कुरपर्वति, त्रीस सेलसिहरे, असीव क्षारसेलसिहरे, सरिसउ वैताट्यपर्वति, एवं च्यारि सइ त्रिसहि जिणालइपडिमं, एवं आठ कोडि छप्पन्न लाख सत्ताणवइ सहस च्यारि सइ छियासिया तियलुक्के शास्वतानि महामंदिर त्रिकाल तीह नमस्कार करचें ॥ सर्वतीर्थनमस्कारस्तवनम् । नवकारव्याख्यानम् नमो अरिहंताणं ॥ १॥ माहरउ नमस्कार अरिहंत हउ । किसा जि अरिहंत; रागद्वेषरूपिआ अरि वयरी जेहि हणिया, अथवा चतुषष्टि इंद्रसंबंधिनी पूजा महिमा अरिहइ; जि उत्पन्नदिव्यविमलकेवलज्ञान, चउन्नीस अतिशयि समन्वित, अष्टमहाप्रातिहार्यशोभायमान महाविदेहि खेत्रि विहरमान तीह अरिहंत भगवंत माहरउ नमस्कारु हउ ॥१॥ नमो सिडाणं ॥२॥ महारउ नमस्कारु सिद्ध हउ । किसा जि सिद्ध; दुष्टाष्टकर्मक्षउ करिउ, जि मोक्षि ग्या । आठ कर्म किसा भणियइ । ज्ञानावरणीउ १ दरिसणावरणीउ २ वेदनीउ ३ मोहनीउ ४ आयु ५ नामु ६ गोत्तु ७ अंतराउ ८ ईह आठकर्मक्षउ करिउ जि सिद्धि ग्या । किसी ज सिडि; लोकतणइ अग्रविभागि पंचत्तालीस लक्षयोजनप्रमाणि जिसउं उत्ताणु छत्तु For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः तिसइ आकारि ज सिडिसिला, अमलनिर्मल जलसंकास जु अजरामर - स्थानु, तेह ऊपरि योजनसंबंधियइ चउवीसमह य विभागि जि सिद्ध अनंत सुखलीण ति सिद्ध भणियइ । तीह सिद्ध माहरउ नमस्कारु हउ ॥ २ ॥ नमो आयरियाणं || ३ || माहरउ नमस्कारु आचार्य हुउ । किसा जि आचार्य; पंचविधु आचारु जि परिपालइ ति आचार्य भणियह। किसउ पंचविधु आचारु । ज्ञानाचार, दर्शनाचारु, चारित्राचारु, तपाचारु, वीर्याचारु, as पंचविधु आचारु जि परिपालइ ति आचार्य भणिइ । तीह आचार्य 'माहरउ नमस्कारु हउ ॥ ३ ॥ नमो उवज्झायाणं ॥ ४ ॥ माहरउ नमस्कारु उपाध्याय हुउ । किसा जि उपाध्याय; द्वादशांगी जि पढइ पढावइ । किसी ज द्वादशांगी; आचारांगु १ सुयगड २ ठाणांगु ३ समवाउ ४ विवाहपन्नत्ति ५ ज्ञाताधर्म्मकथा ६ उवासगदसा ७ अंतगडदसा ८ अणुत्तरोववाइयदसा ९ पण्हवागरणु १० विपाकश्रुतु ११ दृष्टिवादु १२ ए बार आंग जि पढइ पढावइ ति उपाध्याय भणियइ । तीह उपाध्याय माहरउ नमस्कारु हुउ ॥ ४ ॥ ९० नमो लोए सव्वसाहूणं ॥ ५ ॥ ईणि लोकि जि केई अछइ साधु । यउ लोकु च किसउ भणियइ । अठाई द्वीपसमुद्र पनर कर्म्मभूमि । जि किसी ; पांच भरत पांच ऐरवत पांच महाविदेह खेत्र, ईह पनर कर्म्मभूमिमाहि जि केई अच्छइ साधु । किसा जि साधु; रत्नत्रउ जि साधइ । किसउ रत्नन्नउ; ज्ञानु दर्शन चारित्रु यउ रत्नत्रउ जि साधइ ति साधु भणियs । तीह साधु पंचमहाव्रतपरिपालक । पंचमहाव्रत किसा भणियइ । प्राणातिपात्तु १ मृषावादु २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ रात्रीभोजनु । जि विवर्ज्जर ति साधु भणियइ । तीह साधु सर्वहीं माहरउ नमस्कारु हुउ ॥ ५ ॥ एसो पंच नमोकारो ॥ ६ ॥ एउ पंच परमेष्टिनमस्कारु | पंचपरमेष्ठि किसा । जि पूर्वोक्तभणिया अरिहंत १ सिद्ध २ आचार्य ३ उपाध्याय ४ साधु ५ इह पंचपरमेष्ठिनमस्कारु भावि क्रियमाणु हुंतउं किसउं करइ ॥ ६ ॥ सव्वपावपणासणो ॥ ७ ॥ सर्वपापप्रणासकारियउ हुइ । ईणि जीवि चतुर्गतिक संसारि भवभ्रमण करतइ हुंतइ जि असुभलेश्या उपायी पापु सु ईणि पंचपरमेष्ठिनमस्कारि महामंत्रि सुमरीतइ हुंतइ क्ष हुयइ ॥ ७ ॥ मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं ॥ ८ ॥ ईणि संसारि दधिचंदनदूर्वादिक मंगलीक भणियइ । तीह मंगलीक सर्वहीमांहि प्रथम मंगल एहु | For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अतिचार ईणि कारणि सुभकार्यआदि पहिलउं सुमरेवउं, जिव ति कार्य एहतणइ प्रभावइ वृद्धिमंता हुयइ । यउ नमस्कार अतीतअनागतवर्त्तमानचउवीसीआदिजिनोक्तसारु, सुतुम्हे विसेषहइ हिवडातणइ प्रस्तावि अर्थयुक्तु ध्येयु ध्यातव्यु गुणेवउ पढेवउ । जु किसउ । जिणसासणस्स सारो चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो। जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ ॥ अनइ एहु नमस्कारु स्मरता इहलोकतणा भय नासइ । यदुक्तं-अडविगिरिरन्नमज्झे भयं पणासेइ चिंतिओ संतो। रकइ भवियसयाई माया जह पुत्तभंडाइ ॥ वाहिजलजलणतकरहरिकरिसंगामविसहरभएहिं । नासंति तकणेणं जिणनवकारप्पभावेणं ॥ हियइगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निचं । कम्मट्टगंठिदोघघट्टयं ताण परिनटुं॥ नमस्कारस्य स्वरूपं भण्यते । ईणि नवकारि नव पद पांच अधिकार सत्तसहि अक्षर, तीहमाहि छ भारी इकसठि लघु । इसउं नमस्कारतणउंमाहातम्यु। एसो मंगलनिलओ भयविलओ सयलसंतिसुहजणओ। नवकारपरममंतो संतियमित्तो सुहं देउ॥ अप्पुव्वो कप्पतरू एसो चिंतामणी य अप्पुवो। जो झाइ सयलकालं सो पावइ सिवसुहं विउलं ॥ नवकारव्याख्यानं समाप्तम् ।। अतिचार. संवत् १३६९ मां लखेला ताडपत्रमांथी. तउ तुम्हि ज्ञानाचार दरिसणाचार चारित्राचार तपाचार वीर्याचार पंचविधआचारविषइया अतीचार आलोउ । ज्ञानाचारि कालवेला पढिउ गुणिउ विनयहीनु बहुमानहीनु उपधानहीनु गुरुनिन्हवु अनेरीकन्हइ पढिउं अनेरउ कहिउ । व्यंजनकूट अक्षरकूट कानइ मात्र आगलउ ओछउ देववंदणइ पडिकमणइ सज्झाओ करतां पढतां गुणतां हुओ हुइ, अर्थकूट तदुभयकूट, ज्ञानोपकरणि पाटी पोथी ठवणी कमली सांपडा सांपडी पतिआसातना पगु लागउ थुकु लागउ पढतां गुणतां प्रद्वेषु मच्छरू अंतराइ हुउ कीधउं For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः हुइ भवसगलाहइमांहि तेह मिच्छा मि दुकडं । मृषावादि सहसातकारि आलु अभ्याख्यान दीघउं, रहसमंत्रभेदु कीधइ, मृषोपदेसु दीघउ, कुडउ लेखु लिखिउ, कुडी साखिथापणि मोसउ, कुणहइसउ राडि भेडि कलहु विढाविढि, जु कोइ अतिचारु मृषावादि व्रति भवसगलाइमाहि हुउ त्रिविधि त्रिविधि मिच्छा मि दुक्कडं। अदत्तादानि विराइउं छानउं फीटुउं लीघउं दीधउं वावरि घरि बाहिरि खेत्रि खलइ पाडइ पाडोसि अणमोकलाविउ चोरीच्छाई चोरप्रति प्रयोगु कीघउ, नवउं पुराणउ रसु विरसु सजीयु निजी मेलिउं, कूडी तूल कूडइ थापि कूडउ कहिउ हुइ, अतीचारु अदत्तादानि व्रति भवसगलाइमांहि हुउ तेह सवहइ मिच्छा मि दुक्कडु । मैथुनव्रति लुहुडपणि आपणा विराया सील खंडया सिउणइ सिउणांतरि, दृष्टिविपर्यासु, आठमि चउसितणा नीमभंगु, अनंगक्रीडा परविवाहकरणु तिव्रभिलाषु धरिउ हुइ, अनेरा जु कोइ अतिचारु मैथुनव्रति भवसगलाइमांहि हुअउ तेह सवहइ त्रिविधि त्रिविधि मिच्छा मि दुक्कडं । हव हियामाहिं सम्यक्त्व धरउ । अरिहंत देवता, सुसाधु गुरु, जिणप्रणीतु धर्मु, सम्यक्त्वदंडकु ऊचरउ । हिव अठार पापस्थानक वोसिरावउ । सर्व प्राणातिपात, सर्दू मृषावाद, सर्व अदत्तादान, सर्दू मैथुनु, सर्व परिग्रहु, सबू क्रोधु, सर्व मानु, सर्व माया, सवू लोभु, राग, द्वेषु, कलहु, अभ्याख्यानु, पैशुन्यु, रति, अरति, परपरिवादु, मायामृषावादु, मिथ्यात्वरिसणसल्यु ए अढारपापस्थान मोक्षमार्गसंसर्गविधनसमान त्रिविधि त्रिविधि वोसिरावउ, अतीतु निंदउ, अनागतु पच्चरकउ, वर्तमान संवरु । सागारुप्रत्याख्यानुउ । खमिउं खमाविउं मई खमिउ छव्विह जीवनिकाय । सिद्धह दिन्ना लोयणा नइ मह वइरु न पावु । हिव दुकृतगरिहा करउं। जु अणादि संसारमाहि हीडतइ हतइ ईणि जीवि मिथ्यात्यु प्रवर्ताविउ । कुतीथु संस्थापिउ, कुमार्ग प्ररुपिउ, सन्माणु अवलपिउ । हिवु ऊपाजि मेल्हि सरीरु कुटुंबु जु पापि प्रवर्तिउ, जि अधिगरण हलऊ खल घरट घरटी खांडां कटारी अरहट्ट पावटा कूप तलाव कीधां कराव्यां अनुमोद्या, ते सवे त्रिविधि त्रिविधि वोसिरावउ । देवस्थानि द्रवि वेवि पूजा महिमा प्रभावना कीधी, तीर्थजात्रा रथजात्रा कीधी, पुस्तक लिखाव्यां, साधर्मिकवाछल्य कीधां, तप नीयम देववंदन वांदणांइ सज्याइ अनेराइधर्मानुष्ठानतणइ विषइ जु ऊजमु कीधउ सु अम्हारउ सफलु हुओ। इति भावनापूर्वकु अनुमोदउ For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र ( वाग्विलास) या विश्वकल्पवल्लीवल्लीलया कल्पितप्रदा । प्रदत्तां वाग्विलासं मे सा नित्यं जैनभारती ॥१॥ धर्मश्चिन्तामणिः श्रेष्ठो धर्मः कल्पद्रुमः परः। धर्मः कामदुधा धेनुर्द्धर्मः सर्वफलप्रदः ॥२॥ पुण्यलगइ पृथ्वीपीठि प्रसिद्धि , पुण्यलगइ मनवांछितसिद्धि; पुण्यलगइ निर्मलबुद्धि, पुण्यलगइ घरि ऋद्धिवृद्धि; पुण्यलगइ शरीर नीरोग, पुण्यलगइ अभंगुरभोग; पुण्यलगइ कुटुंबपरिवारतणा संयोग, पुण्यलगइ पलाणीयइंतुरंग, पुण्यलगइ नवनवा रंग; पुण्यलगइ घरि गजघटा, चालतां दीजई चंदनछटा, पुण्यलगइ निरुपम रूप, अलक्ष्य स्वरूप; पुण्यलगइ वसिवा प्रधान आवास, तुरंगमतणी लास, पूजई मन चीतवी आस; पुण्यलगइ आनंदायिनी मूर्ति, अद्भुत स्फूर्तिः पुण्यलगइ भला आहार, अद्भुत शृंगार; पुण्यलगइ सर्वत्र बहुमान, घj किस्युं कहीयइ पामीयइ केवलज्ञान। . एह पुण्यऊपरि राजाधिराज पृथ्वीचंद्रतणउ कथासंबंध भणीयइ । ता ईणई राजुप्रमाणि रत्नप्रभापृथ्वीपीठि असंख्याता द्वीप समुद्र वर्तइं । तीह माहि पहिलउ जंबूद्वीप लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि लवणसमुद्र दिलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ।तेहपरइं धातकीखंडदीप च्यारिलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि कालोदधि समुद्र आठलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह परइं पुष्करवरदीप सोललक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पापलि पुष्करवरसमुद्र बत्रीसलक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । आगलि वारुणिद्वीप ६४ लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । तेह पालि वारुणीसमुद्र एककोडि २८ लक्षयोजनप्रमाण जाणिवउ । ईणिपरि ठाण बिमणा द्वीप समुद्र जाणिवउ । कवण कवण क्षीरद्वीप क्षीरसमुद्र घृतद्वीप घृतसमुद्र इक्षुद्वीप इक्षुसमुद्र नंदीसररद्वीप नंदीसरसमुद्र अरुणद्वीप अरुणसमुद्र अरुणवरद्वीप अरुणवरसमुद्र अरुणवरावभासद्वीप अरुणवरावभाससमुद्र इत्यादिक द्वीपसमुद्र असंख्यात । तेहमाहि पहिलु जे जंबूद्वीप, तेहनी नाभिई मेरुपर्वत जिसिउ प्रदीप, तेहनुं दक्षिण उत्तरई सातक्षेत्र चऊद महानदी छ वर्षधर पर्वत वर्तई । For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः किसा ते क्षेत्र । भरतक्षेत्र १ हैमवतक्षेत्र २ हरिवर्षक्षेत्र ३ महाविदेहक्षेत्र ४ रम्यकक्षेत्र ५ ऐरण्यवतक्षेत्र ६ ऐरवतक्षेत्र ७। किसी महानदी । गंगा १ सिंधु २ रोहिताशा नदी ३ रोहिता ४ हरिकांता नदी ५ हरिसलिला नदी ६ सीतोदा ७ सीतानदी ८ नारीकांता ९ नरकांता १० रूप्यकूला नदी ११ सुवर्णकूला नदी १२ रक्तवती १३ रक्तानदी १४ । किस्या किस्या वर्षधर । हिमवंतपर्वत १ महाहिमवंत २ निषध ३ नीलवंत ४ रुक्मीपर्वत ५ शिखरीपर्वत ६ । हिव जे कहिउं भरतक्षेत्र तेहमाहि २५ योजनप्रमाण वैताठ्यपर्वत ३२ सहस्र देश । ईहमाहि साढापंचवीसदेश आर्य, थाकता अनार्य जाणिवा।ऋषभदेवतणां पुत्रतणें नामिई सयलदेश जाणिवा । ते कुण कुण काश्मीरदेश १ कीर २ काबेर ३ कांबोज ४ कमल ५ उत्कल ६ करहाट ७ कुरु ८ काण ९क्रथ १० कौशक. ११ कोसल १२ केशी १३ कारूत १४ कारूष १५ कछ १६ कर्णाट १७ कीकट १८ केकि १९ कोलगिरि २० कामरूप २१ कूकण २२ कुंतल २३ कालिंग २४ करकूट २५ करकंठ २६ केरल २७ षस २८ षर्पर २९ पेट ३० गौड ३१ अंग ३२ गौप्य ३३ गांगक ३४ चौड ३५ चिल्लिर ३६ चैत्य ३७ जालंधर ३८ टंकण ३९ कोडियाण ४० डाहल ४१ तुंग ४२ ताजिक ४३ तोसल ४४ दशार्ण ४५ दंडक ४६ देवसभ ४७ नेपाल ४८ नर्त्तक ४९ पंचाल ५० पल्लव ५१ पुण्ड्र ५२ पांडु ५३ प्रत्यग्रथ ५४ अर्बुद ५५ बभ्रु ५६ बंभीर ५७ भट्टीय ५८ माहिष्मक ५९ महोदय ६० मुरुंड ६१ मुरल ६२ मेद् ६३ मरु ६४ मुद्गर ६५ मंकन ६६ मल्लवत ६७ महाराष्ट्र ६८ यवन ६९ रोम ७० राटक ७१ लाट ७२ ब्रह्मोत्तर ७३ ब्रह्मावर्त ७४ ब्राह्मणवाहक ७५ विदेह ७६ वंग ७७ वैराट ७८ वनवास ७९ वनायुज ८० वाल्हीक ८१ वल्लव ८२ अवंति ८३ वह्नि ८४ शक ८५ सिंहल ८६ सुम्ह ८७ सूपर ८८ सौवीर ८९ सुराष्ट्र ९० सुहड ९१ अस्मक ९२ हूण ९३ हर्मोक ९४ हर्मोज ९५ हंस ९६ हुहुक ९७ हेरक ९८ एवं देश अट्ठाणू अनइ आदन हाबस मुगदिसुं धनगिरि सीकोत्तर चोलनाट पांड्य तालीउ बिहूति भोट महाभोट चीण महाचीण बंगाल पुरसाण मग्ध वच्छ गाजणाप्रमुष अनेक देश वर्तई। तीहमाहि वषाणीयइ मरहट्ठदेस । जीणइ देसि ग्राम, अत्यंत अभिराम; भलां नगर, जिहां न मागीयइं कर । दुर्ग, जिस्यां हुइ स्वर्ग; धान्य, न नीपजइ सामान्य; आगर, सोनारूपातणा सागर । जेह देसमाहि नदी वहई, लोक सुषई निर्वहई । इसिउ देश, पुण्यतणउ निवेश, गरूअउ प्रदेश । तीणि देसि पहुठाणपुर पाटण वर्त्तई; जिहां अन्याय न वर्त्तई । जीणई नगरि कउसीसे करी सदाकार पापलि पोढउ प्राकार; उदार, प्रतोली द्वार; पातालभणी धाई, महा For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र काय पाई, समुद्र जेहतु भाई; जे लिइ कैलासपर्वतसिउं वाद, इस्या सर्वज्ञदेवतणा प्रासाद; करइं उल्लास, लक्षेश्वरीकोटीध्वजतणा आवास; आनंदई मन, गरुडं राजभवन; ऊपरि अषंड, सुवर्णमय दंड, ध्वजपटल लहलहई प्रचंड । जेह पाटणमाहि अनेक आश्चर्य वापरई, चउरासी चउहटां कलकलाट करई । किस्यां ते चउहटां। सोनीहटी १ नाणावटहटी २ जवहरीहटी ३ सौगंधीयाहटी ४ फोफलिया ५ सूत्रिया ६ पडसूत्रिया ७ घीया ८ तेलहरा ९ दंतारा १० वलीयार ११ मणीयारहटी १२ दोसी १३ नेस्ती १४ गांधी १५ कपासी १६ फडीया १७ फडीहटी १८ एरंडिया १९ रसणीया २० प्रवालीया २१ त्रांबहटा २२ सांषहडा २३ पीतलगरा २४ सोनार २५ सीसाहडा २६ मोतीप्रोयां २७ सालवी २८ मीणारा २९ कुंआरा ३० चूनारा ३१ तूनारा ३२ कूटारा ३३ गुलीयारा ३४ परीयटा ३५ घांची ३६ मोची ३७ सुई ३८ लोहटिया ३९ लोढारा ४० चीत्राहरा ४१ सतूआरा ४२ कागलीया ४३ मद्यपहटी ४४ वेश्या ४५ पणगोला ४६ गांछा ४७ भाडभुंजा ४८ बीबाहडा ४९ त्रांबडीया ५० भईसायत ५१ मलिन नापित ५२ चोषा नापित ५३ पाटीवणा ५४ ब्रांगडीया ५५ वाहीत्रा ५६ काठवीठीया ५७ चोषावीठीया ५८ सूषडीया ५९ साथरीया ६० तेरमा ६१ वेगडीया ६२ वसाह ६३ सांथूआ ६४ पेरूआ ६५ आटीआ ६६ दालीया ६७ दउढीआ ६८ मुंजकूटा ६९ सरगरा ७० भरथारा ७१ पीतलहडा ७२ कंसारा ७३ पत्रसागीआ ७४ षासरीआ ७५ मंजीठीया ७६ साकरीया ७७ साबूगर ७८ लोहार ७९ सूत्रहार ८० वणकर ८१ तंबोली ८२ कंदोई ८३ बुद्धिहटी ८४ कुत्रिकापणहटी एवं चउरासी चउहटां जाणिवा । जीणई नगरि अनेक पामीयई रत्न, जीहतणां कीजई यत्न । किस्यां ते रत्न । अश्वरत्न गजरत्न पुरुषरत्न स्त्रीरत्न अनइ पद्मराग पुष्पराग माणिक सींघलिया गुरुडोद्गारमणि मरकत कर्केतन वज्र वैडूर्य चन्द्रकांत सूर्यकांत जलकांत शिवकांत चंद्रप्रभ साकरप्रभ प्रभानाथ अशोक वीतशोक अपराजित गंगोदक मसारगल्ल हंसगर्भ पुलिक सौगंधिक सुभग सौभाग्यकर विषहर धृतिकर पुष्टिकर शत्रुहर अंजन ज्योतीरस शुभरुचि शुलमणि अंशुकालि देवानंद रिष्टरत्न कीटपंखि कसाउला धूमराइ गोमूत्र गोमेद लसणीया नीला तृणचर खइगइ वज्रधार षट्कोण कणी चापडी पिरोजा प्रवाला मौक्तिकप्रमुख रत्नेकरी दीसइं भरियां हाट, अनेकसुवर्णमय घाट; पिहुली वाट, चालइ घोडांतणां घाट, लोकनइं नहीं किसिउ ऊचाट । जिहां पुण्य विशाल, तीसी पोसाल; For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ प्राचीनगूजर काव्यसङ्ग्रहः जिहां छात्र पढई चउसाल, तिसी नेसाल; जिहां अध्यात्मतणी वात दृढ, तिसां अनेक मढ; जिहां लोक जिमई अपार, तिसा सनूकार; जिहां पाणी पियइ सर्व, तिसी पर्व; जिहां रमलि कीजई स्वभावि, तिसी वावि; जिहां आनंद हुआ, तिसा कुआ; पद्मवनखंडमंडित प्रवर, महाकाय सरोवर; जिहां रंगि कीजई रयवाडी, तिसी वाडी; जिहां सीतल फुरकइ पवन, तिसां पावलियां वन; इसुं अन्यायरहई दाटण, पृथ्वीपीठि प्रसिद्ध पुहिठाणपुर पाटण । I तीणि पाटणि राजाधिराज पृथ्वीचंद्र इसिई नामिदं राज्य प्रतिपालइ, भुजबलकरी वइरी वर्ग टालई । जीणि राजा गौडदेशनउ राउ गांजिउ, भोटनउ भांजिउ; पंचालनउ राउ पालउ पुलई, कानडादेसनउ कोठारि रुलई, ढोरसमुद्र ढोयणां ढोयइ, बाबरउ बारि बइठउ टगमग जोयह; चौडनउ दंडि चांप, कास्मीर कांपिउ; सोरठीयउ सेवइ, तुडि न करई देवई; अंगदेसन अंगि ओलाइ, जालंधरनउ जीवितव्यकारणि रिगइ; घणुं किस्युं कहीयह, रिपुकुलकालकेतु शरणागतवज्रपंजर पंचम लोकपाल । जीणं रिपु सर्वे निट्यां दुर्ग सर्वे आपणा कीधा, वयरीनई देसवटा दीधा । इसिउं निःकंटक साम्राज्य प्रतिपालइ । तेह नरेश्वरनई बुद्धिनिधान, परमहंसनामि प्रधान; जेउ सहिजिइं रूपिडं रूडउ, पाटरहिं नहीं कूडउ; राउलउ अर्थ सारइं, लोक ऊगारइ, वयर विग्रह वारइ; पालइ दीन दुस्थित निराधार, करइ साधुजन उपगार; शस्त्रि शास्त्र कुशल अपार, गुहिर गंभीर, अतिहिं धीर; मुहि मीठउं भाषई, काज कीधां जि दाह; चिहुं बुद्धितणडं निधान, सविहुं अमात्यमाहि मूलिगु प्रधान; रायत प्रतिशरीर, इसिउं ते मंत्रीश्वर; नरेश्वररहई, शिवमय सुषमय कल्याणमय दिवस अतिक्रमई । अन्यदा प्रस्तावि राजा रातितणई प्रस्तावि स्वप्न एक दीठउ, जेहन फल छइ अत्यंत मीठउं । किसउं ते स्वप्न । इसिउं जाणइ नरेश्वर सुवर्णवर्णकांति, देवरहई मन भ्रांति; पलकते नेउरि झलकते कुंडलि हाथि वरमाल, अर्द्धचंद्रसमभाल; रूपि विशाल, इसी बालदेवी देषइ भूपाल । जेतलइ तेहतणी वरमाला कंठिकंलि लागी, तेतलई रायनई निद्रा भागी; जागिउ नरेश्वर चींवर अलवेसर । किसिउ स्वप्नतणउ घटइ विचार, तेतलइ प्रभातावसरिउ मांगलिकशंख तणउ ओंकार हुआ तिवलितणा दोंकार, मृदंगतणा धकार; भट्टतणा मांगलिक्यध्वनि, राजा आनंदिउ मनि; शुभहेतु स्वप्नतणउ मनि विचार धरी, पालंक परिहरी; क्षणु एक राजा मल्लाषाडइ आव्या । मल्ल " For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र सिउ विनोद नीपजाव्या पछइ लानमजनादिक प्रभातकरणीय कीधुं, याचकरहइ दान दीघउं । ति वारें गणनायक दण्डनायक पायक वृत्तिनायक वहीवाहक तलवर माडम्बिक कौटुंबिक इन्द्रजाली फूलमाली धातुर्वादी मन्त्रवादी तन्त्रवादी यन्त्रवादी कपटाइत चपटाइत अगरक्षक अङ्गमर्दक मीठाबोला सुहाबोला कथाबोला साचाबोला जूठाबोला अनइ अनेक राजराजेश्वर मण्डलेश्वर सामन्त तंत्रपाल तलवर्ग चउरासीया महामात्य मन्त्रीश्वर श्रीगरणा वयगरणा धर्माधिगरणा सेनाधिपति आगरीया व्यवहारीया राजद्वारिक भण्डारी कोठारी कापडभण्डारी पूगभण्डारी रसोईया पाणहरी श्रेष्ठि सार्थवाह पीठमर्द वारवधू वीणकार वंशकार उतिकार आउजी पखाउजी पटाउजी आलवणकार लाक्षणिक तार्किक छान्दसिक मुखमाङ्गलिक वैद्य ज्योतिषी पाहरी षड्गधर कुन्तधर धनुर्धर छत्रधर बालकहार सेजपाल थईयात पण्डित कवि लेखक योघ महायोघ माल मसाहणी पाण्डव पउतारप्रमुखसकललोकि करी सश्रीक राजा राजसभां बईठा। राजसभा किसी छइ । जीणि राजसभां कुंकुमजलि छटा दीधी छइ, विविधमुक्ताफलि चतुष्क पूरिया छइं, कर्पूरतणा शंख आलिष्या छई, कृष्णागरजबाधितणा परिमल महमहई छई, मोतीतणी सिरि लहलहइंछई, फूलपगर भरिया छइं, कटीप्रमाणपायपीठसंयुक्त पुरुषप्रमाण सुवर्णमय सिंहासन मांडिउं छई। तीणि सिंहासणि राजा बइठा । किसउ राजा दीसइ छइ, मस्तकि श्वेतातपत्र छइ; पासई ढलइं चामर पवित्र, वाजई विचित्र वादिन; मस्तकि मुगट, कानि कुण्डल, हृद्वि हाराईहार, महाउदार, धनदतणउ अवतार, रुपतणु भण्डार । घणउं किसिउं कहीयइ । जिसउ पृथ्वीलोकतणउ इन्द्र, जिसउ सोलकलासम्पूर्ण चन्द्र, इसउ दीसइ छइ पृथ्वीचन्द्र नरेन्द्र । तिसिइ अवसरि प्रतीहार आविउ प्रणाम नीपजाविउ । राजांसाह्मी दृष्टि दीधी, ऊणि वीनती कीधी; जी अयोध्यानगरीहूंतउ दूत तम्हारइ द्वारांतरि आविउ मनितणइं उत्साहि, जइ हुइ आदेस तु मेल्हउं माहि । हूउ राजातणउ आदेस, दूति कीधउ सभामाहि प्रवेस । रायरहइ कीधउ जुहार, अलंकरिउं योग्य आसण उदार । राजा दूतरहइ बहुमान दीधउं, कुशल प्रश्न कीधउं । आनन्द ऊपनउ अत्यन्त, हिव दूत वीनवइ कार्य विशेष चन्त । जिहां लोकरहइं नही किसिउ क्लेश, जिहा नही वइरीतणउ प्रवेश, पुण्यतणउ निवेश; अनेक ग्रामनगर, सोनारूपातणा आगर; मनोहर छइ कोसलादेस । For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः । तिहां छई नगरी अयोध्या । किसी ते नगरी । धनकनकसमृद्ध, पृथ्वीपीठि प्रसिड; अत्यंत रमणीय, सकललोकस्पृहणीय; पृथ्वीरूपिणीकामिनीरहइं तिलकायमान, सर्वसौंदर्यनिधान; लक्ष्मीलीलानिवास, सरस्वतीतणउ आवास; अतुलदेवकुलि मंडित, परचक्रि अखंडित, सदा सुठाकुरि पालित, रमणीयराजमार्गि शोभित, उत्तंगप्राकारवेष्टित; सदा आश्चर्यतणउ निलय, वसुधावनितावलय, निरुपमनागरिकतणउं ठाम, मनोभिराम; जनितदुर्जनक्षोभ, सज्जनोत्पादितशोभ; पुरुषरत्नोत्पत्तिरोहिणाचल, कुलवधूकल्पलतारत्नाचल। जीणइ नगरी देवगृह मेरुशिषरोपमान, धवलगृह स्वर्गविमानसमान; अनेक गवाक्ष वेदिका चउकी चित्रसाली जाली विकलसां तोरण धवलगृह भूमिगृह भांडागार कोष्ठागार सत्रागार गढ मढ मंदिर पडवां पटसाल अधहटां फडहटां दंडकलस आमलसार आंचली वंदवाल पंचवर्ण पताका दीपई । सर्वोसर मंत्रोसर मांजणहरां सप्तद्वारांतर प्रतोली रायंगण घोडाहडि अषाडउ गुणणी रंगमंडप सभामंडपसमूहि करी मनोहर एवंविध आवास । जेह नगरिमाहि दोसी नेस्ती साह वसाह पटउलीया पडसूत्रिया षजूरीआ बीजउरीआ कणसारा भणसारा मपारा नवकर भोजकर भला लामा अनेक लोक वसइ । पांचसई व्यवसाईया व्यवसायविषइ उल्लसइ । जेह नगर पाषलीया अनेकि कूया वावि सरोवर नई नीक निरुपम उद्यान आंब नींब जांबू जंबीर बीजपूरप्रमुख वृक्षावली करी प्रधान च्यारि पोलि, प्रधान कोसीसातणी ओलि; प्रभातसमइ सूर्यतणे किरणेकरी प्रासादतणे शिषिरि धजकलश झलकइ, धजऊड ललकइ । घणउं किसूं कहीइ, जिसी होइ अमरावती भोगावती अथवा अलका लंका इसी नगरी अयोध्या वषाणीइ । तीणि नगरी इक्ष्वाकुवंशावतंस विहितवयरीकुलविध्वंस निजकुलकमलराजहंस अतुलबल पराक्रम त्रिविक्रमसमान राजाश्रीसोमदेव राज्य प्रतिपालइ, प्रजा संसालइ, अन्याय टालइ । जे राजा सत्यवाचा राजा श्रीहरिचंद प्रतिज्ञा राजाश्रीयुधिष्ठिर निर्भय भीम आपन्न जीमूतवाहन विद्या बृहस्पति लावण्य लवणार्णव रूपि कंदर्प प्रताप मार्तड औदार्यि बलि राजा अद्भुतदानि चिंतामणि सेवकजनकल्पवृक्ष चतुरंगवाहिनीसमुद्र। घणउ किशिउ कहीइ महासासनु अरडकमल्ल जगझंपणउ प्रतापलंकेश्वर परराष्ट्रीरायहृदयशल्य इसिउ प्रतापीउ राजा राज्य प्रतिपालइ । तेह राजातणउ अंतःपुरिमाहि प्रधान गुणनिधान भरितणी भक्तिविषय महासावधानि स्त्री कमललोचना इसिइं नामि पदराज्ञी वर्तइ । जेह राणी, सहिजि For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९९ . पृथ्वीचन्द्रचरित्र मधुरवाणी; सीलवंतिमाहि वषाणी, गुणि करी जाणी; घणूं किसई; इंद्राणी, जिह आगलि वहिइ पागी। तेह राणीतणइ कुक्षितउ समुत्पन्न मदनभ्रनतणी मंजरी, कुंकमि करी पिंजरी, रत्नमंजरी, इसइ नामिइं कन्या वर्तइ । ते कन्या जइ भणिवा गुणिवा योग्य हूई तु पंडितरहिं आपी। तीणि आपणकहइ संस्थापी, पंडित अणसंतापी कन्या समग्रकला व्यापी; ता ते कन्या बहुत्तरि कला जाणइ, चउसहि विज्ञान वषाणइ । किसी ते बहुत्तरि कला लिषितकला १ पठित २ गणित ३ गीत ४ नृत्य ५ वाद्य ६ व्याकरण ७ काव्य ८ छंद ९ अलंकार १० नाटक ११ साटक १२ नखच्छेद्य १३ पत्रच्छेद्य १४ आयुधाभ्यास १५ गजारोहण १६ तुरगारोहण १७ गजशिक्षा १८ तुरंगमशिक्षा १९ रत्नपरीक्षा २० पुरुषलक्षण २१ स्त्रीलक्षण २२ पशुलक्षण २३ मंत्रवाद २४ यंत्रवादतंत्रवाद २५ रसवाद २६ विषवाद २७ गंधवाद २८ विद्यानुवाद २९ युद्ध ३० नियुद्ध ३१ तर्कवाद ३२ संस्कृत ३३ प्राकृत ३४ उत्तर ३५ प्रत्युत्तर ३६ देशभाषा ३७ कपट ३८ वित्तज्ञान ३९ विज्ञान ४० सिद्धांत ४१ वेदांत ४२ गारुड ४३ इंद्रजाल ४४ विनयकला ४५ आचार्यविद्या ४६ आगम ४७ दान ४८ ध्यान ४९ पुराण ५० इतिहास ५१ दर्शनसंस्कार ५२ खेचरी ५३ अमरी ५४ वाद ५५ पातालसिद्धि ५६ धूर्तशंबल ५७ वृक्षचिकित्सा ५८ सर्वकरणी ५९ काष्टघटन ६० कृत्रिममणिकर्म ६१ वाणिज्य ६२वश्यकर्म ६३ चित्रकर्म ६४पाषाणकर्म ६५नेपथ्यकर्म ६६ धर्मकर्म६७ धातुकर्म ६८यंत्ररसवतीकर्म ६९ हसित७० प्रयोगोपाय७१ केवलीविधिकला ७२ ए बहुत्तरि कला जाणइ। हिव चउसठि विज्ञान किस्यां। नृत्य १ कवित २चित्र ३ वादित्र ४ मंत्र यंत्र तंत्रविज्ञान ८दंभ९ जलकर्म१० गीतगान११तालवायण १२ मेघवृष्टि १३ फलकृष्टि १४ आरामरोपण १५ आकारगोपन १६ धर्मविचार १७ शकुनसार १८ क्रियाकल्प १९ संस्कृतजल्प २० प्रासादरीति २१ धर्मनीति २२ वर्णिकावृद्धि २३ सुवर्णसिद्धि २४ सुरभितैलकरण २५ लीलासंचरण २६ गजाश्वनिरीक्षण २७ पुरुषस्त्रीलक्षण २८ वसुवर्णभेद २९ अष्टादशलिपिपरिच्छेद ३० तत्कालबुद्धि ३१ वास्तुसिद्धि ३२ वैद्यकक्रिया ३३ कामक्रिया ३४ घटभ्रम ३५ सारिपरिभ्रम ३६ अंजनयोग ३७ चूर्णयोग ३८ हस्तलाघव ३९ शास्त्रपाटव ४० नेपथ्यविधि ४१ वाणिज्यविधि ४२ मुखमंडन ४३ सालिषंडन ४४ कथाकथन ४५ पुष्पग्रथन ४६ वक्रोक्ति ४७ काव्यशक्ति ४८ सारवेष ४९ सकलभाषाविशेष ५० अभिधानज्ञान ५१ आभरणपरिधान ५२ नृत्योपवार ५३ गृहाचार ५४ रंधन ५५ केशबंधन ५६ वीणानाद ५७ वितंडावाद ५८ अंकविचार For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः । ५९ लोकव्यवहार ६० वशीकरण ६१ वारितरण ६२ प्रश्नप्रहेलिकाज्ञान ६३ धर्मध्यान ६४ ए कहीयां सर्वकलाविज्ञान, जाणइ सकल शास्त्र वषाणइ चउसट्ठि विज्ञान | इति श्रीअञ्चलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दर सूरिविरचिते श्री पृथ्वी चन्द्रचरित्रे वाग्विलासे प्रथमोल्लासः । द्वितीयोल्लासः हिव ते कुमरि, चडी यौवनभरि; परिवरी परिकरि, क्रीडा करइ नवनवी परि । इसिई अवसरि आविउ आषाढ, इतरगुणि संवाढ; काटइयइ लोह, घामतण निरोह, छासि पाटी, पाणी वीयाइ माटी; विस्तरिउ वर्षाकाल, जे पंथीतणउ काल, नाठउ दुकाल । जीणि वर्षाकालि मधुरध्वनि मेह गाजर, दुर्भिक्षतणा भय भाजइ, जाणे सुभिक्षभूपति आवतां जयढक्का वाजइ; चिहुँ दिसि बीज झलहलइ, पंथी घरभणी पुलइ; विपरीत आकाश, चंद्रसूर्य पारियास; राति अंधारी, लवई तिमिरी; उत्तरनउ ऊनयण, छायउ गयण; दिसि घोर, नाचई मोर; सधर, वरसइ धाराधर; पाणीतणा प्रवाह पहलई, वाडिऊपर वेला वलई, चीषलि चालतां शकट स्खलई, लोकतणां मन धर्म्मपरि वलई; नदी महापूरि आवई, पृथ्वीपीठ प्लावई; नवां किसलय गहगहईं, वल्लीवितान लहलहई; कुटुंबीलोक माचइ, महात्मा बइठां पुस्तक वाच; पर्वततउ नीझरण विछूटई, भरियां सरोवर फूटह । इसिह वर्षाकालि राजा सोमदेवतणउं कराविडं सरोवर भराणुं, समुद्रसमाण; वधावणीउ धायउ, राजाकन्हइ आयउ; राजा मनि गहगहतउ, सरोवर जोइवा पुहुतउ; दीठउं भरिडं सरोवर, ऊपनउ आनंदभर; जोसी तेडी महोत्सवतणुं मुहूर्त्त araj, अभीष्ट जनरहई तेडउं कीधउं; इसिउं करतां आविउ आसो मास, दिसि सप्रकास; कमलवन उल्लास, हंसतणु विलास; कादव सुकई, नइ निरर्गलपणउं मूकइं; विकसई कुसमकली, परमेश्वर सर्वज्ञ पूजतां पूजइ मनतणी रली; तिसिइ आसोसुदि पंचमीतणइ दिवसि मोटर आडंबर नरेश्वर सरोवरतणी पालि पुहुता, धजपट दीसइ लहलहता । तिसिइ समई अनेक ब्राह्मण मिलिया । कवण कवण | दुवे त्रिवाडी व्यास पाठक देवाईत मोषाईत सराईत चंद्राईत देवशर्म मोषशम्म यज्ञशर्म For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १०१ सोमश श्रीधर देवधर गंगाधर गदाधर लक्ष्मीधर श्रीवच्छ पद्मनाभ पुरुषोत्तमप्रमुख ब्राह्मण मिलिया, शांति करिवानई कारणि कलिकलिया; गले त्रागा, वेदध्वनि उच्चरिवा लागा । जे ब्राह्मण १८ पुराण १८ स्मृति जाणइ । ते किस्या पुराण | भागवतपुराण १ भविष्योत्तरपुराण २ मत्स्यपुराण ३ मार्कंडेयपुराण ४ विष्णुपुराण ५ वाराहपुराण ६ शिवपुराण ७ वामनपुराण ८ ब्रह्मपुराण ९ ब्रह्मांडपुराण १० ब्रह्मवैवर्तपुराण ११ आग्नेयपुराण १२ पद्मपुराण १३ लिंगपुराण १४ नारदपुराण १५ स्कंदपुराण १६ कूर्मपुराण १७ गरुडपुराण १८ । ते किसी स्मृति | मानवीस्मृति ? आत्रेयीस्मृति २ वैष्णवीस्मृति ३ हारीतकीस्मृति ४ याज्ञवल्कीस्मृति ५ शनैश्चरस्मृति ६ अंगिरास्मृति ७ आपस्तंबीस्मृति ८ सांवर्त्तकीस्मृति ९ कात्यायनीस्मृति १० बृहस्पतीस्मृति १९ पारासरीस्मृति १२ शंखीस्मृति १३ लिखितास्मृति १४ दाक्षीस्मृति १५ गौतमीस्मृति १६ शातातपीस्मृति १७ वाशिष्ठीस्मृति १८ । तिसिइ रत्नमंजरी कुंअरि राजारहई वीनती करावी, तिहां कुतिग जोइवा आवी । जेहतणइ परिवारि, सषी अनेकप्रकारि; कस्तूरिका कर्पूरिका लीलावती पद्मावती चंद्रावती चंद्रउली चंपू हंसी सारसी बगुलीप्रमुख अनेक सषी वर्त्तई । ती सहित तिहां आवी । पितारहई प्रणाम नीपजावी उत्संगि बइठी, दिव्य रूप देषी रायतइ मनि चिंता पहठी । एहयोग्य कवण वर, किं नर, किं विद्याधर, इसी चींतवत नरेश्वर, सरोवरभणी दृष्टि दीधी । तु निर्मल जलि, बइठा कमलि; हंस करई रमलि, च्यारह दिसि वासीइं परिमलि; कारंड कुरंज कलहंस कलगलई, ताप टलई; मोर वासई, सर्प नासइ; आडि पंषींआ तरहं, ब्राह्मण स्नान करई; माहि शतपत्र सहस्रपत्र कमलवन, दीसतां प्रीति पमाडई मन; देहुरी दंडकलस झलहलई, लहरि ऊछलई । इम जोतां राजहंस एक सरोवरहंत ऊडी बउ राजातई हाथि, निहालिउ नरनाथि । तु रूडउ रूपवंत, रुलीयामणउ, सोहामणउ; श्वेत, लावण्योपेत; जिसिउं लक्ष्मीदेवतातणउ चमर, जीणई मोहीयई अमर, कुंदकुसुमस्तबकसमान प्रधान पक्षिकुलावतंस । इसिउ हंस कुतिगकरी कुमारी लीधर, राजा दीघउ । जेतलइ जोअइ कुमरी, तेतलइ हंसि जिमणी पांष विस्तारी; कुमरि पांषमाहि घाती, भलीपरि साती। ऊपडिउ हंसु, तत्काल पडिउ ध्वंसु । धसमसतउ ऊठिउ राउ, कहइ धाउ धाउ, वलिउ नीसाणि घाउ | राउतपायक बलभलिया, वीर सवि मिलिया । धाई राणा, ब्राह्मण १२-२ For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः घरभणी ऊजाणा; दुवे नाठा, सवे त्रिवाडी बाठा । बुंब पडी राउ धायउ हंसपूठिइं जेतलई, हंस धाई पइठउ कमलमाहि तेतलई । जे वारू, ते पइठा सरोवर माहि तारू; समग्र सरोवर गाहिउ, पणि हंस न साहिउ। निश्वास मेल्ही राउ पाछउ वलिउ, परिघउ परिवार मिलिउ । राणी ते वात जाणी, मूर्छा पामी सप्राणी, सचेत कीधी छांटी छांटी पाणी; राजा आवासी आव्या, कन्यातणुं दुःख धरता छ मास अतिक्रमाया । तिसिइ आविउ वसंत, हूउ शीततणउ अंत, दक्षिणदिसितणउ शीतल वाउ वाई, विहसई वणराई । सव्वे भल्ला मासडा पण वइसाह न तुल्ल । जे दवि दाधा रूंषडां तीह माथइ फुल्ल॥ मउरिया सहकार, चंपक उदार; वेउल बकुल, भ्रमरकुल संकुल, कलरव करई कोकिलतणां कुल । प्रवर प्रियंगु पाडल, निर्मल जल, विकसित कमल; राता पलास, सेवंत्री वास; कुंद मुचकुंद महमहई, नाग पुन्नाग गहगहई। सारसतणी श्रेणि, दिसि वासीई कुसुमरेणि; लोकतणे हाथि वीणा, वस्त्राडंबर झीणा; धवल शृंगार सार, मुक्ताफलतणा हार; सर्वांगसुंदर, वनमाहि रमइ भोग पुरंदर । एकि गीत गवारइं, दान दिवारई; विचित्र वादिन वाजई, रमलितणां रंग छाजई। एकिवादिइंफूल चूटई, वृक्षतणा पल्लव पूंटइं; हीडोलइं हींचई, झीलतां वादिइं जलिई सींचइं; केलिहरां कउतिग जोअइं,प्रीतमंत होयइ । वनपालकि अवसर लही वसंत अवतरियातणी वार्ता कही। राजा सोमदेव आव्या वनमाहि, तेह जि सरोवर देषी कुंअरि सांभली मनमाहि । तेतलई पुरुषि एकई तेह सरोवरहुंतुं एक कमल लेइ रायरहइ दीधउं, राजा हाथि लीधउं । तेतलई तेह जि कमलमध्यहूंती नीसरी रत्नमंजरी कुमरि, दीठी नरेश्वरि । दुःखतणां व्याप चूरियां, लोक आश्चर्य पूरिया। नगरमध्य वार्ता जणावी, राज्ञी कमललोचना आवी । दीठी बेटी, हुइ परमानंदतणी पेटी, परिवरी चेटी। तिहां मांडिया वधामणां, महोत्सवि करीसुहामणां; विचित्र वादिन वाजिवा लागा। ते कवण कवण । वीणा विपंची वल्लकी नकुलोष्टी जया विचित्रिका हस्तिका करवादिनी कुब्जिका घोषवती सारंगी उदंबरी त्रिसरी झंषरी आलविणि छकना रावणहत्था ताल कंसाल घंट जयघंट झालरि उंगरि कुरकचि कमरउ घाघरी द्राक डाक ढाक बूंस नीसाण तांबकी कडुआलि सेल्लक कांसी पाठी For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०३ पृथ्वीचन्द्रचरित्र पाऊ सांप सींगी मदन काहल भेरी धुंकार तरवरा । ईणिपरि मृदंगपटुपडहप्रमुष वादिन वाज्यां, दुःख दूरि ताज्यां । इकवीस मूर्छना इगुणपंचास तान, इस्यां हुई गीत गान; याचक योग्य प्रधान वस्त्रदान । किस्यां ते वस्त्र । सथिला संग्रामां दाडिमां मेघवनां पांडुरां जादरा कालां पीयलां पालेवीयां ताकसीनीयां कपूरीयां कस्तूरीयां फूडीयां चउकडीयां सलवलीयां ललवलीयां हंसवडि गजवडि उडसाला नर्म पीठ अटाण कताण झूना झामरतली भइरव सुद्धभइरव नलीबद्धप्रमुख वस्त्र जाणिवां । ईणिपरि महोत्सवभरि, साथि कुमरि, नरेश्वर पहुता नगरि । मनतणइ उल्लासि, आव्या आवासि । रायरहइ कुमरीतणउं स्वरूप विमासतां ऊपनी आकाशवाणी, ए वार्ता कहिस्यई केवलनाणी । राजा तां आश्चर्य धरतई हुंतइ प्रधान तेडाविउ, तिहां आविउ । ते प्रणाम करी बइठउ तउ राजां बोलाविउ । हे मंत्रीश्वर विचारि, पाणिग्रहणयोग्य हुई रत्नमंजरी कुमारि । तु मंडावीयइ स्वयंवर, मेलीयइं सवे नरेश्वर, कन्या आपणी इच्छा वरइ वर । इसिउ आलोच कीघउ, तु राजा सविहुं दूतरहइं आदेश दीधउ; जु को पृथ्वीपीठि राय नइ राणउ, तम्हे जाणउ, ते समग्र ईणि स्थानकि आणउ । तिवारपूठिइं स्वयंवरमंडप सूत्रधारपाहिं कराविवा मंडाविउ, हुं तुम्हकन्हइ आविउ । हिव तुम्हे तिहां पाउ धारउ, ए वीनती अवधारउ, राजासोमदेवतणइ मनि आनंद वधारउ । ___इसी वार्ता सांभली दूतहुई बहुमान देतु कटक लेइ राजा पृथ्वीचंद्र स्वयंवरभणी चालिउ, कटकभारि पातालि शेष नाग हालिउ । हाथीया घोडा, नहीं थोडा।किस्या ते हाथीया छइ। सिंहलद्वीपतणा, जाजनगरतणा, भद्रजातीक, उल्ललितसुंडादंड, प्रचंड, पर्वतसमान, जलधरवान, चपलकान, मदजल झरता, आलि करता, अतुलबल, उच्छृखल, गलगर्जित करता गजेंद्र सांचरियां, तरलतेजी तरवरिया। किस्या ते । हयाणा भयाणा कुंकणा कास्मीरा हयठाणा पइठाणा सरसईया सींधउरा केकाइला जाइला उत्तरपंथा पाणीपंथा ताजा तेजी तोरका काच्छूला कांबोजा भाडेजा आरह वाल्हीकज गांधार चांपेय तैतिल त्रैगर्त्त आर्जनेय कांदरेय दरद सौवीर क्षेत्रशुद्ध प्रमाणशुद्ध चपल सरल तरल उंचासणा परीछणा । जोयउं सहइं, बपूकारिया रहई; वांकी द्रेठी, सभर पूठि; छोटे काने, सूधइ वानि; सइरनी ललवलाई, नीछटनी कलाई, पूंछतणी आयताई; पलाणतणी सामंत्राई; वांकी तुंडवालि, बहुली पेटवालि, मुहि रूधा, For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः आसणि सूधा; हसमंत हयषारवि अंबर बधिर करता। सरवीर साहसिक कालूआ किरडिया किहाडा नीलडा सेराहा कविला धूसरा मांकडा दोरीया बोरीया द्वादशावर्त्तव्यंजनगुणि शोभित शालिहोत्रशास्त्रप्रणीतलक्षणलक्षित । ससई धसई, साटि पइसई, जुडई, दउडई। जिस्या सूर्यतणा रथ छूटा हुई तिस्या अनेक तुरंगम सांचरिया । तउ पायक पहटिया । किस्या ते पायक । सूरवीर विक्रांत दुर्दीत षङ्ग घेडे लीधे श्रमई, वयरीरहई आक्रमइं; पवनवेगि पुलिई, योधस्युं जुडई, सेल्ल कुंत तोमर ताकई, वयरीरहई हाकइं; वेला लामी, न मेल्हई स्वामी; नवनवां आयुध लिई, एक वार आकाश पडतां घाढ दिइ । किहांई न दीसइ थाका, जीह लगइ हुइ जयपताका; जे धाई पुलई ऊच्छलई । इस्या पायकनी मिली कोडि, जीह माहि नहीं षोडि । हिव रथ विस्तरिया । किस्या ते रथ । चपलतुरंगमजूता, सुखिई सुभट चालई माहि बइठा सूता; छत्रीसे दंडायुधे भरिया, वायुवेगि सांचरिया; धडहडाटि धरामंडल धंधोलई, रजमाहि रविबिंब रोलई; ऊपरि धज लहलहई, जाणे देवसंबंधीयां विमान गहगहइं; घांट वाजई, वयरी भाजइं; मूर्तिवंता जिस्या मनोरथ, इस्या अनेक सांचरिया रथ । ईणिपरि चतुरंग दल चालतां हूतां नरेश्वररहइं वाटइं अनेक ग्राम नगर आवई, लोक नवनवां भेटणां नीपजावइ । मार्गि जातां आवी एक अटवी। हिव ते किसीपरि वर्णविवी । जेह अटवीमाहि तमाल ताल हंताल मालूर खजूर अर्जुन चंदन चंपक बकुल विचिकिल सहकार कांचनार जांबू जंबीर वानीर कणवीर कीर केलि कदंब निंब नारिंग नालीयरि द्राष दाडिमी देवदारु अंकुल्ल कंकिल्लि नाग पुन्नागवल्ली यूथिका मालती माधवी जपा मरुबक दमनक पारधि केतकी मुचकुंद कुंद मंदार तगर सेवत्री राजगिरि सिरीषां सींबलि सिरघू सीसमि साग टींडूसार आक आकमंदार कपित्थ बील बहिडां करण वरण धव षदिर पलाश वड वेडस पीपल पीपरि ऊंवर कठंबड धाहुडी धामण पीप जड पीरणी कइर करंज बाउल बीजुरी आमली आंबिली बोरि इंगोरि गोरडीयाप्रमुख वृक्षावली दीसइं, बीहंतां सूर्यतणां किरण माहि न पइसई । अनई किहांई सिवातणा फेत्कार, घूकतणा घूत्कार; व्याघ्रतणा घुरहराट, न लाभई वाट नइ घाट; माहि वानरपरंपरा उछलइ, मदोन्मत्त गजेंद्र गुलगलई; सिंहनाद्भयभीत मयगल पलभलई । जिस्या दविं दाधा षील, तिस्या भील। सूअर घुरकइं, चीत्रा बुरकइं; वेताल किलकिलई, दावानल प्रज्वलई; रीछ सांचरई, विरुतणा यूथ विचरई । इसी महारौद्र अटवी । For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १०५ तेहमाहि नरेश्वरतणां कटक न लहई माग, न लहइ नदीतणा ताग; न सकइ चाली घोडा हाथी, न को जाणइ साथी। विषम पर्वतमाला, डाबी जिमणी दवतणी ज्वाला, जई न सकई चडिया नइ पाला, तेतलई दीसिवा लागा भील अत्यंत काला। तिवारइं राजापृथ्वीचंद्र चींतविउं आवी विषम वेला, जई थाई भील भेला; तु किम झूझीयई, जइ परदल न बूझीयई । जेतलई राजा इसिउं चीतविउं तेतलई ते कटक अटवीऊपरिहुई पारि पहुतुं, मनि गहगहतुं। आगलि नगर एक देषइ, ते हर्ष कुणतणइ लेषइ । सवे कटकीया लोक आश्चर्य धरई, परस्परई इसी वात करई । कुणहिं काई जाणिउं, ए कटक इहां कुणि आणिउं; दैव रूठउ, पुणि देव दाणव कोइ तूठउ; जीणइं एवढें सानिध्य कीधउं, हेलांमात्र कटक इहां लीधउं । अथवा राजा पृथ्वीचंद्र धन्य, जेहनुं गरूडं पुण्य । जेह कारणि इस्युं कहइ।जे गया विदेसि, पडिया क्लेशि; ताणीया पाणीनइ पूरि, आक्रम्या क्रूरि; चांप्या सधरि, डसिया विषधरि; धरियां राइ, भेल्या घणे घाइ; मुरडिया मोगे, दूहविया रोगे; ऊपाडिया बंदि, पडिया विछंदि; तीहं सविहुंनई धर्मनउ आधार, ए साचउ विचार । लोकरहई इसी वात करतां राजाई तिहां आंबावृक्षहेठलि आव्या, ऊतारा नीपजाव्या । तेतलइ धातु, पुलतु; पाछउ जोतउ, कायरपणइ रोतउ; पुरुष एक नरेश्वरतणइ शरणि पइठउ । तेतलइ तरूआरि ताकता, हणिहणि भणी हाकता; केई पुरुष आव्या । तेहइ राजा बोलाव्या।आपुए चोर, महाकठोर, जे एहनई राषइ ते ढोर। तिवारई राजातणे सेवके कहिउं अरे ए कहीइं राजा पृथ्वीचंद्र, एहस्युं पहुची न सकई इंद्र । तिवारई ते पुरुष कहिवा लागा। नरेश्वर पहिलउं वात अवधारउ, तउ चोर ऊगार। अम्हे तलार, करउं नगरतणी सार । पुणि ए चौर, दुर्दान्त अपार; ए विविधवेसि हेरइ, बोलाविउ बोल फेरइ; चडइ मालि अटालि, पइसइ परनालि पालि; कमाड ऊघाडइ, पुणि सूतु कोइ न जगाडइ, अघोर निद्रा दिइ; कानकोटना आभरण लिइ, कटारी पायबंधन वाढइ, पर्वतप्राय केकाण काढइ; चडिउं चोर पवाडई, राउला भंडार फाडइ; दीसइ दिसि शांत, पुणि रात्रिई साक्षात् कृतान्त; विणासीतउ न मानई चोरी, बांधइउं वाढी जाइ दोरी; लोह सांकल ब्रोडइ, घडी न रहई षोडइ; हाकिउ ऊजाइ, रंघिउ धसी धाइ, करि कीधा करवालि, जाइ लोकलक्षविचालि; गढमंदिर फाडई, धीजि अडइ । इस्यु ए चोर गढनइ परनालि पइसतउ लाधउ, पाडी बांधउ, दांते दोर जोडि बोलाभरि ताकता, हाणह रोतउ पुरुषारा नीपजाव्या इसी वात के For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नाठउ, तुम्हनई शरणइ पइठउ । पुणि ए पापी, जीणि प्रजा संतापी; ए तुम्ह म थापउ, अम्हरहइं आपउ । नहींतु घायप्रहार देसिउं, प्राणिहिं लेसिउं । अम्हारउ ठाकुर सपराणउ, तेह आगलि कोई राय नइ राणउ । सांभलउ ए वात, ए आगलि दीसइ पद्मपुरनगर महाविख्यात । तिहां छइराजा समरकेतु, अतिसचेतु, वयरी प्रति साक्षात् केतु । जेतलइ तेउ ए वात जाणिसिइ, तेतलई ताहरा अहंकारतणउ अंत आणिसिइ । एह कारणि चोर आपी निर्दोष थाउ, पछइ तुम्हे भावइ तिहां जाउ । इसी वार्ता सांभली आपणां सुभटसाम्हउं जोई राजा पृथ्वीचंद्र हस्या, तउ ते सुभट उल्हस्या । ऊठिया ते वीर, ताकवा लागा तोमर तीर । नाठा तलार, नासता पूठिई वाजइ प्रहार; नीठ ते जई नगरमाहि पइठा, तु नाभिई सास बइठा । जइ वीनविउ समरकेतु राउ, देषाडई आपणउ घाउ । समरकेतु राजा कीधउ कोप, हूउ दलवई निरोप; तत्काल सामहिउं दल, मिलई सुभट सबल; वाजई प्रयाणभेरी, बीहई वयरी; पाटहस्ति गुडिउ, तेहऊपरि राजा चडिउ । रथ हथियारे भरिया, तुरंगम पावरिया, पायक सांचरिया; चतुरंग दल नीकलिउँ, बाहिरि एकठउं मिलिउं; दीसइं छत्रध्वज, ऊछलइं रज।तउ तेह दूत मोकलिउ तिहां रही, तीणे पृथ्वीचंद्रप्रतिइं इसी वात कही।तुं पियारइ देसि पइस, अन्याय करी इहां बयस;तउतुं अजाण, अजी मानि स्वामीसमरकेतुतणी आण, नहींतु प्रकटि प्राण; चोरदंड तुझनई होसिई, लोक कउतिग जोइसिइ । ईणई वातई दूत अपमानी बाहिरि काढी राजा पृथ्वीचंद्रि दल सामहाविउं, ए आपणइ पर्व आविउं । चाल्यां बेउ दल, ऊपडइं धूलिपडल; कोइ आप पर विभागबूझवइ नहीं, पितापुत्र सूझइ नहीं।न जाणीइं आपणां दल, न जाणीइ पिरायुं दल, न जाणीयइ भूतल, न जाणीइ नभोमंडल; नजाणीइ पूर्व न जाणीइ पश्चिम एकाकार हूउं । बिहुँ दल मिलते मादल वाजी, जयढक्क वाजी, रणचडण काहली वाजी; रणतूर वाजियां । त्र्यंबकतणे ब्रहादि जाणे त्रिन्हइ त्रिभुवन टलटलिवा लागा, भेरीतणे भूभूयाटि भुहि भिलिहि फाटी, काहलतणे कोलाहले कायर कमकम्या, नीसाणतणे निनादि उच्चैःश्रवा ऊकनिउ, ऐरावण ऊमंडिउ, दिग्गज डहडहिया, ढाकबूक वाजी, बुंबारव फाटी, बिहुँ दलि चालते सेषनाग सलवलिउ, कुलाचलचक्र चलिउ, कूर्म करोडि भाजइ, अंबर गाजइ; अकालि अप्रस्ताविप्रलयकालनी शंका हुई। बाध्याक्रोध, झूझइंयोध; घाय जालवई, छत्रीस दंडायुध चालवई । किस्यां ते। वन १ चक्र २ धनुष ३ अंकुश For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १०७ ४ षड्ग ५ छुरिका ६ तोमर ७ कुंत ८ त्रिशूल ९ भाला १० भिंडमाल ११ मुसंढि १२ मक्षिक १६ मुद्गर १४ अरल १५ हल १६ परशु १७ पट्टि १८ शविष्ट १९ कणय २० कंपन २१ कर्तरी २२ तरवारि २३ कुद्दाल २४ दुस्फोट २५ गदा २६ प्रलय २७ काल २८ नाराच २९ पाश ३० फल ३१ यंत्र ३२ द्रस ३३ दंड ३४ लगड ३५ कटारी ३६ वह्नि । इस्यां हथीआर झलहलई, कायर पुलई । रथ जूडंता दूरापाती लघुसंधानी शब्दवेधी धनुर्धर धाया, बाण मेल्हते आकाश छाया । एकि घोडे चडई, एकि ऊतावला पडइं; कायर रडई, सुभट भिडई, योध जुडई । घोडा मुह मूकी धाइं, बेटे पगि ऊजाई; हस्तीतणा सुंडादंड त्रूटइं, एकिना शिर फूटई । इसिइ युद्धि प्रवर्त्ततइ हुँतइ राजा पृथ्वीचंद्रतणुं दल वयरीए एकवार भागू, नासिवा लागू । समरकेत हूउ सानंद, पृथ्वीचंद्र हूउ निरानंद; चीतवइ ए किसी वात, माहरा दलरहई काई हूउ उपघात । राजा चीतवतइ हूंतइ वीर एक आकाशमार्गि आविउ, तीणई कउतिग नींपजाविउ । तीणं दीठइ वयरीना हाथतु हथियार पडियां, पृथ्वीचंद्रना कटकरहई चडियां । राजासमरकेतु बांधी पृथ्वीचंद्रतणे पगतली आणिउ, पुण ते वीर तिवारपूठिई कुणहीं न जाणिउ । तत्काल जयजयारव ऊछलिउ, राजापृथ्वीचंद्रतणउ वीरवर्ग मिलिउ। इति श्रीअंचलगच्छे श्रीमाणिक्यसुंदरसूरिविरचिते श्रीपृथ्वीचंद्रचरित्रे द्वितीयोल्लासः । तृतीयोल्लासः जइ मान मोडिउ, तउ समरकेतु बंधहूंतउ छोडिउ; पिहरावी बोलावीउ । तुं मनि गर्व आणे, माहरी वात न जाणे। किवारइं सूर्य पूर्व छांडी पश्चिम उदय मांडइ, समुद्र मर्यादा छांडइ; मेरु ढलइ, आकाशतउ नक्षत्रराशि गलइं; पापीयाघरि धर्म पलइ, पाणीमाहि अग्नि प्रज्वलइं; धूमंडल पलभलई, कुलाचलचक्र चलइ; अमृतहूंतउ विष थाइ, पृथ्वी रसातलि जाइ; कृपणि दान दीजइ, पुणि मुझकन्हइ प्राणि शरणागत चोरइ किम लीजइ । तिवारई जे आविउ छह शरणि, ते लागु राजातणे चरणिं; स्वामी तुं धन्य जीणि तइ हुं ऊगारिउ, नहींतु तलारे हूंतु मारिउ; पडतउ संसारि; होयत मनुष्यजन्मतणी हारि । राजा कहिउं तु किसिउ, जेहनु मन इसिउं । विचारि ते कहिवा लागु । अंग For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः देशि श्रीपुरिनगर, तिहां श्रेष्ठि लक्ष्मीधर, श्रीलक्ष्मीइं सधर । तेहतणु पुत्र हुं श्रीपति, पणि विषम दैवगति; दसकोडि द्रव्य हूंती, पणि बापुजीसाथि पहुती।पिता परोक्ष हुआ पूठिइं जं वाहणमाहि घातिउं, तं समुद्र सातिउं; कई वाणउने ग्रसिउं,हाट चोरे मुसिउं; थलवटनउ थलवटइ रहिउं, कांई ठाकुरे ग्रहिउं; घर बलिउँ, समग्र मंडाण टलिउं; समग्र द्रव्य निस्तरिउं, एकलक्ष द्रव्य ऊगरिउ। पछइ अवर काजकाम छांडिलं, प्रवहण पूरिवा मांडिउं । भलइ दिवसि प्रवहण पूरिउ, त्रिन्नि सई साठि क्रियाणां चडाव्या, सप्तविध पकवान चडाव्यां; सप्तविध करंबा लिया, पोतां सपाणी भरिया, देवसमुद्र वायस पूजाव्या। षाभिल मादल वाजिवा लागां, बाबरि कोलणि नाचेवा लागी, गलेला हेलाहेल करवा लागा; कूउषंभउ ऊभउ कीघउ, नागरउ पाडिउ, सिढ ताडिउ; घामतीउ घामतउ लीचइवा लागु, वाऊरीऊ तलि पइठउ, नीजामउ नालि बइठउ।आउलां पडई, सूकाणी सूकाण चालवई, मालिम वाहण जालवई; सुरवर लहलह्या, वादिननादि समुद्र गाजी रह्या। हिव आगलि जातां हूंता चिली वाय वायां, आकाशि हूई मेघछाया; ऊडिउ पवन प्रबल, समुद्र हूउ उच्छृखल; कल्लोल आकाशि ऊपडई, बीहतां लोकरहइं डींबा चडइ; वेला लामी, वस्तु वामी; एक हा दैव करइ, एक देवध्यान धरई । वाहणि पर्वत आफली भागउं, श्रीपतिइ हाथि पाटीउ लागउं। तेहनइ आधारितरतउ तरतउ बिहु दिवसि पारि आविउ, वनमाहि सरोवरि जल पीउ, फलभक्षण नीपजाविउ । आगलि जाता दीठउ योगी एक, मइ साचविउ नमस्कारतणउ विवेक । जोगी कहिउँ तूरहिइ एक देसु, बीजउ लेइसु।मई कहिउं दिइ,पछइ मुज निर्डनकन्हई जं देषइ तं लहिइं। जोगी बंधछोडणी विद्या देइ मस्तकि मागिउं । मई चीतवइउं, वली पूर्वभवपातक जागिउं । जोगी धायु पूठि, मइ नासिवा बांधी मूठि । नासतु ईणि नगरि आवी रात्रिइं गढतणइ पालि पयसी रहिउ, तलारके ग्रहिउ; तइ राषिउ, मोटउ उपगार दाषिउ। छासिइंकेरउ आफरु दासिइकेरु नेह ।। कंबलकेरु मोली षिसत न लागइ षेव ॥ . माहरी लक्ष्मी इहसरीषी हुई, तउ कहीइ। आभातणी छांह, कुपरिसतणी बाह; आढनउ तूर, नदीनूं पूर; ठाकुरनउ प्रसाद, माकडनउ विषाद; वहीनउ पडीगणउं, सूपडानउ उठीगणउं; दीवान तेज, मात्रेईनु हेज; दासीनु स्नेह, शर For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०९ पृथ्वीचन्द्रचरित्र दकालनु मेह; थोडा मेहनउ त्रेह, वहिल आवइ छेह । लक्ष्मीतणउं त न्याय नीपनउ, हिव वैराग्य ऊपनउ; तापसदीक्षा लेसु हिव, जिम हुइ सदासिव । ____ हिव समरकेतु राजाते वार्ता सांभली मनि वैराग्य पामिळ,राजापृथ्वीचंद्रप्रतिइं शिरु नामिउ।अनइ इसी बात कही, ताहरु पुण्य अद्भुत सही। तूरहिइ कोइ अदृष्ट देवता सानिध्य करइ, सर्व विघ्न हरइ । ताहरूं अद्भुत भाग्य, मुझनइ ऊपनु वैराग्य । विमासी जोयुं तउ असार, संसार। जिशिउं पीपल, पान, जिशिउं गजेद्रनु कान; जिशिउ संध्यानु राग, जिशिउ भमरीनु पाग, जिशिउ मांकडनु वैराग; जिसिउ वीजनु झबकु, जिसिउ पोइणिनइ पाति पाणीनउ टबकउ; जिशिउ समुद्रनु कल्लोल, जिशिउ धजनु अंचल, तिसिउ संसार चंचल । तुं एक कहिउं करि, माहरु राज्य अंगीकरी । हउं तापसी दीक्षा लेउसु, तप करिसु, संसार तरिसु । पृथ्वीचंद्रि तीहं बिहुप्रति कहिउं तुम्हे करुवउ धर्म, पणि नथी जाणता मर्म । सांभलउ वन ते वर्णवीइ जे वृक्षवंत, नदी ते जे नीरवंत, कटक ते जे वीरवंत, सरोवर ते जे कमलवंत, मेघ ते जे समावंत, महात्मा ते जे क्षमावंत, प्रासाद ते जे ध्वजावंत, वाट ते जे यूथवंत, हाट ते जे वस्तुवंत, घाट ते जे सुवर्णवंत, भाट ते जे वचनवंत, मठ ते जे मुनिवंत, गढ ते जे अभंगवंत, देव ते जे अरागवंत, गुरु ते जे क्रियावंत, वचन ते जे सत्यवंत, शिष्य ते जे विनयवंत, मनुष्य ते जे धर्मवंत, तुरंगम ते जे तेजवंत, हस्ती ते जे भद्रजातिवंत, प्रधान ते जे बुद्धिवंत, कर ते जे चायवंत, राय ते जे न्यायवंत, व्यवहारीया ते जे मयावंत, धर्मी ते जे दयावंत । अहो महाभागउ, हीयाने लोचने जागउ। जेतलूं अंतर राणी अनइ दासि, जेतलूं अंतर दही नइ छासि, जेतलूं अंतर मधुरध्वनि नइ धासि; जेतलूं अंतर समुद्र नइ कूया, जेतलं अंतर सोनईया नइ ख्या, जेतलूं अंतर बाप नइ फूया; जेतलूं अंतर नरेश्वर नइ आहीर, जेतलूं अंतर रूपा नइ कथीर; जेतलूं अंतर सुवर्ण नइ माटी; जेतलूं अंतर वारू भीति नइ त्राटी: जेतलं अंतर पटउला नइ छाटी; जेतलूं अंतर पडसूत्र नइ सूतली, जेतलूं अंतर जीवता माणस नइ पूतली; जेतलूं अंतर खड्ग नइ छुरी, जेतलूं अंतर तंदुल नइ बुरी; जेतलूं अंतर सूर्य नइ तारा, जेतलूं अंतर साकर नइ पारा; जेतलूं अंतर सीह नइ सीआल, जेतलूं अंतर प्रभात नइ वीआल; जेतलूं अंतर रूंगा नइ राग, जेतलूं अंतर सीबलि नइ साग; जेतलूं अंतर अलसला नइ नाग, For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः जेतलं अंतर हंस नइ काग; जेतलइ लूण नइ कपूर, जेतलइ षजूया नइ सूर; जेतलइ डाकिली नइ तूर, जेतलइ खाल नइ गंगापूर; जेतलइ साधु नइ चोर, जेतलइ हार नइ दोर; जेतलइ गजेंद्र नइ ससा, जेतलइ गुरुड नइ मसा; जेतलइ कोडि नइ सवा विशा, जेतलइ काविला घाट नइ गोहीस; जेतलइ मोटा वृक्ष नइ रोहीस, जेतलइ व्यवसाय नइ कुठाकुर सेव; तेतलूं अंतर अपरदैवत अनइ श्रीसर्वज्ञदेव। एह कारणि इसउ मनि निश्चियु आणिवउ । जिम श्री सूर्यपाषइ दिवस नही, पुण्यपाषइ सौख्य नहीं, पुत्रपाषइ कुल नही, गुरूपदेशपाषइ विद्या नही, हृदयशुद्धिपाषइ धर्म नही, भोजनपाषिइ त्रिपति नही, साहसपाषइ सिद्धि नही, कुलस्त्रीपाषइ घर नही, वृष्टिपाषइ सुभिक्ष नही, तिम श्रीवीतरागपाषइ मुगति नही । अनइ जिहां हिंसा, तिहां नही धर्मतणी प्रशंसा । जेह कारणि इसिउं कहिई । जिम विलंब विणसइ काज, कुठकुरि विणसइ राज, मार्जारिप्रचारि विणसइ छाज, अणबोलिई विणसइ व्याज; पडपि विणसइ दान, कुसंगति विणसइ संतान, स्वरपाषइ विणसइ गान, लूइं विणसइ मइपान, व्याधिई विणसइ वान, कुमरणि विणसइ अवसान; कुपंडित विणसइ छात्र, क्षयणि विणसइ गात्र; पीपलि विणसइ प्रासाद, सिंदूरि विणसइ साद; आकदूधि विणसइ नेत्र, तीडे विणसइ नीपनु क्षेत्र; चीभडी विणसइ कणकनु वाक, विषइप्रयोगि विणसइ रसवतीतणउ पाक; वरसालइ विणसइ शस्त्र, षयरी विणसइ वस्त्र; जिम कुव्यसनि विणसइ सत्कर्म, तिम जीवहिंसा विणसइ धर्म । राजा पृथ्वीचंद्र समरकेतु श्रीपतिप्रतिइ कहिइ छइ । सांभलु परमार्थ हिव, टालिउ मिथ्यात्वतणी टेव; आदर द्याधर्म नइ श्रीअरिहंत देव, करउ सद्गुरनी सेव; जिम टलइ पापकर्मतणा लेव । ए वार्ता सांभली तीह बिहुँरहिई मिथ्यात्वतणी भ्रांति टली, जैनदीक्षा लेवा हुई मनि रुली । तेतलइ भाग्ययोगि दैवसंयोगिइं चारण श्रमणमाहत्मा एक तिहां आविउ, नेहे सविहु तेहरहइं प्रणाम नीपजाविउ । पगि लागी, दीक्षा मागी; तीणि दीधी, वांछितवार्ता सीधी । तिवारपूठिई तेहे ऋषीश्वरे राजा मोकलावी विहारक्रम कीधु, नरेश्वरि आघउ पीयाणउ दीधउ। पहिलं पहुतु पद्मपुरि, लोक हर्ष पमाडिया भलीपरि । तिहां परमहंस प्रधान स्थापिउ, कर्णवारनु भार आपिउ।हिव राजा पृथ्वीचंद्र तेह नगरहूंता साते पीयाणे अयोध्या नगरी For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १११ पहुता, स्वयंवरि आव्या दीठा राय सवे गहगहता । राजा सोमदेवि साम्हई आवी महोत्सवि करी माहि लिया, भला ऊतारा दिया । तेतलई सूत्रहारे स्वयंवरमंडप नीपायु, पोयणिने पाने छायु । कर्पूर कस्तूरी महमहई, ऊपरि ध्वज लहलहई; चंद्रूआतणी विचित्राइ, पूतलीतणी काविलाई; थंभकुंभीतणा मनोहर घाट, पठइ भाट; रत्नमई तोरण नइ मोतीसरि, अलंकरिउ कुसुमतणे प्रकरि; वादिन वाजइं, मांगलिक्यगीत छाजई; आरीसा झलकई, चालतां स्त्रीना नेउर पलकइं । इसिइ मंडपि राययोग्य मांड्यां नामांकित सिंहासण, मागणहारनइं पगि पगि दीजइ वासण । तु राजासोमदेवदूत सांचरिया, ऊतारे फिरिया; राय सविहुं योग्य आकारण नीपजाव्या; मोटे आडंबरि समग्र नरेश्वर मंडपमाहि आव्या । जिस्या देवलोकसंबंधीया हुइं देव, तिस्या दीसइं सवि नरेश्वर सिंहासणि बइठा हेव । तिसिइ अवसरि राजा पृथ्वीचंद्र, जिसिउ साक्षात् हुइ इंद्र । इसिउ आवी स्वयंवरि सभामाहि बइठउ, सविहुं रायतणे मनि इसिउ शंकाभाव पइठउ । जं एउ सही कन्या वरिसिइ, अम्हारउं आविवउं किसिइ करिसिइ । राजातणइ मस्तकि छत्र, अनइ चमर ढलई पवित्र । राजा पृथ्वीचंद्र देषी सकललोक इसिउ विमासइं । जिम अक्षरमाहि ओंकार, मंत्रमाहि ह्रींकार, गंधर्वमाहि तुंबरु; वृक्षमाहि सुरतरु, सुगंधवस्तुमाहि कपूर, वस्त्रमाहि पाटणनउं चीर, वीरमाहि शूद्रकवीर, गढमांहि कालिंजरु, षाणिमाहि वइरागरु; द्वीपमाहि जंबूद्वीप, प्रदीपमाहि रत्नप्रदीप; पर्वतमाहि मेरुभूधर, जीवनहेतुमाहि जलधर; जिम हस्तीमाहि ऐरावण, मंडलेश्वरमाहि रावण; तुरंगममाहि उच्चैःश्रवा तुरंग, हरिणमाहि कस्तूरीउ कुरंग; धवलमाहि वृषभ, प्रशस्यदिशिमाहि उत्तरककुभ; अचलमाहि धूमंडल, क्षमावंतमाहि भूमंडल; जिम नागमाहि शेषनाग, रागमाहि श्रीराग; जिम ध्यानमाहि शुक्ल ध्यान, दानमाहि अभयदान; मंत्रीश्वरमाहि अभयकुमार प्रधान, पानमाहि नागरखंडउ पान; ज्ञानमाहि केवलज्ञान, विमानमाहि सवार्थसिद्धि विमान; गरूआमाहि गगन, पवित्रमाहि पवन, दर्शनमाहि जैनदर्शन; जिम देवमाहि इंद्र, ग्रहगणिमाहि चंद्र; तिसिउ सविडं रायमाहि दीसइ पृथ्वीचंद्र नरेंद्र। तिवारपूठिइं राजा सोमदेवि प्रतीहारपाहि कन्यारहइं तेडउ दिवराविउ, तउ सधव स्त्रीए धवलमंगलपूर्व कन्याहुइं मांगलिक स्लान कराविउं । अंगरूक्षण अनंतर कन्या सदश श्वेत कपड पहिरियां, आभरणे अंग उपांग अलं For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः करियां । किस्यां किस्यां ते आभरण । हार अईहार त्रिसर प्रालंब प्रलंब कटीसूत्र कांची कलाप रसना किरीट मुकुट पट्ट शेषर चूडामणि मुद्रिका तबक दशमुद्रिका केयूर कटक कंकण ग्रैवेयक अंगुलीयक अंगुस्थल हेमजाल मणिजाल रत्नजाल गोपुच्छक उरस्त्रिक चित्रक तिलक कुंडल अभ्रमेचक कर्णपीठ हस्तसंकली नूपुरप्रमुख आभरण जाणिवां । ईहमाहि स्त्री योग्याभरणि कन्या हुई अलंकृतगात्र, हुई रूपतणउ पात्र, मस्तकि धरियां सीकिरितणां छात्र । कन्यातणइ सिरि सिंदृरि भरिउ माग, मुखि तांबूलराग; आविडं नरविमान, तीणि चडी ते चाली देवांगनासमान । आगलि हुइ वादिवध्वनि अनइ गीत गान । ईणिइं परिइं सकललोकहुई आश्चर्य करती, हाथि वरमाला धरती; महोत्सवसहित कुमरि, पहुती मंडपतणइ द्वारि । ते देषी नरेश्वर सवे मकरध्वजइ मनाविया हारि, चीतवइ ए रंभा कि तिलोत्तमातणइ अवतारि । तेहतणा पाणिग्रहणतणी वांछा धरई, विविध चेष्टा करइं । एकि राय आपणा हीयानउ हार हलावई, एकि बांहतणा बहिरषा चलावइं; एकि रत्नमय दडा ऊलालई, एकि छुरी ऊछालई; एकि मित्रसिउं वार्तालाप मांडइं, एकि दृष्टिरहइं विनोद ऊपजावई, क्षणु एक षांडई, एकि संभालई कानि कुंडल, ईणिपरि विविध चेष्टा करई राजमंडल । तिसि समइ जि जोइवा आव्या आकाश देव अनइ दानव, पृथ्वीपीठि संख्या नही मानव; मिलिया सिद्ध अनइ किंनर, संख्या नहीं विद्याधर । हिव कन्या आभरणितेजि उल्लसती, रंभारहई हसती; स्वयंवरमंडपमाहि आवी, तु यशोधरा इसिइं नामिइं प्रतीहारीइं बोलावी । अहे कुमरि, अद्भुत गुण ताहरा संसारि, जेहे आकर्षिया हुंता आसमुद्रांतपृथ्वी. तणा राय मिलिया, इसिउं जाणिउं जेहरई तुं वरसि तेहना मनोवांछित पासा ढलिया, मनोरथ फलिया। हिव जोइ तुझ आगलि दसलक्षमगधदेसतणउ नरेश्वर, सहिजिइं अलवेश्वर; राजगृहनगरतणउ राजा मकरध्वज इसिइ नामि दीसइ । जेह राजातणइं कृपाणि राज्यलक्ष्मी वसइ, मुखि सरस्वती उल्लसइ; तूठउ दारिद्य हरइ, दीठउ आनंद करइ; रणांगणि गयवरतणी गुडि गांजइ, शत्रुभट भांजई; इस्यु भूपाल, एहतणइ कंठि घाति वरमाल । अथवा ए जोइ वाणारसीतणउ राउ, भांजइ वयरीतणउ भडिवाउ; ए सरागदृष्टि अवलोकी, जेहतणउ प्रताप प्रसिद्धउ त्रिहुं लोकि; जेहतणइ गजलि चालतइ हुँतइ इंद्रहुंइ सपक्षपर्वततणी For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र ११३ शंका नींपजई । जेहतणइ तरलतुरंगमि प्रसरइ हुंतइ वइरीरहतइ प्रलयकालोद्धतसमुद्रकल्लोलतणी शंका नीपजइ । इसिउ प्रचंडबल, अखंडभुजबल; अकल, सकल; कर्मचंद्रनामा नरेश्वर वरि, माहरूं कहिउं करि । अथवा विदर्भदेस कुंडिनपुरनगरीतणउ नरपति निहालि, जे विषमकालि; वहइ कर्णदानेश्वरतणउ अवतार, धनुर्धरपणइं हरइ अर्जुनतणउ कीर्तिप्राग्भार; जेहतणइ अतुल भंडार, प्रबलकोठार, झूझारतणउ नही पार; करइ शत्रुसंहार, करइ भट्ट कइवार; मलाइवार, महाउदार, कंठि वरमाल घाती ए मकरध्वज राजा अंगीकरि भर्त्तार। अथवा गौडदेस हंसपुरपाटणनु स्वामी सिंहरथ राजा जोइ, जीणि दीठइ आणंद होइ । जेह राजासंबंधीयइ कुंदमचकुंदकुमुदकेतकीकर्पूरधवलि कीर्त्ति मंडलि प्रसरतइ हुँतई नवी सृष्टि स्थापी, तं अंजनाचलपर्वतरहइ कैलासपर्वततणी पदवी आपी; यमुनातणइ स्थानकि कीघउ गंगाप्रवाहु, मित्र कीधा चंद्र नइ राहु; सरीषा कीधा हार नइ नाग, अंतर टालिउं बग नइ काग; ईश्वरहुई नीलकंठपणउं टालिउ, विष्णुहुई कृष्णपणउं पखालिउ; बलदेव बांधवपणउं उजुआलिउं । ईणिपरि जीणि ब्रह्मातणी सृष्टि फेरी, तेहनी किसी वात वषाणीयइ अनेरी । इसिउ अलवेश्वर, सिंहरथ नरेश्वर, करि तुं आपणउ जीवितेश्वर । ईणिपरि तीणई प्रतीहारीयइं राजा हरिकेतु सिंहकेतु मकरकेतु धूमकेतु पद्मरथ वीर्यबाहु सुवर्णबाहु शंखध्वज पद्मदेव पद्मानंद क्षेमंकर पृथ्वीधर सुबाहु रत्नांगद हेमांगद हेमरथ मणिरथ मणिशेषर रत्नशेखर चंद्रसोम सोमप्रभ सूरप्रभप्रमुख नरेश्वर वर्णव्या वषाण्या, पणि रत्नमंजरी कुंअरि मनइमाहि ना आण्या। हिव आगलि दीठउ राजा पृथ्वीचंद्र, निहालिउ तेहतणउ मुषचंद्र, ऊलटिउ आनंदसागर, मनि चीतवइ एउ सही गुणतणउ आगर । तिवारइं प्रतीहारीयई कहिउं हे कुमरि सांभलि, पुरा पूर्वई सगर चक्रवर्ति हूउ विख्यात वसुधातलि । जेह सगरचक्रवर्तितणइ चउरासी लाष हस्ती, जीहतणि गति महाप्रशस्ती; चउरासी लाष तुरंग, ऊललता जिस्या हुई कुरंग, चउरासी लाष रथ सहिजिइं सुरंग; चउरासी लाष नींसाण वाजइं, वयरीना भडवाउ भाजइ; अत्यंत अभिराम, छन्नू कोडि ग्राम; गाम घोडउं काढतां छन्नू कोडि साहण मिलई, छन्नू कोडि पायक कलकलई; चऊद् सहस्र संबाध, चऊद सहस्र अमात्य अत्यंत साधु; जेहनइ चऊद्रत्न, देवता करइ यत्न; नवनिधान, बहुत्तरि सहस्र नगर प्रधान; अन्यायरहई दाटण, अडतालीस सहस्र पाटण; जेहे वसई For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अनेक कुटंब, इस्या चउबीस सहस्र मटंब; जीहना वर्णनतणी कीजइ जेड, इस्या सोलसहस्र घेड; जेह चक्रवर्तितणइ सवाकोडि व्यापारी, रिद्धि अत्यंत सारी; चरणि रुणझुणइ नेउर, इस्या चउसहि सहस्र अंतेउर; विहितोल्लास, अट्ठावीसउ लाष पिंडविलास; बत्तीससहस्र राय, प्रभाति प्रणमई पाय; प्रत्यक्ष, पंचवीससहस्र यक्ष; वीससहस्र सोनारूपातणा आगर, नवकोडि ध्वजाधर, छत्रीस लाष दीवटीया उदार, त्रिनिसई साठि सूआर। एवंविध प्रचंडभुजदंड, साधित भरतक्षेत्रषट्षंड; निरुपमस्फूर्ति, अद्भुतमूर्ति, इसिउ हूउ सगरचक्रवर्त्ति । हिव भगीरथ राजा हूउ सगरतणउ पुत्र, जीणइं गंगा समुद्रि घाति राषिउ आपणउं चरित्र । तीणइं राज्य पालिउ अनेक कोडिवरस, तेहनइ पुत्र हुआ दस । तेहमाहिइ एकरहई कुंतल इसि नाम, तेह कुंतलरहई दीधउं मरहठदेसि ठाम। तेह कुंतलतणइ वंसि जयवंत जयध्वज देवचंद्र देवानीकप्रमुख राय हुआ, तेहना प्रघट्टक कुणइ वर्णवाई जूजुया। देवानीकतणउ पुत्र हूउ राजा पृथ्वीशेषर । जीणि पुहिठाणपुर पाटण थापिउं, स्वर्गतणउ दर्शन प्रत्यक्ष आपिउ । हिव मधुरवाणि, तेहतणउ राजा पृथ्वीचंद्र जाणि । एउ नरेश्वर, ऐश्वर्यगुणि साक्षात् सुरेश्वर, धैर्यगुणि मेरु महीधरु, दानिगुणि नवीन जलधर, गांभीर्यगुणि क्षीरसागर; निर्मलपणइं गंगाजल, सौम्यपणई शशिमंडल; रूपिगुणि अश्विनीकुमार, परकलत्रपरिहरणगुणि गांगेयतणउ अवतार; विवेकगुणि राजहंस, चातुर्यगुणि बृहस्पतितणीपरि लब्धप्रशंस; पृथ्वीभारवहणि शेषनाग, एहऊपरि धरि तु अनुराग, इहां छई ताहरउ लाग । घणउं किसिउं कहीई। एह राजा विक्रमाक्रांतक्षोणीमंडल, शौर्यश्रीवदनारविंदप्रद्योतन, सकलमहीपाललीलाललितशासन, पालितश्रीजिनशासन, तुज वरिवा योग्य छइ । ते रत्नमंजरी कुमारि प्रतीहारितणां इस्यां वचन सांभली अंगि रोमांच धरती, नेउरतणा झमझमकार करती; हर्षभर वहती, राजाढूकडी पुहती । लाज ठेली, कंठकंलि वरमाल मेल्ही; तत्काल जयजयारव ऊछलिया, लोक कलकल्या; विद्याधर पुष्पवृष्टि करई, भट्ट जयजयशब्द उच्चरइं; गंधर्व गीत गाई, वादिनीया वादिन वाइं; वापरइ धवलमंगल, हुई महामहोत्सव विपुल । इति श्रीअंचलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिकृते श्रीपृथ्वीचन्द्रचरित्रे वाग्विलासे तृतीय उल्लासः । For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्र चरित्र चतुर्थ उल्लासः हिव तिeिs अवसरि तेह राजालोकमाहि जे धूमकेतु राजा कहिउ तेहरहईं धूमकेतुदेवतण मंत्र स्फुरइ, तीणई जं चींतव तं करइ । धूमकेतुदेव अय्यासीग्रहमाहिल जांणिव । कवण कवण | अंगारक १ विकालिक २ लोहितांक ३ शनैश्वर ४ आधुनिक ५ प्राधुनिक ६ कण ७ कणकणक ८ कणक ९ वितानक १० कणसंतानक ११ सोम १२ सहित १३ अश्वासन १४ रुत १५ कार्योपग १६ कर्बुरक १७ अजकरक १८ दुंदुभक १९ शंख २० शंखनाभ २१ शंखवर्णाभ २२ कंस २३ कंसनाभ २४ कंसवर्णाभ २५ नील २६ नीलाव - भास २७ रुप्य २८ रुप्यावभास २९ भस्मक ३० भस्मराशि ३१ तिल ३२ तिलपुष्पवर्ण ३३ दक ३४ दकवर्ण ३५ काय ३६ वंध्य ३७ इंद्राग्नि ३८ धूमकेतु ३९ हरि ४० पिंगल ४१ बुध ४२ शुक्र ४३ बृहस्पति ४४ राहु ४५ अगस्ति ४६ माणव ४७ कामस्पर्श ४८ धुर ४९ प्रमुख ५० विकट ५१ विसंधिकल्प ५२ प्रकल्प ५३ जटाल ५४ अरुण ५५ अग्नि ५६ काल ५७ महाकाल ५८ स्वस्तिक ५९ सौवस्तिक ६० वर्द्धमान ६९ प्रलंब ६२ नित्यालोक ६३ नित्योद्योत ६४ स्वयंप्रभु ६५ अवभास ६६ श्रेयस्कर ६७ क्षेमंकर ६८ आरंभकर ६९ प्रभंकर ७० अरजा ७१ विरजा ७२ अशोक ७३ वीतशोक ७४ विप्स ७५ विवस्त्र ७६ विशाल ७७ शाल ७८ सुव्रत ७९ अनिवृत्ति ८० एकटी ८१ द्विजटी ८२ कर ८३ करिक ८४ राजा ८५ अर्गल ८६ पुष्प ८७ भावकेतु ८८ । इह अव्यासीग्रहमाहि धूमकेतु जाणिवउ । ११५ जिवारह पृथ्वीचंद्रराजातणइ कंठि वरमाला पडी, तेतलइ धूमकेतुराजाहुई रीस चडी। रोसें हुड विकराल, धूमकेतुदेवतातणउ मंत्र स्मरीनइ ऊछालिडं करवाल । ते खड्ग फीटी हूउ वेताल, जे उंचउ नवताल; कंठाविलंबित रुंडमाल, करतलि कपाल, बुभुक्षाभिभूत, जिसिउ यमदूत; कान टापरा, पग छापरा; आंषि कुंडी, पेटि कुंडी; आंषिं राती, हाथि काती; विकराल वेश, मोकला केश; हडहडाटि हसइ, घरामंडल धसइ; मस्तकि अंगीठउ बलइ, भैरवा जिम कलकलइ । इसिउं रूद्र रूप, केतलं वषाणीयइ तेहनूं स्वरूप । इसिउ वेताल देषी सहू भयभ्रांत हूउ । तेतलई धूमकेतुराजा ऊठी कन्या उपाडी रथि धातिवा लागउ । तेतलई राय राणा धसमसिवा लागा । तेतलई तेह जि वेतालनंतर अं For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः धकार प्रसरिउं । जीणइं अंधकारि प्रसरतइ हुंतइं अवर कवण लेखइ, कोई आपणी छांह न देषइ । गजेंद्र गलगलारवि जाणीयइं, रथचक्र चीत्कारपणइं जाणीयइं; चिंधपताका किंकिणीकाणि करी जाणीयई, तूर्य शब्दि करी जाणीयई, नींसाण द्रहद्रहाटि जाणीयई । इसिउ अंधकार बिपहर दिवसतणा, च्यारि प्रहर रात्रितणा; छप्रहर गर्भवास सरीषु प्रवर्तिउं । हिव हूउं प्रभात, फीटी राक्षसनी वात, टलिउ अंधकारव्रत; अदृश्य नक्षत्रपटल, गगन उज्ज्वल; निःशब्द घूककुल, निर्मल दिग्मंडल; आश्रितपूर्वाचल, हूउं रविमंडल; विहसई कमल, विस्तरई परिमल; वायु वाइं शीतल, प्रसन्न महीतल; जिस्या रातापारेवातणा चरण, तिस्यां विस्तरई सूर्यतणा किरण । इसिइ प्रभाति हुंतइ दीसई घोडा हाथीया, दीसई पूरिया साथीया; दीसई रायराणापरिवार, पुणि न दीसई रत्नमंजरी कुमारि सार । तिवारइं सोमदेव राजा हूउ सचिंत, परिवार हूउ शोकवंत; पृथ्वीचंद्र राय हूउ विछाय । स्वजनवर्गसंबंधीया राईराणा तिसिइ अवसरि उल्हाणा । ते मंडप रत्नमंजरीपाषइ नि:श्रीक दीसिवा लागउ । जिम लवणहीन रसवती, व्याकरणहीन सरस्वती; गंधरहित चंदन, घृतरहित भोजन; खांडरहित पकवान, मानरहित दान; छंदरहित कवि, शक्ररहित पवि; विवेकरहित मणु, वेदरहित ब्राह्मणु; स्वर्गरहित ऐरावण, लंकारहित रावण; शस्त्ररहित पायक, न्यायरहित नायक; फलरहित वृक्षु, तपोरहित भिक्षु; वेगरहित तुरंगम, प्रेमरहित संगम; नासिकारहित मुखमंडल, कर्णपालिरहित कर्णकुण्डल; वस्त्ररहित शृङ्गार, सुवर्णरहित अलंकार; तांबूलरहित भोग, प्रसिद्धिरहित प्रयोग; कंकणरहित बाहुदंड, पणिछरहित कोदंड; चरणरहित बाल, राज्यरहित भूपाल; स्तंभरहित प्रासाद, दानरहित मान; मुष्टिरहित कृपाण; ठउलीरहित बाण; अणीरहित छुरी, लोकरहित नगरी । जिम पाणीरहित सरोवर, तिम रत्नमंजरीपाषइ ते न शोभइ लोकतणउ व्यतिकर । ते सभा, हुई निष्प्रभा। रीझइ हुंते जेहरहइं दीजई मोतीतणा त्राट, तीह भाट बोलतां न जोइ कोइ वाट; जीह रीझइ चीत, ते कोइ न गाइ गीत; जेहे ऊपजई चित्र, ते न वाजई वादित्र; जीणं धूणीइ मस्तक, ते कोइ न वांचइ पुस्तक; जीहनउं वषाणीयई औचित्य, तिसिउं न होइ नृत्य । इसिइ दुःखि स्वयंवरमाहि पवर्ततइ हूंतइ पृथ्वीकंपि छूटउ । धूजइ थंभ, धूजई कुंभ; धूजइ रायराणा आसणपीठ, बइठे रहीइं नीठ; एकि For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र ११७ धूजतां पडईं, कायर रडई । इम धूजि विछूटी, पछइ सभाविचालि पृथ्वी फूटी । विवर नीपनुं । तेह ज माहि तेज प्रगट हुई। जोतां हृतां तेह विवरमाहि दिव्यरूपधारिणी सिंहासणि बइठी स्त्री एक दीसिवा लागी । तेह स्त्रीतणइ उत्संगि शोभमान तेजभारि, दीठी रत्नमंजरी कुमारि । सह आश्चर्यपूरित हूउं । तीणें स्त्री बिहं हाथि कुंअरि ऊपाडी बाहिरि मेल्ही, आपणपई माहि गई, पृथ्वी वली तिसीइ जि हुई । असमाधि फेडी, राजा कूंअरि आधी तेडी । तिवार लोकतणा मेला, वात पूछिवातणी नही वेला । हिव हर्षिह लोक कलकलिया, विशेषतु उच्छव ऊकलिया । राजा कुमारि अनइ पृथ्वीचंद्र सहित आवास पहुता । राय ऊतारे हुया । भोजन मंडपऊपरि धज लहलहिया, विवाहमहोत्सव गहगहिया । हुई धवलगान, नीपनां पकवान; केलवीयई धान, स्वजनहुई बहुमान; वापरई पान, जिमाडीयई जान | कामकाजना धणी पवटि बांधी हींडइ आकुला, मेलई चाउरी चाकुला । मेलइं आडणी, हिव भोजनतणी मांडणी । बइठी पांति, जिमणहार परीसणहार बिहुरहरं षांति । पहिलउं परीस्या फलावली खंडवाद्य पकान्न, पछड़ परीस्यां उपहा अन्न । तां विशालस्थालि, परीसी शालिदालि; घृततणी नालि, पाषलि शाकतणी पालि; ऊपरि कूर करंबा दहीं वापरई, ईणिपरि लोक भोजन करई । आचमन अनंतर दीघां कपूर मिश्र बीडां लक्ष्मीवंततणे सवे वस्तु संपजइ क्रीडां । हिव वेलाऊपरि राजापृथ्वीचंद्रहुई कराविडं मंगलस्नान, विवाहयोग्य पहिरियां वस्त्र प्रधान । सर्वांग शृंगार धरिउ, जाणे इंद्र अवतरिउ । गरुउ गजेंद्र आविउ, उत्तम स्त्री वधाविउ । गजेंद्र हूंतउं ऊतरी डाबइ पगि सिरावसंपुट चांपत माहि पहुतु । आचारविचार हुआ, चउरीसमाहि च्यारि मांगलिक वर्त्या, हाथमेलावणई दान प्रवत्। राजासोमदेवि वर हुई गजरथ तुरंगमदान दीघडं, राजापृथ्वीचंद्र महोत्सवसहित रत्नमंजरीतणडं पाणिग्रहण कीधउं । पछइ विशेषवंत उत्सवसंयुक्त ऊताराभणी चालिउ, सकललोक जोइवा मिलिउ । एकि वषाण पृथ्वीचंद्र भूप, एक वषाणइ रत्नमंजरीतणउं रूप; एकि वषाणइ भाग्य, एक वषाणइ सौभाग्य; एकि वषाणइ शरीरतणा शृंगार, एक वषाणइ परिवार; एक वषाणइ कहतणां कुल, एक वषाणइ बिहुंतणां शील निर्मल; एक वषाणइ लावण्य, एकि वषाणइ पुण्य । इसीपरि वषाणीतु स्थानकि आविउ, विश्वहुई आनंद ऊपजाविउ । राजासोमदेवि सविहुं रायहुई आवर्जन १२-४ For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः कीधी । कुण हुई घोड, कुण हुई हाथिउ; कुण हुई आभरण, कुण हुई पटकूल । ईणिपरि भक्ति कीधी । राय सवे आपणे आपणे नगरि पहुता । राजा पृथ्वीचंद्रहुई सोमदेवनरेश्वरतणइ आवासि नितु नवनवे गौरवि शिवमय सुखमय दिवस अतिक्रमई | अन्यदा प्रस्तावि राजापृथ्वीचंद्र अनइ राजासोमदेव राजसभां एकठा बइठा । किसी ते राजसभा । जीणि सभा पात्र नाचई, विद्वांस बइठा पुस्तक वांच; माल मल्लविद्या मांडिवा माचई, रागज्ञ रायहुई रंग रहाविवा राचई; सुहाबोला शुभ बोली स्वामीकन्हे पसाउ याचई, कूडा झागडू चिरकाल विवाद करी स्वयमेव पाचइ । इसी सभा, बिहुं नरेश्वरि करि वली वाधी प्रभा । तिसिइ अवसरि हर्षप्रसरि पहुतउ वनपाल, तीणि वीनविड श्रीसोमदेव भूपाल | स्वामिन् आपणइ उद्यानवनि श्रीधर्मनाथ तीर्थंकरदेव पाउ धारिया, जीणि परमेश्वरि त्रिभुवन आनंद वधारिया । हिव अवसार आविडं, श्रीधर्मनाथतणउं कहिवउं, चरित्र, महापवित्र । ईणि भरतक्षेत्रि प्रवरगुणि करी मनोहर, रत्नपुर नामिई नगर । तिहां ऐश्वर्यनिर्जितसुरेश्वर भानुनामा नरेश्वर । तेहतण पट्टराणी, सुव्रता इसिई नाभिई जाणी । अन्यदा प्रस्तावि तीणि राज्ञी आपण आवासि, मनतणइ उल्हासि, पल्यांक पउढी हुंती विपहर रात्रिसमई निद्राभरि वर्त्तमान हूंतीई चऊद महास्वप्न दीठां । किस्यां ते महास्वन । गज १ वृषभ २ सिंह ३ लक्ष्मी ४ पुष्पमाला ५ चंद्र ६ सूर्य ७ ध्वज ८ पूर्णकलस ९ सरोवर १० समुद्र ११ विमान १२ रत्नराशि १३ निर्धूम वैश्वानर १४ । इह चतुदशमहास्वनतणउं सांभलउं जूजूडं वर्णन व्यतिकर । राणी प्रथम दीठउ गजेंद्र । किसिउ गजेंद्र । चतुर्दत, विनयवंत, सप्तांगप्रतिष्ठित, गजेंद्रगुणि अधिष्ठित; विशालकुंभस्थल, विलोलकर्णाचल; उद्दंडशुंडादंड, तेजि करी प्रचंड, मदजलवासित कपोलमूल, भ्रमरकुल अनुकूल; परित्यक्तसकलदोष, उत्पादितसकलजननयनसंतोष, प्रधान, ऐरावणगजसमान; महाकाय, पर्वतप्राय; भद्रजातीय, अद्वितीय; जेहतणी गति प्रशस्ती, एवंविध दीठउ हस्ती १ । तर दीठउ वृषभ । किसिउ ते वृषभ । निर्जलधाराधरधवल, विकसित काशकुसुमसमुज्ज्वल, विशालककुद, चंदकिरणतणीपरि विशद; सूक्ष्मसुकुमाल रोमराजिविराजमान, स्निग्धकांतिदेदीप्यमान, अभंगश्यामलशृंग, सुंदरसमस्त अंगोपांग; विशुदंत, पंक्तिशोभित; प्रमुखप्रदेश, चारुचरणसंनिवेश; प्रसन्नवदन, दुग्धधौ For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पृथ्वीचन्द्रचरित्र ११९ तधवललोचन; जिसिउ चालतउ हुइ प्रासाद, अथवा कैलासपर्वतस्युं लिइ वाद । इसिउ अत्यंत शुभ, दीठउ षभ २। तउ राणीयइ दीठउ सीहु । किसिउ ते सीह । रूप्यपिंडपांडुर, अद्भुतप्रभाडंबर, रक्तोत्पलसुकुमालताल, तालूइ लागी आरक्त जिह्वा जिसि हुइ अशोकप्रवाल । विस्तीर्णकेशरसटाशोभितस्कंध, वज्रसारशरीरबंध; प्रवरपीवरप्रकोष्ठ, कमलदल रक्तोष्ट, तीक्ष्णदाढाविडंबितवन, पराक्रमतणउं सदन; पुच्छच्छटां पृथ्वी आस्फालतउ, पीतलोचनि भूमिकांति निहालतउ, मूषागतसुवर्णसमान फिरतां पिंजरनेत्र, शौर्यवृत्तितणउं क्षेत्र; अकल अगंजित, सबल अपराजित; अबीह, एवंविध दीठउ सीह ३ । तु दीठी देवी लक्ष्मी । ते किसी । हिमवंतपर्वततणइ शिवरि, महापखरि; पद्मद्रहमाहि योजनप्रमाणविमलकमलि संनिविष्ट, चंद्रसमानवदन, कमलसमानलोचन, निर्जितसूर्यमंडल, देदीप्यमानकुंडल; उदारप्रलंबितहार, अद्भुतशृंगार; दिग्गजेंद्रे अमृतकलसि करी अभिषिच्यमान, पगतलि चांपी रही नवनिधान; एवंविध सकलकल्याणपात्र, मनोज्ञगात्र, देवी लक्ष्मी दीठी ४ तद्नंतर अशोक चंपक नाग पुन्नाग प्रियंग पाडल सेवत्री जाइ जूही वेउल बउल श्रीदमणा मरुआ मंदार मुचकंद केतकीप्रमुखवनस्पतीतणे कुसुमि निष्पन्न भ्रमरभरभुज्यमानपरिमल एवं विध दीठउ मालायुग्म ५। तउ दीठउ चंद्रमा। ते किसीउ चंद्रमा।रात्रितणइ समयि उदयि करी, सकल ताप हरी; रोहिणीरमण यामिनीजीवितेश्वर अमृतमयमूर्ति उज्ज्वलधवल, प्रीणितचकोरकुल, एवंविध चंद्रमंडल ६। तउ दीठउ श्रीसूर्य । किसिउ ते सूर्य । प्रभाततणइ समइ जेह श्रीसूर्यतणइ उदइ प्रासादतणां द्वार ऊघडई, देवहुई पूजा चडइ; पंथ सवे वहई, मुनीश्वर धर्मकथा कहई, लोक वादविशेष लहई, मेघ मल्हारगाइइ । मांहि अनेक शतपत्र सहस्रपत्र लक्षपत्र कोटिपत्र सूर्यवंशी कोमल विहसई, चक्रवाक उल्हसइं; एवंविध प्रखरकिरणनिकर, दीठउ सहस्रकर ७ । तउ दीठउ ध्वज । किसिउ ते ध्वज । कृतालाद, कोई एक गरूउ प्रासाद, प्रखरि, तेहतणइ शिषरि; अखंड, सुवर्णमयदंड; तेजि करी अंकुश, कनकमय कलश; भली, रत्नमय पाटली; तिहां जिसी स्वर्गतउ अदाली, इसी फाली; निरुपम स्वरूप, तिहां सीहतणउं रूप । इसिउ घंटागणि गहगहतउ वाइ लहलहतु निर्मल नीरज, राणीइं दीठउ ध्वज ८।तउ दीठउ पूर्णकलस। किसिउ ते पूर्णकलस । सुवर्णघटित रत्नमय पडघीयां स्थापित, कंठि पुष्पमाला व्यापित; माहि अमृतपूरित घटजुगली For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः विराजमान, आम्रफलप्रधान; मांगलिक लक्ष्मीप्रदानतणइ विषइ अनलस, दीठउ पूर्णकलस ९। तउ दीठउं सरोवर, वृक्षतणउ परिकर; पालिउन विस्तर, देहरीनउ समहर, पाणीनउ आकर । चउकी चउषंडी झलहलई, परइ वाइ लहरि ऊच्छलई, ऊपर जाण भरीयई, षड कूइ तरीयइ। अमृतोपम नीर, दीठइं ठरइ शरीर; सारस कुरल कपिंजल कलहंस कलगलइं, तापतणा व्याप टलइं; राजहंस रमई, भ्रमर भमइं; चकोर चक्रवाक कूजई, जलकेलिनां कोड पूजइं; मोर वासई, सर्प नासई; आडि पंखीया तरइं, ब्राह्मण स्नान करइं; आस्तिक लोक नित्य सारई, कश्मल निवारइ; संध्याविधि साधई, अघमर्षणमंत्र आराधइं; धोतीयां धोयई, कमंडल ढोयइं । सिसिरगुणतणउ सहवास, जलदेवतातणउ निवास । देहरी दंडकलस आमलसारा झलकइ, जलहारिणीकुलवधूतणां नूपुर षलकइं; तडि कीर्तिस्तंभ दीसइ, हीयउं विहसइ ।बग थलइ जाइइ, मेघ मल्हार गाइइ । माहि अनेक शतपत्र सहस्रपत्र लक्षपत्र कोटिपत्र सूर्यवंशी सोमवंशी कमलवन विकाश पामई, देवता जिहां क्रीडा कामइं । एवंविध उदार, वृत्ताकार; अत्यंतसार; महामनोहर; दीठउं पद्मवनखंडमंडित सरोवर १० । तउ दीठउ समुद्र । किसिउ ते समुद्र ! अनंतजलु, अनंतकल्लोलकोटीसंकुल । माहि मत्स्य महामत्स्य नक्र चक्र पाठीन पीठ तिमिगिलितणां कुल पडइ, एकि ऊपडइ । लहरि वाजइं, पाणी गाजइं; दक्षिणावर्त्तशंखतणां यूथ फिरई, माहि अनेक प्रवहण सांचरइं । एकि पूरीई, एकि नांगरीयई, वाहण वाहणरहई एकि मिलितां आफलई । मोतीप्रवाला आगरथकां लीजइ, किहां एकइ मेघिइं पाणी पीजई। इसिउ आश्चर्यतणउ निलय, पृथ्वीपीठहुइ वलय; गुहिर गंभीर, अनंतनीर; समुद्र, राणीयइ दीठउ समुद्र ११ । तउ दीठउं विमान । किसिउं विमान । सुवर्णमयभित्ति, रत्नमयविच्छित्ति; प्रशस्यकलशि करी शोभमान, गगनलक्ष्मीहुई कुंडलसमान; जेहमाहि अनेक देव देवी रमलि करइं, एकि श्रति धरइं; एकि गीत गायई, एकि वादिन वाई; हीयइं हर्ष न माई । अनेककुसुमतणा प्रकर, चंद्रूआतणा निकर; मोतीतणी सरि लहकई, कपूरकस्तुरीतणा परिमल बहकई; ध्वजा लहलहई, मन गहगहई। एवंविध विबुधवधूजनक्रीडास्थान, तेजःपटलि निर्जितभानुप्रधान, दीठउं विमान १२ । तउ दीठउ रत्नरा. शि। किसिउ ते रत्नराशि । अनेक वज्र वैडूर्य चंद्रकांत जलकांत पुष्पराग पद्मराग मरकत कर्केतन चंद्रप्रभ साकरप्रभ प्रभानाथ अशोक वीतशोक अप For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १२१ राजित गंगोदक मसारगल्ल हंसगर्भ लोहिताक्षप्रमुखरत्नतणउ राशि विरचितविश्वप्रकाश देषइ राणी मनतणइ उल्लासि १३ । तउ दीठउ निधूम वैश्वानर । किसिउ ते वैश्वानर । कांतिभरकमनीय, प्रदक्षिणावर्त्तज्वाला करीय रमणीय; मधुघृतघनपरिषिच्यमान, कूर्चरहितदेवतामुखसमान; धूमरहित, तेजसहित; मांगलिक्यमूल, विश्वानुकूल; प्रवर, एवंविध दीठउ वैश्वानर ४१ । ए चतुर्दश स्वप्न देषी राणी जागी, निद्रा भागी, मनि विमासिवा लागी। मई तां ए चऊद सुमिणां दीठां, ईहतणां फल हुसिइ अत्यंतमीठां । तउ स्वामीकन्हइ जाइसु, निःसंदेह थाइसु । इसिउं विमासी कइ न बोलावी दासी; सखी महिली सवि पाली, राणी स्वयमेय चाली। हंसगति हरषिइं गहगहती, जिहां राजा तिहां पहुती जयविजय करती। रायहुई निद्रा टाली राजातणइ आदेसि भद्रासनि बइठी । स्वमवार्ता सांभली राजा फल कहिउं; राज्ञी हृदयि ग्रहिउं । तिवार पूठिइं आपणइ स्वस्थानकि आवी, पल्यंक बइसी सखीसहित धर्मजागरिका नींपजावी । प्रभाति नरेश्वरि सक्षामाहि स्वप्नपाठकपाहिइं विचार कहाविउ, दान देउ निमित्तीवर्ग अदरिद्र नीपजाविउ । संपूर्ण दिवस अतिक्रमे हूंते परमेश्वरतणउ हूउ अवतार, देवता करइं जयजयकार। इति श्रीअञ्चलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिविरचिते श्रीपृथ्वीचन्द्रचरित्रे वाग्विलासे चतुर्थोल्लासः । पञ्चमोल्लासः तत्काल मनतणी रली, छप्पन्न दिकुमारिका मिली।ते कवण कवण । भोगकरा १ भोगवती २ सुभोगा ३ भोगमालिनी ४ तोयधारा ५ विचित्रा ६ पुष्पमाला ७ आनंदिता ८ मेघंकरा ९ मेघवती १० सुमेघा ११ मेघमालिनी १२ सुवत्सा १३ वत्समित्रा १४ वारिषेणा १५ बलाहका १६ नंदोत्तरा १७ नंदा १८ आनंदा १९ नंवर्धिनी २० विजया २१ वैजयन्ती २२ जयंती २३ अपराजिता २४ समाहारा २५ सुप्रदत्ता २६ सुप्रबुद्धा २७ यशोधरा २८ लक्ष्मीवती २९ शेषवती ३० चित्रगुप्ता ३१ वसुंधरा ३२ इलादेवी ३३ सुरादेवी ३४ पृथ्वी ३५ पद्मावती ३६ एकनाशा ३७ नवमिका ३८ भद्रा ३९ सीता ४० अलंबुसा ४१ मितकेशा ४२ पुंडरीका ४३ वारुणी ४४ हासा ४५ सर्वप्रभा ४६ For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः श्री ४७ ही ४८ सुतारा ४९ चित्रकनका ५० चित्रा ५१ सौत्रामणी ५२ रूप ५३ रूपांसिका ५४ सुरूपा ५५ रूपवती ५६ एवं अधोलोकनिवासिनी ८ ऊर्ध्वलोकनिवासिनी ८ रुचकपर्वतचतुर्दिशिनिवासिनी प्रत्येक ८, ८, विदिसिनिवासिनी ४ मध्यरुचकनिवासिनी ४ ईणिपरि छप्पन्नदिकुमारिका आवी । तेहे सूतिकर्मतणी समग्ररीति नींपजावी। तदनंतर सौधर्मादिकदेवलोकइंद्ररहई आसनप्रकंप नीपनउ । पहिलउं इंद्रहुई कोप ऊपनउ । वज्र ऊलालिउं, ज्ञानदृष्टि निहालिउं । जाणिउं परमेश्वरतणउ अवतार, ऊलटिउ भक्तिभार । इंद्र मनि गहगहिउ, आसण छांडी उत्तरासंग करी गूडे थइ मस्तकि हाथ जोड़ी शक्रस्तव कहिउ । इंद्रि आसणि बइसी हरिणगमेसी देव बोलाविउ, तत्काल आविउ । इंद्रतणइ आदेसि सुघोषा घंटा आस्फालीनइ देवलोकि जणाविउं । इंद्र लक्षयोजनप्रमाणि पालंकि विमाने चडी पंचरूपि परमेश्वर लेउं मेरुपर्वति आविउ । चउसठि इंद्र मिलिया, देवसमूह हर्षि कलकलिया। आठ सहस्र चउसहि आगला कलसि करी निर्मलजलि भरी स्नान कीधउं । तदनंतर अंगरूक्षण करी विलेपन २ वस्त्रयुगल ३ वासपूजा ४ पुष्पारोहण ५ माल्यारोहण ६ वर्णारोहण ७ चूर्णारोहण ८ ध्वजारोहण ९ आभरणारोहण १० पुष्पग्रह ११ पुष्पप्रकर १२ अष्टमंगलकरण १३ धूपोत्क्षेप १४ गीत १५ नृत्य १६ वादित्र १७ सत्तरभेदपूजातणउं करणीय सीधुं। तीणि अवसरि गगन गाजियां, इगुणपंचासभेदि वाजिब वाजियां । कवणकवणपरिहं । उद्धमंताणं शंखाणं संगीयाणं खरमुहीयाणं परिपरियाणं अहम्मंताणं पणवाणं पडहाणं अप्फालिजंताणं भंभाणं हारंभाणं तालिजं. ताणं भेरीणं झल्लरीणं दुंदुभीणं आलिप्पंताणं मुखाणं मुत्तिगाणं नदीमुत्तिगाणं घटिजंताणं कच्छभीणं चित्तवीणाणं आमोडिजंताणं झुकाणं नउलाणं छिप्पंताणं दुंदुक्कीणं चिंषाणं वाइजंताणं करडाणं डिडिमकाणं उत्तालिजंताणं तलाणं तोलाणं कंसतालाणं घटिजंताणं रिक्किसिकाणं सुंसरिकाणं दुंदुक्कीणं फूमिजंताणं वंसाणं वेणूणं एवमाईणं एगूणवन्नाए पवाइजंताणं । ईणि युक्तिई, भावभक्तिइं, आत्मशक्तिई, परमेश्वरहुइं स्नानमहोत्सव करी पुनरपि पंचरूपिई इंद्र होई देव मातातणइं समीपि मुंकिउं । बत्रीस वत्रीस स्थाल सिंहासनादिक बत्रीसकोडि सुवर्णरत्नतणी वृष्टि करी, स्वामीतणइ दक्षिणहस्तांगुष्ठि करी अमृत संचारी, वस्त्रयुगल कुंडल श्रीदाम मेल्ही इंद्र स्वस्थानकि पहुतु । For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १२३ हिव प्रभाति दासीमहिलीए राउ वधाविउ, स्वामी तम्हारे पुत्र आविउ । राजा वधामणी दीधी, नगरमाहि सर्व महोत्सवतणी पद्धति कीधी। अलंकरिउ प्राकार, शृंगारियां प्रतोलीद्वार । मंच अतिमंचतणी रचना हुई, स्वर्गपुरीतणी शोभा लई। ध्वजपताका लहकई, पुष्पपरिमल बहकई । नाचई पात्र, राजाभवनि आवइं अक्षतपात्र । सोमाई भणतां आवई छात्र, लोक अलंकरई आभरणि गात्र, उत्सव करिवा एहइ ज वात । तीणि वेलां न ऊऊई कोरण, बांधीयई तोरण; बांधीयइं वंदरवाल, उत्सव विशाल; गुलघीउ लाहीयई, मन ऊमाहीयइ । ईणि युक्ति जन्ममहोत्सव हुआ । नामगरणतणइ अवसरि माताहुई डोहलइ धर्म बुद्धि हुई। एहभणी धर्म इसिउं नाम दीधउं, परमेश्वरि रमलि करतां बालपणुं लीघउं, यौवनवयि राजकन्यातणउ पाणिग्रहण कीधउं । अढई लाष वरस कुमारपणउं पाली पंचासबरस राज्यलक्ष्मी पामी, पछइ विरक्तियुक्त हूउ स्वामी । नवविधलोकांतिकदेवतणी वीलतीलगइ सांवत्सरिकदान दीधउं, पछइ महोत्सव सहित चारित्र लीधउं। बि वरस छद्मस्थ काल अति क्रमी, केवललक्ष्मी पामी; विहारक्रम करई, भव्यलोक तारइं। हिव राजा पृथ्वीचंद्र अनइ सोमदेव उद्यानपालकरहइं साढाबारलाख सुवर्णदान देई समस्तपरिवारसाथिई लेई परमेश्वर नमस्करिवा सांचरिया, सकललोक ऊलटि धरिया। पृथ्वीरहइं अलंकरण, दीठउं स्वामीतणउं समोसरण । किसिउं ते । समग्र देव आवई, समोसरण नींपजावई । तां पहिलं वायुकुमारदेवतानिर्मित संवर्तक वायु विस्तरइं, ते तृण काष्ठ कचवर हरई, आकासि मेघपटल पसरई, गंधोदति वृष्टि करई, फूलपगर भरइं । गरूअउं रत्नमय पीठ बाधीं ऊपरि जानुप्रमाण पंचवर्ण कुसुम वरसई, चिहुं दिसि दिव्य परिमल विलसई। रत्नमय सुवर्णमय रूप्यनय त्रिन्नि प्रकार रूपि करी उदार, अनेक प्रकार; मणिरत्नसुवर्णमय कउसीसां सदाकार, च्यारि प्रतोलीद्वार । तिहां बिहु पासे उच्चैस्तर सुवर्णमय स्तंभ, ऊपरि मणिमय कुंभ; इंद्रधनुषमानमूरण, रत्नमय लोरण; प्रत्यक्ष जिसी मांगलिक्यनी पालि, इसी चंदवालि । अनेकि विचित्र, विशाल छत्र; उदारस्वरूप, कनकमय पूतलीतणां रूप; जेहे लिषित सिंह शार्दूल गज, इस्यां निर्मल नीरज, पंचवर्ण ध्वज । इस्या समोसरणविचालि, मणिबद्धपीठि विशालि; सकलमांगलिक्यमुख्य, गरूउ अशोकवृक्ष; जिसिउ प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष, इसिउ बारगुण चैत्यवृक्ष । तेहतणी छायां रत्नमय For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः सिंहासण, जगन्नाथहुई बइसण । तेजिइं जोई सकीयइ नीठ, इसिउं रत्नमय पादपीठ; जिस्यां विकसित सहस्रपत्र, तिस्यां पनर छत्रातिछत्र; अमर , देवहुई ढालई चमर; अधरीकृतआदित्यमंडल, तीर्थंकरलक्ष्मीकर्णकुंडल; पूठई झलकई भामंडल । जेहतणइ दर्शनि मिथ्यात्वपटल टलई, इसिउ आगलि धर्मचक्र झलहलई; दिव्य दुंदुभि वाजइ, तीणि निर्घोष गगनांगणि गाजई, परतीर्थिकतणउ भडवाउ भाजइ । सहस्रप्रमाणयोजन इंद्रधज लहलहई, धूपतणा परिमल महमहई, वादिवतणी कोडि दुहद्रुहई। मनुष्यतणी कोडि आवई,मनि रहरहा। ईणि इसिइ समोसरणि परमेश्वर जगदीश्वर नवसुवर्णकमलि पाय स्थापतर, पूछिया ऊतर आपतु; प्रभाई दसई दिसि व्यापतउ, भविकलोकहूई पाप मूंकावतउ, पूर्वदिसितणइ द्वारि पइसइ, पूर्वाभिमुख सिंहासनि बइसइ चतुर्मुख होइ, भविकसंमुख जोई । संपूरी, बारपरिषदपूरी; मिथ्यात्वमानमूरी, पापपटलचूरी, सर्वसत्त्वसाधारिणी, अमृतानुकारिणी, मधुरवाणी; लाभ जाणी; वखाण करइ, धर्म मार्ग विस्तरइ। हिव बेउ नरेश्वर मनि गहगहता, समोसरणिमाहि पहुता। श्रीधर्मनाथहुइं प्रदक्षिणा देउ, आगलि बइठा नरेश्वर बेउ । तिवारे राजापृथ्वीचंद्रि आपणई विशेषवंतइं रूपि लावण्ये करी देवदानवइंद्रहुई आश्चर्य कीg, श्रीधर्मनाथि तीर्थंकरि उपदेश दीघउ । किस्यु ते।। सदशजन्म गृहिणी स्पृहणीयशीला लीलायितं वपुषि पौरुषभूषणा श्रीः । पुत्राः पवित्रचरिताः सुहृदोऽपदोषाः स्युर्धर्मतः खलु फलानि पचेलिमानि॥१॥ अहो भव्य जीव ए इस्यां धर्मनां फल जाणिवां । कवण कवण । पहिलं तां उत्तिमकुलि अवतार, ए धर्मतणां फल सार । जइ जीव नीचकुलि अवतरइ, तु किसिउ पुण्य करइ । एह विश्वमाहि एक माछीतणां कुल, भीलतणां कुल, कोलीतणां कुल । ईणिपरि थोहरी आहेडी वागुरी षाटकी मद्यप घांची चोर वेश्या बाबरी मेय डुंब पाणपेरणीयांतणां पापतणां कुल जाणिवां । जीव एहे कुले अवतरी पाप करी नरकि जाइ, लाधु मनुष्यजन्म निरर्थक थाइ। पुणि जीवहुई उत्तिम कुल दुर्लभ । कुण तेउ उत्तम कुल । वंसाणं जिणवंसो सव्वकुलाणं च सावयकुलाई । सिडिगई य गईणं मुत्तिसुहं सव्वसुक्खाणं ॥२॥ For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्र चरित्र १२५ वंश ते प्रशंसि जेहे जिणतणड अवतार, वंशतणउ कवण विचार । इक्ष्वाकुवंश सूर्यवंश चंदिल चाहआण सोलंकीवंश वालावंश वाघेला वाघरोलावंश गुलवंश गुलबरवंश सोभटा भाटीया सीदा वांदा दाहिणमा कच्छवाह heart हृणवंश हरीयड शकट सिलार धान्यपालवंश अनंगपाल राजपाल दधिपाल कलाप परमार मोरोवंश यादव सैंधव निकुंभ गुहिलउत्त डोडीवंश डोडीयाणवंश मंकूआणा खइरवंश सोलणवंश बोडाणवंश दहीयावंश प्रमुख वहीयावंश प्रमुखवंश जाणिवा । अनइ ब्राह्मणादिक कुलविशेष ज्ञातिविशेष जाणिवा । जिम कलिकाल प्रवर्त्तमानि चउरासी ज्ञाति बोलीयई । किसी ते ज्ञाति । श्रीश्रीमाली उसवाल वाघेरवाल डींडू पुष्करवाल डीसावाल मेडतबाल भाभू सूराणा छत्रवाल दोहिल सोनी षडवड षंडेरवाल पोरूआड गूजर मोट नागर जालहरा षडाइता कपोल जांबू वायडा वाव दसउरा करहीया नागदहा मेवाडा भटेउरा कथरा नरसिंहउरा हारल पंचमवंश सिरबंडला कमोह रोतकी अगरवाल जिणाणी बांभ घांघ पाल्हाउत उचित बगडू अहिछवाल श्रीres वाल्मीकि टाकी तेलटा तिसउरा अठवग्री लाडीसाखा बधनउरा सुहडवाल बीधू पद्मावती नीमा जेहराणा माथुर धाकड पल्लीवाल हरसउरा ferrer गोला गहिबरिया लोहाणा भाटीया नागउरा आणंदउरा सतला कडकोलापुरी रायकवाल पेसीया पेरूया गोमिश्री नारायणा टींटू गजउडा गोषरूआ अजयमेरा कंडोलीया कायस्थ सगउडा सीहउरा जेसवाल नादेवा जाइलवालचावेल | एणि सविहुं ज्ञातिकुलवंशमाहि वषाणीह सुश्रावककुल । जीण सुश्रावकतणइ कुलि जीववधु टालीयइ, जीवदया पालीयइ; मिथ्यात्व परिहरी, यह, सम्यक्त्व अंगीकरीयह; पाणीं भलीपरि गालीयह, इंधण सोधी ज्वालीयह; अथां न राषी, अनंतकाई न चापीई; चोरी न कीजइ, सुपात्रि दान दीज - सुतीर्थ वित्त वावी लाभ लीजह; आलोअण लेई पाप घोईइ, परिग्रहप्रमाणि पुण्यवंत होईइ; उभयकाल सामायक त्रिकाल देवपूजा समाचरीह, पुण्यभंडार भरीइ; बावीस अभक्ष बत्रीस अनंत काय टालीयइ, आठमि चऊदसि पूनिम अमावास चउमासी पजूसण पर्व पालीयई, पुण्यमार्ग उजूआलीयइ । इसु श्राanars कुल, तर पामीयइ जइ पोतड़ पुण्य हुइ विपुल । उत्तिमकुलि लाइ हुत गृहस्थ रहई जय हुइ । कुकलातणउ संयोग, तु हुइ पुण्यतणउ वियोग । किसी ते कुकला । जे चालती कउयछि, साची अलछि; आत्मकुटुंबजकि, परचित्तरंजक; कपटविषइ परिष्ट, अतिहिं अनिष्ट; बोलति छउड ऊतार इ, रीसई छोरू मारइ; जीभई जब छोलइ, अलविहं असंबद्ध बोलई, बगाई करती १२-५ For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ प्राचीन गूर्जर काव्यसङ्ग्रहः गोदड fres, घरि वित्रोड करो बाहिरि मिलइ, बोलावी बिसई हाथ ऊछलइ; फूफूती सापिणी, चालती चीत्रिणी; पुण्यद्वारतणी आगल, नगरतणी भागल । किसि कही । जिसी मिरीतणी ऊगदि, जिसिउं चालतडं पलेवणउं; जिसी दाधज्वरतणी बहिनि, इसी संतापकारि तु संपजइ नारी, जड जीव पापकर्म भारी | अन तु हुइ सुकलत्र, जइ पोतइ हुइ पुण्यपवित्र । किसी ते । सुशील सुलील सदाचार सत्यवंती विनयवंती विवेकवंती पुत्रवंती बोलवती सुजाणि मधुरवाणि देवगुरुतणइ विषइ भक्त, पुण्यतणइ विषइ आसक्त; सहजि सलावण्य, इसी सुकलन् तु संपजइ जइ पोतइ पुण्य । अनइ जं शरीरि संपजई लीलावंतपणं तं पुण्यतणउं प्रमाण । जं मधुरगति चालइ, पापबुद्धि पालइ; सहजि विचक्षण, शरीरि बीसलक्षण; अलिकुलकज्जलश्यामल केशपाश, अष्टमीचंद्रसमान भालस्थल, कामदेवकोदंडाकार भ्रूभंग, पूर्णचंद्रसमान वदनमंडल, आदतलसमान कपोलयुगल; मौक्तिकश्रेणिसमान दशनमाल, वक्षस्थल विशाल; प्रचंड भुजदंड, इसी रूपलक्ष्मी अखंड, तु संपजइ जइ पोतइ प्रचुरपुण्यपिंड | अनइ जे द्रव्य ऊपार्जिवातणइ कारणि एकि लोक देवदेवता आराधई, मंत्रविद्या सधरपणई साधई; राजसभा बुद्धिवंत भणी बइसई, रणक्षेत्रि पहिलां पइसइ; व्यापारकला केलवई, धूर्तपणई भलारहहं भोलवई: जलमार्ग स्थलमार्ग आदरि आक्रमई, भूमंडलि भूजाबलि भमई; जोगीपूठिइं लोभि लुबधा लागई, एक मोटा ठाकुर मागई; एकि पाला पुलता पंथि चालई, एकि हा दैव भणी व रागरि घाउ घालई; एकि हल पेडई, उलग करई लागा ठाकुरकेडई; रसकारणि रसकूपिका पडई, एक कलकलतई समुद्रि चडई; एकि त्रिन्निसई साठि क्रियाण वहुरई, पिरायां कवित्व वहरई; कष्ट सहई विपुल, पुणि लक्ष्मी तु पामई जइ पोतई हुइ पुण्य परिघल; घरि सुवर्ण मणिरत्न प्रवाल, प्रधान मुक्ताफल, गजरथतुरंगमादिक जाणिवा लक्ष्मीता विलास सकल । हिव जं संपजइ सत्पुत्र, एहू पुण्यतणउं चरित्र । एकई तणइ एकि कुपुत्र हुई जे बालपण पालीई लालीई पणि जेतलई यौवनभरि जाई, तेतलई मावीत्रसाम्हा थाई; कृत्य अकृत्य न गिणई, वडांतणां वचन निहणई; मावी - साम्हां नीठुर बोल भणई, अहंकारि हणहणई; लक्ष्मीमदि कुपात्रि वरसई, कुस्थानक विलसई, पिराई भूमि ग्रसहं चाहए वचनि उल्लसई, रूडी वात कहतां साम्हां धसई; स्वाननी परि भसई, अपरहुई हसई; पापकरी ऊससई, धर्मवार्ता हिय न वसई; इस्यां जं पुत्र अभक्त अजाण, ए पापतणूं For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र । १२७ प्रमाण । अनइ जं पुत्र विवेकीया विचारवंत, सहजिइं संत सौभाग्यवंत, गरू आंप्रति भक्तिवंत गुणवंत; देवगुरुधर्मतणइ विषइ तत्पर, सुपुत्र पामीयइ जइ पोतइ पुण्यतणउ भर। हिव तु पामीयइ सुमित्र उत्तम, जइ पोतइ पुण्य हुइ निरुपम । एक जीव सहजई दुर्जनप्रकृति, पापतणइ विषइ मोटी आकृति; मुहि मीठउ, चित्ति विणठउ; पिरायां छलछिद्र जोइ, विणास विण विगोई; उपगारिकेतलईन लीजई, परप्रशंसा मनमाहि षीजइ; आपणपउं घणुं देषइ, अवर नहीं किसिइं लेखड़ा सजन संकटि पाडइ, परदोष ऊघाडइ; राउलइ वानइ, देवगुरु अपमानई; मूर्तिवंत अधर्म, बोलइ पिराया मर्म । जिसिउं विषवृक्षनउं वन, इसिउ जाणिवउं दुर्जन । एकि जीव, सहजिइं उत्तमस्वभाव, पुण्यऊपरि भाव; उपगार करई, परमर्म हीयडइं धरइं; परदोष न प्रकासई, असत्य न बोलई हासइं; उन्मार्गि न चालई, पापवार्ता टालई, गुरूपदेश झालई, धर्मतउ न हालई; नवे क्षेत्रे वेवई धन, जिसिउ बावनुं चंदनु; इस्यां जीहनां सीतल मन, इस्या कहीयइ सजन । संपजइ सुमित्र सज्जन सुजाण, तं पुण्यतणउ प्रमाण । इस्यां धर्मफल देषी, प्रमाद ऊवेषी; आलस परिहरी, आदर करी; पुण्यतणइ विषइ भावनासहित लाभ लेवउ । जेह कारणि इसिउं कहीइ । जिम प्रासाद शोभइ ध्वजाधारि, जिम हृदय शोभई हारि; जिम गृह शोभई उत्तिम नारि; जिम मस्तक शोभइ केशप्राग्भारि, जिम कर्ण शोभइ स्वर्णालंकारि, जिम शरीरि शोभइ शीलशृंगारि; सरोवरि शोभइ कमलि, पुष्प शोभइ परिमलि; मुष शोभइ निर्मलि नेत्रयुगलि, रात्रि शोभइ चंद्रमंडलि; विवाह शोभइ कूरि, उत्सव शोभइ तूरि, नदी शोभइ पूरि; जिम सम्यक्त्व शोभइ प्रभावना, तिम धर्म शोभइ भावना । एह कारणि भावनासहित पुण्यवंति लाभ लेवउ । जिसिइं पुण्यप्रभावि सकलश्रेयकल्याण संपजई। इसिउ उपदेश सांभली, मनतणी रुली, परमेश्वरप्रतिइं बिहुं नरेश्वरि वीनती कीधी वली । हे जगन्नाथ ! संदेह भांजिवानई ऊभउ हाथ; तुझ टाली अपरि संदेह न भाजइं, संदेहभंजन बिरुद तूंरहई छाजई । जेहि कारणि इसिउं कहीइं। समुद्रि उलंघीयइ भारंडि न मसइ, गजेंद्र विडारीयइ सीहि न ससइं; विषधरतणां विष जीरवियइं गुरुडि न कूकडइं, वृक्षसिहरतणां फूल लीजई तडवडइं न ढूंकडइं; संग्रामभूमिइं भिडीयइ राउति न दयामणइ, भंडारीतणा भार झालियइ अभीष्टि न अलषामणइं; पर्वततणां टोल ताणीयई For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नदीतणइ पूरि न वाहलई, रायतणइ मनि रंगि रहावीयई मधुस्वरि न पाहलइं; समुद्रि सेतुबंध बांधीइ पर्वते न काकरइं; दृढगढतणी पोलि भांजियइ गजेंद्रि न बाकरई, याचकजननां दरिद्र टालीयइं दातार लक्ष्मीवंति न आजन्मदुस्थि; सकलसंदेह भांजीइ केवलीए न छनस्थि । तेह कारणि तउं हे स्वामिन् अम्हारा संदेह टालि, एक संदेह ऊपनउ सरोवरतणि पालि; एक ऊपनउ अटवीठामि, एक संग्रामि; एक स्वयंवरि, ए सवे संदेह अपहरि । इसी बीनती सांभली जगनाथ कहइ छइ अहो नरेश्वर सांभलउ । हिव कहीइ छइ पूर्वभव, जिसिउ हूउं अनुभव । ईणइ क्षेत्रि भृगुकच्छनामिई नगर, जिहां नर्मदा नदी प्रवर; प्रौढ धवलगृह, लोक पुण्यविषइ सस्पृह; जीणि नगरि महाधर मंडलीक सेलहत्य वरवीर राउत डबइत भाथाइत ऊडणाइत फलहकार छुरीकार नलीकार कुंभकार सींगडीया साबलीया जेठी यंत्रवाक्षा भंडारी कोठारीप्रभृति राजलोक वसई, सर्वज्ञभवन देषी मन उल्लसइ । जिहां पद्मश्रीनामि सरोवर, महामनोहर, जिहां राज्य पालई द्रोणनामा नरेश्वर । तेहतणइ सागर अनइ पूरण इसिइ नामि पवित्र चरित्र, वि पुत्र । ते बेउ नर्मदानदीमाहि बेडी चडी मत्स्य विणासि वाप्रवर्तिया । तिसिइ अवसरि मत्स्य एक साम्हउ जोई तीन तिइं बोलिउ। रे दुराचारउ म करउ पाप, नरकि इस्यां हुसिइ संताप, नहीं छूटउ करताइ विलाप; जइ न मानउ तउ पूछउ आपणउ बाप । ए वात सांभली बेउ कुमर भयभ्रांत हुआ । तिसिइ नदीनइ कठि एक दीठउ मुनीश्वर । तेहे बेडीतउ ऊतरी नमस्करिउ । वच्छउ तुम्हे म्हारा पौत्र, हूं पालउं चारित्र; तुम्हे करउ अक्षत्र । तीणइं सोनई किसिउं कीजइं जीणइं त्रूटइं कान, तीणई उपाध्यायि किसिउं कीजइं जीणइं चूकई ज्ञान, तीणइं ठाकुरि किसिउं कीजइं जीणइं पामीइ पगि पगि अपमान; तीणई धर्मि किसिउं कीजइ जीणई वाधइ मिथ्यात्ववाद, तीणइं वयरई किसिउं कीजई जीणि पाछइ ऊपजइ विषवाद, तीणि मित्रि किसिउं कीजई जीणि थाई प्रसाद; तीणि घरि किसिउं कीजई जेहमाहि फूफूड साप, तीणइं स्त्रीइं किसिउं कीजई जेहतु नितु संताप, तीणइं रामतिइं किसिउं कीजई जीणि कराइ पाप । वत्स मुझ भक्त व्यंतरि, मत्स्यमुखि अवतरी; तुम्हे जगाडिया, पुण्यमार्गि लगाडिया । हिव पाप परिहरउ, पुण्य करउ । तीणइं ऋषीश्वरि पुण्यतणी परठ कही, तेहे बिहुं ग्रही । आव्या आपणइ घरि, करइं पुण्य नवनवीपरि; दिइं दान, धरइं अरिहंततणउं ध्यान; करइ सुगुरुभक्ति, जाणई विवेकयुक्ति; करावई प्रासाद, For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृथ्वीचन्द्रचरित्र १२९ पडावई सत्कारि साद; पालइ सम्यक्त्व, जाणइ नवतत्त्व; करइं सामायक सार, स्मरइ पंचपरमेष्ठि नमस्कार, बे कुमार इसीपरि भरइं पुण्यभंडार । अन्यदा प्रस्तावि द्रोणि राजां तीह बिहुँहुइं राज्य दीधउं, आपणपइं राज्ञी. सहित चारित्र लीघउं । निर्मल चारित्र पाली भावविशेषि पातालि बलीन्द्र अवतरिउ, राणीइं इंद्राणि थईनइ तेहू जि अणसरिउ । हिव पूरणतणइ पद्मश्री इसिइ नामि हुई कलत्र, जे महासचरित्र । ते सागर पूरण पद्मश्री पुण्य करी पहुता देवलोकि, सौख्य भोगवी अवतरिया मनुष्यलोकि । सगरतणउ जीव हउ तु सोमदेव नरेन्द्र, पूरणनउ जीव हूउ पृथ्वीचंद्र। पद्मश्री ईहां रत्नमंजरी अवतरी। पूर्वतगडं धर्म फलिउ, सर्वसंयोग मिलिउ। बिहुं नरेश्वरि ईणिपरि उपदेश सांभलिउ, श्रीधर्मनाथतीर्थकरि वली कहिउं। हिव सांभलउ जे पूछिया संदेह, तेहनु कीजइ छेह। जिसिंइ समइ रत्नमंजरी सरोवरतणी पालिइं पितातणइ उत्संगि बइठी, कुणरहइं देवातणी चिंता पइठी; तिसिइ अवसरि, बलींद्रदानवेश्वरि; ज्ञानिप्रमाणि, पूर्व जाणी, पुत्रपृथ्वीचंद्रनिमित्त राषिवा रत्नमंजरी हंसरूपिइं अपहरी आपणइ कन्हइ आणी । छमास पातालि स्थापी, पछइ अवसरि पाछी आपी। राजा पृथ्वीचंद्रहुइं स्वप्न दीधउं, अटवी अनइ संग्रामांगणि महासान्निध्य कीधउं । अनइ स्वयंवरि जेतलइ धूमकेतु राजां वेतालांधकार विस्तारीनइ रत्नमंजरी रथि घाती, तेतलई बलींद्रतणी इंद्राणी ते मेल्हिउ निपाती।छ प्रहर पातालि राषी, प्रभाति प्रकट करी दाषी; उहे दिषाडिउ पूर्वभवस्नेह, एतलई टलियां सवे संदेह । अहो पृथ्वीचंद्र ताहरूं विशेषवंत छइ भाग्य, अद्भुत सौभाग्य । जेह कारणि गृहस्थवेषि हाथियइं चडतां ईणइ जि भवि उपजिसिइ केवलज्ञान, एह भणी ए भाग्य प्रधान । सोमदेवहुई जीजइ भवि मुक्ति, इसी छइ युक्ति । ए वार्ता मनि धरी, श्रावकयोग्य धर्म आदरी, परमेश्वर नमस्करी; बे नरेश्वर सपरिवारि स्वस्थानकि आव्या, परमेश्वरि विहारक्रम नीपजाव्या। हिव राजा पृथ्वीचंद्र सुसरउराउ मोकलावी रत्नमंजरीसहित आपणइ पुहिठाणपुरि पाटणि आव्या, प्रधानि प्रवेश महोत्सव कराव्या । सकल लोक हाट पाटण काज काम परिहरी आभरण चूटते, वेणीदंड छूटते; पटउले फाटते, घाटडे विणसते; धसमसाटि जोइवा धाइउ राजा महोत्सवसहित आपणइ आवासि आइउ । रत्नमंजरी पट्टराणी स्थापी, कीर्तिइं जगत्रयी व्यापी। राज्यसौभाग्य भोगवतां अवसरि रत्नमंजरी महीधर इसिई नामिई For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः पुत्र जन्मिउ । ते सर्वांगसुंदर, रूपिई पुरंदर विवेकबंधुर राज्यधुरंधर सत्पुरुषसिंधुर नामि महीधर प्रवर्द्धमान हूउ । राजापृथ्वीचंद्ररहई राज्य करतां नवलाष नवाणवर सहस्र नवसई नवोत्तर वरस अतिक्रम्यां । तिसिइ अवसर कानडसन राउ सिंहकेतु इसिहं नामिई अकस्मात् पुहठाणपुरि पाटणिऊपरि चडी आविउ, लोकरहई आतंक ऊपजाविउ । तत्काल चरपुरुषि पृथ्वीचंद्ररहई जणावि । ते सांभली राजापृथ्वीचंद्र कोपि करी करवाल कलालतु सामहिउ, सुभटवर्ग गहगहिउ; भंभा वाजी, गगनांगण रहिउ गाजी । राजा आप जेतलई हाथि चडिउ, तेतलई मनि विमासण पडिउ । रे आत्मन् हुं बाह्यवइरी पूठि धाउं, अंतरंगवइरी पूठि न धाउं । कुण ए बुद्धि, किसी शुद्धि, जीत जोईयर क्रोध, जेहतर चालइ विरोध; जीतु जोईयइ मान, जेहहुईं पर्वतन उपमान; जीती जोईयह माया, जेहतु पामीयह स्त्रीतणी काया; जीतु जोईयइ लोभ, जेहतु संसारि समयक्षोभ; जीतु जोईयइ काम, जेहतु फेडई पुण्यतण ठाम । ईणिपरि नरेश्वरहुई चीतवतां ऊपनजं शुक्लध्यान, तत्काल ऊपनउं केवलज्ञान । आव्या देव, करई सेव; वइरी समिउ, आवी नमिउ; वाजई वादित्र, महोत्सव विचित्र । देवे वेष दीघउ, राजऋषि लीधउ; हंसजमलि, बइठउ सुवर्णकमलि; दिइ उपदेश, हउ पुण्यतणउ निवेश । एके आदरिडं सम्यक्त्व, एके श्रावकत्व; एके संयम, एके नियम । ईणिपरि लोकहुई लाभ देई पृथ्वीमंडलि विहारक्रम करी पृथ्वीचंद्र राजा सिद्धिसाम्राज्य ली, तेहतणइ पुत्रि महीधर पहुठाणपुरि अखंड प्रतापि राज्य कीधरं । पृथ्वीचंद्रनरेश्वरतणउं चरित्र सांभली, मनतणी रली, बली; वली, विवेकवंति पुण्यवंत लाभ लेवउ । जिसिहं पुण्यतणा प्रभावतउ सकल श्रीसंघहुई श्रेयकल्याण ऋडिवृद्धिपरंपरा संपजई । श्रीमदञ्चलगच्छे श्रीगुरुमाणिक्यसूरिणा । पृथ्वीचन्द्रनरेन्द्रस्य चरित्रं चारु निर्मितम् ॥ संवत् १४७८ वर्षे श्रावण सुदि ५ रवौ पृथ्वीचन्द्रचरित्रं पवित्रं पुरुषपचने निर्मितं समर्थितम् । यावन्मेरुर्मही यात यावचन्द्रदिवाकरौ । वाच्यमानो जनैस्तावद्ग्रन्थोऽयं भुवि नन्दतात् ॥ इति श्रीअञ्चलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिकृते श्रीपृथ्वीचन्द्रचरित्रे वाग्विलासे पञ्चम उल्लासः । For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खरतरपट्टावलीषट्पदानि जिण दिहइ आनंदु चडइ अइरहसु चउग्गुणु । जिण दिट्ठ फडहडइ पाउ तणु निम्मलु हुइ पुणु । जिण दिइ सुहु होइ कट्ठ पुव्वुक्किउ नासइ । जिण दिट्टइ हुइ रिद्धि दूरि दालिङ पणासइ । जिण दिइ सुइ धम्ममइ अबुहहु कोइ उइक्खहहु । पहु नवफणमंडिउ पासजिणु अजयमेरि कि न पिक्खहहु ॥१॥ मयण म करि धरिघणुह बाण पुणि पंचम पयडहि। रूविण पिम्मपयावि बंभहरिहरु मन विणडहि । रूउ पिम्मु ता बाग मयण तायरिसहि धणहरु । नवफणमंडिउसीस जाव न हु पिक्खिउ जिणवरु । जइ पडिहसि पासजिणिंदवसि नाणवंत णिम्मलरयण । तसु धणुहरु बाण न रूप नहि न भुयप्पिम्मु हुइ हइमयण ॥२॥ नवफणिपासजिणिंदु गढिउ अन्नल्लि जु दिट्ठउ । अजयमेरि संभरिनरिंदु ता नियमनि तुट्ठउ । कंचणलउ अह कलसु सिहरिसाणउ रजवियउ । जणु सुतरणि तउ तवइ तिव्वु आयासिसउन्नउ । जा बुज्जुमिसिण ढकारविण कर उज्झिवि फरहरइ धर । जिणदत्तसूरि धर धवलि जसि ता पसिद्धि सुरभवणि कय ॥३॥ देवरिपहु नेमिचंदु बहुगुणिहि पसिद्धउ । उज्जोयणु तह वद्धमाणु खरतरवर लडउ । सुगुरु जिणेसरसूरि नियमि जिणचंदु सुसंजमि । अभयदेव सव्वंगु नाणि जिणवल्लह आगमि । जिणदत्तसूरि ठिउ पहि तहि जिण उजोइउ जिणचलणु । सावइहि परिक्खिवि परिवरिउ मुल्लि महग्घउ जिम रयणु ॥ ४॥ घणुहर घयवड धरिय सार सिंगार सुसज्जिय। सोहग्गिण गुडगुडिय पंच वर पडिम निमजिय । तियड अ तेअ अग्गलिय पिम्मपडिकारनिरुत्तिय । रइरणरहसुच्चलिय गरुयमाणिण मइ अनिय । करि कडयड मुणिमहिवइहि रहिअ रूअ संपुन्नभय । जिणदत्तसूरिसीहह भयण मयणकरडिघड विहडि गय ॥५॥ तवतलप्फभीसणह धम्मधीरिमसुविसालह । For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ प्राचीनगूर्जरकाव्य सङ्ग्रहः संजमसिरभासुरह दुसहवयदाढकरालह | नाणनयणदारुणह नियमनि सनहर समिडह | कम्मको रिह विमलपुच्छप सिद्धह । उपसमणउपरधरदुव्विसह गुणगुंजारवजीहह | जिणदत्तसूरि अणुसरह पय पापकरडिघडसीहह ॥ ६ ॥ जरजलबहलरउद्द लोहलहरिहिं गजंतर । मोहमच्छउच्छलिउ कोवकल्लोल वत । मयमयरिहि परिवरिउ पंचबहुवेल दुसंचरु | गंधगरुयगंभीरु असुहआवत्तभयंकरु । संसारसमुह जु एरिसउ जसु पुणु पिक्खिवि सुदरियइ । जिणदत्तसूरिउवएस सुणित परतरंडइ सुतरियइ ॥ ७ ॥ सावय किवि कोयलिय केवि खरहरिय पसिडिय । ठाइ ठाइ लक्खियहि मूढ नियवित्तिविरुद्धिय । दरहि न किंपि परत बेवि सुपरूप्पर जुज्झहि । सुगुरु कुगुरु मणि मुणिवि न किवि पहंत बुज्झहि । जिणदत्तनूरि जिन नमहि पयपउम सच्चु नियमणि वहहि । संसारउयहि दुत्तरि पडिय जि न हु तरंडइ चडि तरहि ॥ ८ ॥ तवसंजमसयनियमि धम्मकम्मिण वावरियउ । लोहकोहमयमोह तह व सप्पिहि परिहरियड । विसमछेदलक्खणिण सत्थअत्थत्थविसालह । जिणवल्लहगुरुभत्तिवंतु पयड कलिकालह | अन्निहिवि गुणिहि संपन्नतणु दीणदुहियउंडरणु धर । जिणदत्तसूरि पर पल्ह भणु तत्तवंत सलहियइ घर ॥ ९ ॥ वक्खाणियइ परमतत्तु जिण पाउ पणासह | आराहियइ त वीरनाह कइपल्हु पयासह | धम्मु त दयसंजुत्तु जेण वरगइ पाविज्जइ । चाउ त अणखंडियउ जु बंदिण सलहिजइ । जइ ठाइ त उत्तिममुणिवरह पवरवसहिहो चउर नर । तिम सुगुरुसिरोमणि सूरिवर खरतरसिरिजिणदत्त वर ॥ १० ॥ इति श्रीपट्टावलीषट्पदानि । संवत् ११७० वर्षे अश्वयुगाद्यपक्षे ११ तिथौ श्रीमद्धारानगय श्रीखरतरगच्छे विधिमार्गप्रका शिवसतिवासिश्रीजिणदत्तसूरीणां शिष्येण जिनरक्षितसाधुना लिखितानि । For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX 1 श्रीवस्तुपालतीर्थयात्रावर्णनम् अयं क्षुब्धक्षीरार्णवनवसुधासन्निभचिता नुपाकाकर्णानुपदमुपदेशानिति गुरोः । समस्तध्वस्तैना जनितजिनयात्रापरिकरो ऽकरोत्सुस्थं प्रास्थानिकविधिमधीशो मतिमताम् ॥१॥ श्लाघ्योऽतिसङ्घसहितः स हितः प्रजानां श्रीमानथ प्रथमतीर्थकृदेकचित्तः । सम्भाषणाद्भुतसुधाभवचाश्वचार वाचालवारिदपथो रथचक्रनादैः ॥२॥ सान्द्ररुपयुपरिवाहपदाग्रजाग्रडूलीपटैझटिति कुहिमतामटद्भिः। मार्गे निरुद्धखरदीधितिधामसङ्ग्रे सवस्तदा भवनगर्भ इवाबभासे ॥३॥ नाभेयप्रभुभक्तिभासुरमनाः कीर्त्तिप्रभाशुभ्रिमा काशः काशहदाभिधेऽथ विधे तीर्थे निवासानसौ । चक्रे चारुमना जिनार्चनविधिं तद्ब्रह्मचर्यव्रता रम्भस्तम्भितविष्टपत्रयजयश्रीधामकामस्मयः॥४॥ पुष्टिभक्तिभरतुष्टया रयादम्बया हततमःकदम्बया । एत्य दृक्पथमथ प्रतिश्रुतं सन्निधिं समधिगम्य सोऽचलत् ॥५॥ ग्रामे ग्रामे पुरि पुरि पुवरोतिभिर्मय॑मुख्यैः क्लप्तप्रावेशिकविधितता व्योम्नि पश्यन्पताकाः । मूर्त्ताः कीर्तीरयममनुत प्रौढनृत्तप्रपञ्च___ व्यापल्लीलाद्भुतभुजलतावर्णनीयाः स्वकीयाः ॥ ६ ॥ अध्यावास्य नमस्यकीर्त्तिविभवः श्रीसमंहस्तमः स्तोमादित्यमुपत्यकापरिसरे श्रीमल्लदेवानुजः। श्रीनाभेयजिनेशदर्शनसमुत्कण्ठोल्लसन्मानस स्त्रस्यन्मोहमथारुरोह विमलक्षोणीधरं धीरधीः ॥७॥ तत्र स्नानमहोत्सवव्यसनिनं मार्तण्डचण्डद्युति क्रान्तं सङ्घजनं निरीक्ष्य निखिलं सान्द्रीभवन्मानसः । सद्यो माद्यमन्दमेदुरतरश्रद्धानिधिः शुद्धधीः मन्त्रीन्द्रः स्वयमिन्द्रमण्डपमयं प्रारम्भयामासिवान् ॥ ८॥ १३ For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः मन्त्री मौलौ किल जिनपतेश्चित्रचारित्रपात्रं __ लानं कृत्वा कलशलुठितैः स्मेरकाश्मीरनीरैः। चक्रे चश्चन्मृगमदमयालेपनस्वर्णभूषा वण्यः पूजाकुसुमवसनैस्तं स कल्पद्रुकल्पम् ॥ ९॥ मन्त्रीशेन जिनेश्वरस्य पुरतः कर्पूरपूरागुरु प्लोषप्रेखितधूपधूमपटलैः सा कापि तेने मुदा । यावद्वद्धमहाध्वजप्रणयिनी स्वर्लोककल्लोलिनी मिश्रेयं रविकन्यकेति वियति प्रत्यक्षमुत्प्रेक्ष्यते ॥ १०॥ इत्थं तत्र विधाय निर्मलमनाः सन्मानदानक्रियां सानन्दप्रमदाकुलां कुलनभोमाणिक्यमष्टाह्निकाम् । विघ्नोन्मर्दिकपर्दियक्षविहितप्रत्यक्षसान्निध्यतः श्रद्धावर्डितसम्मदादुदतरन्मन्त्रीश्वरो भूधरात् ॥ ११ ॥ अजाहराख्ये नगरे च पार्श्वपादानजापालनृपालपूज्यान् । अभ्यर्चयन्नेष पुरे च कोडीनारे स्फुरत्कीर्त्तिकदम्बमम्बाम् ॥ १२॥ देवपत्तनपुरे पुरन्द्रस्तूयमानममृतांशुलाञ्छनम् । अर्चयन्नुचितचातुरीचितः कामनिर्मथननिर्मलद्युतिम् ॥ १३ ॥ प्रीतस्फीतरुचिश्विराय नयनर्वामध्रुवां वामन__ स्थल्यामेष मनोविनोदजननं क्लप्तप्रवेशं पुरि। धीमान्निर्मलधर्मनिर्मितिसमुल्लासेन विस्मापयन् दैवं रैवतकाधिरोहमकरोत्सवेन सङ्केश्वरम् ॥ १४ ॥ (विशेषकम् ) गजेन्द्रपदकुण्डस्य तत्र पीयूषहारिभिः। चकार मजनं मन्त्री वारिभिः पापहारिभिः ॥ १५ ॥ जिनमजनसजसज्जनं कलशन्यस्ततदम्बुकुङ्कमम् । अथ सङ्घमवेक्ष्य सङ्कटे विधे वासवमण्डपोद्यमम् ॥ १६ ॥ संरम्भसङ्घटितसङ्घजनौघदृष्टामष्टाह्निकामयमिहापि कृती वितेने । सद्भूतभावभरभासुरचित्तवृत्तिरुवृत्तकीर्तिचयचुम्बितदिक्कदम्बः ॥१७॥ लुम्पन रजो विजयसेनमुनीशपाणिवासप्रवासितकुवासनभासमानः । सम्यक्त्वरोपणकृते विततान नन्दिमानन्दद्मदुरमयं रमयन्मनांसि ॥१८॥ दानरानन्द्य बन्दिव्रजमसृजदनिर्वारमाहारदानं __ मानी सम्मान्य साधूनपुषदपि मुखोद्धाटकर्मादिकानि । For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुपालतीर्थयात्रावर्णनम् मन्त्री सत्कृत्य देवार्चनरचनपरानर्चयित्वायमुच्चै___ रम्बाप्रद्युम्नशाम्बानिति कृतसुकृतः पर्वतादुत्ततार ॥ १९ ॥ असाधि साधर्मिकमानदानैरनेन नानाविधधर्मकर्म । अबाधि सा धिक्करणेन माया निर्माय निर्मायमनः सुपूजाम् ॥२०॥ पुरः पुरः पूरयता पयांसि घनेन सान्निध्यकृता कृतीन्दुः। स्वकीर्त्तिवन्नव्यनदीर्ददर्श ग्रीष्मेऽतिभीष्मेऽपि पदे पदेऽसौ ॥२१॥ इति प्रतिज्ञामिव नव्यकीर्तिप्रियः प्रयाणैरतिवाह्य वीथीम् । आनन्दनिस्यन्दविधिर्विधिज्ञः पुरं प्रपेदे धवलककं सः ॥ २२॥ समं तेजःपालान्वितपुरजनैर्वीरधवल प्रभुः प्रत्युद्यातस्तद्नु सदनं प्राप्य सुकृती। युतः सङ्घनासौ जिनपतिमथोत्तार्य रथत स्ततः सङ्घस्यार्चामशनवसनाद्यैर्व्यरचयत् ॥ २३ ॥ अथ प्रसादाद्भूभर्तुः प्राप्य वैभवमद्भुतम् । मन्त्रीशः सफलीचक्रे स्वमनोरथपादपम् ॥ २४ ॥ भक्त्याखण्डलमण्डपं नवनवश्रीकेलिपर्यद्धिका वर्य कारयति स्म विस्मयमयं मन्त्री स शत्रुञ्जये । यत्र स्तम्भनरैवतप्रभुजिनौ शाम्बाम्बिकालोकन प्रद्युम्नप्रभृतीनि किश्च शिखराण्यारोपयामासिवान् ॥ २५ ॥ गुरुपूर्वजसम्बन्धिमित्रमूर्त्तिकदम्बकम् । तुरङ्गसङ्गतं मूर्तिद्वयं स्वस्यानुजस्य च ॥ २६ ॥ शातकुम्भमयान् कुम्भान्पश्च तत्र न्यवेशयत् । पञ्चधा भोगसौख्यश्रीनिधानकलशानिव ॥ २७ ॥ सौवर्ण दण्डयुग्मं च प्रासाद्वितये न्यधात् । श्रीकीर्त्तिकन्दयोरुद्यन्नूतनाङ्करसोदम् ॥ २८ ॥ कुन्देन्दुसुन्दरग्रावपावनं तोरणद्वयम् । इहैव श्रीसरस्वत्योः प्रवेशायैव निर्ममे ॥ २९ ॥ अर्कपालितकं ग्राममिह पूजाकृते कृती। श्रीवीरधवलक्ष्मापाद्दापयामास शासने ॥ ३०॥ श्रीपालिताख्ये नगरे गरीयस्तरङ्गालीलादलितार्कतापम् । तडागमागःक्षयहेतुरेतच्चकार मन्त्री ललिताभिधानम् ॥ ३१ ॥ For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः हर्षोत्कर्ष न केषां मधुरयति सुधासाधुमाधुर्यगर्ज त्तोयः सोऽयं तडागः पथि मथितमिलत्पान्थसन्तापपापः । साक्षादम्भोजदम्भोदितमुदितसुखं लोलरोलम्बशब्दै___ रब्देव्यो दुग्धमुग्धां त्रिजगति जगदुर्यत्र मन्त्रीशकीत्तिम् ॥ ३२॥ पृष्ठपत्रं च सौवर्ण श्रीयुगादिजिनेशितुः । स्वकीयतेजःसर्वस्वकोशन्यासमिवार्पयत् ॥ ३३ ॥ प्रासादे निदधे काम्यकाञ्चनं कलशत्रयम् । ज्ञानदर्शनचारित्रमहारत्ननिधानवत् ॥ ३४ ॥ किश्चैतन्मन्दिरद्वारि तोरणं तत्र पोरणम् । शिलाभिर्विधे ज्योत्स्नागर्वसर्वस्वदस्युभिः ॥ ३५ ॥ लोकैः पाञ्चालिकानृत्तसंरम्भस्तम्भितेक्षणैः। इहाभिनीयते दिव्यनाट्यप्रेक्षाक्षणः क्षणम् ॥ ३६ ॥ प्रासादः स्फुटमच्युतैकमहिमा श्रीनाभिसूनुप्रभो__ स्तस्याग्रस्थितिरेककुण्डलकुलां धत्तेतरां तोरणः । श्रीमन्त्रीश्वर वस्तुपाल कलयन्नीलाम्बरालम्बिता मत्युचैर्जगतोऽपि कौतुकमसौ नन्दी तवास्तु श्रिये ॥ ३७॥ अत्र यात्रिकलोकानां विशतां व्रजतामपि । सर्वथा सम्मुखैवास्ति लक्ष्मीरुपरिवर्तिनी ॥ ३८ ॥ यत्पूर्वैर्न निराकृतं सुकृतिभिः साम्मुख्यवैमुख्ययो द्वैतं तन्मम वस्तुपालसचिवेनोन्मूलितं दुर्यशः । आशास्तेऽद्भुततोरणोभयमुखी लक्ष्मीस्तदस्मै मुदा श्रीनाभेयविभुप्रसादवशतः साम्मुख्यमेवाऽधुना ॥ ३९ ॥ तस्यानुजश्व जगति प्रथितः पृथिव्यामव्याजपौरुषगुणप्रगुणीकृतश्रीः । श्रीतेजपाल इति पालयति क्षितीन्दुमुद्रां समुद्ररसनावधिगीतकीर्तिः ॥ ४० ॥ समुद्रत्वं श्लाघेमहि महिमधाम्नोऽस्य बहुधा यतो भीष्मग्रीष्मोपमविषमकालेप्यजनि यः । क्षणेन क्षीणायामितरजनदानोदकततौ दयावेलाहेलाद्विगुणितगुणत्यागलहरिः॥४१॥ वस्त्रापथस्य पन्धास्तपस्विनां ग्रामशासनोडारात् । येनापनीय नवकरमनवकरः कारयाञ्चक्रे ॥ ४२ ॥ For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुपालतीर्थयात्रावर्णनम् पुण्योल्लासविलासलालसधिया येनात्र शत्रुञ्जये श्रीनन्दीश्वरतीर्थमर्पितजगत्पावित्र्यमासूत्रितम् । एतच्चानुपमासरः परिसरोद्देशे शिलासञ्चय व्यानडोडतबन्धमुडरपयःकल्लोललुप्तक्रमम् ॥ ४३ ॥ स्फुटस्फटिकदर्पणप्रतिमतामिदं गाहते मुधाकृतसुधाकरच्छविपवित्रनीरं सरः। विकस्वरसरोरुहप्रकरलक्ष्यतो लक्ष्यते यत्र सरिदङ्गनावदनबिम्बताडम्बरः॥४४॥ शत्रुञ्जये यः सरसीं निवेश्य श्रीरैवताद्रौ च जडाधराणाम् । ग्रामस्य दानेन करं निवार्य सङ्घस्य सन्तापमपाचकार ॥ ४५ ॥ क्षोणीपीठमियद्रजःकणमियत्पानीयबिन्दुः पतिः सिन्धूनामियदङ्गलं वियदियत्ताला च कालस्थितिः। इत्थं तथ्यमवैति यस्त्रिभुवने श्रीवस्तुपालस्य तां धर्मस्थानपरम्परां गणयितुं शङ्के न सोऽपि क्षमः ॥ ४६॥ एतत्सुवर्णरचितं विश्वालङ्करणमनणुगुणरत्नम् । सनाधीश्वरचरितं हतदुरितं कुरुत हृदि संतः ॥४७॥ श्रीनागेन्द्रमुनीन्द्रगच्छतरणिः श्रीमान्महेन्द्रप्रभु जज्ञे क्षान्तिसुधानिधानकलशः पुण्याब्धिचन्द्रोदयः । सम्मोहोपनिपातकातरतरे विश्वेऽत्र तीर्थेशितुः सिद्धान्तोऽप्यविभेद्यतर्कविषमं यं दुर्गमाशिश्रिये ॥ ४८ ॥ तत्सिंहासनपूर्वपर्वतशिरःप्रान्तोदयः कोऽप्यभू भास्वानस्तसमस्तदुस्तमतमाः श्रीशान्तिसूरिप्रभुः । प्रत्युज्जीवितदर्शनातिलसद्भव्यौघपद्माकरं तेजश्छन्नदिगम्बरं विजयते तद्यस्य लोकोत्तरम् ॥ ४९ ॥ आनन्दसूरिरिति तस्य बभूव शिष्यः पूर्वापरः शमधनोऽमरचन्द्रसरिः। धर्मद्विपस्य दशनाविव पापवृक्ष क्षोदक्षमौ जगति यौ विशदौ विभातः ॥५०॥ अस्ताघवाङ्मयपयोनिधिमन्दराद्रिमुद्रापुषोः किमनयोः स्तुमहे महिम्नः। For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः बाल्येऽपि निर्दलितवादिगजौ जगाद यौ व्याघ्रसिंहशिशुकाविति सिद्धराजः ॥५१॥ सिद्धान्तोपनिषन्निषण्णहृदयो धीजन्मसूस्तत्पदे पूज्यः श्रीहरिभद्रसूरिरभवच्चारित्रिणामग्रणीः । भ्रान्त्वा शून्यमनाश्रयैरिव चिराद्यस्मिन्नवस्थानतः सन्तुष्टैः कलिकालगौतम इति ख्यातिर्वितेने गुणैः ॥५२॥ श्रीविजयसेनसूरिस्तत्पट्टे जयति जलधरध्वानः । यस्य गिरो धारा इव भवदवभववथुविभवभिदः ॥ ५३॥ पश्चासराहवनराजविहारतीर्थे प्रालेयभूमिधरभूतिधुरन्धरेऽस्मिन् । साक्षाद्धाकृतभवा तटिनीव यस्य __ व्याख्येयमच्युतगुरुक्रमजा विभाति ॥ ५४॥ भवोटवनावनीविकटकर्मवंशावलि च्छिदोच्छलितमौक्तिकप्रतिमकीर्तिकर्णाम्बरम् । असिश्रियमशिश्रियद्विततभीव्रतं यतं क्षितौ विजयतामयं विजयसेनसूरिर्गुरुः ॥५५॥ शिष्यं तस्य प्रशस्यप्रशमगुणनिधि रभ्यदारण्यदाव__ ज्वालाजिहालदीप्तिर्भविकजनविपद्वह्निवादः कपर्दी । देवी चाम्बा निशीथे समसमयमुपागत्य हर्षाश्रुवर्षा__ मेयश्रेयःसुभिक्षाविति निजगदतुर्गद्गदोद्दामनादम् ॥५६॥ नाभूवन्कति नाम सन्ति कति नो नो वा भविष्यन्ति के किं न कापि कदापि सङ्घपुरुषः श्रीवस्तुपालोपमः । यत्रेत्थं प्रहरन्नहर्निशमहो सर्वाभिसारोडुरो येनायं विजितः कलिर्विद्धता तीर्थेशयात्रोत्सवम् ॥ ५७॥ तस्मादस्य यशस्विनः सुचरितं श्रीवस्तुपालस्य य द्वाचास्माकममोघया किल यथाध्यक्षीकृतं सर्वथा । त्वं श्रीमन्नुद्यप्रभ प्रथय तत् पीयूषसर्वङ्कषैः श्लोकैर्यत्तव भारती समभव..."यते ॥ ५८॥ इत्युक्त्वा गतयोस्तयोरथ पथो दृष्टेः प्रभातक्षणे विज्ञाप्य स्वगुरोः पुरः सविनयं नम्रीभवन्मौलिना । For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वस्तुपालतीर्थयात्रावर्णनम् प्राप्यादेशममुं प्रभोर्विरचयामासे समासेदुषा प्रागल्भीमुदयप्रभेण चरितं निस्यन्दरूपं गिराम् ॥ ५९॥ किञ्च श्रीमलधारिगच्छजलधिप्रोल्लासशीतयुते स्तस्यश्रीनरचन्द्रसूरिसुगुरोर्माहात्म्यमाशास्महे । यत्पाणिस्मितपद्मवासविकसत्किाल्कसंवासिताः सन्तः सन्ततमाश्रिताः किल मया भृङ्गयेव भान्ति क्षितौ ॥६०॥ श्रीधर्माभ्युदयाह्वयेऽत्र चरिते श्रीसङ्घभर्तुर्मया भ्रे काव्यदलानि सङ्कटयितुं कर्मान्तिकत्वं परम् । किन्तु श्रीनरचन्द्रसूरिभिरिदं संशोध्य चक्रे जग त्पावित्र्यक्षमपादपङ्कजरजःपुजैः प्रतिष्ठास्पदम् ॥ ६१॥ नित्यं व्योमनि नीलनीरजरुचौ यावत्त्विषामीश्वरो दिक्पालावलिबन्धुरे कुवलये यावच्च हेमाचलः । हृत्पद्म विदुषामिदं सुचरितं तावन्नवाविर्भव त्सौरभ्यप्रसरं चिरं कलयतात् किञ्जल्कलक्ष्मीपदम् ॥ ६२ ॥ इति श्रीविजयसेनसूरिशिष्यश्रीमदुदयप्रभसूरिविरचिते श्रीधर्माभ्युदयनाम्नि श्रीसङ्घपतिच रिते लक्ष्म्यके महाकाव्ये श्रीवस्तुपालतीर्थयात्रोत्सववर्णनो नाम पञ्चदशः सर्गः । मुक्तेर्मार्गे यदेतद्विरचितमुचितं सङ्घभर्तुश्चरित्रं सत्रं पावित्र्यपात्रं पथिकजनमनःखेदविच्छेदहेतुः । अस्मिन्सौरभ्यगर्भामसमरसवती सत्कथां पान्थसार्थाः ___प्राप्य श्रीवस्तुपाल प्रवरनवरसास्वादमास्वादयन्ति ॥ १॥ श्रीशारदैकसदनं हृदयालवः के नो सन्ति हन्त सकलासु कलासु निष्णाः । तादृक्परस्य ददृशे सुकवित्वतत्वबोधाय बुद्धिविभवस्तु न वस्तुपालात् ॥२॥ नैव व्यापारिणः के विद्धति करणग्राममात्मैकवश्यं लेभे सद्योगसिद्धेः फलममलमलं केवलं वस्तुपालः । आकल्पस्थायि धर्माभ्युदयनवमहाकाव्यनाम्ना यदीयं विश्वस्यानन्दलक्ष्मीमिति दिशति यशोधर्मरूपं शरीरम् ॥ ३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX II. रेवयकप्पसंखेवो सिरिनेमिजिणं सिरसा नमिउं रेवयगिरीसकप्पंमि । सिरिवइरसीसभणिअं जहा य पालित्तएणं च ॥ १ ॥ छत्तसिलाइसमीवे सिलासणे दिकं पडिवन्नो नेमी, सहसंबवणे केवलनाणं, लकारामे देखणा, अवलोअणं उद्धसिहरे निव्वाणं । रेवयमेहलाए कण्हो तत्थ कल्लाणतिगं काऊण सुवन्नरयणपडिमालंकिअं चेइअतिगं जीवंतसामिणो अंबादेविं च कारेह | इंदो चि वजेण गिरिं कोरेऊण सुवन्नबलाणयं रूप्पमयं चेईअं रयणमया पडिमा पमाणवन्नोववेया, सिहरे अंबा रंगमंडवे अवलोअणसिहरं बलाणयमंडवे संबो एयाई कारेइ । सिडविणायगो पडिहारो; तप्पडिरूवं श्रीनेमिमुखात् निर्वाणस्थानं ज्ञात्वा निर्वाणादनन्तरं कण्हेण ठाविअं । तहा सत्त जायवा दामोयराणुरूवा कालमेह ९ मेहनाद २ गिरिविदारण ३ कपाट ४ सिंहनाद ५ खोडिक ६ रेवया ७ तिव्वतवेणं कीडणेणं खित्तवाला उववन्ना । तत्थ य मेहनादो समद्दिट्ठी नेमिपय भत्तिजुत्तो चिट्ठइ । गिरिविदारणेणं कंचणबलाणयंमि पंच उद्धारा विउब्विआ । तत्थेगं अंबापुरओ उत्तरदिसाए सतहिअसयकमेहिं गुहा । तत्थ य उववासतिगेणं बलिविहाणेणं सिलं उप्पाडिऊण मज्झे गिरिविदारणपडिमा । तत्थ य कमपण्णासं गए बलदेवेणं कारिअं सासयजिणपडिमारूवं नमिऊण, उत्तर दिसाए पण्णासकमं वारीतिगं । पढमवारिआए कमस्यतिगं गंतृण, गोदोहिआसणेणं पविसिऊण, उपवासपंचगं भमररूवं दारुणं सत्तेणं उप्पाडिऊणं, कम्मसत्ताओ अहोमुहं पविसिऊण, बलाणय मंडवे इंदादेसेण घणयजरककारियं अंबादेवि पूहऊण, सुवण्वजालीए ठायव्वं । तत्थट्टिएणं सिरिमूलनाहो नेमिजिणिदो वंदिअव्वो । बीअवारीए एगं पायं पूइत्ता, सयंवरवावीए अहो कमचालीसं गमित्ता, तत्थ णं मज्झवारीए कमसत्तसएहिं कूवो । तत्थ वरहंसट्ठिअन्तेण इहावि मूलनायगो वंदेयव्वो । तइअवारीए मूलदुवारपवेसो अंबाएसेण न अन्नहा । एवं कंचणबलाणयमग्गो । तत्थ य अंबापुरओ हत्थवीसाए विवरं । तत्थ य अंबारसेण उववासतिगेण सिलुग्घाडणेण हत्थवीसाए संपुडसत्तगं समुग्गयपंचगं अहो रसकूविआ अमावसाए अमावसाए उग्घडइ । तत्थ य उववासतिगं काऊण For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वयकप्प संखेवो अंबासेण पूणेण बलिविहाणेणं गिहियवं । तहा य जुण्णकूडे उववासतिगं काऊण सरलमग्गेण बलिपूअणेणं सिडविणायगो उवलब्भइ । तत्थ य चितिअसिडी दिनमेगं ठाएयवं । जइ तहा पच्चरको हवइ तहा रायमईगुहाए कमसएणं गोदोहिआए रसकुविआ कसिणचित्तयवल्ली राइमईए पडिमा रयणमया अंबाया रूप्पमयाओ अणेगओसहीओ अ चिहुंति । तह छत्तसिलाघंटसिलाकोडिसिलातिगं पण्णत्तं । छत्तसिलं मज्झं मज्झेणं कणयवल्ली सहस्संबवणमज्झे रययसुवण्णमयचउवीसं लकारामे बावत्तरीचउवीसजिणाण गुहा पण्णत्ता । कालमेहस्स पुरओ सुवण्णवालुआए नईए सहकमसयतिगेण उत्तरदिसाए गमिता गिरिगुहं पविसिऊण उदए ण्हवणं काऊण, बिए उववासपओएहिं दुवारमुग्धाडे । मज्झे पढमदुवारे सुचण्णखाणी, दुइअदुवारे रयणखाणी, संघ अंबाए विउव्बिआ । तत्थ पण कण्हभंडारो । अण्णो दामोदरसमीवे । अंजणसिलाए अहोभागे रययसुवण्णधूली पुरिसवीसेहिं पण्णत्ता । तस्सत्थमणे मंगलयदेवदालीय संतु रससिद्धी । सिरिवइरोवरकायं संघसमुद्धरणकज्जमि ॥ सस्सकडाहं मज्झे गिण्हित्ता कोडिबिंदुसंयोगे । घंट सिला चुण्णय जोयणाओ अंजणसिद्धी । विजापाहुडुद्देसाओ रेवयकप्पसंखेवो सम्मत्तो ॥ For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX III. श्रीउजयन्तस्तवः नामभिः श्रीरैवतकोजयन्तायैः प्रथामितम् । श्रीनेमिपावितं स्तौमि गिरिनारं गिरीश्वरम् ॥ १ ॥ स्थाने देशः सुराष्ट्राख्यां बिभर्ति भुवनेष्वसौ । यद्भुमिकामिनीभाले गिरिरेष विशेषकः ॥२॥ शृङ्गारयन्ति खङ्गारदुर्ग श्रीऋषभादयः । श्रीपार्श्वस्तेजलपुरं भूषितैतदुपत्यकम् ॥ ३॥ योजनद्वयतुङ्गेऽस्य शृङ्गे जिनगृहावलिः । पुण्यराशिरिवाभाति शरच्चन्द्रांशुनिर्मला ॥ ४ ॥ सौवर्णदण्डकलशामलसारकशोभितम् । चारु चैत्यं चकास्त्यस्योपरि श्रीनेमिनः प्रभोः ॥५॥ श्रीशिवासूनुदेवस्य पादुकाऽत्र निरीक्षिता। स्पृष्टाऽर्चिता च शिष्टानां पापव्यूहं व्यपोहति ॥ ६॥ प्राज्यं राज्यं परित्यज्य जरत्तृणमिव प्रभुः । बन्धून्विधूय च स्निग्धान प्रपेदेऽत्र महाव्रतम् ॥ ७॥ अत्रैव केवलं देवः स एव प्रतिलब्धवान् । जगजनहितैषी स पर्यणैषीच निवृतिम् ॥ ८॥ अत एवात्र कल्याणत्रयमन्दिरमाः । श्रीवस्तुपालो मन्त्रीशश्चमत्कारितभव्यहृत् ॥९॥ जिनेन्द्रबिम्बपूर्णेन्द्रमण्डपस्था जना इह । श्रीनेमे जनं कर्तुमिन्द्रा इव चकासति ॥ १० ॥ गजेन्द्रपदनामास्य कुण्डं मण्डयते शिरः । सुधाविधैर्जलैः पूर्ण स्नानार्हलपनक्षमैः ॥ ११ ॥ शत्रुञ्जयावतारेऽत्र वस्तुपालेन कारिते। ऋषभः पुण्डरीकोऽष्टापदो नन्दीश्वरस्तथा ॥ १२ ॥ सिंहयाना हेमवर्णा सिद्धबुद्धसुतान्विता । कम्राम्रलुम्बिभृत्पाणिरत्राम्बा सङ्घविघ्नहृत् ॥ १३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जयन्तस्तवः श्रीनेमिपत्पद्मपूतमवलोकननामकम् । विलोकयन्तः शिखरं यान्ति भव्याः कृतार्थताम् ॥ १४ ॥ शाम्बो जाम्बवतीजातस्तुङ्गे शृङ्गेऽस्य कृष्णजः । प्रद्युम्नश्च महाद्युम्नस्तेपाते दुस्तपं तपः॥ १५ ॥ नानाविधौषधिगणा जाज्वलन्त्यत्र रात्रिषु । किञ्च घण्टाक्षरच्छत्रशिलाः शालन्त उच्चकैः ॥ १६ ॥ सहस्राम्रवणं लक्षारामोऽन्येपि वनव्रजाः। मयूरकोकिलाभृङ्गीसङ्गीतिसुभगा इह ॥ १७ ॥ न स वृक्षो न सा वल्ली न तत्पुष्पं न तत्फलम् । नेक्ष्यतेऽत्राभियुक्तैर्यदित्यैतिह्यविदो विदुः ॥ १८ ॥ राजीमती गुहागर्भे कैन नामात्र वन्द्यते। रथनेमिर्ययोन्मार्गात्सन्मार्गमवतारितः ॥ १९ ॥ पूजानपनदानानि तपश्चात्र कृतानि वै।। सम्पद्यन्ते मोक्षसौख्यहेतवो भव्यजन्मिनाम् ॥ २० ॥ दिग्भ्रमावपि योऽत्रादौ काप्यमार्गेऽपि सञ्चरन् । सोऽपि पश्यति चैत्यस्था जिनार्चाः स्लपितार्चिताः ॥ २१ ॥ काश्मीरागतरत्नेन कूष्माण्ड्यादेशतोऽत्र च । लेप्यबिम्बास्पदे न्यस्ता श्रीनेमेर्मूर्तिराश्मनी ॥ २२ ॥ नदीनिर्झरकुण्डानां खनीनां वीरुधामपि । विदाङ्करोत्वत्र सङ्ख्याः सङ्ख्यावानपि कः खलु ॥ २३ ॥ आसेचनकरूपाय महातीर्थाय तायिने । चैत्यालङ्कतशीर्षाय नमः श्रीरैवताद्रये ॥ २४ ॥ स्तुतो मयेति सूरीन्द्रवर्णितावृजिनप्रभः । गिरिनारस्तारहेमसिद्धिभूमिHदेऽस्तु वः ॥ २५ ॥ इति श्रीउज्जयन्तस्तवः ॥ For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRv .. APPENDIX VI. श्रीउजयन्तमहातीर्थकल्पः अत्थि सुरहाविसए उजिंतो नाम पव्वओ रम्मो। तस्सिहरे आरुहिउं भत्तीए नमह नेमिजिणं ॥१॥ अंबाइअं च देविं ण्हवणचणगंधधूवदीवेहिं । पूइयकयप्पणामा ता जोअह जेण अत्थत्थी ॥२॥ गिरिसिहरं कुहरकंदरनिज्झरणकवाडविअडकूवेहिं । जोएह खत्तवायं जह भणियं पुत्वसूरीहिं ॥ ३ ॥ कंदप्पदप्पकप्परणकुगइविद्दवणनेमिनाहस्स । निव्वाणसिला नामेण अत्थि भुवर्णमि विकाया ॥ ४ ॥ तस्स य उत्तरपासे दसधणुहेहिं अहोमुहं विवरं । दारंमि तस्स लिंगं अवयाणे धणुह चत्तारि ॥५॥ तस्स पसुमुत्तगंधो अत्थि रसोपलसएण सयतंबं । विधेहि कुणइ तारं ससिकुंदसमुज्जलं सहसा ॥ ६॥ पुवदिसाए धणुहंतरेसु तस्सेव अत्थि जागवई । पाहाणमया दाहिणदिसागए बारसधणूहिं ॥७॥ दिस्सइ अ तत्थ पयडो हिंगुलवण्णो अ दिव्वपवररसो। विंधेइ सव्वलोहे फरिसेणं अग्गिसंगेणं ॥८॥ उजिंजते अत्थि नई विहला नामेण पवई पडिमा। दावेइ अंगुलीए फरिसरसो पव्वईदारं ॥९॥ सकावयार उज्जितगिरिवरे तस्स उत्तरे पासे । सोवाणपंतिआए पारेवयवणिया पुढवी ॥ १०॥ पंचगव्वेण बडा पिंडीधमिआ करेइ वरतारं । फेडइ रिहवाहिं उत्तारइ दुककंतारं ॥ ११ ॥ सिहरे विसालसिंगे दीसंते पायकुटिमा जत्थ । तस्सासन्ने सिहरे कव्वडहढपासहो तारं ॥ १२ ॥ उज्जितरेवयवणे तत्थ य सुदारवानरो अत्थि । सो वामकण्णछित्तो उग्घाडइ विवरवरदारं ॥ १३ ॥ हत्थसएण पविट्ठो दिकइ सोवण्णवण्णिआ रुका। For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीउज्जयन्तमहातीर्थकल्पः नीलरसेण सवंता सहस्सवेही रसो नूणं ॥ १४ ॥ तं गहिऊण निअत्तो हणुवंतं छिवइ वामपाएण। सो ढक्का वरदारं जेण न जाणइ जणो को वि ॥ १५॥ उज्जितसिहरउवरिं कोहंडिहरं खु नाम विकायं । अवरेण तस्स य सिला तदुभयपासेसु ओसं तु ॥ १६ ॥ तं अयसितिल्लमीसं थंभइ पडिवायवंगिअं वंगं । दोगच्चवाहिहरणं परितुट्ठा अंबिआ जस्स ॥१७॥ वेगवई नाम नई मणसिलवण्णाइ तत्थ पाहाणा । तो पिंडि धमिअ संते समसुद्धे होइ वरतारं ॥१८॥ उज्जंते नाणसिला तस्स अहो कणयवणिआ पुढवी । बोकडयमुत्तपिंडी खइरंगारे भवे हेमं ॥ १९ ॥ नाणसिलाकयपुढवी पिंडीबद्धा य पंचगव्वेण । हढपाए वसइ रसो सहस्सवेही हवइ हेमं ॥ २०॥ गिरिवरमासन्नठिअं आणीयं तिलविसारणं नाम । सिलबडगाढपीडे बे लरका तत्थ दम्माणं ॥ २१ ॥ सेणा नामेण नई सुवण्णतित्थंमि लड्डुअपहाणा । पडिवाएण य सुच्चं करिति हेमं न संदेहो ॥ २२ ॥ बिल्लकयंमि नयरे मउहहरं अत्थि सेलगं दिव्वं । तस्स य मज्झंमि ठिओ गणवइरसकुंडओ उवरिं ॥ २३ ॥ उववासी कयपूओ गणवइओ वल्लिऊण पवररसो। षामाषेवी अत्थि अ थंभइ वंगं न संदेहो ॥ २४ ॥ सहसासवं ति तित्थं करंजरुरकेण मणहरं सम्मं । तत्थ य तुरयायारा पाहाणा तेसि दो भाया ॥ २५॥ इक्को पारयभाओ पिट्ठो सुत्तेण अंधमूसाए । धमिओ करेइ तारं उत्तारइ दुककंतारं ॥ २६ ॥ अवलोअणसिहरसिला अवरेणं तत्थ वररसो सवइ । सुअपरकसरिसवण्णो करेइ सुचं वरं हेमं ॥ २७ ॥ गिरिपज्जुन्नवयारे अंबिअआसमपयं च नामेण । तत्थ वि पीआ पुहवी हिमवाए होइ वरहेमं ॥ २८ ॥ नाणसिला उजिंते तस्स य मूलंमि महिआ पीआ। For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः साहामिअलेवेणं छायामुक्कं कुणइ हेमं ॥ २९ ॥ उज्जित पढमसिहरे आरुहिउं दाहिणेण अवयरिडं । तिणि घणूसयमित्ते पूईकरं जं बिलं नाम ॥ ३० ॥ उघाडि बिलं दिकिऊण निउणेण तत्थ गंतव्वं । दंडंतराणि बारस दिव्वरसो जंबुफलसरिसो ॥ ३१ ॥ जउ घोलिअंमि भंडे सहस्सभाएण विंधए तारं । हेमं करइ अवस्सं हृहं तं सुंदरं सहसा ॥ ३२ ॥ कोहंडिभवणपुब्वेण उत्तरे जाव तावसा भूमी । दीस अ तत्थ पडिमा सेलमया वासुदेवस्स ॥ ३३ ॥ तस्सुत्तरेण दीसह हत्थेसु अ दससु पवई पडिमा । अवराहमुहर अंगुडिआइ सा दावए विवरं ॥ ३४ ॥ नवाई पट्टि दिकइ कूडाई दाहिणुत्तरओ । हरिआललकवण्णो सहस्वेही रसो नूणं ॥ ३५ ॥ उज्जिते नाणसिला विकाया तत्थ अस्थि पाहाणं । ताणं उत्तरपासे दाहिणय अहोमुहो विवरो ॥ ३६ ॥ तस्स य दाहिणभाए दसघणुभूमीइ हिंगुलुयवण्णो । अस्थि रसो सयवेही विंधइ सुच्चं न संदेहो ॥ ३७ ॥ उसहरसहाइकूडे पाहाणा ताण संगमो अत्थि । गयवर लिंडाकिण्णा मज्झे फरिसेण ते वेही ॥ ३८ ॥ जिणभवणदाहिणेणं नउई धणुहेहिं भूमिजलुअयरी । तिरिमणुअरत्तविडा पडिवाए तंबए हेमं ॥ ३९ ॥ araई नाम नई मणसिलवण्णा य तत्थ पाहाणा । सुच्चस्स पंचवेहं सर्वति धमिआ तयं सिग्घं ॥ ४० ॥ इय उज्जयंतकष्पं अविअप्पं जो करेइ जिणभत्तो । कोहंडिकपणामो सो पावइ इच्छिअं सुरकं ॥ ४१ ॥ श्री उज्जयंतमहातीर्थकल्पः For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX V रैवतकल्पः पच्छिमदिसाए सुरट्ठाविसए रेवयपव्ययरायसिहरे सिरिनेमिनाहस्स भवणं उत्तुंगसिहरं अच्छइ । तत्थ किर पुटिव भयवओ नेमिनाहस्स लिप्पमई पडिमा आसि । अन्नया उत्तरदिसाविभूसणकम्हीरदेसाओ अजियरयणनामाणो दुन्नि बंधवा संघाहिवई होऊण गिरिनारमागया। तेहिं रहसवसाओ घणघुसिणरससंपूरिअकलसेहिं ण्हवणं कयं । गलिआ लेवमई सिरिनेमिनाहपडिमा । तओ अईव अप्पाणं सोअंतेहिं तेहिं आहारो पचकाओ । इक्कवीसउववासाणंतरं सयमागया भगवई अंबिआ देवी । उहाविओ संघवई । तेण देविं दट्टण जयजयसद्दो कओ। तओ भणिअं देवीए इमं बिंब गिहिसु परं पच्छा न पिच्छिअव्वं । तओ अजिअसंघाहिवइणा एगतंतुकडिअं रयणमयं सिरिनेमिबिंब कंचणबलाणए नी। पढमभवणस्स देहलीए आरोवित्ता अइहरिसभरनिन्भरेणं संघवइणा पच्छाभागो दिट्ठो। ठिअं तत्थेव बिंबं निचलं । देवीए कुसुमवुट्ठी कया जयजयसद्दो अकओ । एअंच बिंबं वइसाहपुन्निमाए अहिणवकारिअभवणे पच्छिमदिसामुहे ठविअं संघवइणा । न्हवणाइमहसवं काउं अजिओ सबंधवो निअदेसं पत्तो । कलिकाले कलुसचित्तं जणं जाणिऊण झलहलंतमणिमयबिंबस्स कंती अंबिआदेवीए छाइआ। पुट्वि गुजरधराए जयसिंहदेवेणं खंगाररायं हणित्ता सजणो दंडाहिवो ठाविओ। तेण य अहिणवं नेमिजिणंद्भवणं एगारससयपंचासीए विक्कमरायवच्छरे काराविरं । मालवदेसमुहमंडणेणं साहुभावडेणं सोवण्णं आमलसारं कारिअं। चालुकचकिसिरिकुमारपालनरिंदसंठविअसोरट्ठदंडाहिवेण सिरिसिरिमालकुलुभवेण बारससयवीसे विकमसंवच्छरे पज्जा काराविआ । तम्भावुणा धवलेण अंतराले पवा भराविआ । पजाए चडतेहिं जणेहिं दाहिणदिसाए लकारामो दीसइ । अणहिल्लवाडयपट्टणे य पोरवाडकुलमंडणा आसरायकुमरदेवितणया गुजरधराहिवइसिरिवीरधवलरजधुरंधरा वस्तुपालतेजपालनामधिज्जा दो भायरो मंतिवरा हुत्था। तत्थ तेजपालमंतिणा गिरनारतले निअनामंकिअं तेजलपुरं पवरगढमढपवामंदिरआरामरम्मं निम्माविअं। तत्थ य जणयनामंकिअं आसरायविहारु त्ति पासनाहभवणं काराविअं । जणणीनामेणं च कुमरसरु त्ति सरोवरं निम्माविआतेजलपुरस्स पुवदिसाए उग्गसेणगढं For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः नाम दुग्गं जुगाइनाहप्पमुहजिणमंदिररेहिल्लं विजइ । तस्स य तिण्णि नामधिजाइं पसिद्धाइं । तं जहा उग्गसेणगढं ति वा खंगारगढं ति वा ज्जुण्णदुग्गं ति वा । गढस्स बाहिं दाहिणदिसाए चउरिआवेईलड्डुअओवरिआपसुवाडयाइठाणाई चिट्ठति । उत्तरदिसाए विसालथंभसालासोहिओ दसदसारमंडवो। गिरिदुवारे य पंचमो हरी दामोअरो सुवण्णरेहानईपारे वइ । कालमेहसमीवे चिराणुवत्ता संघस्स बोलाविआ। तेजपालमंतिणा मिल्हाविआ । कमेण उज्जयंतसेले वत्थुपालमंतिणा सित्तुजावयारभवणं अट्ठावयसंमेअमंडवो कवडिजकमरुदेविपासाया य काराविआ । तेजपालमंतिणा कल्लाणत्तयचेइअं, इंदमंडवो अ देपालमंतिणा उद्धाराविओ । एरावणगयपयमुद्दाअलंकिअं गइंदपयकुंडं अच्छइ । तत्थ अंगं पकालित्ता दुकाण जलंजलिं दिति जत्तागयलोआ । छत्तसिलाकडणीए सहस्संबवणारामो, जत्थ भगवओ जायवकुलपईवस्स सिवासमुद्दविजयनंदणस्स दिकानाणनिव्वाणकल्लाणयाइं संजाआई । गिरिसिहरे चडित्ता अंबिआदेवीए भवणं दीसइ । तत्तो अवलोअणं सिहरं । तत्थडिएहिं किर दसदिसाओ नेमिसामी अवलोइजति । तओ पढमसिहरे संबकुमारो बीअसिहरे पज्जुण्णो । इत्थ पव्वए ठाणे ठाणे चेइएसु रयणसुवण्णमयजिणबिंबाई निचन्हविअच्चिआई दीसंति । सुवण्णमेयणी अ अणेगधाउरसभेइणी दिपंती दीसइ । रत्तिं च दीवउव्व पजलंतीओ ओसहीओ अवलोइज्जति। नाणाविहतरुवरवल्लिदलपुप्फफलाइं पए पए उवलम्भंति । अणवरयपझरंतनिज्झरणाणं खलहलारावा य मत्तकोयलभमरझंकारा य सुचंति त्ति । उज्जयंतमहातित्थकप्पसेसलवो इमो। जिणप्पहमुणिंदेहिं लिहिओत्थ जहासुअं॥ श्रीरैवतकल्पः समाप्तः For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX VI अम्बिकादेवीकल्पः सिरिउजयंतसिहरसेहरं पणमिऊण नेमिजिणं । कोहंडिदेविकप्पं लिहामि वुडोवएसाओ ॥ अत्थि सुरट्ठाविसये धणकणयसंपयजणसमिद्धं कोडीनारं नाम नयरं । तत्थ सोमो नाम रिद्धिसमिद्धो छक्कम्मपरायणो वेयागमपारगमो बंभणो हुत्था । तस्स घरिणी अंबिणी नाम महग्घसीलालंकारभूसियसरीरा आसि । तेसिं विसयसुहमणुहवंताणं उप्पन्ना दुवे पुत्ता पढमो सिद्धो बीओ बुड्डु त्ति । अन्नया समागए पिअरपरके भट्टसोमेणं निमंतिआ बंभणा सद्धदिणे । कत्थ वि ते वेयमुच्चारन्ति, कत्थ वि आढवन्ति पिण्डपयाणं, कत्थ वि होमं करिति वइसदेवं च । सम्पाडिआ सालिदालिवंजणपक्कन्नभेअखीरखण्डपमुहा जेमणा । अविणीए असासुआ पहाणं काउं पयहा। तम्मि अवसरे एगो साहू मासोववासपारणए भिरकट्ठा संपत्तो । तं पलोइत्ता हरिसभरनिन्भरपुलइअंगी उडिआ अंबिणी । पडिलाभिओ तीए मुणिवरो भत्तिबहुमाणपुव्वं अहापवित्तेहि भत्तपाणेहि । जाव गहिअभिरको साहू वलिओ ताव सासुआ वि पहाऊण रसवईठाणमागया। न पिच्छइ पढमसिहं । तओ तीए कुविआए पुट्ठा वहुआ। तीए जहट्टिए वुत्ते अंबाडिआ सा अज्जूए । जहा पावे किमेयं तए कयं, अज वि देवया न पूईआ अज वि न मुंजाविआ विप्पा अज वि न भरिआई पिंडाइं अग्गसिहा तए किमत्थं साहुणो दिन्ना। तउ तीए भणिओ सव्वो वि वइअरो सोमभट्टस्स । तेण संस्टेण अप्पच्छंदिअ त्ति निकालिआ गिहाओ। सा पडिभवदूमिआ सिडं करंगुलीए धरित्ता बुद्धं च कडीए चडावित्ता चलिआ नयराओ बाहिं । पंथे तिसाभिभूएहिं दारएहिं जलं मग्गिआ। जाव सा अंसुजलपुन्नलोअणा संवुत्ता ताव पुरओ ठिअं सुक्कसरोवरं तिस्सा अणग्येणं सीलमाहप्पेणं तकणं जलपूरिअं जायं । पाइआ दोन्नि सीअलं नीरं । तओ छुहिएहिं भोअणं मग्गिआ बालएहिं । पुरओ सुक्कसहयारतरू तकणं फलिओ। दिन्नाई फलाई । अविणीए तेसिं जाया ते सुत्था । जाव सा चूअछायाए वीसमइ ताव जं जायं तं निसामेह जंतीए बालयाई पढमं जेमाविआ तेसिं भुत्तुतरं पत्तलीओ तीए बाहिं उज्झिआओ आसि ताओसीलमाहप्पाकंपिअमणाए सासणदेवयाए सोवन्नकच्चोलयरुवाओ कयाओ । जे अ उचिट्ठसित्थकणा भूमीए पडिआ ते मुत्तिआई संपाईआई । अग्गसिहा य सिहरेसु तहेव For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः दंसिआ । एअमचन्भु सासुए दट्टण निवेईअं सोमविप्पस्स सिद्धं च जहा वच्छ सुलकणा पइव्वया य एसा बहू ता पञ्चाणोहिं एअं कुलहरं ति जणणीपेरिओ पच्छायावानलडझंतमाणसो गओ बहुयं वालेउं सोमभट्टो। तीए पिट्ठओ आगच्छन्तं दिअवरं निअवरं दट्टण दिसाओ पलोईआओ। दिट्टओ अग्गओ मग्गकूवओ। तओ जिणवरं मणे अणुसरिऊण सुपत्तदाणं अणुमोअंतीए अप्पा कूवंमि झंपाविओ। सुहज्झवसाणेण पाणे चइऊण ऊप्पन्ना कोहंडविमाणे सोहम्मकप्पहिढे चाहिं जोअणेहिं अंबीअदेवी नाम महडिआ देवी।विमाणनामेणं कोहंडी वि भन्नइ । सोमभट्टेण वि तीसे महासईए कूवे पडणं द8 अप्पा तत्थेव झंपाविओ। सो अमरिऊण तत्थेव जाओ देवो । आभिओगिअकम्मुणा सिंहरूवं विउव्वित्ता तीए चेव वाहणं जाओ । अन्ने भणंति अंबिणी रेवयसिहराओ अप्पाणं झंपावित्ता तप्पिडओ सोमभट्टो वि तहेव मओ । सेसं तं चेव । सा य भगवई चउन्भुआ दाहिणहत्थेतु अंबलुबि पासं च धारेइ वामहत्थेसु पुण पुत्तं अंकुसं च धारेइ उन्तत्तकणयसवण्णं च वण्णमुव्वहइ सरीरे। सिरिनेमिनाहस्स सासणदेवय त्ति निवसइ रेवइगिरिसिहरे । मउडकुंडलमुत्ताहलहाररयणकंकणनेउराइसव्वंगीणाभरणरमणिजा पूरेइ सम्मदिट्ठीण मणोरहे निवारेइ विग्धसंघायं । तीए मंतमंडलाईणि आरोहित्ताणं भविआणं दीसंति अणेगरूवाओ रिडिसिडिओ, न पहवंति भूअपिसायसाइणीविसमग्गहा, संपजंति पुत्तकलत्तमित्तधणधन्नरजसिरिओ त्ति । अंबिआमंता इमे । वयवीअसकुलकुलजलहरिहयअकंतपेआई। . पणइणिवायावसिओ अंबिअदेवीइ अह मंतो ॥१॥ धुवभुवणदेवि संबुद्धिपासअंकुसतिलोअपंचसरा। णहसिहिकुलकलअज्झासियमायापरपणामपयं ॥२॥ वागुब्भवं तिलोअं पाससिणीहाउ तइअवन्नस्स। कूहंडअंबिआए नमु त्ति आराहणामंतो ॥३॥ एवं अन्ने वि अंबादेवीमंता अप्पपररका वि सया सुरमणा जुग्गा मग्गखेमाइगोअरा य बहवो चिट्ठति । ते अ तहा मंडलाणि अ इत्य न भणिआणि गंथवित्थरभएणं ति गुरुमुहाओ नायव्वाणि । एअं अंबियदेवीकप्पं अविअप्पचित्तवित्तीणं । वायंतसुणंताणं पुजंति समीहिआ अत्था ॥१॥ इति श्रीअंबिकादेवीकल्पः । For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX VII. श्रीगिरिनारकल्पः। वरधर्मकीर्तिविद्यानन्दमयो यत्र विनतदेवेन्द्रः । स्वस्तिश्रीनेमिरसौ गिरिनारगिरीश्वरो जयति ॥१॥ नेमिजिनो यदुराजीमतीत्य राजीमतीत्यजनतो यम् । शिश्राय शिवायासौ गिरि० ॥२॥ स्वामी छत्रशिलान्ते प्रव्रज्य यदुच्चशिरसि चक्राणः । ब्रह्मावलोकनमसौ गिरि० ॥ ३ ॥ यत्र सहस्राम्रवणे केवलमाप्यादिशद्विभुर्धर्मम् । लक्षारामे सोऽयं गिरि० ॥ ४ ॥ निर्वृतिनितम्बिनीवरनितम्बसुखमाप यनितम्बस्थः । श्रीयदुकुलतिलकोऽयं गिरि० ॥५॥ बुद्धा कल्याणत्रयमिह कृष्णो रूप्यरुश्ममणिबिम्बम् । चैत्यत्रयमकृताऽयं गिरि०॥६॥ पविना हरिय॑न्तर्विधाय विवरं व्यधाद्रजतचैत्यम् । काञ्चनबलानकमयं गिरि० ॥७॥ तन्मध्ये रत्नमयीं प्रमाणवर्णान्वितां चकार हरिः । श्रीनेमेर्मूर्त्तिमसौ गिरि० ॥ ८॥ स्वकृतैतद्विम्बयुतं हरित्रिबिम्बं सुराः समवसरणे । न्यद्धन्त यदन्तरसौ गिरि०॥९॥ शिखरोपरि यत्राम्बाऽवलोकनशिरसि रङ्गमण्डपके । शम्बो बलानकेऽसौ गिरि० ॥ १० ॥ यत्र प्रद्युम्नपुरः सिद्धिविनायकसुरः प्रतीहारः । चिन्तितसिद्धिकरोऽसौ गिरि० ॥ ११ ॥ तत्प्रतिरूपं चैत्यं पूर्वाभिमुखं तु निवृतिस्थाने । यत्र हरिश्चक्रेऽसौ गिरि० ॥ १२ ॥ तीर्थेतिस्मरणाद् यत्र यादवाः सप्त कालमेघाद्याः । क्षेत्रपतामापुरसौ गिरि०॥ १३ ॥ For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः विभुमर्चति मेघरवो बलानकं गिरिविदारणश्चक्रे । यत्र चतुर्दारमसौ गिरि० ॥ १४ ॥ यत्र सहस्राम्रवणांतरस्ति रम्या सुवर्णचैत्यानाम् । चतुरधिकविंशतिरयं गिरि० ॥ १५ ॥ द्वासप्ततिर्जिनानां लक्षारामेऽस्ति यत्र तु गुहायाम् । सचतुर्विशतिकासौ गिरि० ॥१६॥ वर्षसहस्रद्वितयं प्रावर्त्तत यत्र किल शिवासूनोः। लेप्यमयी प्रतिमासौ गिरि० ॥ १७ ॥ लेपगमेऽम्बादेशात्प्रभुचैत्यं यत्र पश्चिमाभिमुखम् । रत्नोऽस्थापयतासौ गिरि० ॥१८॥ काश्चनबलानकान्तः समवसृतेस्तन्तुनेह बिम्बमिदम् । रत्नेनानीतमसौ गिरि० ॥ १९॥ बौद्धनिषिद्धः सडो नेमिनतौ यत्र मन्त्रगगनगतिम् । जयचन्द्रमादिशदसौ गिरि० ॥२०॥ तारां विजित्य बौद्धान्निहत्य देवानवन्दयत्संघम् । जयचन्द्रो यत्रायं गिरि० ॥ २१ ॥ नृपपुरतः क्षपणेभ्यः कुमायुदितगाथयाम्बयाlत यः। श्रीसङ्काय सदायं गिरि० ॥ २२॥ नित्यानुष्ठानान्तस्ततोऽनुसमयं समस्तसकेन । यः पठ्यतेऽनिशमसौ गिरि० ॥ २३ ॥ दीक्षाज्ञानध्यानव्याख्यानशिवावलोकनस्थाने । प्रभुचैत्यपावितोऽसौ गिरि०॥ २४ ॥ राजीमतीचन्द्रदीगजेन्द्रपदकुण्डनागझर्यादौ । यः प्रभुमूर्तियुतोऽयं गिरि० ॥ २५॥ छन्त्राक्षरघण्टाञ्जनबिन्दुशिवशिलादि यत्रहार्यस्ति । कल्याणकारणमयं गिरि० ॥ २६ ॥ याकुड्यमात्यसज्जनदण्डेशाद्या अपि व्यधुर्यत्र । नेमिभवनोबृतिमसौ गिरि० ॥ २७ ॥ कल्याणत्रयचैत्यं तेजःपालो न्यवीविशन्मन्त्री। यन्मेखलागतमसौ गिरि० ॥ २८॥ For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगिरिनारकल्पः । शत्रुञ्जयसम्मेताष्टापदतीर्थानि वस्तुपालस्तु । यत्र न्यवेशयदसौ गिरि० ॥ २९ ॥ यः षड्विंशतिविंशतिषोडशदशकदियोजनाऽस्त्रशतम् । अरषट्क उच्छ्रितोऽयं गिरि० ॥ ३० ॥ अद्यापि सावधाना विधाना यत्र गीतनृत्यादि। देवाः श्रूयन्तेऽसौ गिरि० ॥ ३१॥ विद्याप्राभृतकोवृतपादलिप्तकृतोजयन्तकल्पादेः। इति वर्णितो मयाऽसौ गिरिनारगिरीश्वरो जयति ॥ ३२ ॥ इति श्रीधर्मघोषसूरिकृतः श्रीगिरिनारकल्पः । For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX VIII Inscription of the reign of A lapkhan in the temple of Sthambhana Pârsvanâtha at Cambay. ___ॐ अहं संवत् १३६६ वर्षे प्रतापाक्रान्तभूतलश्रीअलावदीनसुरत्राणप्रतिशरीरश्रीअल्पखानविजयराज्ये श्रीस्तंभतीर्थे श्रीसुधर्मास्वामिसंताननभोनभोमणिसुविहितचूडामणिप्रभुश्रीजिनेश्वरसूरिपट्टालंकारप्रभुश्रीजिनप्रबोधसूरिशिष्यचूडामणियुगप्रधानप्रभुश्रीजिनचंद्रसूरिसुगुरूपदेशेन ऊकेशवंशीयसाहजिनदेवसाहसहदेवकुलमंडनस्य श्रीजेसलमेरौ श्रीपार्श्वनाथविधिचैत्यकारितश्रीसम्मेतशिखरप्रासादस्य साहकेसवस्य पुत्ररत्नेन श्रीस्तंभतीर्थे निर्मापितसकलस्वपक्षपरपक्षचमत्कारिनानाविधमार्गणलोकदारिद्रयमुद्रापहारिगुणरत्नाकरस्य गुरुगुरुतरपुरप्रवेशकमहोत्सवेन संपादितश्रीशनुजयोजयंतमहातीर्थयात्रासमुपार्जितपुण्यप्राग्भारेण श्रीपत्तनसंस्थापितकोद्दडिकालंकारश्रीशांतिनाथविधिचैत्यालयश्रीश्रावकपौषधशालाकारापणोपचितप्रसृमरयशःसंभारेण भ्रातृसाहराजुदेवसाहवोलियसाहजेहडसाहलषपतिसाहगुणधरपुत्ररत्नसाहजयसिंहसाहजगधरसाहसलषणसाहरत्नसिंहप्रमुखपरिवारसारेण श्रीजिनशासनप्रभावकेण सकलसाधर्मिकवत्सलेन साहजेसलसुश्रावकेण कोद्दडिकास्थापनपूर्व श्रीश्रावकपोषधशालासहितः सकलविधिलक्ष्मीविलासालयः श्रीअजितस्वामिदेवविधिचैत्यालयः कारित आचन्द्रार्क यावन्नंदतात् ॥ शुभमस्तु । श्रीभूयात् श्रमणसंघस्य । श्रीः। For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX IX Inscriptions on the Satrunjaya Hill pertaining Samarâ's installation of the image of Âdiśvara. संवत् १३७१ वर्षे माहमुदि सोमे श्रीमदूकेशवंशे वेसटगोत्रीयसा० सलषणपुत्रसा आजडतनयसागोसलभार्यागुणमतीकुक्षिसंभवेन संघपतिआसाधरानुजेन सा लूणसीहाग्रजेन संघपतिसाधुश्रीदेसलेन पुत्रसा०सहजपालसा साहणपालसा सामंतसा समरसा०सांगणप्रमुखकुटुम्बसमुदायोपेतेन निजकुलदेवी ( सच्चि ) कामूर्तिः करिता । यावयोमनि चंद्राकौं यावन्मेरुर्महीतले । तावत् श्री ( सच ) का मूर्तिः... संवत् १३७१ वर्षे माहसुदि १४ सोमे "ज्ञातीयराणकश्रीमहीपालदेवमूर्तिः संघपतिश्रीदेसलेन कारिता श्रीयुगादिदेवचैत्यालये। __ संवत् १३७१ वर्षे माहसुदि १४ सोमे श्रीमदूकेशवंशे वेसटगोत्रे सा० सलषणपुत्रसा०आजडतनयसागोसलभार्यासागुणमतिकुक्षिसम्भूतेन संघपतिसा०आशाधरानुजेन सा लुणसीहाग्रजेन संघपतिसाधुश्रीदेसलेन सा०सहजपालसा साहणपालसा सामंतसा समरसीहसा सांगणसासोमप्रभृतिकुटुंबसहायोपेतेन वृद्धभ्रातृसंघपतिआसाधरमूर्तिः श्रेष्ठिमाढलपुत्रीसंघरत्नश्रीमूर्तिसमन्विता कारिता । आशाधरः कल्पतरूबहोयमाशात्रिकं पूरित.....।"" लंकृतबाहुयुगो युगादिदेवं प्रयतः प्रणौति ॥ चिरं नंदतात् ॥ ॥ शुभं भवतु ॥ __ संवत् १४१४ वर्षे वैशाषसु १० गुरौ संघपतिदेसलसुतसा समरसमरश्रीयुग्मं सा०सालिगसा सजनसिंहाभ्यां कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीकक्कसरिशिष्यैः श्रीदेवगुप्तसूरिभिः। शुभं भवतु ॥ For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APPENDIX X पेथडरासः विणयवयणि वीनवउं देवि सामिणि वागेसरि हंसगमणि आकाशभमणि तिहूयणि परमेसरि । वीरजिणिंदह नमीय चलण चउविहुश्रीसंघिहिं कवडजक जकाधिराज समरीय मनरंगिहिं ॥१॥ कोडीयनयरनिवासिणी य वंडं अंबिकदेवि । शासनदेवति मनि धरीय गुरुचलण नमेवि ॥ २॥ रास रमेवउ जिणभुवणि तालमेल ठवि पाउ । संघतलायन रोपीउ ए सभगिरि विभगिरि बेवि ॥३॥ निसुणउ धामी एकमनि महीयलिमज्झि पहाण । जास बोध निरवमतिलउ पेथ अगंजीयमाण ॥ ४ ॥ षिण एक तस गुण संभलउ संघपति साहसधीर । अकलीअ कलि जिम छेतरीअ गरूउ गुहिर गंभीर ॥५॥ पोरूआडकुलिमंडणउ वईमाणकुलिलीह। चांडसीहकुलि अवतरीया पेथपमुह सुतसीह ॥ ६ ॥ जिम कंचण कसवट्टीयए पामिउ बहुगुणरेह । बंधवि पेथपरीषीयइ बहू कालि घरि एह ॥७॥ बइसीय पेथड पाटे बंधव बोलावइ नरसीहरतनह कारे मनि मंत्र चलावइ । मणूयजन्म अतिदुलह अनइ श्रावयजम्म जीव लहइ बहुपुण्य जगि जिणवरधम्म ॥ ८॥ धणकणरयणभंडार ते सवि अछह य असार। संचइ मोहनबंध ते सव्वि जाणे गमार ॥९॥ लाछितणउ जउ गरव करेई लीजइ राउल छल ह धरेई । मणूयजनम हवं सफल करीजइ जीविययौवनलाहउ लीजइ ॥१०॥ अथिरलाछि किम थिर ह करीजइ जिणह धंम तस ऊपम दीजइ । सेत्रुजि रिसहसामि वंदीजह विवि कारिहं प्रभु पूजीजइ ॥ ११ ॥ For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेथडरासः मिलि बंधवि कीयउ वयण प्रमाण एकचित्ति सवि समाण जाण । साते बंधवि की विचार सविहुं काजि लिउ नरसीअ भार ॥ १२ ॥ धम्मीय निसुण लोयमज्झि संघतणउ समाहउ भवीअणउ आणूं दीजइ भत्तिजत्ति भवीया लहइ लाहउ धणकणउ । लसि रुलीय रंगि रास हवं नवरस नवरंग नवीयपरे सुणि सामहणी संघतणी जो करई निरंतर घरेहिं घरे ॥ १३ ॥ जोइन देवालउं सामुहिउं तीहं माहि सुरेसर जिण ठवीय । देस साउर वरनयर तिहिं लेवि कंकोत्री पाठवीय ॥ १४ ॥ पाटण पइसीय सामति तहिं कर्णनरेसर भेटीय वीनवीउ । तीरथजात्र जायवरं देव तहिं देसवटउ सपसाउ कीउ ॥ १५ ॥ तहिं वेग लेउ पण आवीउ ए सयलसंघ तहिं हरसीय नीयमणि नयर पसाइरउ कीधउ तक्खणि तहिं नाचदं कुतिगकुतिगीयां । घरि घरि बइसी लोय मनावीय साजणसाहसरिस संम्हावी गामागर - पुरपाटणह ॥ १६ ॥ दूसमसमइ अहि जिम तिरीयु तारणतरंड रिसह मन घरी फल लीजइ जनमहतणउं । एकभावि नर जिगह धम्म परिरिहवरकलीय रमाउलीय ॥ १७ ॥ केवि कुतिग नर जोई निरंतर भलां भलेरां अतिहिं वहिला ऋषभवर । कामिणि धामिण धवल दियंती गायंती गुण जिणवरह | अतिऊमाहु जात्र समाहउ करीयल कंनि सुणंतीहं य ॥ १८ ॥ ते चउरा रूडा तडवां ताडी नवांनवेरां दीसई गेहणगण सघण | ते घणाघरा समविसमेरा संखि न दीसरं असंखि पुण ॥ १९ ॥ देवालइ बालीय नयणि विसालीय दितीय ताली रंगि फिरंती हरिसभरे । तहि नाचई खेला बहुयत वेला बाला भोला लउडा रसि रमई ॥ २० ॥ अतिरंगिं पूरी दिता भमरी नवपरि नवरंगइ तियसपरे । परममहोच्छव कीउ देवालइ फागुणपंचमि वीतसीयालइ प्रस्थानं कीयं पवरणि ॥ २१ ॥ संघपति सोहडदेउ वोनवोई तीरथजात्र जाइवउं गोसामीय । सेलहुत सीषामणह बहुय परघउ पणवि रहावीय । वह मल्ल ले पनि आवीय संघ देवालइन रोपीउ ए ।। २२ ।। १६ For Personal & Private Use Only २५ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः संघपूज तिहां कीधउं अवारी भोयण सयल लोय सवि पूरीय महोच्छव कारवीय ॥ २३ ॥ लढण ॥ फागुणदसमि दिणंद चलीय संघ दहदिसितणउ । हसमस धसमस जोइ मिलीय लोक पण अतिवणउ ए ॥ २४ ॥ वहतमल्ल अगेवाण तुरीय ठाठ जोई पाषरीय । पुलेहिं पलाण जोइ इकि देवालइ फिरीय ॥२५॥ पहिलउं दीथी लागि जोइन देवालां संचरई ए। अखंड पीयाणे जाइ पहिलउं पीलूयाणइ रहीय ॥ २६ ॥ चलीय संघसंजुत्त पहुतउ वेगि डाभलनयरे । तीहं दीन्हा वास भास रास रुलीयामणां ए। देवालइ ऊछाहु चैत्रप्रवाडि सोहामणी ए ॥ २७ ॥ वडराउत वषाणि करणराउ मनि सलहीइ ए। देद दयापरजाम वील्हणवंस वषाणीइ ए ॥ २८ ॥ पहुतउ देवालइ तोइ हरसीय संघ प्रसंसीइ ए। पेथडसमउ न कोई मारगि मन तुम्हि बीहिसिउ ए ॥ २९ ।। दीन्ह पीयाणउं तोइ मयगलपरि तुम्हि संचरीय । वेगि पहूता तोइ नयरमाहि ते तरवरीय ॥ ३० ॥ आंगणि दीन्हा वास देवाला पावलि फिरीय । भविंया पणमउ पास जिणह भूयण रुलीयामणउं । कीधीय चैत्रप्रवाडि देवदेवांगणि पेषणउं ए ॥ ३१ ॥ संघह की वत्सल्ल धम्मी नागलपुरतणे ए। चलीय पीयाणइ जाम मारगि माग न जाणीइ ए ॥ ३२ ॥ सहू यालइ गीयं ताम संघपति पेथ वषाणीइ ए। नयणि निहालइ लोक पुण्यवंत धनवंत तहिं ॥ ३३ ॥ पूजीया जिणभूयणाइं भविया मणोरह चित्ति धरे । कीउं पीयाणउं भावि अखलीयछीतीयहारि तहिं ॥ ३४ ॥ पेथावाडइ जाइ भेटीय मंडणदेव तहिं । लाध मानप्रमाण सीकिरि आवई गुणपवरो ॥ ३५ ॥ भयु मनि करिवउ तुम्हि मारगि जाउ तम्हि । गिया ते जंबू जाम संघह पार न पामीय ए। For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेथडरासः २७ भेटीय झलु ताम पणवि पीयाणउं धामीयहं ॥ ३६ ॥ भडकूए आवास गोहिलसंडउ धरीय मनि । बहुगुणवंत सुजाण राण पहूतउ तेण खणि ॥ ३७॥ संघह दीन्ही धीर वलीय संघपति एकमनि । राणपुरे संपत्त संघ कनालइन रहइ ए॥ ३८ ॥ चलीय सरीस उषराण वसहसंड संघपति भणइए। मई मन मेल्हि निरास प्राण राणहूं मन हरेसो ॥ ३९ ॥ बइठउ संघपतिपासि रंजीय मलीयायत हरिसे । गुणगरूउ मुग्खराउ लोलीयाणपुरसई धणीय ॥ ४०॥ धरउ धर्मनउ ठाउ भवीय भावि तीणइ बह भणीय । दीन्ह पीयाणनीयाण उपरिं पीपलाइमणीय । चउरा दीन्ह विहाण डूंगरा देषीय मनि रुलीय ॥ ४१ ।। दीठउ डूंगर दृरिथियां चडीय सरोवरपाले । संघपति दई वधामणी हरिषीऊ ए हरिषीऊ ए हरिषीउ नयणि निहाले॥४२॥ कुंकुमि च्छडउ दिवारीउ ए तहिं पाथरीया पाट । चाउलि चउक पूरावीउ ए सपरिपरे सपरिपरे सपरि पढई बहुभह ॥४३॥ पढई भाट संघपति निसुणि पेथड पुण्यपवित्त चंडसीधरि अवतरीउ गुरुदेवे गुरुदेवे गुरुदेवे सुय सत्त। थापीउ डूंगर पण तिलउ फूलपगर ते चंग पाउल नाचई रंगभर गायंती ए गायंती ए गायंती मनह सरंग ॥ ४४ ॥ कापड कंचण दिन्ह तहिं बहुगुण पूरी आस । संघपति करह वधामणउं चलीऊ ए चलीऊ ए चलीउ पालीयताणइ वास॥४५॥ गंगाजल जिम निर्मल ललतासर सुपवित्त । सीधषेत्र तीरथतिलउ तिससयरे तिससयरे तिससयरे संपत्त ॥ ४६॥ मरुदेवि सामिणि पय नमीय संतिनाह सुरराउ । पालितसूरिप्रतिष्ठिउ ए सोलमू ए सोलमू ए सोलमउ जिणराउ ॥४७॥ डूंगरसिरि जे पाहरीय कवडिजक्खपडिहारो। संघ जि सांनिध सो करइ पहिलूं ए पहिलूं ए पहिलूं पास जुहारे ॥ ४८॥ अणुपम सर देषेवि तहिं पढूंता पालियारि । सरगारोहण दिट्ट तहिं अहिणव ए अहिणव ए अहिणव ईणं संसारे ॥ ४९ ॥ For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अष्टापद अवलोईई ए इंद्रमंडप अतिचंग। नंदीसर अहिणव तहिं देषीऊ ए देषीऊ ए देषीउ मनिहिं सुरंग ॥५०॥ मंडपि पहुतउ पवित्र तहिं लोटींगणां करेउ । पणमीय सामीय रिसहजिण तिन्नि प्रदक्षिण तिन्निप्रदक्षिण तिनि प्रदक्षिण देउ ॥५१॥ दीठल्ला पद्महकमल निम्मल युगादि जिण पथठला सामी पढमजिण विम लगिरे। भवीयच्छुणंत सामी लागला तम्ह वइं नामि नमोय नमो नमो सेत्रुजसिहरो५२ वायवडामणउं अतिहिं सोहामणुं रिसहभूअणि रुलीआमणं ए भवीयजन कलस कंचणमय मंडियले ए दुक्ख जलंजलि देयंति कुसुमंजले ॥ थुणंति दीणरीण जीण ऊतारंति जललवण नम्हण करंति सामीसुगंधजले ॥ कपूरिपूरि पूरीय तिणि कीय लि मृगनाभिमंडण त्रिजगगुरु गुणनिलउ देवाधिदेव जोउ वेलवउ सेवत्रीपाडल बहल कुसुम परमल विपुल पूजहे। वायवडामणं ॥ भवीयमणि बहआणंदि आरती ऊतारइ जिणिंद पढई भट्ट मंगलिक रिसह सामि । तिलक भलउ लि कीय ले कंठि वरमाला ठविय ले चाउलि सिरि वडावीय लि। धन धामी वडामणउं ॥ भवीयजण रंजिय मनि दियंति ते दीण दुथीय जण मग्गण दाणु नचंति नवनवी रमणि वीणवंसमृदंगमणि तिवल्लि तालनिनाद सुणि पूरीय भवण । वाइवद्वामणु० ॥ आय कि रिसहेसर तम्ह परमेसर सामीसाल चिरकालि मुक्किवर । तम्हची पाय ए कमलभमर भविक जन जयउ जगनाथ तुं जगतगुरो ॥ वाय वडाम०॥ अखंडकोडाकोडि सिद्धि ले तीथयर गोत्र बंधीय ले पूजीयु हरिसह मनि मन मिलीउ। आयस मग्गीय जव चलीय पूरीय संघ मरुलीय मनि निचंतीय पेथडकंठि टो डर ढलीउ । वायवद्धामणं० ॥ आयस मग्गिय पेथ ज चलीउ ढलीय टोडर संघपति मोकलावए सयलसंघो पहत पालीताणए घरि घरि साहनीवच्छल कारए । For Personal & Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेथडरासः २९ वावीय वित्त तिहि सयलसिद्धिक्षेत्रे जन्मफल लेउ जो बहुधणवंतइं रूपावटी चलीय पीयाणए । वडउ संघातिपति लोक वखाणए सेलडीया संघ पहत तहि चलयउ अखंड पीआणए । जाइ अमरेलीयपीयाणए पहतउ वेगि तहिं पण विक्रीयाणए विसमगिरि लं घीयउ पूरि मनि आसह ॥ तेजलपुरि अंगणि दीन्हा वास उग्रसेनमंदिरु दीठ पगार अयनरकवि भणइं गढवि खइंगार । गरूअउ दीसए पोलिपगार नरपम नरसीअ नरआधार ॥ मंडलकि मंडिउ वास तहिं विसमए सुरठ वडदेस ... लोक तहि निवसयए । गिरि गुरूउ गिरनार स पसिद्धउ ता लहि दमोदरो देय प्रसिद्धउ वहि सोवन रेख नदी जलपूरीय । कालमेघो क्षेत्रपाल गिरिपाहरी मंत्रिबाहड देवि पाज करावीय धवलीय वर परव तीण करावीय । विसम डूंगर गुरूउ गिरनारो चडीय नेमिकुमरि लीयउ संजमभारो दिनि चउपनि वरनाण ऊपजइए जगतिगुरु जिणिह वर तसु सिहरे सिज्झए । सीधु सामी सामलउ तसु सिहरि संघ पहूतउ ऊलट आंगिहिं अतिघणउ देषीउ राजलकंत ! तहि नाचिनए ए सहिलडी ए लला गीय गिरिनारे राजलिवर रुलिआमणउ सामलडउ संसारो । तहिं नाचिनए०॥ अंग पखालि सुगयंदमइ ए जल पहरीय धोति प्रवीत । इंद्रमहोत्सव आयरंभी तहिं बयठ लि बहुधणवंत । तहिं नाचिनए सहि०॥ इंद्रमालउच्छाह करी जो वेवीय विभव नीयाणि । सफलमणोरह पूरीय संघपति चडीयलि इन्द्रविमानि ॥ तहिं नाचिनए० ॥ चमरधारि सरतारसवंगी गावंती बहु आसीस। सामलसाषि किरि संघपति नंदउ बहत वरीस ॥ तहिं नाचिनए०॥ गयंदमइ ए नीरि कलस जलभरीय लि कपूरिहिं भंगी महापूज अहिसीम । नय कलीय लि आरती ऊतारउ मंगलिक संघपति ईम ॥ तहिं ना० ॥ अंबिकि आस मणोरह पूरी अवलोईय जगन्नाथ सांबपजून जुहारीय वलीयउ पेथ जन्म सुकीयाथ ॥ तहिं नासहलली ए रुली या गई गिरिनारि ॥ For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीनगूर्जरकाध्यसङ्ग्रहः सोमनाथचंदपह वंदीय देखीउ वलीउ जाम दिउ पीयाणं हिव मन रहिसउ मंडलिक भणइ ईम ॥ तहिं ना०॥ दिउ पीयाणं वेगि तहिं हरीयाला सूडा रे सूरवाहे संपत्त मनीला सूडारे ॥ इति श्रीप्राग्वाटवंशमौक्तिकव्य० पेथडरासः समाप्तः ।। For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ai :::::: Vachandrasuti : "GAEKIVAD'S ORIENTAL SERIES." ALREADY QUT. 1. Kavyamimaysa by Rajasekhara Naranarayananauda by Vasturals . 3. Tarkasangrahaeby Anandajnania Parthaparakrama by Prahladannde on... 5. Rashtraudhavanga Mahakivya by Rudiakavi 6. Lingan sasana by Vara2 ... ... 7. Vasantavilasa by Balachandrasuri ... 8. Rupakashatka by Vatsa raja ... 9. Moha parajaya by Yasah pala ... 10. Mahavidyavidainbana by Bhatta vadindia, with commentary Bhuvanasundarasuri ... ... ... ... 11. Udayasundarikatha by Soddhala 12. Kumarapalapratibodha by Soma prabhacharya *13. Ganakerika by Bhasarvajna with Karavanamahatmya (a work on the Pasupata system of worship) *14. Lekhapa nchasika 15. Hamframadamardana by Jayasinhasuri 2- 0-0 16. Prachinagurjarakavyasangraha-Part I. ... 2- 4-0 *17. Panchamika ha by Dhanapala (A pabhramsa) *18. Sangitamakaranda by Narada. IN THE PRESS. 1. Tattvasangraha of Santarakshita with commentary by Kamalasila 2. Parasurainakalpasatra with commentary by Ramesvara and Paddhati by Umananda. 3. Nyayapravesa of Dinnaga with commentary by Haribhadra siri and Panjika by Parsvadeva. 4. Siduhantasara kaustubha isy Jagannatha (Sanskrit from the Arabic "Almagisti," Ptolemy's work on Astronomy). 5. Varahasrautasutras. 6. Samarangana by Bhoja (a work on Indian Architecture). IN PREPARATION. 1. A descriptive catalogue of the palm-leaf manuscripts in the Bhandar at Jaisalmere. A descriptive catalogue of all the 658 palm-leaf manuscripts and. important Paper manuscripts in the Bhandars at Pata 11. 3. A descriptive catalogue of the Manuscripts in the Central Library, Baroda. 4. Abhilashitarthachintamani by Somewne . Serving JunShasan A Aparajitaprccbha (A wor] Katara (Translation into work,) hy Nayanas!ikhopadhyaya. Sangitarat'navali by Somai 080465 Manavaka!pasatras with c gvanmandirokobatirth.org a. Asvalayanasrautasutras wilu commentary by Devatrata. Apastambasrautasutras with commentaries by Dhartaswainin and Kanardi. Bodhayanasrautasutras with commentary by Bhavaswamin. 8. Hiranya kesiyasrautasutras will commentary by Matrdatta. 9. Jaiminiyasrautasutras with contentary by Blavatrata. Srautapaddhati, by Talavrintanivasin, Sanirat-Siddhanta by Jagannatia. 0. Will be out shortly. B.-The above books can be had from the Central Library, Baroda. For Personal & Private Use Only