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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्घहः
ओया दीसहं बहुत गमार धंमहतणी न पूछई सार । जिण गुरि दीठइ दूरिहि जंति दुलहु माणुसुजंमु आलि गमंति ॥२०॥ अंतर विधि अविधिहि जाणंति मंदिर पइठ निसिहि न करंति । तालारासु रयणि न हु देइ लउडारसु मूलह वारेइ ॥ २१ ॥ अइसउ मंदिरु जगि प्रवहणु होइ धंमिउ लोउ चडइ सुह कोइ। पंचप्रमिटुिंनी जापउ करउ संसारसमुदु जिम लीलई तरउ ॥ २२ ॥ कहियइ थूलिभहु मुणिराउ मयण चरड भंजइ भडिवाउ। छ विगइ सो जनु चित्रसाली रहइ जगहमाहि थूलिभदुलीह लहइ ॥२३॥ खडभड राषि न इणि संसारि जुगप्रधान जोइ धंमु विचारि । सुद्धउ धरमु करिसि जइ किमइ जमणमरणह छुटिसि तिमइ ॥२४॥ गलइ आउ जिम अंजलिनीरु सीलु जु पालइ सो नर धीरु। कपिलनारि पेलइ विनाणि सीलु सुदरसणतणउं वखाणि ॥ २५ ॥ घडतउ फोडतउ वार न लाइ कर्मतणी विसमी गति काइ । जं जं करमु करइ तं होइ लषमणि दससिरु जीतउ जोइ ॥ २६ ॥ निच्छइ साहसिउ वजकुमार इंदु पसंसइ जो दयसारु । सुर बे आविया जउ सत पडइ कुमरु पारेवास धडि चडइ ॥२७॥ चल्लइ सबलवाहणु नरनाहु वीरवंदन हुउ अतिघणुं भाउ । दसाणभहु अतिगरवु करेइ इंदिहि जीतउ रिधि दाखेइ ॥ २८ ॥ छंडइ राजु रिद्धि षणमाहि इंदि जीतउ तं न सुहाइ। वीरपासि संजमुभरु लेइ इंदिहिं हारिउ चलण नमेइ ॥ २९ ॥ जनमु वयरसामिउ तिमसमइ छ मास रोयतउ रहइ न किमइ । धणगिरि विहरतु पहुतउ घरेइ साति पूतु हिव झोली धरेइ ॥ ३० ॥ झटकह तउ झोली घातियउ भारि गुरुह लेउ समपिउ । गुरु पभणइ पउ तिणि आपेहु कुमरह आवी सार करेहु ॥ ३१ ॥ निच्छइ जुगप्रधान जिउ होइ इह गुणवन्नणु सकइ न कोइ । पालणइ सूतउ श्रवणि सुणेइ इगारअंग तउ आणावेइ ॥ ३२॥ टलइ न पावज कुमरह किमइ मायडी झगडउ मांडियउ तिमह । राज विदीतु पूतु हउं लेसु मंदिर नेतउ परिणावेसु ॥ ३३ ॥ ठक्कर मिलिया ऊगडउ करई कुमरु अणावी तउ विचि धरई। वणफल रमणा सा ढोएइ धणगिरि रजोहरणु दाषेइ ॥ ३४ ॥
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