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सप्तक्षेत्रिरासु
सप्तक्षेत्रिरासु
सवि अरिहंत नमेवी सिद्ध सूरि उवझाय ।
पनरकर्मभूमिसाहू तीह पणमिय पाय ॥ १ ॥ जिणसासणहमाहि जो सारो चउदह पूरवतणउ समुधारो। समरिउ पंचपरमिष्ठि नवकारो सप्तक्षेत्रि हिव कहउ विचारो॥२॥
धुनु धुन ते जि संसारे जीहं जिणवरु स्वामी ।
गुरु सुसाहु जिणभणि धम्मु सुग्गइगामी ॥ ३ ॥ बारि अंगि दुलहु मणुजम्मु अनी अ विशेषिहि जिणवरधम्म । सम्मत रयणु चिति निवसइ जीह सोहग ऊपरि मंजरि तीह ॥ ४॥
पुणु जिणसासणु दुलहउँ जीव संभलि कथनु निरुपम ।
नाणुपहाणु एकु जि जिनवरधम्मु ॥५॥ भरहखित्ति खट्षंडह थित्ति केवलनाणि जिणवर जंपति । वैताठ्यपरहां त्रिन्नि खंड होइ तहि धरमनामु निवरतन तोइ ॥६॥
उल्या बिहु खंडि थित्ति केवलि इम आषइ ।
तीहमांहि दुनि षंडने पडिया पाषा ॥७॥ मज्झिम षंड इकु बइनी मडिउ तेउ बिहुभागि पाछइ पडिउं । चउथउ भाग धरमनइ लागे तेउ जोईजइ सयमइ भागे ॥ ८॥
ते अ नवाणवइ भाग साहू मिथ्यातिहि जडिउं ।
थाकत कुमतिकुबोधिकुगुरुग्गहि पडिउं ॥९॥ थोडा जीव केई दीसंते जे जिणभणि मनिहि करंति । हिव तिहुयणिहि सारु समिकत्तु पामिउ जीवि जिनभणिउ नवतत्तु ॥१०॥
बार वरत तइं पामिउ जे जिणवरि वुत्ता।
सुगइनिबंधण सत्ता जीव मुगति दीयंता ॥ ११ ॥ प्राणातिपातव्रतु पहिलउं होई बीजउ सत्यवचनु जीव जोई। त्रीजइ व्रति परधनपरिहारो चउथइ शीलतणउ सचारो ॥ १२॥
परिग्रहतणउं प्रमाणु व्रतु पांचमइ कीजइ ।
इणपरि भवह समुद्दो जीव निश्चय तरीजइ ॥ १३ ॥ छठ व्रतु दिसितणउ प्रमाणु भोगुवभोगव्रत सातमइ जाणु । अनरथव्रतु दंड आठमउं होइ नवमउं व्रत सामायकु तोह ॥ १४ ॥
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