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सर्वतीर्थनमस्कारस्तवन
जि जंतु ताह मिच्छा मि दुक्कडं । पनर कर्मभूमि जि मनुष्य त्रीस अकर्मभूमि जि मनुष्य तीहिं मिच्छा मि दुक्कडं। छप्पनअंतरद्विपतणा मनुष्य तीहं मिच्छा मि दुक्कडं । सातनरकतणा नारकि दशविध भवनपति अष्टविध व्यंतर पंचविध जोइसी दैविध वैमानिकदेवा किं बहुना । दृष्ट अदृष्ट ज्ञात अज्ञात श्रुत अश्रुत स्वजन परजन मित्रु शत्रु प्रत्यक्षि परोक्षि जे केइ जीव चतुरासी लक्षयोनि ऊपना चतुर्गतिक संसारि भ्रमंता मइं हुमिया वंचिया सेहिया सीरीविया हसिया निंदिया किलामिया दामिया पाछिया चूकिया भवि भवांतरि भवसति भवसहस्रि भवलक्षि भवकोटि मनि वचनि काई तीह सर्वहई मिच्छा मि दुक्कडं । अढार पापस्थान वोसिरावइ इहुसवू प्राणातिपातू सर्दू मृषावादू सर्दू अदत्तादानू सबूं मैथुनू सर्दू परिग्रहू सबूं क्रोधू सर्दू मानू सर्वइ माया सळू लोभू प्रेमु देषु कलहु अभ्याख्यानु रति अरति पैशून्यु मिथ्यादर्शनशल्यु परपरिवादू अढार पापस्थान त्रिविधिहि मनि वचनि काइ करणि करावणि अनुमति परिहरउ । अतीतु निंदउ वर्तमानु संवरहु अनागतु पावरकउ । पंचपरमेष्ठिनमस्कार जिनशासनिसारु चतुर्दशपूर्वसमुडारु संपादितसकलकल्याणसंभारु विहितदुरितापहारु क्षुद्रोपद्रवपर्वतवज्रप्रहारु लीलादलितसंसारु सु तुम्हि अनुसरहु, जिणि कारणि चतुदेशपूर्वधर चतुर्दशपूर्वसंबंधिउ ध्यानु परित्यजिउ । पंचपरमेष्ठिनमस्कार स्मरहि, तउ तुम्हि विशेषि स्मरेवउ, अनइ परमेश्वरि तीर्थकरदेवि इसउ अथु भणियउ अच्छइ, अनई संसारतणउ प्रतिभउ म करिसउ, अनइ रुद्धिनमस्कारु इहलोकि परलोकि संपादियइ ॥ आराधना समातेति ॥
यदक्षरं परिभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
क्षन्तव्यं तद्बुधैः सर्वं कस्य न स्खलते मनः ॥ संवत् १३३० वर्षे आश्विनसुदि ५ गुरावयेह आशापल्ल्याम् ॥
अतिचार (संवत् १३४० ना अरसामां लखायला जणाता ताडपत्रमांथी)
कालवेला पढ्यं, विनयहीणु बहुमानहीणु उपधानहीणु गुरुनिण्हव अनेराकण्हई पढ्यं, अनेरई कहई व्यंजनकूडु अर्थकूडु तदुभयकूडु कूडउ अकरु कानइ मात्रिं आगलउ ओछउ देवंदणवांदणइ पडिक्कमणइ सझाउ करतां
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