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पृथ्वीचन्द्रचरित्र
११३ शंका नींपजई । जेहतणइ तरलतुरंगमि प्रसरइ हुंतइ वइरीरहतइ प्रलयकालोद्धतसमुद्रकल्लोलतणी शंका नीपजइ । इसिउ प्रचंडबल, अखंडभुजबल; अकल, सकल; कर्मचंद्रनामा नरेश्वर वरि, माहरूं कहिउं करि । अथवा विदर्भदेस कुंडिनपुरनगरीतणउ नरपति निहालि, जे विषमकालि; वहइ कर्णदानेश्वरतणउ अवतार, धनुर्धरपणइं हरइ अर्जुनतणउ कीर्तिप्राग्भार; जेहतणइ अतुल भंडार, प्रबलकोठार, झूझारतणउ नही पार; करइ शत्रुसंहार, करइ भट्ट कइवार; मलाइवार, महाउदार, कंठि वरमाल घाती ए मकरध्वज राजा अंगीकरि भर्त्तार। अथवा गौडदेस हंसपुरपाटणनु स्वामी सिंहरथ राजा जोइ, जीणि दीठइ आणंद होइ । जेह राजासंबंधीयइ कुंदमचकुंदकुमुदकेतकीकर्पूरधवलि कीर्त्ति मंडलि प्रसरतइ हुँतई नवी सृष्टि स्थापी, तं अंजनाचलपर्वतरहइ कैलासपर्वततणी पदवी आपी; यमुनातणइ स्थानकि कीघउ गंगाप्रवाहु, मित्र कीधा चंद्र नइ राहु; सरीषा कीधा हार नइ नाग, अंतर टालिउं बग नइ काग; ईश्वरहुई नीलकंठपणउं टालिउ, विष्णुहुई कृष्णपणउं पखालिउ; बलदेव बांधवपणउं उजुआलिउं । ईणिपरि जीणि ब्रह्मातणी सृष्टि फेरी, तेहनी किसी वात वषाणीयइ अनेरी । इसिउ अलवेश्वर, सिंहरथ नरेश्वर, करि तुं आपणउ जीवितेश्वर । ईणिपरि तीणई प्रतीहारीयइं राजा हरिकेतु सिंहकेतु मकरकेतु धूमकेतु पद्मरथ वीर्यबाहु सुवर्णबाहु शंखध्वज पद्मदेव पद्मानंद क्षेमंकर पृथ्वीधर सुबाहु रत्नांगद हेमांगद हेमरथ मणिरथ मणिशेषर रत्नशेखर चंद्रसोम सोमप्रभ सूरप्रभप्रमुख नरेश्वर वर्णव्या वषाण्या, पणि रत्नमंजरी कुंअरि मनइमाहि ना आण्या।
हिव आगलि दीठउ राजा पृथ्वीचंद्र, निहालिउ तेहतणउ मुषचंद्र, ऊलटिउ आनंदसागर, मनि चीतवइ एउ सही गुणतणउ आगर । तिवारइं प्रतीहारीयई कहिउं हे कुमरि सांभलि, पुरा पूर्वई सगर चक्रवर्ति हूउ विख्यात वसुधातलि । जेह सगरचक्रवर्तितणइ चउरासी लाष हस्ती, जीहतणि गति महाप्रशस्ती; चउरासी लाष तुरंग, ऊललता जिस्या हुई कुरंग, चउरासी लाष रथ सहिजिइं सुरंग; चउरासी लाष नींसाण वाजइं, वयरीना भडवाउ भाजइ; अत्यंत अभिराम, छन्नू कोडि ग्राम; गाम घोडउं काढतां छन्नू कोडि साहण मिलई, छन्नू कोडि पायक कलकलई; चऊद् सहस्र संबाध, चऊद सहस्र अमात्य अत्यंत साधु; जेहनइ चऊद्रत्न, देवता करइ यत्न; नवनिधान, बहुत्तरि सहस्र नगर प्रधान; अन्यायरहई दाटण, अडतालीस सहस्र पाटण; जेहे वसई
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