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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः अनेक कुटंब, इस्या चउबीस सहस्र मटंब; जीहना वर्णनतणी कीजइ जेड, इस्या सोलसहस्र घेड; जेह चक्रवर्तितणइ सवाकोडि व्यापारी, रिद्धि अत्यंत सारी; चरणि रुणझुणइ नेउर, इस्या चउसहि सहस्र अंतेउर; विहितोल्लास, अट्ठावीसउ लाष पिंडविलास; बत्तीससहस्र राय, प्रभाति प्रणमई पाय; प्रत्यक्ष, पंचवीससहस्र यक्ष; वीससहस्र सोनारूपातणा आगर, नवकोडि ध्वजाधर, छत्रीस लाष दीवटीया उदार, त्रिनिसई साठि सूआर। एवंविध प्रचंडभुजदंड, साधित भरतक्षेत्रषट्षंड; निरुपमस्फूर्ति, अद्भुतमूर्ति, इसिउ हूउ सगरचक्रवर्त्ति । हिव भगीरथ राजा हूउ सगरतणउ पुत्र, जीणइं गंगा समुद्रि घाति राषिउ आपणउं चरित्र । तीणइं राज्य पालिउ अनेक कोडिवरस, तेहनइ पुत्र हुआ दस । तेहमाहिइ एकरहई कुंतल इसि नाम, तेह कुंतलरहई दीधउं मरहठदेसि ठाम। तेह कुंतलतणइ वंसि जयवंत जयध्वज देवचंद्र देवानीकप्रमुख राय हुआ, तेहना प्रघट्टक कुणइ वर्णवाई जूजुया। देवानीकतणउ पुत्र हूउ राजा पृथ्वीशेषर । जीणि पुहिठाणपुर पाटण थापिउं, स्वर्गतणउ दर्शन प्रत्यक्ष आपिउ । हिव मधुरवाणि, तेहतणउ राजा पृथ्वीचंद्र जाणि । एउ नरेश्वर, ऐश्वर्यगुणि साक्षात् सुरेश्वर, धैर्यगुणि मेरु महीधरु, दानिगुणि नवीन जलधर, गांभीर्यगुणि क्षीरसागर; निर्मलपणइं गंगाजल, सौम्यपणई शशिमंडल; रूपिगुणि अश्विनीकुमार, परकलत्रपरिहरणगुणि गांगेयतणउ अवतार; विवेकगुणि राजहंस, चातुर्यगुणि बृहस्पतितणीपरि लब्धप्रशंस; पृथ्वीभारवहणि शेषनाग, एहऊपरि धरि तु अनुराग, इहां छई ताहरउ लाग । घणउं किसिउं कहीई। एह राजा विक्रमाक्रांतक्षोणीमंडल, शौर्यश्रीवदनारविंदप्रद्योतन, सकलमहीपाललीलाललितशासन, पालितश्रीजिनशासन, तुज वरिवा योग्य छइ । ते रत्नमंजरी कुमारि प्रतीहारितणां इस्यां वचन सांभली अंगि रोमांच धरती, नेउरतणा झमझमकार करती; हर्षभर वहती, राजाढूकडी पुहती । लाज ठेली, कंठकंलि वरमाल मेल्ही; तत्काल जयजयारव ऊछलिया, लोक कलकल्या; विद्याधर पुष्पवृष्टि करई, भट्ट जयजयशब्द उच्चरइं; गंधर्व गीत गाई, वादिनीया वादिन वाइं; वापरइ धवलमंगल, हुई महामहोत्सव विपुल । इति श्रीअंचलगच्छे श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरिकृते श्रीपृथ्वीचन्द्रचरित्रे
वाग्विलासे तृतीय उल्लासः ।
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