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________________ ११२ प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः करियां । किस्यां किस्यां ते आभरण । हार अईहार त्रिसर प्रालंब प्रलंब कटीसूत्र कांची कलाप रसना किरीट मुकुट पट्ट शेषर चूडामणि मुद्रिका तबक दशमुद्रिका केयूर कटक कंकण ग्रैवेयक अंगुलीयक अंगुस्थल हेमजाल मणिजाल रत्नजाल गोपुच्छक उरस्त्रिक चित्रक तिलक कुंडल अभ्रमेचक कर्णपीठ हस्तसंकली नूपुरप्रमुख आभरण जाणिवां । ईहमाहि स्त्री योग्याभरणि कन्या हुई अलंकृतगात्र, हुई रूपतणउ पात्र, मस्तकि धरियां सीकिरितणां छात्र । कन्यातणइ सिरि सिंदृरि भरिउ माग, मुखि तांबूलराग; आविडं नरविमान, तीणि चडी ते चाली देवांगनासमान । आगलि हुइ वादिवध्वनि अनइ गीत गान । ईणिइं परिइं सकललोकहुई आश्चर्य करती, हाथि वरमाला धरती; महोत्सवसहित कुमरि, पहुती मंडपतणइ द्वारि । ते देषी नरेश्वर सवे मकरध्वजइ मनाविया हारि, चीतवइ ए रंभा कि तिलोत्तमातणइ अवतारि । तेहतणा पाणिग्रहणतणी वांछा धरई, विविध चेष्टा करइं । एकि राय आपणा हीयानउ हार हलावई, एकि बांहतणा बहिरषा चलावइं; एकि रत्नमय दडा ऊलालई, एकि छुरी ऊछालई; एकि मित्रसिउं वार्तालाप मांडइं, एकि दृष्टिरहइं विनोद ऊपजावई, क्षणु एक षांडई, एकि संभालई कानि कुंडल, ईणिपरि विविध चेष्टा करई राजमंडल । तिसि समइ जि जोइवा आव्या आकाश देव अनइ दानव, पृथ्वीपीठि संख्या नही मानव; मिलिया सिद्ध अनइ किंनर, संख्या नहीं विद्याधर । हिव कन्या आभरणितेजि उल्लसती, रंभारहई हसती; स्वयंवरमंडपमाहि आवी, तु यशोधरा इसिइं नामिइं प्रतीहारीइं बोलावी । अहे कुमरि, अद्भुत गुण ताहरा संसारि, जेहे आकर्षिया हुंता आसमुद्रांतपृथ्वी. तणा राय मिलिया, इसिउं जाणिउं जेहरई तुं वरसि तेहना मनोवांछित पासा ढलिया, मनोरथ फलिया। हिव जोइ तुझ आगलि दसलक्षमगधदेसतणउ नरेश्वर, सहिजिइं अलवेश्वर; राजगृहनगरतणउ राजा मकरध्वज इसिइ नामि दीसइ । जेह राजातणइं कृपाणि राज्यलक्ष्मी वसइ, मुखि सरस्वती उल्लसइ; तूठउ दारिद्य हरइ, दीठउ आनंद करइ; रणांगणि गयवरतणी गुडि गांजइ, शत्रुभट भांजई; इस्यु भूपाल, एहतणइ कंठि घाति वरमाल । अथवा ए जोइ वाणारसीतणउ राउ, भांजइ वयरीतणउ भडिवाउ; ए सरागदृष्टि अवलोकी, जेहतणउ प्रताप प्रसिद्धउ त्रिहुं लोकि; जेहतणइ गजलि चालतइ हुँतइ इंद्रहुंइ सपक्षपर्वततणी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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