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________________ पृथ्वीचन्द्र चरित्र चतुर्थ उल्लासः हिव तिeिs अवसरि तेह राजालोकमाहि जे धूमकेतु राजा कहिउ तेहरहईं धूमकेतुदेवतण मंत्र स्फुरइ, तीणई जं चींतव तं करइ । धूमकेतुदेव अय्यासीग्रहमाहिल जांणिव । कवण कवण | अंगारक १ विकालिक २ लोहितांक ३ शनैश्वर ४ आधुनिक ५ प्राधुनिक ६ कण ७ कणकणक ८ कणक ९ वितानक १० कणसंतानक ११ सोम १२ सहित १३ अश्वासन १४ रुत १५ कार्योपग १६ कर्बुरक १७ अजकरक १८ दुंदुभक १९ शंख २० शंखनाभ २१ शंखवर्णाभ २२ कंस २३ कंसनाभ २४ कंसवर्णाभ २५ नील २६ नीलाव - भास २७ रुप्य २८ रुप्यावभास २९ भस्मक ३० भस्मराशि ३१ तिल ३२ तिलपुष्पवर्ण ३३ दक ३४ दकवर्ण ३५ काय ३६ वंध्य ३७ इंद्राग्नि ३८ धूमकेतु ३९ हरि ४० पिंगल ४१ बुध ४२ शुक्र ४३ बृहस्पति ४४ राहु ४५ अगस्ति ४६ माणव ४७ कामस्पर्श ४८ धुर ४९ प्रमुख ५० विकट ५१ विसंधिकल्प ५२ प्रकल्प ५३ जटाल ५४ अरुण ५५ अग्नि ५६ काल ५७ महाकाल ५८ स्वस्तिक ५९ सौवस्तिक ६० वर्द्धमान ६९ प्रलंब ६२ नित्यालोक ६३ नित्योद्योत ६४ स्वयंप्रभु ६५ अवभास ६६ श्रेयस्कर ६७ क्षेमंकर ६८ आरंभकर ६९ प्रभंकर ७० अरजा ७१ विरजा ७२ अशोक ७३ वीतशोक ७४ विप्स ७५ विवस्त्र ७६ विशाल ७७ शाल ७८ सुव्रत ७९ अनिवृत्ति ८० एकटी ८१ द्विजटी ८२ कर ८३ करिक ८४ राजा ८५ अर्गल ८६ पुष्प ८७ भावकेतु ८८ । इह अव्यासीग्रहमाहि धूमकेतु जाणिवउ । Jain Education International ११५ जिवारह पृथ्वीचंद्रराजातणइ कंठि वरमाला पडी, तेतलइ धूमकेतुराजाहुई रीस चडी। रोसें हुड विकराल, धूमकेतुदेवतातणउ मंत्र स्मरीनइ ऊछालिडं करवाल । ते खड्ग फीटी हूउ वेताल, जे उंचउ नवताल; कंठाविलंबित रुंडमाल, करतलि कपाल, बुभुक्षाभिभूत, जिसिउ यमदूत; कान टापरा, पग छापरा; आंषि कुंडी, पेटि कुंडी; आंषिं राती, हाथि काती; विकराल वेश, मोकला केश; हडहडाटि हसइ, घरामंडल धसइ; मस्तकि अंगीठउ बलइ, भैरवा जिम कलकलइ । इसिउं रूद्र रूप, केतलं वषाणीयइ तेहनूं स्वरूप । इसिउ वेताल देषी सहू भयभ्रांत हूउ । तेतलई धूमकेतुराजा ऊठी कन्या उपाडी रथि धातिवा लागउ । तेतलई राय राणा धसमसिवा लागा । तेतलई तेह जि वेतालनंतर अं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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