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प्राचीनगूर्जरकाव्यसङ्ग्रहः लहणउ लाभइ इह जगमाहि जंबुसामिघरि रिडि न माइ। हूंती रिडि कुमरु परिहरइ प्रभवु पराई लेवा फिरइ ॥५०॥ वयणु कहउ पुणु नीजइ बाइ जंबुकुमर तुह परिणि काई। बालकुमारउ तउं व्रतु लियत नियनियमंदिरि अट्ठय रहत ॥५१॥ सांभलि प्रभव ज काइउँ हुँत जइ घरि रह त संसारि पडत। कथा कहिउ प्रतिबोधेसु नारि वलिउ न आवई इणि संसारि ॥५२॥ षडभड केही रिडिहितणी नवाणवइ कोडि सोना छइं घणी । जीमणइ हाथिहि तउ हउं देसु मणवंछिय मागण पूरेसु ॥५३॥ सा सिवकाजउ प्रगुणी करइ दानु दियंतउ तउं नीसरइ। माय बापु अहनारि चडंति पंचसयसहितु प्रभवु बइसंति ॥५४॥ हल्लिय सिबिका गाजे रली वजिय ढक्क बुक्क काहली । सिबिका उत्तरिउ चलण नमंति सुहमसामि सइं हथि व्रतु दिति॥५५॥ लंघिउ सायरु जउ व्रतु लिउ पंचमगतिप्रस्थान कियउ। जंबुसामिउच्छवु देखेइ बहुतु लोकु जाइउ व्रतु लेइ ॥ ५६ ॥ खयउं पापु जउ पावज लई घरसंसारचिंत तउ गई। मनि जीतइ इंद्रिय वसि थाई करम जिणिय नर सिद्धिहि जाइं ॥१७॥ मंगलु पहिलउ सोहमसामि बीजउ मंगल जंबूसामि। अगणिउ मंगलु प्रभव भणंति चउत्थउ मंगलु नारिहि हुंति ॥५८॥ गणियइ जुगवरु सोहमसामि बीजडउ जुगवर जंबूसामि । जीजउ जुगवरु प्रभवु भणंति सिज्झंभवु चउथउ जाणंति ॥ ५९॥ लंछणि सीह गोयमु पुच्छंति जुगप्रधान जगि केता हुंति । बिसहस चउं आगला कहेइ छेहिलउ दुपसहु तउ जाणेइ ॥ ६०॥ मंनउं जुगवरु जिणेसरसूरि पावु पणासइ रिसण दूरि। संदेहु म करहु जिम समिकतु रहइ भविभवि बोधिबीजु जिउ लहइ॥६॥ हासामिसि चउपईबंधु कियउ माईतणउ छेहु मइ नियउ । ऊणउ आगलउ किंपि भणेउ जगड भणइ संघु सयलु खमेउ॥६२॥ श्रीनंदउ समुदाघरि रहइ नंदउ विहिमंदिरु कवि कहइ । नंदउ जिणेसरसूरि मुणिंदु जा रवि ऊगइ ऊगइ चंदु ॥ ६३ ॥ माईतणउ अखसरु धुरि कियउ चडसठिचउपइयाबंधु थियउ । सुडइ मनि जे नर निसुणंति अणंतसुकु सिडिहि पावंति ॥ ६४॥
सम्यकत्वमाईचउपइ सम्पूर्णा.
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