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प्राचीनगूर्जर काव्यसङ्ग्रहः
किण कारणि वइराग तं कारण अम्ह बोलीइ ए । मेल्ही अइ बाल कणयकोडि नवाणवइ ए । अनइ रिद्धि बहूत तिहिं पुण पार न जाणीयए । जंबूसामिचरित महिमंडलि हुडं अच्छरीय ॥ ३५ ॥ इणि कारणि वयराग तृण जिभ दीठउ मेल्हतउ ओ । अम्ह सोइ जि सामि तम्हे भलई अछजिउ ओ । मोहनरिंदशडं झूझ संजमकित्तिई झूझसिउं ओ ॥ ३६ ॥ ठवण - प्रभव पंचसएण अट्ठइवहयरमाइबप्पो ।
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सविक ए रूठ जाइ नीयघरहूंतु नींसरइ ए । चालीउ ए सिवपुरिसाथ सारथवय तिहिं जंबुसामि । तिहुयणी ए जयजयकार सोहम देषीउ जंबुसामि । कंचण एरयणिहिं दाण जिम घण वरसइ भाद्रवए । सयत ए ईह गोलोक भवियजणसंवेगकरो ॥ ३७ ॥ ठवण - कसरी पिइ माइ पुत्र कलत्र धन्न धण ।
देसी कुडिसारिच्छ जिण जिम जंबू परिहरए । अनइ लोक बहुत व्रत लेवा तिहिं चालीउ । वंदिय जिणभवणाई सोहम्मसामिपासि गयउ ॥ ३८ ॥ भवसायर ऊतार जम्मण मरणह बीह तउ ओ । पंचमहव्वयभार मेरुसमाण अंगमइ ए । अनु तेतर परिवार सोहमसामिहिं दिरकीउ ओ । हूड केवलनाण संजमराज ह पालतां ए ॥ ३९ ॥ वीरजिदिह तीथि केवलि हूड पाछिलउ । प्रभवउ बसारीज पाटि सिद्धिं पहुतु जंबुस्वामि । जंबूसामिचरित पढई गुणई जे संभलई । सिडिक अनंत ते नर लीलाहिं पामिसिहं ॥ ४० ॥ महिंदसूरिगुरुसीस धम्म भणइ हो धामीऊ ह । चिंतउ रातिदिवसि जे सिद्धिहि ऊमाहीया ह । बारहवरससएहिं कवितु नीपनूं छासठए । सोलह विज्जावि दुरिय पणासउ सयलसंघ ॥ ४१ ॥ इति श्रीजंबुस्वामिरासः ॥
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