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________________ सम्यकत्वमाईचउपई डगडगतउ मनु रहइ न किमइ मायडी भवि भवि लाभइ तिमइ । सुगुरुमेलावउ दुलहउ हुंति पंचमहाव्रत सीहगिरि दिति ॥ ३५॥ ढाढसु कीयउं बालकुमारि सीहगिरि तउ हालियउ विहारि। सीस भणइं अम्ह वयण कु देइ वयरड मुनि तुम्ह काजु करेइ ॥ ३६॥ न गणउं अवरसीस जयसीह सीहगिरितणा सीस हुइ लीह । अभिनवदीषितु वयण कु देइ सीहगिरितणउं वयणु मानेइ ॥३७॥ तपु संजमु किउ वरिससहस्सु जीवदया पालिय गुणह निवासु । अंतकालि अटझाणि पडंति कंडरीकु सातमियहं जंति ॥ ३८ ॥ पुंडरीकु वरिससहसु कीउ रज्जु बिउ घडियहं तउ सारिउ कज्जु। पावज ले गुरु संमुहउ थाइ पंचविमाणे पुंडरीकु जाइ ॥ ३९॥ दस दिसि पसरिउ जगि जसवाउ नवअंगवित्तिकरणु गुरुराउ । थंभणि थप्पिउ पासजिणंदु पणमहु सुहगुरु अभयमुणिंदु ॥ ४०॥ धनु सु जिणवल्लहु वकाणि नाणरयणकेरी छइ खाणि । बइतालीससुङ पिंडु विहरेइ त्रिविधुमंदिर जगि प्रगटु करेइ ॥ ४१ ॥ नर निसुणहु सतगुर वरकाणु अंतस बूझउ थिउ सु जाणु । कुगुरवाणि तउ विसु उतरेइ सुगुरवाणि जउ अमिउ झरेइ ॥ ४२ ॥ परिणइ अट्ठ नारि करि लेइ बूझवणइ बइठउ कथा कहेइ । प्रभवु चोरु मंदिरि पइसेइ असुयणनिंद सयलजण देइ ॥ ४३ ॥ फहउ जंबुकुमरु इम भणइ विवाहुमहोच्छवु प्रभवु न गणइ । जंबुकुमरु जउ इसउ भणंति सवि थंभिया टगमग जोयंति ॥४४॥ बंधव अम्हस साटि करेज बिहुं विद्यावडइ इक थंभणी देज। कुमरु भणइ विद्या किस करेसु रिडि परिहरी प्रहहं व्रतु लेसु॥४५॥ भणइ प्रभवु नवजोवण नारि परणिय पुन्नवसिण संसारि । कामभोग भोगवि इणि समइ जोवण गइ व्रतु लेजे तिमइ ॥४६॥ मयणु चरडु सो मई वसि किउ मोहराउ पाडिउ नाथियउ । मधुबिंदसाहस इहु संसारु निसुणि प्रभव तुहु जोइ विचारु ॥४७॥ जगु पिंडाणु सयलु वरतेइ तुह विणु पितरह पिंडु कु देइ । महेसरदत्तकथा जउ कहइ प्रभवुउ सांभलिउ मनमाहि रहइ ॥४८॥ रतिपति जाणउं तई वसि कियउ नांत्रातणउं संबंधु किम थियउ। अढारह नात्राकथा कहंति प्रभवु सांभली तउ बूझंति ॥४९॥ ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003980
Book TitlePrachin Gurjar Kavyasangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC D Dalal
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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